पाप और वैद्य की शपथ
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पाप और वैद्य की शपथ के बीच अंतर
पाप vs. वैद्य की शपथ
पाप या गुनाह मनुष्य द्वारा किये गए उन कार्यों को कहा जाता है, जो किसी भी धर्म में अस्वीकार्य माने जाते हैं। वे सभी कार्य, जो अध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्यों का ह्रास करते हों, या आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करते हों, पाप या गुनाह की श्रेणी में आते हैं। वह व्यक्ति, जो पाप करता है, पापी या गुनहगार कहलाता है। . भारत में वैद्य १५वीं शताब्दी ईसापूर्व से एक शपथ लेते रहे हैं जिसमें मांसभक्षण न करना, मद्यपान न करना और मिलावट न करना सम्मिलित है। इसके अलावा वैद्य को शपथ लेनी होती थी कि वे रोगियों का अहित नहीं करेंगे और अपने जीवन का खतरा लेकर भी उनकी देखभाल करेंगे। इस सम्बन्ध में चरकसंहिता में कुछ निर्देश और प्रतिज्ञाएँ दी गयीं हैं। चरक ने लिखा है कि विद्यार्थी को चाहिये कि स्नान-ध्यान करके अपने शरीर को पवित्र करे, यज्ञ द्वा देवताओं को प्रसन्न करे, फिर गुरु का आशीर्वाद लेकर यह प्रतिज्ञा करे- (चरकसंहिता, विमानस्थान, अध्याय ८, अनुच्छेद १३) चरकसंहिता में इन प्रतिज्ञाओं की सूची बहुत विस्तृत है, यह इस प्रकार है- उक्त शपथ तथा हिपोक्रीत्ज़ की शपथ में समानता ध्यान देने योग्य है। .
पाप और वैद्य की शपथ के बीच समानता
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संदर्भ
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