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सूची १ − २ + ३ − ४ + · · ·

गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + ··· एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याएं होती हैं जिसके एकांतर चिह्न होते हैं अर्थात प्रत्येक व्यंजक के चिह्न, इसके पूर्व व्यंजक से विपरीत होते हैं। श्रेणी के प्रथम m पदों का योग सिग्मा योग निरूपण की सहायता से निम्नवत् लिखा जा सकता है: अनन्त श्रेणी के अपसरण का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम किसी परिमित मान की ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर ने विरोधाभासी समीकरण में लिखा: लेकिन इस समीकरण की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई। 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेल तथा अन्य ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषित विधि प्रदान की— जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा का "योग" लिखा जा सकता है। सिसैरा-संकलन उन विधियों में से एक है जो का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा एबल संकलन विधि की आवश्यकता होती है। श्रेणी, ग्रांडी श्रेणी से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी जहाँ (n यदृच्छ है), की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को बेसल समस्या तक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य फलनिक समीकरण के रूप में परिणत हुआ जिसे अब डीरिख्ले ईटा फलन और रीमान जीटा फलन के नाम से जाना जाता है। .

48 संबंधों: चतुष्फलकीय संख्या, टेलर प्रमेय, टेलर श्रेणी, एमिल बोरेल, डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले ईटा फलन, त्रिकोण संख्या, निरपेक्ष मान, नेल्स हेनरिक एबल, पद परीक्षण, परिमित अंतर, पुनरावृत्त फलन, प्रत्यावर्ती श्रेणी, प्राकृतिक संख्या, पूर्णांक, फलनिक समीकरण, फ़्रान्सीसी भाषा, बर्नूली संख्या, बेसल समस्या, बोरल संकलन, भौतिक शास्त्र, माध्यमान प्रमेय, यूजीन चार्ल्स कैटलन, रीमान जीटा फलन, रीमान-समाकल, लियोनार्ड ओइलर, श्रेणी (गणित), शून्य, सम और विषम अंक, समान्तर माध्य, सामान्यीकरण, सिसैरा-संकलन, संकलन, सुतीक्ष्ण समुच्चय, सुपरिभाषित, जॉन सी॰ बैज़, गणनीय समुच्चय, गणित, ग्रांडी श्रेणी, ऑटो होल्डर, आयलर संकलन, कलन, क्वांटम सरल आवर्ती दोलक, कौशी गुणनफल, अनुक्रम की सीमा, अपसारी श्रेणी, अर्नेस्टो सिसैरा, १ + २ + ३ + ४ + · · ·

चतुष्फलकीय संख्या

चतुष्फलकीय संख्या अथवा त्रिकोणीय पिरामिड संख्या चित्र संख्या है जो त्रिभुजाकार आधार और तीन अन्य फलकों को जोड़ने पर बनने वाली चतुष्फलकी आकृति पिरामिड को निरूपित करती है। nवीं चतुष्फलकीय संख्या, प्रथम n त्रिकोण संख्याओं के योग के बराबर होती है। प्रथम 10 चतुष्फलकीय संख्यायें निम्न हैं: .

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टेलर प्रमेय

कैलकुलस में, टेलर प्रमेय (Taylor's theorem) किसी फलन का किसी बिन्दु पर सन्निकट प्रसार देने वाला एक प्रमेय है। यह प्रमेय किसी k-बार अवकलन किए जाने योग्य फलन का किसी बिन्दु पर k-वें आर्डर के टेलर बहुपद के रूप में सन्निकटन (approximation) करता है। एक्सपोन्सियल फलन y .

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टेलर श्रेणी

गणित में टेलर श्रेणी (Taylor series) एक श्रेणी है किसी फलन को अनन्त पदों के योग से निरूपित करती है। ये पद उस फलन के किसी बिन्दु पर अवकलों के मान से निकाले जाते हैं। इसे अंग्रेज गणितज्ञ ब्रूक टेलर ने १७७५ में दिया था। .

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एमिल बोरेल

फेलिक्स एडवर्ड जस्टिल एमिल बोरेल (७ जनवरी १८७१ – ३ फ़रवरी १९५६) फ्रांसीसी गणितज्ञ और राजनीतिज्ञ थे। गणितज्ञ के रूप में उन्होंने मापन सिद्धान्त और प्रायिकता के क्षेत्र में कार्य के लिए जाने जाते हैं। .

