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भारत-चीन युद्ध

सूची भारत-चीन युद्ध

भारत-चीन युद्ध जो भारत चीन सीमा विवाद के रूप में भी जाना जाता है, चीन और भारत के बीच 1962 में हुआ एक युद्ध था। विवादित हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई। चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियाँ रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी। चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये। चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया। चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से एक से अपनी वापसी की घोषणा भी की, हलाकिं अक्साई चिन से भारतीय पोस्ट और गश्ती दल हटा दिए गए थे, जो संघर्ष के अंत के बाद प्रत्यक्ष रूप से चीनी नियंत्रण में चला गया। भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है। इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। इस प्रकार की परिस्थिति ने दोनों पक्षों के लिए रसद और अन्य लोजिस्टिक समस्याएँ प्रस्तुत की। इस युद्ध में चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं किया गया था। .

21 संबंधों: चुशूल, चीन, डोकलाम विवाद 2017, तिब्बत, तवांग, तेनजिन ग्यात्सो, प्राण नाथ थापर, बृज मोहन कौल, भारत, भारत-चीन सम्बन्ध, भूटान, म्यान्मार, मैकमहोन रेखा, रेज़ांग ला, लद्दाख़, शिंजियांग, शीतयुद्ध, सी आइ ए, जवाहरलाल नेहरू, अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन

चुशूल

चुशूल (Chushul) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लेह ज़िलेमें स्थित एक गाँव है। यह चुशूल घाटी में स्थित है। .

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चीन

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .

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डोकलाम विवाद 2017

२०१७ का डोकलाम विवाद, डोकलाम (चीनी: 洞朗) में एक सड़क निर्माण को लेकर, भारतीय सशस्त्र बलों और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच जारी सैन्य सीमा गतिरोध को संदर्भित करता है। 18 जून, 2017 को इस गतिरोध की शुरुआत हुई, जब करीब 300 से 270 भारतीय सैनिक दो बुलडोज़र्स के साथ भारत-चीन सीमा पार कर पीएलए को डोकलाम में सड़क बनाने से रोक दिया। 9 अगस्त, 2017 को, चीन ने दावा किया कि केवल 53 भारतीय सैनिक और एक बुलडोजर अभी भी डोकलाम में हैं। जबकि भारत ने इस दावे को नकारते हुये कहा है कि उसके अभी भी वहाँ करीब 300-350 सैनिक उपस्थित है। सितम्बर माह में प्रस्तावित ब्रिक्स शिख्स्र सम्मेलन से थोडा ही पहले २८ अगस्त २०१७ को दोनों देशों ने अपनी सेनाएं पीछे हटाने का निर्णय लिया। समस्या को सुलझाने के कुछ हफ्ते बाद, चीन ने 500 सैनिकों के साथ फिर से सड़क निर्माण शुरू कर दिया है। .

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तिब्बत

तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी रंगों में) तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे तिब्बत का पठार तिब्बत (Tibet) एशिया का एक क्षेत्र है जिसकी भूमि मुख्यतः उच्च पठारी है। इसे पारम्परिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। इसके प्रायः सम्पूर्ण भाग पर चीनी जनवादी गणराज्य का अधिकार है जबकि तिब्बत सदियों से एक पृथक देश के रूप में रहा है। यहाँ के लोगों का धर्म बौद्ध धर्म की तिब्बती बौद्ध शाखा है तथा इनकी भाषा तिब्बती है। चीन द्वारा तिब्बत पर चढ़ाई के समय (1955) वहाँ के राजनैतिक व धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत में आकर शरण ली और वे अब तक भारत में सुरक्षित हैं। .

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तवांग

तवांग अरुणाचल प्रदेश प्रान्त का एक शहर है जो तवांग जिले का मुख्यालय भी है। तवांग अरुणाचल प्रदेश की उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। तवांग की उत्तर-पूर्व दिशा में तिब्बत, दक्षिण-पश्चिम में भूटान और दक्षिण-पूर्व में पश्चिम कमेंग स्थित है। तवांग हिमालय की तराई में समुद्र तल से 3500 मी.

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तेनजिन ग्यात्सो

चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (६ जुलाई, 1934 - वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन की कहा जाता है। .

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प्राण नाथ थापर

जनरल प्राण नाथ थापर (२३ मई, १९०६ - २३ जून, १९७५)भारतीय सेना के पांचवे सेना प्रमुख थे । .

