भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी के बीच समानता
भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी आम में 11 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): देबी राय, फालगुनि राय, बासुदेब दाशगुप्ता, बाङ्ला भाषा, मलय रॉय चौधुरी, शक्ति चट्टोपाध्याय, सन्दीपन चट्टोपाध्याय, सुबिमल बसाक, विनय मजुमदार, अनिल करनजय, उत्पलकुमार बसु।
देबी राय
देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .
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फालगुनि राय
Falguni Roy by Subimal Basak 1995 फालगुनि राय (जन्म ७-०६-१९४५—मृत्यु ३१-०५-१९८१) (ফালগুনি রায়) बांग्ला साहित्यके भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) आन्दोलन के सबसे कम उमर के प्रमुख कवि हैं जो मात्र ३६ साल के अवधि में अपने मादक्सेवन एवम बोहेमियन जीवन के कारण तरुण लेखकों में किंबदन्ति बन गये हैं। उनके जीवनकाल में वह केवल एक ही काब्यग्रन्थ नष्टो आत्मार टेलिविशन प्रकाशित किये। १५ अगस्त १९७३ के दिन वह काव्यग्रन्थ का उन्मोचन खालासिटोला में किया गया था। आलोचकों का कहना है कि वह पुस्तक का प्रकाश का साल बांग्ला सहित्य में अपनेआप एक जलबिभाजक सा है; पुस्तक के प्रकाश से बांग्ला कविता में आधुनिकता के युग समप्त हो गये। अपने जीवनकाल में उन्होने जो सारे कवितायें लिखे वह अप्रकाशित कवितायें उनके म्ररणोपरान्त कोलकाता एवम ढाका से बारबार प्रकाशित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल एवम बांगलादेश में उनपर बहुत सारे शोध हो चुके हैं। .
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बासुदेब दाशगुप्ता
बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .
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बाङ्ला भाषा
बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .
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मलय रॉय चौधुरी
मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .
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शक्ति चट्टोपाध्याय
शक्ति चट्टोपाध्याय (जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५) (শক্তি চট্টোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र समीर रायचौधुरी के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में जेते पारि किन्तु केनो जाबो काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किय गया था। .
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सन्दीपन चट्टोपाध्याय
सन्दीपन चट्टोपाध्याय (जन्म १९३३ - मृत्यु २००५) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के कहानी-लेखक थे। उनहोने एक मौलिक शैली बनाये जिसे स्मार्ट एवम मेट्रोपलिटन भाषा कहा जाता है। १९६१ में प्रकाशित उनके लिखे कहानी-संकलन क्रीतदास क्रीतदासी ग्रन्थ बांग्ला साहित्य में एक नया निदर्शन कायम किया। बहुत सारे नवीन कहानीकार इस ग्रन्थ के शैली को नकल करके कहानीयां लिखा क्रते थे। आमि ओ वनबिहारि ग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया था। वह कोलकाता कारपोरेशन में एसेसर का काम क्रते थे एवम रिटायर करने के पश्चात आजकाल संवादपत्र से जुडे रहे। अपने साहित्यिक जीवन में उनहोने २१ उपन्यास एवम ७० कहानियां तथा अनगिनत टुकडा-लेख लिखे। बाद में वह बामपन्थी सरकार के समर्थक रहे। १९९५ में उनहें बंकिम पुरस्कार एवम २००२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। .
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सुबिमल बसाक
सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .
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विनय मजुमदार
विनय मजूमदार (१७ सितम्बर १९३४ - ११ दिसम्बर २००६) (বিনয় মজুমদার) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला साहित्य में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको हासपाताले लेखा कवितागौच्चो के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे। .
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अनिल करनजय
अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया.
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उत्पलकुमार बसु
उत्पल कुमार बसु (३ अगस्त १९३९) (উৎপলকুমার বসু) बांग्ला सहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) आन्दोलन के एक प्रमुख कवि हैं। १९६० तक वह कृत्तिवास गोष्ठी के सदस्य थे। भुखी पीढी आन्दोलन में योगदान के कारण उनके खिलाफ भी कोलकाता पुलिस समन निकाला था। इसके चलते उन्हे योगमाया देवी कालेज के प्राध्यापक के नौकरि से बरखास्त किया गया था। ततपश्चात वह विदेश चले गये एवम दस साल के लिये कविता लिखना त्याग दिया। दस साल बाद कोलकाता लौट कर उन्होने जो कवितायें प्रकाश करने लगे, साहित्य जगत में मानो तहलका मचा दिया। भुखी पीढी आन्दोलन के समय लिखे उनका पोपेर समाधि को सराहा गया है। .
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- क्या भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी लगती में
- यह आम भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी में है क्या
- भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी के बीच समानता
भूखी पीढ़ी और समीर रायचौधुरी के बीच तुलना
भूखी पीढ़ी 28 संबंध है और समीर रायचौधुरी 11 है। वे आम 11 में है, समानता सूचकांक 28.21% है = 11 / (28 + 11)।
संदर्भ
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