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डीरिख्ले श्रेणी

गणित में डीरिख्ले श्रेणी निम्न प्रकार की श्रेणी को कहा जाता है: जहाँ s सम्मिश्र और a सम्मिश्र अनुक्रम है। यह सामान्य डीरिख्ले श्रेणी की विशेष अवस्था है। डीरिख्ले श्रेणी विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में विभिन्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रीमान जीटा फलन की सबसे प्रचलित परिभाषा डीरिख्ले एल-फलन के रूप में डीरिख्ले श्रेणी है। श्रेणी का नामकरण पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले के सम्मान में रखा गया। .

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डीरिख्ले ईटा फलन

गणित में, विश्लेषी संख्या सिद्धान्त के क्षेत्रफल में, 'डीरिख्ले ईटा फलन निम्नलिखित डीरिख्ले श्रेणी से परिभाषित किया जाता है जो किसी भी सम्मिश्र संख्या पर अभिसरित होती है जिसका वास्तविक भाग शून्य से अधिक है: डीरिख्ले श्रेणी रीमान जीटा फलन ζ(s) के डीरिख्ले विस्तार के प्रत्यावर्ती योग के तुल्य है — इसी कारण से डीरिख्ले ईटा फलन को प्रत्यावर्ती जीटा फलन भी कहते हैं और इसे ζ*(s) से निरुपित करते हैं। इसका निम्नलिखित सरल सम्बंध होता है: .

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त्रिकोण संख्या

त्रिकोण संख्या अथवा त्रिकोणीय संख्या दायीं ओर प्रदर्शित चित्र की तरह समबाहु त्रिभुज की रचना करने वाली वस्तुओं की गणना है। nवीं त्रिकोण संख्या, n बिन्दुओं से निर्मित भुजा वाले समबाहु त्रिभुज के कुल बिन्दुओं की संख्या है तथा इसका मान 1 से n तक की सभी n प्राकृत संख्याओं के योग के तुल्य है। त्रिकोणीय संख्याओं का अनुक्रम ०वीं त्रिकोण संख्या से आरम्भ होता है: त्रिकोण संख्यायें निम्न सुस्पष्ट सूत्र द्वारा दी जाती हैं: T_n.

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निरपेक्ष मान

वास्तविक संख्याओं के लिये निरपेक्ष मान फलन का ग्राफ गणित में किसी वास्तविक संख्या का निरपेक्ष मान या 'निरपेक्ष मूल्य' (absolute value) या 'मापांक' (modulus) |a| उस संख्या के चिह्न के बिना उसके आंकिक मान के बराबर होता है। उदाहरण के लिये 3 का निरपेक्ष मान 3 है, तथा -3 का भी निरपेक्ष मान भी 3 ही है। किसी संख्या के निरपेक्ष मान को उस संख्या की शून्य से दूरी के बराबर समझा जा सकता है।; उदाहरण.

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नेल्स हेनरिक एबल

नेल्स हेनरिक एबल नेल्स हेनरिक एबल (Niels Henrik Abel; १८०३-१८२९ ई.) नार्वे के गणितज्ञ थे। .

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पद परीक्षण

गणित में, अभिसरण के लिए nवें-पद का परीक्षण अनन्त श्रेणी के अभिसरण के लिए सरलतम परीक्षण है।Kaczor p.336.

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परिमित अंतर

परिमित अंतर f(x+b)- f(x+a) रूप का गणितीय व्यंजक है। यदि किसी परिमित अंतर को b − a से भाग दिया जाता है तो अंतर भागफल प्राप्त होता है। अवकल समीकरणों, मुख्यतः परिसीमा मान समस्याओं के संख्यात्मक हल में परिमित अन्तर विधि से अवकलज का सन्निकटन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुनरावृत्ति सम्बंधों को परिमित अन्तर के साथ पुनरावृत्ति निरूपण के स्थानान्तरण द्वारा अन्तर समीकरणों के रूप में लिखा जा सकता है। .