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बृज मोहन कौल

बृज मोहन कौल भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल स्टाफ प्रमुख थे। उन्होंने १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद सेना से त्याग पत्र दे दिया। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत-चीन सम्बन्ध

भारत (हरा) तथा चीन (केसरिया) चीन व भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के लिए अनेक काम किये हैं। चीन और उसके सब से बड़े पड़ोसी देश भारत के बीच लंबी सीमा रेखा है। लम्बे अरसे से चीन सरकार भारत के साथ अपने संबंधों का विकास करने को बड़ा महत्व देती रही है। इस वर्ष की पहली अप्रैल को चीन व भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ है। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। इस तरह भारत चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने वाला प्रथम गैरसमाजवादी देश बना। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की औपचारिक स्थापना के बाद के पिछले 55 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों से गुजरे। उनका विकास आम तौर पर सक्रिय व स्थिर रहा, लेकिन, बीच में मीठे व कड़वी स्मृतियां भी रहीं। इन 55 वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में अनेक मोड़ आये। आज के इस कार्यक्रम में हम चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों का सिंहावलोकन करेंगे। प्रोफेसर मा जा ली चीन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध अनुसंधान संस्थान के दक्षिणी एशिया अनुसंधान केंद्र के प्रधान हैं। वे तीस वर्षों से चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों के अनुसंधान में लगे हैं। श्री मा जा ली ने पिछले भारत-चीन संबंधों के 55 वर्षों को पांच भागों में विभाजित किया है। उन के अनुसार, 1950 के दशक में चीन व भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं कीं और उनकी जनता के बीच भी खासी आवाजाही रही। दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध थे। लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में प्रवेश कर गये। इस के बावजूद दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध कई हजार वर्ष पुराने हैं। इसलिए, यह शीतकाल एक ऐतिहासिक लम्बी नदी में एक छोटी लहर की तरह ही था। 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया, तो दोनों देशों की सरकारों के उभय प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की बहाली हुई। 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों में गर्माहट आ चुकी थी। हालांकि वर्ष 1998 में दोनों देशों के संबंधों में भारत द्वारा पांच मिसाइलें छोड़ने से फिर एक बार ठंडापन आया। पर यह तुरंत दोनों सरकारों की कोशिश से वर्ष 1999 में भारतीय विदेशमंत्री की चीन यात्रा के बाद समाप्त हो गया। अब चीन-भारत संबंध कदम ब कदम घनिष्ठ हो रहे हैं। इधर के वर्षों में चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। चीन व भारत के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी है। भारत स्थित भूतपूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, अब चीन-भारत संबंध एक नये काल में प्रवेश कर चुके हैं। इधर के वर्षों में, चीन व भारत के नेताओं के बीच आवाजाही बढ़ी। वर्ष 2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेई ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय संबंध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय संबंधों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया। चीन व भारत के संबंध पुरानी नींव पर और उन्नत हो रहे हैं। विदेश नीति पर चीन व भारत बहुध्रुवीय दुनिया की स्थापना करने का पक्ष लेते हैं, प्रभुत्ववादी व बल की राजनीति का विरोध करते हैं और किसी एक शक्तिशाली देश के विश्व की पुलिस बनने का विरोध करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मौजूद वर्तमान विवादों का किस तरह निपटारा हो और देशों के बीच किस तरह का व्यवहार किया जाये ये दो समस्याएं विभिन्न देशों के सामने खड़ी हैं। चीन व भारत मानते हैं कि उनके द्वारा प्रवर्तित किये गये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उन लक्ष्यों तथा सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा पालन किया जाना चाहिए। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत यानी पंचशील चीन, भारत व म्येनमार द्वारा वर्ष 1954 के जून माह में प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है, और आज तक दोनों देशों की जनता की जबान पर है। देशों के संबंधों को लेकर स्थापित इन सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान किया जाये, एक- दूसरे पर आक्रमण न किया जाये, एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाये। ये सिद्धांत विश्व के अनेक देशों द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं और द्विपक्षीय संबंधों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों व दस्तावेजों में दर्ज किये गये हैं। पंचशील के इतिहास की चर्चा में भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत श्री छन रे शन ने बताया, द्वितीय विश्वॉयुद्ध से पहले, एशिया व अफ्रीका के बहुत कम देशों ने स्वतंत्रता हासिल की थी। लेकिन, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, उपनिवेशवादी व्यवस्था भंग होनी शुरू हुई। भारत व म्येनमार ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बाद में चीन को भी मुक्ति मिली। एशिया में सब से पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले देश होने के नाते, उन्हें देशों की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडला का कायम रहना बड़ा आवश्यक लगा और उन्हें विभिन्न देशों के संबंधों का निर्देशन करने के सिद्धांत की जरुरत पड़ी। इसलिए, इन तीन देशों के नेताओं ने मिलकर पंचशील का आह्वान किया। पंचशील ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सैद्धांतिक व यथार्थ कार्यवाइयों में रचनात्मक योगदान किया। पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने पंचशील की महत्वता की चर्चा इस तरह की। पंचशील का आज भी भारी महत्व