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उपदंश और चर्म रोग

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

उपदंश और चर्म रोग के बीच अंतर

उपदंश vs. चर्म रोग

उपदंश (Syphilis) एक प्रकार का गुह्य रोग है जो मुख्यतः लैंगिक संपर्क के द्वारा फैलता है। इसका कारक रोगाणु एक जीवाणु, 'ट्रीपोनीमा पैलिडम' है। इसके लक्षण अनेक हैं एंव बिना सही परीक्षा के इसका सही पता करना कठिन है। इसे सीरोलोजिकल परीक्षण द्वारा चिन्हित किया जाता है। इसका इलाज पेन्सिलिन नामक एण्टीबायोटिक से किया जाता है। यह सबसे प्राचीन और कारगर इलाज है। यदि बिना चिकित्सा के छोड़ दिया जाये तो यह रोग हृदय, मस्तिष्क, आंखों एंव हड्डियों को क्षति पहुंचा सकता है। इसकी उत्पत्ति के कारणों के मुख्य रूप से आघात, अशौच तथा प्रदुष्ट योनिवाली स्त्री के साथ संसर्ग बताया गया है। इस प्रकार यह एक औपसर्गिक व्याधि है जिसमें शिश्न पर ब्रण (sore) पाए जाते हैं। दोषभेद से इनके लक्षणों में भेद मिलता है। उचित चिकित्सा न करने पर संपूर्ण लिंग सड़-गलकर गिर सकता है और बिना शिश्न के अंडकोष रह जाते हैं। आयर्वेद में उपदंश के पाँच भेद बताए गए हैं जिन्हें क्रमश:, वात, पित्त, कफ, त्रिदोष एवं रक्त की विकृति के कारण होना बताया गया है। वातज उपदंश में सूई चुभने या शस्त्रभेदन सरीखी पीड़ा होती है। पैत्तिक उपदंश में शीघ्र ही पीला पूय पड़ जाता है और उसमें क्लेद, दाह एवं लालिमा रहती है। कफज उपदंश में खुजली होती है पर पीड़ा और पाक का सर्वथा अभाव रहता है। यह सफेद, घन तथा जलीय स्रावयुक्त होता है। त्रिदोषज में नाना प्रकार की व्यथा होती है और मिश्रित लक्षण मिलते हैं। रक्तज उपदंश में व्रण से रक्तस्राव बहुत अधिक होता रहता है और रोगी बहुत दुर्बल हो जाता है। इसमें पैत्तिक लक्षण भी मिलते हैं। इस प्रकार आयुर्वेद में उपदंश शिश्न की अनेक व्याधियों का समूह मालूम पड़ता है जिसमें सिफ़िलिस, सॉफ्ट शैंकर (soft chanchre) एवं शिश्न के कैंसर सभी सम्मिलित हैं। एक विशेष प्रकार का उपदंश जो फिरंग देश में बहुत अधिक प्रचलित था और जब भारतवर्ष में वे लोग आए तो उनके संपर्क से यहाँ भी गंध के समान वह फैलने लगा तो उस समय के वैद्यों ने, जिनमें भाव मिश्र प्रधान हैं, उसका नाम 'फिरंग रोग' रखा दिया। इसे आगंतुज व्याधि बताया गया अर्थात् इसका कारण हेतु जीवाणु बाहर से प्रवेश करता है। निदान में कहा गया है कि फिरंग देश के मनुष्यों के संसर्ग से तथा विशेषकर फिरंग देश की स्त्रियों के साथ प्रसंग करने से यह रोग उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का होता है एक बाह्य एवं दूसरा अभ्यंतर। बाह्य में शिश्न पर और कालांतर में त्वचा पर विस्फोट होता है। आभ्यंतर में संधियों, अस्थियों तथा अन्य अवयवों में विकृति हो जाती है। जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो दौर्बल्य, नासाभंग, अग्निमांद्य, अस्थिशोष एवं अस्थिवक्रता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। वस्तुत: फिरंग रोग उपदंश से भिन्न व्याधि नहीं है बल्कि उसी का एक भेद मात्र है। बहुत लोग इसे पर्याय भी मानने लगे हैं। . एक चर्मरोग त्वचा के किसी भाग के असामान्य अवस्था को चर्मरोग (dermatosis) कहते हैं। त्वचा शरीर का सनसे बड़ा तंत्र है। यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क में होता है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य तन्त्रों या अंगों के रोग (जैसे बाबासीर) भी त्वचा के माध्यम से ही अभिव्यक्त होते हैं। (या अपने लक्षण दिखाते हैं) त्वचा शरीर का सबसे विस्तृत अंग है साथ ही यह वह अंग है जो बाह्य जगत् के संपर्क (contact) में रहता है। यही कारण है कि इसे अनेक वस्तुओं से हानि पहुँचती है। इस हानि का प्रभाव शरीर के अंतरिक अवयवों पर नहीं पड़ता। त्वचा के रोग विभिन्न प्रकार के होते हैं। त्वचा सरलता से देखी जा सकती है। इस कारण इसके रोग, चाहे चोट से हों अथवा संक्रमण (infection) से हों, रोगी का ध्यान अपनी ओर तुरंत आकर्षित कर लेते हैं। sunil.

उपदंश और चर्म रोग के बीच समानता

उपदंश और चर्म रोग आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): जीवाणु

जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

उपदंश और जीवाणु · चर्म रोग और जीवाणु · और देखें »

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उपदंश और चर्म रोग के बीच तुलना

उपदंश 12 संबंध है और चर्म रोग 20 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.12% है = 1 / (12 + 20)।

संदर्भ

यह लेख उपदंश और चर्म रोग के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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