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पुनरावृत्त फलन

गणित में, पुनरावृत्त फलन X → X में परिभाषित (एक ऐसा फलन जो समुच्चय X से इसमें ही परिभाषित हो) फलन है जो इसी समुच्चय में अन्य फलन f: X → X को निश्चित संख्या में पुनरावृत्तियों से प्राप्त किया जाता है। प्रक्रिया के समान फलन के बार बार पुनरावृत्ति होने के कारण इसे पुनरावृत्ति फलन कहते हैं। इस प्रक्रिया को किसी निश्चित संख्या से आरम्भ किया जाता है और बाद में प्राप्त मान को फलन में निविष्ट करके तथा इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करके परिणाम प्राप्त किया जाता है। पुनरावृत्त फलनों का अध्ययन कम्प्यूटर विज्ञान, भग्न, गतिकीय तन्त्र, गणित और पुनः प्रसामान्यीकरण समूह भौतिकी में किया जाता है। .

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प्रत्यावर्ती श्रेणी

गणित में प्रत्यावर्ती श्रेणी निम्न प्रकार की अनन्त श्रेणी है: जहाँ n के सभी मानों के लिए an > 0 है। एक व्यापक पद का चिह्नप्रत्यावर्ती रूप से धनात्मक और ऋणात्मक होता है। .

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प्राकृतिक संख्या

प्राकृतिक संख्याओं से गणना की सकती है। उदाहरण: (ऊपर से नीचे की ओर) एक सेब, दो सेब, तीन सेब,... गणित में 1,2,3,...

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पूर्णांक

right पूर्ण संख्या धनात्मक प्राकृतिक संख्या, ऋणात्मक प्राकृतिक संख्या तथा शून्य के समूह को कहते हैं जैसे -2,-1,0,1,2 श्रेणी:गणित पूर्णांक श्रेणी:बीजीय संख्या सिद्धान्त.

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फलनिक समीकरण

गणित में, फलनिक समीकरण (functional equation) किसी भी निहित रूप में फलन को निर्दिष्ट करने वाली समीकरण है। अक्सर, समीकरण किसी फलन (फलनों) के किसी बिन्दु पर मान को अन्य बिन्दुओं पर मान से सम्बद्ध करती है। उदाहरण के लिए, फलन के गुणधर्म उनके द्वारा संतुष्ट होने वाली फलनिक समीकरणों से ज्ञात किये जा सकते हैं। शब्द फलनिक समीकरण सामान्यतः उन समीकरणों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो सामान्यतः बीजगणितीय समीकरणों द्वारा लघूकृत नहीं किये जा सकते। .

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फ़्रान्सीसी भाषा

फ़्रांसीसी भाषा (फ़्रांसीसी: français उच्चारण: फ़्रांसे) एक रोमांस भाषा है जो विश्वभर में लगभग ९ करोड़ लोगों द्वारा प्रथम भाषा के रूप में बोली जाती है। मूल रूप से इस भाषा को बोलने वाले अधिकांश लोग फ़्राँस में रहते हैं जहाँ इस भाषा का जन्म हुआ था। इस भाषा को बोलने वाले अन्य क्षेत्र ये हैं- अधिकांश कनाडा, बेल्जियम, स्विटज़रलैंड, अफ़्रीकी फ़्रेंकोफ़ोन, लक्ज़म्बर्ग और मोनाको। फ्रांसी भाषा १९ करोड़ लोगों द्वारा दूसरी भाषा के रूप में और अन्य २० करोड़ द्वारा अधिग्रहित भाषा के रूप में बोली जाती है। विश्व के ५४ देशों में इस भाषा को बोलने वालों की अच्छी भली संख्या है। फ़्रांसीसी रोमन साम्राज्य की लैटिन भाषा से निकली भाषा है, जैसे अन्य राष्ट्रीय भाषाएँ - पुर्तगाली, स्पैनिश, इटालियन, रोमानियन और अन्य अल्पसंख्यक भाषाएँ जैसे कैटेलान इत्यादि। इस भाषा के विकासक्रम में इसपर मूल रोमन गौल की कैल्टिक भाषाओं और बाद के रोमन फ़्रैकिश आक्रमणकारियों की जर्मनेक भाषा का प्रभाव पड़ा। यह २९ देशों में एक आधिकारिक भाषा है, जिनमें से अधिकांशतः ला फ़्रेंकोफ़ोनी नामक फ़्रांसीसी भाषी देशों के समुह से हैं। यह सयुंक्त राष्ट्र की सभी संस्थाओं की और अन्य बहुत से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भी आधिकारिक भाषा है। यूरोपीय संघ के अनुसार, उसके २७ सदस्य राष्ट्रों के १२.९ करोड़ (४९,७१,९८,७४० का २६%) लोग फ़्रांसीसी बोल सकते हैं, किसमें से ६.५ करोड़ (१२%) मूलभाष्ई हैं और ६.९ करोड़ (१४%) इसे दूसरी भाषा के रूप में बोल सकते हैं, जो इसे अंग्रेज़ी और जर्मन के बाद संघ की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बनाता है। इसके अतिरिक्त २० वीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेज़ी के अधिरोहण से पहले, फ़्रांसीसी यूरोपीय और औपनिवेशिक शक्तियों के मध्य कूटनीति और संवाद की प्रमुख भाषा थी और साथ ही साथ यूरोप के शिक्षित वर्ग की बोलचाल की भाषा भी थी। .