है। वह काफी समय से देशों के संबंधों के निपटारे का निर्देशक मापदंड रहा है। एक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना करने के लिए पंचशील का कार्यावयन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इतिहास और अंतरराष्ट्रीय यथार्थ से जाहिर है कि पंचशील की जीवनीशक्ति बड़ी मजबूत है। उसे व्यापक जनता द्वारा स्वीकार किया जा चुका है। भिन्न-भिन्न सामाजिक प्रणाली अपनाने वाले देश पंचशील की विचारधारा को स्वीकार करते हैं। लोगों ने मान लिया है कि पंचशील शांति व सहयोग के लिए लाभदायक है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों व मापदंडों से पूर्ण रूप से मेल खाता हैं। आज की दुनिया में परिवर्तन हो रहे हैं। पंचशील का प्रचार-प्रसार आज की कुछ समस्याओं के हल के लिए बहुत लाभदायक है। इसलिए, पंचशील आज भी एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का आधार है। उस का आज भी भारी अर्थ व महत्व है और भविष्य में भी रहेगा। शांति व विकास की खोज करना वर्तमान दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है। पंचशील की शांति व विकास की विचारधारा ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्वस्थ विकास को आगे बढ़ाया है और भविष्य में भी वह एक शांतिपूर्ण, स्थिर, न्यायपूर्ण व उचित नयी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना में अहम भूमिका अदा करेगी। दोनों देशों के संबंधों को आगे विकसित करने के लिए वर्ष 2000 में पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने चीन की राजकीय यात्रा के दौरान, पूर्व चीनी राष्ट्राध्यक्ष च्यांग ज मिन के साथ वार्ता में भारत और चीन के जाने-माने व्यक्तियों के मंच के आयोजन का सुझाव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर श्री च्यांग ज मिन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। दोनों सरकारों ने इस मंच की स्थापना की पुष्टि की। मंच के प्रमुख सदस्य, दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व तकनीक तथा सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों के जाने माने व्यक्ति हैं। मंच के एक सदस्य श्री च्यो कांग ने मंच का प्रमुख ध्येय इस तरह समझाया, इस मंच का प्रमुख ध्येय दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने व्यक्तियों द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के विकास के लिए सुझाव प्रस्तुत करना और सरकार को परामर्श देना है। यह दोनों देशों के बीच गैरसरकारी आवाजाही की एक गतिविधियों में से एक भी है। वर्ष 2001 के सितम्बर माह से वर्ष 2004 के अंत तक इसका चार बार आयोजन हो चुका है। इसके अनेक सुझावों को दोनों देशों की सरकारों ने स्वीकृत किया है। यह मंच सरकारी परामर्श संस्था के रूप में आगे भी अपना योगदान करता रहेगा। हालांकि इधर चीन व भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की और चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया। घोषणापत्र में भारत ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत तिब्बत को चीन का एक भाग मानता है। इस तरह भारत सरकार ने प्रथम बार खुले रूप से किसी औपचारिक दस्तावेज के माध्यम से तिब्बत की समस्या पर अपने रुख पर प्रकाश डाला, जिसे चीन सरकार की प्रशंसा प्राप्त हुई। इस के अलावा, चीन व भारत के बीच सीमा समस्या भी लम्बे अरसे से अनसुलझी रही है। इस समस्या के समाधान के लिए चीन व भारत ने वर्ष 1981 के दिसम्बर माह से अनेक चरणों में वार्ताएं कीं और उनमें कुछ प्रगति भी प्राप्त की। वर्ष 2003 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल रहा। चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। सीमा समस्या के हल के लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर सलाह-मश्विरा जारी है। वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता व्यवस्था स्थापित की। भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना चाहिए। चीन सरकार ने सीमा समस्या के हल की सक्रिय रुख अपनाई है। चीन आशा करता है कि इसके लिए आपसी सुलह औऱ विश्वास की भावना के अनुसार, मैत्रीपूर्ण वार्ता के जरिए दोनों को स्वीकृत उचित व न्यायपूर्ण तरीकों की खोज की जानी चाहिए। विश्वास है कि जब दोनों पक्ष आपसी विश्वास, सुलह व रियायत देने की अभिलाषा से प्रस्थान करेंगे तो चीन-भारत सीमा समस्या के हल के तरीकों की खोज कर ही ली जाएगी। इस समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं। 21वीं शताब्दी के चीन व भारत प्रतिद्वंदी हैं और मित्र भी। अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों में व्यापक सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय, भारत और चीन का पक्ष समान रहा। अब दोनों देशों के सामने आर्थिक विकास और जनता के जीवन स्तर को सुधारने का समान लक्ष्य है। इसलिए, दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अनेक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं। चीन-भारत संबंधों के भविष्य के प्रति श्री मा जा ली बड़े आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा, समय गुजरने के साथ दोनों देशों के बीच मौजूद विभिन्न अनसुलझी समस्याओं व संदेहों को मिटाया जा सकेगा और चीन व भारत के राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ होंगे। इस वर्ष मार्च में चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ भारत की यात्रा पर जा रहे हैं। उनके भारत प्रवास के दौरान चीन व भारत दोनों देशों के नेता फिर एक बार एक साथ बैठकर समान रुचि वाली द्विपक्षीय व क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श करेंगे। श्री मा जा ली ने कहा, भविष्य में चीन-भारत संबंध और स्वस्थ होंगे और और अच्छे तरीके से आगे विकसित होंगे। आज हम देख सकते हैं कि चीन व भारत के संबंध लगतार विकसित हो रहे हैं। यह दोनों देशों की सरकारों की समान अभिलाषा भी है। दोनों पक्ष आपसी संबंधों को और गहन रूप से विकसित करने को तैयार हैं। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति नारायण ने कहा, मेरा विचार है कि चीन और भारत को द्विपक्षीय मैत्रीपूर्ण संबंधों को और गहरा करना चाहिए। हमारे बीच सहयोग दुनिया के विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर सकेंगे। .

