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ग़ोताख़ोरी और नृत्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ग़ोताख़ोरी और नृत्य के बीच अंतर

ग़ोताख़ोरी vs. नृत्य

मोनोफ़िन के साथ मुक्त ग़ोताख़ोरी करती हुई एक ग़ोताख़ोर ग़ोताख़ोरी पानी के अन्दर जाकर वहाँ कम या ज़्यादा समय व्यतीत करने की क्रिया को कहते हैं। ग़ोताख़ोरी में ग़ोताख़ोर साँस लेने के लिए अपने साथ हवा का बंदोबस्त ले जा सकते हैं या फिर कम समय के लिए अपना साँस रोककर पानी के अन्दर रह सकते हैं। स्कूबा ग़ोताख़ोरी में ग़ोताख़ोर अपने साथ हवा की टंकी और अन्य काम आने वाले चीज़ें ले जाते हैं जबकि मुक्त ग़ोताख़ोरी में हवा के बंदोबस्त के तामझाम के बिना ही ग़ोताख़ोरी की जाती है। पानी के अन्दर तैरने की आसानी के लिए अक्सर ग़ोताख़ोर पैरों में फ़िन इस्तेमाल करते हैं। ग़ोताख़ोरी या मुक्त डाइविंग, सांस रोक के की जाने वाली डाइविंग पानी के नीचे डाइविंग की विधा है जो गोताखोर की क्षमता पर निर्भर करता हैं की वो पानी में कितने देर तक सांस रोक कर रह सकता हैं। इसमें स्कूबा गियर जैसे श्वास लेने वाले उपकरणों का प्रयोग नहीं होता। ग़ोताख़ोरी गतिविधियों के उदाहरण हैं: पारंपरिक मछली पकड़ने की तकनीक, प्रतिस्पर्धी और गैर-प्रतिस्पर्धी फ्रीडाइविंग, प्रतिस्पर्धी और गैर-प्रतिस्पर्धी भाला फेक कर मछली पकड़ने की प्रतियोगिता, फ्रीडाइविंग फोटोग्राफी, लयबद्ध तैराकी, पानी के भीतर फुटबॉल, पानी के नीचे रग्बी, पानी के नीचे हॉकी, पानी के नीचे लक्ष्य शूटिंग। . भारतीय नृत्यनृत्य भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यह कला देवी-देवताओं- दैत्य दानवों- मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है। अमृत मंथन के पश्चात जब दुष्ट राक्षसों को अमरत्व प्राप्त होने का संकट उत्पन्न हुआ तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। इसी प्रकार भगवान शंकर ने जब कुटिल बुद्धि दैत्य भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह जिसके ऊपर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाए- तब उस दुष्ट राक्षस ने स्वयं भगवान को ही भस्म करने के लिये कटिबद्ध हो उनका पीछा किया- एक बार फिर तीनों लोक संकट में पड़ गये थे तब फिर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने मोहक सौंदर्यपूर्ण नृत्य से उसे अपनी ओर आकृष्ट कर उसका वध किया। भारतीय संस्कृति एवं धर्म की आरंभ से ही मुख्यत- नृत्यकला से जुड़े रहे हैं। देवेन्द्र इन्द्र का अच्छा नर्तक होना- तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा से हम भारतीयों के प्राचीन काल से नृत्य से जुड़ाव की ओर ही संकेत करता है। विश्वामित्र-मेनका का भी उदाहरण ऐसा ही है। स्पष्ट ही है कि हम आरंभ से ही नृत्यकला को धर्म से जोड़ते आए हैं। पत्थर के समान कठोर व दृढ़ प्रतिज्ञ मानव हृदय को भी मोम सदृश पिघलाने की शक्ति इस कला में है। यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है। जिसके कारण यह मनोरंजक तो है ही- धर्म- अर्थ- काम- मोक्ष का साधन भी है। स्व परमानंद प्राप्ति का साधन भी है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह कला-धारा पुराणों- श्रुतियों से होती हुई आज तक अपने शास्त्रीय स्वरूप में धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित न होती। इस कला को हिन्दु देवी-देवताओं का प्रिय माना गया है। भगवान शंकर तो नटराज कहलाए- उनका पंचकृत्य से संबंधित नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति- स्थिति एवं संहार का प्रतीक भी है। भगवान विष्णु के अवतारों में सर्वश्रेष्ठ एवं परिपूर्ण कृष्ण नृत्यावतार ही हैं। इसी कारण वे 'नटवर' कृष्ण कहलाये। भारतीय संस्कृति एवं धर्म के इतिहास में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि जिससे सफल कलाओं में नृत्यकला की श्रेष्ठता सर्वमान्य प्रतीत होती है। .

ग़ोताख़ोरी और नृत्य के बीच समानता

ग़ोताख़ोरी और नृत्य आम में 0 बातें हैं (यूनियनपीडिया में)।

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ग़ोताख़ोरी और नृत्य के बीच तुलना

ग़ोताख़ोरी 15 संबंध है और नृत्य 14 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (15 + 14)।

संदर्भ

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