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बर्नूली संख्या

भिन्नों की एक श्रेणी को बर्नौली संख्याएँ (Bernoulli number) दिया जाता है, जैसे 1/6, 1/30, 1/42, 1/30, 5/66.....आदि। जेकब बर्नौली (Jacob Bernoulli) ने इस श्रेणी का प्रतिपादन किया था तथा उन्होंने इसका उपयोग प्रथम (x) पूर्णांकों के (n) घातों का योग निकालने के लिए किया। इन्हें B0, B1, B2, B3 आदि से निरूपित किया जाता है। संख्या सिद्धान्त से इन संख्याओं का निकट सम्बन्ध है। इस संख्याओं का उपयोग संख्याओं के सिद्धांत, अंतरकलन तथा निश्चित समाकलों के सिद्धांत से संबंधित गणितीय निर्धारणों में किया जाता है। tan x तथा tanh x के टेलर श्रेणी प्रसार में ये संख्याएँ आतीं हैं। .

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बेसल समस्या

बेसल समस्या संख्या सिद्धान्त से सम्बद्ध गणितीय विश्लेषण की समस्या है जो सर्वप्रथम पिएत्रो मंगोली ने १६४४ में दी और १७३४ में लियोनार्ड आयलर ने हल की। यह सर्वप्रथम द सेंट पीटर्सबर्ग एकेडेमी ऑफ़ साइंसेज (Петербургская Академия наук) में ५ दिसम्बर १७३५ को प्रकाशित हुई। बेसल समस्या प्राकृत संख्याओं के वर्ग के व्युत्क्रम के संकलन के बारे में है अर्थात अनन्त श्रेणी के योग का यथार्थ मान: \sum_^\infty \frac .

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बोरल संकलन

गणित में बोरल संकलन अथवा बोरेल संकलन एमिल बोरेल (१८९९) द्वारा अपसारी श्रेणियों के लिए दी गयी संकलन विधि है। यह विधि मुख्यतः अपसारी अलक्षणी श्रेणियों का योग प्राप्त करने के लिए उपयोगी है तथा कुछ अर्थों में ऐसी श्रेणियों के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणाम देती है। इस विधि में विभिन्न विविधता के पायी जाती है और इन सब विधियों को भी बोरल संकलन कहते हैं तथा इसके सामान्यीकरण को 'मिटेग-लिफलेर संकलन' कहते हैं। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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माध्यमान प्रमेय

गणित में, माध्य मान प्रमेय के अनुसार किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य दिये गये किसी चाप पर कम से कम एक ऐसा बिन्दु विद्यमान होगा जिसपर चाप की स्पर्शरेखा अन्तकविन्दुओं को मिलाने वाली छेदक रेखा के समानान्तर होगी। यह प्रमेय किसी फलन के किसी दिये गये अन्तराल में, इसके बिन्दुओं के मध्य अवकलज की स्थानिक परिकल्पना से सम्बंधित वैश्विक कथन को सिद्ध करने के लिए काम में ली जाती थी। अधिक निश्चितता से, यदि कोई फलन f बंद अंतराल पर सतत है, जहाँ a f'(c) .

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यूजीन चार्ल्स कैटलन

यूजीन चार्ल्स कैटलन (30 मई 1814 – 14 फ़रवरी 1894) फ़्रांसीसी और बेलजियन गणितज्ञ थे। .