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भूटान

भूटान का राजतंत्र (भोटान्त) हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है। यह चीन (तिब्बत) और भारत के बीच स्थित भूमि आबद्ध(Land Lock)देश है। इस देश का स्थानीय नाम ड्रुग युल है, जिसका अर्थ होता है अझ़दहा का देश। यह देश मुख्यतः पहाड़ी है और केवल दक्षिणी भाग में थोड़ी सी समतल भूमि है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से तिब्बत से जुड़ा है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर वर्तमान में यह देश भारत के करीब है। .

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म्यान्मार

म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .

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मैकमहोन रेखा

मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत एवं भारत अधिकृत क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है। यही सीमा-रेखा १९६२ के भारत-चीन युद्ध का केन्द्र एवं कारण थी। यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई का पर्वतीय स्थान है, जो मानचित्र में लाल रंग से दर्शित है। मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा है। यह अस्तित्व में सन् १९१४ में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत आई थी। १९१४ के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमारेखा का अस्तित्व कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु १९३५ में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। १९३७ में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में पर दिखाया गया था। इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से ८९० कि॰मी॰ और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक २६० कि॰मी॰ तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन १९१४ के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में ५६ हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। १९६२-६३ के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है। .

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रेज़ांग ला

रेज़ांग ला (Rezang La) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख़ क्षेत्र में चुशूल घाटी के दक्षिणपूर्व में उस घाटी में प्रवेश करने वाला एक पहाड़ी दर्रा है। यह २.७ किमी लम्बा और १.८ किमी चौड़ा है और इसकी औसत ऊँचाई १६,००० फ़ुट है। .

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लद्दाख़

नेपाल में लद्दाख़ का स्थान |- style.