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रीमान जीटा फलन

रीमान जीटा फलन अथवा आयलर–रीमान जीटा फलन, ζ(s), उन सम्मिश्र चर s का फलन है जो अनन्त श्रेणी के संकलन में वैश्लेषिक हैं जो s के वास्तविक मान के 1 से अधिक होने पर अभिसारी होती है। सभी s के लिए ζ(s) व्यापक निरूपण नीचे दिया गया है। रीमान जीटा फलन विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में मुख्य फलन के रूप में प्रयुक्त होता है और इसके अनुप्रयोग भौतिकी, प्रायिकता सिद्धांत और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी में मिलते हैं। वास्तविक तर्क के फलन के रूप में, यह फलन १८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में सम्मिश्र विश्लेषण का उपयोग किये बिना (क्योंकि उस समय यह उपलब्ध नहीं थी) पहली बार लियोनार्ड आयलर ने किया था। बर्नहार्ड रीमान ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख "दिये गये परिमाण से छोटी अभाज्य संख्याओं पर" (मूल जर्मन: Ueber die Anzahl der Primzahlen unter einer gegebenen Grösse) आयलर की परिभाषा सम्मिश्र चरों के लिए विस्तारित किया तथा फलनिक समीकरण और अनंतकी अनुवर्ती सिद्ध किया एवं शून्य व अभाज्य संख्याओं के बंटन में सम्बन्ध स्थापित किया। धनात्मक सम संख्याओं पर रीमान जीटा फलन के मान आयलर द्वारा अभिकलित किये गये। इनमें प्रथम ζ(2) बेसल समस्या का हल प्रदान करता है। सन् १९७९ में एपेरी ने ''ζ''(3) की अपरिमेयता सिद्ध की। नकारात्मक पूर्णांक बिन्दुओं के लिए भी आयलर के अनुसार परिमेय संख्यायें प्रतिरूपक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले एल-फलन और एल-फलन के रूप में रीमान जीटा फलन के विभिन्न व्यापकीकरण ज्ञात हैं। .

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रीमान-समाकल

गणित की वास्तविक विश्लेषण के रूप में पहचानी जाने वाली शाखा में रीमान समाकलन किसी फलन का किसी अन्तराल में परिभाषित प्रथम निश्चित परिभाषा है। यह परिभाषा बर्नहार्ड रीमान ने दी थी। विभिन्न फलनोम और प्रायोगिक अनुप्रयोगों के लिए रीमान समाकलन कलन की मूलभूत प्रमेय अथवा संख्यात्मक समाकलन के सन्निकटन द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। रीमान समाकलन विभिन्न सैद्धान्तिक उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त है। .

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लियोनार्ड ओइलर

लियोनार्ड ओइलर लियोनार्ड ओइलर (Leonhard Euler; १५ अप्रैल १७०७, बाज़ेल - १८ सितंबर १७८३) एक स्विस गणितज्ञ थे। ये जोहैन बेर्नूली के शिष्य थे। गणित के संकेतों को भी ऑयलर की देन अपूर्व है। इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया। 1734 ई. में ऑयलर ने x के किसी फलन के लिए f (x), 1728 ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए e, 1750 ई. में अर्ध-परिमिति के लिए s, 1755 ई. में योग के लिए Σ और काल्पनिक ईकाई के लिए i संकेतों का प्रचलन किया। 1766 ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (18 सितंबर 1783 ई.) शोधकार्य में संलग्न रहे। .

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श्रेणी (गणित)

गणित में किसी अनुक्रम के जोड़ को सीरीज कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कोई श्रेणी सीमित (लिमिटेड) हो सकती है या अनन्त (इनफाइनाइट)। .

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शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

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सम और विषम अंक

विश्व के कुछ शहरों में घरों को संख्यांक देने की यह परंपरा है कि सड़क की एक तरफ सम अंक होते हैं और सड़क की दूसरी तरफ विषम अंक। यदि किसी घर-ढूंढते हुए वाहनचालक को घर-संख्या मालूम हो तो उसे सड़क के केवल एक ही ओर देखने की आवश्यकता होती है गणित में सम (even) ऐसी संख्याओं को कहा जाता है जो २ द्वारा पूर्णतः विभाज्य (डिविज़िबल​) हों, जैसे कि ०, २, ४, ६, ८, इत्यादि। यही कहने का एक और तरीका है कि सभी सम अंक २ के गुणज (मल्टिपल) होते हैं। इस से विपरीत विषम (odd) अंक ऐसे अंकों को कहा जाता है, जो २ द्वारा विभाज्य नहीं होते, जैसे १, ३, ५, ७, ९, ११, आदि। यद्यपि मूल रूप से सम-विषम की अवधारणा अंको पर लगाई जाती थी, आधुनिक गणित में इसे अन्य चीज़ों पर भी लागू किया जाता है। किसी चीज़ की गणितीय समता (parity) उसका वह लक्षण होती है जो यह बतलाए कि वह सम है या विषम। .

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समान्तर माध्य

गणित एवं सांख्यिकी में समान्तर माध्य (arithmetic mean) नमूने के आंकड़ों की केन्द्रीय प्रवृत्ति (central tendency) की एक गणितीय माप है। इसे प्रायः 'औसत' (average) या 'माध्य' (mean) ही कहते हैं। किन्तु जब इसे दूसरे प्रकार के माध्यों (जैसे ज्यामितीय माध्य या हरात्मक माध्य) से अलग करते हुए देखना हो तो इसे 'समान्तर माध्य' कहते हैं। गणित एवं सांख्यिकी के अलावा समान्तर माध्य का अर्थनीति, समाजशास्त्र, इतिहास आदि में प्रायः देखने को मिलता है। उदाहरण- .

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सामान्यीकरण

सामान्यीकरण अथवा व्यापकीकरण शब्द के आगमनात्मक संवेद में अवधारणा अथवा कम-विशिष्टता वाली कसौटी की अवधारणा का विस्तार है। .

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सिसैरा-संकलन

सिसैरा-संकलन गणितीय विश्लेषण में, सिसैरो संकलन सामान्य अर्थों में अभिसरण नहीं करने वाले अनन्त संकलन को मान निर्दिष्ट करता है जो मानक संकलन के साथ सन्निपतित होता है यदि वह अभिसारी हो। सिसैरा संकलन श्रेणी के आंशिक संकलन के समान्तर माध्य के सीमान्त मान के रूप में परिभाषित होता है। सिसैरा संकलन का नामकरण इतालवी विश्लेषक अर्नेस्टो सिसैरा (1859–1906) के सम्मान में रखा गया। .

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संकलन

संख्याओं के किसी क्रम को जोड़ने की संक्रिया संकलन (Summation) कहलाती है। इसका परिणाम योग (sum) या कुलयोग (total) कहलाती है। .

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सुतीक्ष्ण समुच्चय

गणित में सुतीक्ष्ण समुच्चय अथवा पोइंटेड समुच्चय (आधारी समुच्चय अथवा नियत समुच्चय भी) (X, x_0) का क्रमित युग्म है जहाँ X एक समुच्चय तथा x_0 समुच्चय X का एक अवयव है जिसे इसका आधार बिन्दु कहते हैं तथा इसे अधार बिन्दु अथवा बेसपॉइंट पढ़ा जाता है। सुतीक्ष्ण समुच्चयों (X, x_0) और (Y, y_0) पर प्रतिचित्रण (जिसे आधार प्रतिचित्रण, सुतीक्ष्ण प्रतिचित्रण, अथवा बिन्दू-सरंक्षी प्रतिचित्रण कहा जाता है) X से Y में परिभाषित फलन हैं जो एक से अन्य में आधार बिन्दु का प्रतिचित्रण करते हैं। उदाहरण के लिए f: X \to Y इस प्रकार है कि f(x_0) .

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सुपरिभाषित

गणित में, किसी कथन को सुपरिभाषित कहा जाता है यदि यह स्पष्ट है और इसके अवयव इसके निरूपण से स्वतंत्र होते हैं। अधिक सरल शब्दों में, इसका मतलब यह है कि एक गणितीय कथन प्रत्यक्ष और स्पष्ट हो। विशेष रूप से, एक फलन सुपरिभाषित कहलाता है यदि इसके निविष्ट में बदलाव किये बिना इसके रूप में परिवर्तन (जिस रूप में यह प्रस्तुत किया जाता है) करने पर यह समान परिणाम देता है। एक सुपरिभाषित फलन 0.5 के लिए वही परिणाम देता है जो 1/2 के लिए देता है। शब्द सुपरिभाषित को एक तार्किक कथन के स्पष्ट के लिए भी काम में लिया जाता था और आंशिक अवकल समीकरण को सुपरिभाषित कहा जाता है यदि यह सीमाओं पर सतत है। .