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शिंजियांग

चीन का नक़्शा, शिंजियांग गहरे लाल रंग में शिन्जियांग में काराकोरम राजमार्ग के नज़दीक का दृश्य तियांची सरोवर बुरचिन ज़िले में एक नदी शिंजियांग (उइग़ुर:, अंग्रेज़ी: Xinjiang, चीनी: 新疆) जनवादी गणराज्य चीन का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। ये एक रेगिस्तानी और शुष्क इलाक़ा है इसलिए इस की आबादी बहुत कम है। शिंजियांग की सरहदें दक्षिण में तिब्बत और भारत, दक्षिण-पूर्व में चिंग हई और गांसू, पूर्व में मंगोलिया, उत्तर में रूस और पश्चिम में क़ाज़क़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से मिलती हैं। भारत का अक्साई चिन का इलाका भी, जिसपर चीन का क़ब्ज़ा है, प्रशासनिक रूप से शिंजियांग में शामिल है।, S. Frederick Starr, M.E. Sharpe, 2004, ISBN 978-0-7656-1318-9 शिंजियांग की राजधानी उरुमची नाम का शहर है, जबकि इसका सबसे बड़ा नगर काश्गर है। .

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शीतयुद्ध

नाटो तथा वार्सा संधि के देश द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के बीच उत्पन्न तनाव की स्थिति को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे 'शस्त्र सज्जित शान्ति' का नाम भी दिया गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने कंधे से कन्धा मिलाकर धूरी राष्ट्रों- जर्मनी, इटली और जापान के विरूद्ध संघर्ष किया था। किन्तु युद्ध समाप्त होते ही, एक ओर ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरी ओर सोवियत संघ में तीव्र मतभेद उत्पन्न होने लगा। बहुत जल्द ही इन मतभेदों ने तनाव की भयंकर स्थिति उत्पन्न कर दी। रूस के नेतृत्व में साम्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी देश दो खेमों में बँट गये। इन दोनों पक्षों में आपसी टकराहट आमने सामने कभी नहीं हुई, पर ये दोनों गुट इस प्रकार का वातावरण बनाते रहे कि युद्ध का खतरा सदा सामने दिखाई पड़ता रहता था। बर्लिन संकट, कोरिया युद्ध, सोवियत रूस द्वारा आणविक परीक्षण, सैनिक संगठन, हिन्द चीन की समस्या, यू-2 विमान काण्ड, क्यूबा मिसाइल संकट कुछ ऐसी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने शीतयुद्ध की अग्नि को प्रज्वलित किया। सन् 1991 में सोवियत रूस के विघटन से उसकी शक्ति कम हो गयी और शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी। .

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सी आइ ए

सीआइए के मुख्यालय का प्रवेशद्वार सीआइए या सेन्ट्रल इन्टेलिजेन्स एजेन्सी (केन्द्रीय गुप्तचर संस्था) संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सरकार के अन्दर कार्य करने वाली असैनिक (सिविल) गुप्तचर संस्था है। इसका मुख्य कार्य सार्वजनिक नीतिनिर्माताओं के मार्गदर्शन हेतु विश्व की सरकारों, औद्योगिक संगठनों (corporations) एवं व्यक्तियों के बारे में गुप्त सूचना एकत्रित करना एवं उसका विश्लेषण करना है .

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जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का पद सँभालने के लिए कांग्रेस द्वारा नेहरू निर्वाचित हुएँ, यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले 1941 में ही सुलझ चुका था, जब गांधीजी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में अभिस्वीकार किया। प्रधानमन्त्री के रूप में, वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। मुख्यतः, एक बहुवचनी, बहु-दलीय लोकतन्त्र को पोषित करते हुएँ, उन्होंने भारत के एक उपनिवेश से गणराज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया। विदेश नीति में, भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुएँ, उन्होंने गैर-निरपेक्ष आन्दोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुएँ और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुएँ, एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। उनके अन्तिम वर्षों में राजनीतिक मुसीबतों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बावजूद, वे भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहें। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। .

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अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश ('अरुणांचल' नहीं) भारत का एक उत्तर पूर्वी राज्य है। अरुणाचल का अर्थ हिन्दी मे "उगते सूर्य का पर्वत" है (अरूण + अचल; 'अचल' का अर्थ 'न चलने वाला' .

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अक्साई चिन

अक्साई चिन या अक्सेचिन (उईग़ुर:, सरलीकृत चीनी: 阿克赛钦, आकेसैचिन) चीन, पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है। यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत और हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रास्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था।, Prakash Charan Prasad, Abhinav Publications, 1977, ISBN 978-81-7017-053-2 १९५० के दशक से यह क्षेत्र चीन क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चीन द्वारा भारत पर आक्रमण (१९६२), १९६२ भारत-चीन युद्ध, १९६२ का भारत-चीन युद्ध, १९६२ के भारत-चीन युद्ध

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