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जॉन सी॰ बैज़

जॉन कार्लोस बीज़ (जन्म: जून 12, 1961) अमेरिकी गणितीय भौतिक विज्ञानी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, रिवरसाइट में गणित के प्रोफेसर हैं। उन्हें लूप क्वांटम गुरुत्व में स्पिन फोम्स पर कार्य के लिए जाना जाता है। कुछ समय के लिए उनका शोध भौतिकी और अन्य वस्तुओं में उच्च श्रेणियों के अनुप्रयोगों पर आधारित थी। बीज़ विज्ञान समर्थकों में "दिस वीक्ज फाइंड्स इन मैथेमेटिकल फीजिक्स के लेखक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। .

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गणनीय समुच्चय

गणित में, गणनीय समुच्चय (countable set) वह समुच्चय है जिसमें प्राकृत संख्याओं के समुच्चय के किसी उपसमुच्चय के समान गणनांक (अवयवों की संख्या) है। गणनीय समुच्चय या तो परिमित समुच्चय होता है अथवा गणनीय अनन्त समुच्चय होता है। या तो अपरिमित या फिर अनन्त, अर्थात किसी गणनीय समुच्चय के अवयव या तो एक बार में गिने जा सकते हैं अथवा गणना कभी भी समाप्त न हो जिसमें समुच्चय का प्रत्येक अवयव किसी एक प्राकृत संख्या से सम्बद्ध हो। कुछ लेखकों के अनुसार गणनीय समुच्चय का अर्थ केवल अनन्त गणनीय होता है।उदाहरण के लिए देखें। इस अस्पष्टता से बचने के लिए, परिमित समुच्चयों के लिए अधिक से अधिक गणनीय शब्द का प्रयोग किया जा सकता है और अन्य स्थितियों में अनन्त गणनीय, संख्येय अथवा प्रगणनीय शब्द प्रयुक्त किये जाते हैं।See.

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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ग्रांडी श्रेणी

गणित में 1 − 1 + 1 − 1 + · · · को निम्न प्रकार भी लिखा जाता है \sum_^ (-1)^n जिसे ग्रांडी श्रेणी भी कहा जाता है, यह नामकरण इतालवी गणितज्ञ, दार्शनिक और पादरी लुइगी गुइडो ग्रांडी के नाम से किया गया जिन्होंने इसे 1703 में प्रतिपादित किया था। यह एक अपसारी श्रेणी श्रेणी है, अर्थात सामन्य शब्दों में एसका मान प्राप्त नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ इसका सिसैरा योग 1/2 प्राप्त है। .

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ऑटो होल्डर

ऑटो लुडविग होल्डर (२२ दिसम्बर १८५९ – २९ अगस्त १९३७) श्टुटगार्ट में जन्मे जर्मन गणितज्ञ थे। होल्डर ने पहले पॉलीटेक्नीकुम (वर्तमान श्टुटगार्ट विश्वविद्यालय) में और बाद में १८७७ में बर्लिन में पढ़ने चले गये। वो होल्डर असमानता, जोर्डन-होल्डर प्रमेय जैसी असमिकाओं के लिए जाने जाते हैं। .

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आयलर संकलन

अभिसरण और अपसारी श्रेणी की गणित में आयलर संकलन एक संकलनीय विधि है। अर्थात यह किसी श्रेणी को एक मान निर्दिष्ट करने की, आंशिक योग के सीमान्त मान वाली पारम्परिक विधियों से अलग एक विधि है। यदि किसी श्रेणी Σan का आयलर रुपांतरण इसके योग पर अभिसरित होता है तो इस योग को मूल श्रेणी का आयलर संकलन कहते हैं। इसी प्रकार अपसारी श्रेणी के लिए मान परिभाषित करने के लिए आयलर योग को श्रेणी के तीव्र अभिसरण के लिए काम में लिया जा सकता है। आयलर योग को (E, q) द्वारा निरुपित किये गये जाने वाली विधियों के एक परिवार के रूप में व्यापकीकृत किया जा सकता है, जहाँ q ≥ 0 है। योग (E, 0) प्रायिक (अभिसारी) योग है जबकि (E, 1) साधारण आयलर योग है। ये सभी विधियाँ वास्तव में बोरेल संकलन से दुर्बल हैं; q > 0 के लिए एबल संकलन के तुल्य होता है। .

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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क्वांटम सरल आवर्ती दोलक

क्वांटम सरल आवर्ती दोलक (quantum harmonic oscillator) चिरसम्मत सरल आवर्ती दोलक का क्वांटम यांत्रिकरण है। .

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कौशी गुणनफल

गणित में दो अनुक्रमों \textstyle (a_n)_, \textstyle (b_n)_ का कौशी गुणनफल दो अनुक्रमों का विविक्त संवलन अनुक्रम \textstyle (c_n)_ है जिसका व्यापक पद निम्नलिखित है अन्य शब्दों में यह एक अनुक्रम है जिससे सम्बद्ध सामान्य घात श्रेणी \textstyle \sum_^\infty c_nX^n समान रूप से सम्बद्ध (a_n)_ और (b_n)_ की श्रेणियों का गुणनफल है। .

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अनुक्रम की सीमा

जैसे-जैसे धन-पूर्णांक n का मान बढ़ता है n sin(1/n) का मान स्वेच्छिक रूप से 1 की ओर अग्रसर होता है। अतः हम कह सकते हैं कि "अनुक्रम n sin(1/n) का सीमान्त मान 1 के बराबर होता है।" गणित में अनुक्रम की सीमा वह मान है जिसकी ओर अनुक्रम के पद अग्रसर होते हैं।Courant (1961), p. 29.

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अपसारी श्रेणी

गणित में अपसारी श्रेणी एक अनन्त श्रेणी है जो अभिसारी नहीं है, मतलब यह कि श्रेणी के आंशिक योग का अनन्त अनुक्रम का सीमान्त मान नहीं होता। यदि एक श्रेणी अभिसरण करती है तो इसका व्याष्‍टिकारी पद (nवाँ पद जहाँ n अनन्त की ओर अग्रसर है।) शून्य की ओर अग्रसर होना चहिए। अतः कोई भी श्रेणी जिसका व्याष्‍टिकारी पद शून्य की ओर अग्रसर नहीं होता तो वह अपसारी होती है। तथापि अभिसरण की शर्त थोडी प्रबल है: जिस श्रेणियों का व्याष्‍टिकारी पद शून्य की ओर अग्रसर हो वह आवश्यक रूप से अभिसारी नहीं होती। इसका एक गणनीय उदाहरण निम्न हरात्मक श्रेणी है: हरात्मक श्रेणी का अपसरण मध्यकालीन गणितज्ञ निकोल ऑरेसम द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। .

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अर्नेस्टो सिसैरा

अर्नेस्टो सिसैरा (Ernesto Cesàro; १२ मार्च १८५९ – १२ सितम्बर १९०६) इतालवी गणितज्ञ थे जिन्होंने अवकल ज्यामिति के क्षेत्र में कार्य किया। यह उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान था जिसका वर्णन उन्होंने ज्यामिति के बारिकियों पर १८९० में लिखी अपनी पुस्तक में किया था। इस कार्य में वक्रों का वर्णन भी समाहित जिन्हें आज सिसैरा के नाम से नामकरण किया जाता है। सिसैरा का जन्म नापोलि में हुआ। उन्हें अपसारी श्रेणी के संकलन के लिए अपनी औसत विधि के लिए जाना जाता है जिसे अब सिसैरा माध्य के नाम से भी जाना जाता है। .

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१ + २ + ३ + ४ + · · ·

सभी प्राकृत संख्याओं का योग 1 + 2 + 3 + 4 + · · · एक अपसारी श्रेणी है। श्रेणी का nवाँ आंशिक योग त्रिकोण संख्या है जो जैसे ही n का मान अनन्त की ओर अग्रसर होता है वैसे बिना किसी सीमा के बढता है। यद्यपि पूर्ण श्रेणी को प्रथम दृष्टया देखने पर यह इस प्रकार लगता है जैसे यह अर्थहीन है, इसको गणितीय रूप से रोचक परिणाम वाली संख्या के रूप में प्रकलकलित किया जा सकता है, जिसके अनुप्रयोग अन्य क्षेत्रों जैसे सम्मिश्र विश्लेषण, क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत और स्ट्रिंग सिद्धांत में होता है। .

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