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हेमचन्द्र श्रेणी

सूची हेमचन्द्र श्रेणी

वर्गों सहित खपरैल, जिसकी भुजाएं लंबाई में क्रमिक फाइबोनैचि संख्याएं हैं युपाना ("गणन यंत्र" के लिए क्वेचुआ) एक कैलकुलेटर है, जिसका उपयोग इन्कास ने किया. शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रति क्षेत्र आवश्यक कणों की संख्या को कम करने के लिए परिकलन फाइबोनैचि संख्याओं पर आधारित थे.0 फाइबोनैचि खपरैल में वर्गों के विपरीत कोनों को जोड़ने के लिए चाप के चित्रण द्वारा तैयार फाइबोनैचि सर्पिल घुमाव; इसमें 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21 और 34 आकार के वर्गों का उपयोग हुआ है; देखें स्वर्णिम सर्पिल गणित में संख्याओं का निम्नलिखित अनुक्रम हेमचंद्र श्रेणी या फिबोनाची श्रेणी (Fibonacci number) कहलाता हैं: परिभाषा के अनुसार, पहली दो हेमचंद्र संख्याएँ 0 और 1 हैं। इसके बाद आने वाली प्रत्येक संख्या पिछले दो संख्याओं का योग है। कुछ लोग आरंभिक 0 को छोड़ देते हैं, जिसकी जगह दो 1 के साथ अनुक्रम की शुरूआत की जाती है। गणितीय सन्दर्भ में, फिबोनाची संख्या के F n अनुक्रम को आवर्तन संबंध द्वारा दर्शाया जा सकता है- तथा, अंगूठाकार फिबोनाची अनुक्रम का नाम पीसा के लियोनार्डो फिबोनाची के नाम पर रखा गया, जो फाइबोनैचि (फिलियस बोनैचियो का संक्षिप्त रूप, "बोनैचियो के बेटे") के नाम से जाने जाते थे। फाइबोनैचि द्वारा लिखित 1202 की पुस्तक लिबर अबेकी ने पश्चिम यूरोपीय गणित में इस अनुक्रम को प्रवर्तित किया, हालांकि पहले ही भारतीय गणित में इस अनुक्रम का वर्णन किया गया है.

20 संबंधों: द्विपद गुणांक, पत्ती, पिंगला, प्राचीन भारत, पीसा, भारतीय गणित, मेरु प्रस्तार, मील, संगीत, सूरजमुखी, हेमचन्द्राचार्य, वित्त बाज़ार, खरगोश, गणित, गोपाल (गणितज्ञ), अनानास, अनुक्रम, अपरिमेय संख्या, अभाज्य संख्या, छन्दशास्त्र

द्विपद गुणांक

द्विपद गुणांकों को मेरुप्रस्तार या पास्कल त्रिकोण के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। गणित में, द्विपद प्रमेय के प्रसार में जो धनात्मक पूर्णांक आते हैं, उन्हें द्विपद गुणांक (binomial coefficient) कहते हैं। उदाहरण के लिये, 2 ≤ n ≤ 5 के लिये द्विपद प्रमेय का स्वरूप इस प्रकार है: अतः .

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पत्ती

पत्ती का चित्र पत्ती संवहनीय पादपों का एक अंग है। पत्तियाँ और तना सम्मिलित रूप से प्ररोह (shoot) बनाते हैं। पत्तियाँ पर्वसन्धियों से निकलती हैं। इनके कक्ष में एक कक्ष-कलिका होती है। पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण की महत्वपूर्ण क्रिया होती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी पत्तियों में होती हैं। साधारणतः पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं, सरल पत्ती एवं संयुक्त पत्ती। कुछ प्रमुख पत्तियों का आकार .

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पिंगला

पिंगला, योग शास्त्रों के मुताबिक तीन प्रमुख नाड़ियों में से एक है। इससे शरीर में प्राण शक्ति का वहन होता है जिसके फलस्वरूप शरीर में ताप बढ़ता है। इससे शरीर को श्रम, तनाव और थकावट सहने की क्षमता प्रदान करता है। यह मनुष्य को बहिर्मुखी बनाता है। Category:योग.

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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पीसा

यह इटली का एक प्रमुख नगर है। यह टस्कनी प्रदेश की राजधानी है। मध्य ऐतिहासिक काल तक यह नगर समुद्रतट पर स्थित था, परंतु आरनी नदी द्वारा मुहाने पर अवसादों के निरंतर संचय से समुद्र पीछे हट गया है। यह महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। यहाँ के मुख्य उद्योग धंधे हैं रेल का सामान, मोटरसाइकिल, बाईसिकिल, सूती वस्त्र, काँच तथा मिट्टी के बरतन, औषधियाँ, मकरोनी तथा दियासलाई बनाना। यह नगर संगमरमर की मूर्तियों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है तथा यहाँ रोमन एवं गोथिक वास्तुकला की सुंदर कृतियाँ मिलती हैं। महान गणितज्ञ तथा वैज्ञानिक गैलीलिओ का यह जन्मस्थान है। यहाँ विश्वप्रसिद्ध लीनिंग टावर ऑव पीज़ा अर्थात् पीज़ा की झुकी मीनार है, जो 179 फुट ऊँची है तथा लंब से लगभग 4 डिग्री झुकी हुई है। मीनार में आठ मंजिलें हैं। पीज़ा प्रांत: यह मध्य इटली के टस्कनी क्षेत्र का प्रदेश है। इसका क्षेत्रफल 1,419 वर्ग किलोमीटर है। श्रेणी:इटली.

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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मेरु प्रस्तार

pascal triangleगणित में, मेरुप्रस्तार या हलायुध त्रिकोण या पास्कल त्रिकोण (Pascal's triangle) द्विपद गुणांकों को त्रिभुज के रूप में प्रस्तुत करने से बनता है। पश्चिमी जगत में इसका नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल के नाम पर रखा गया है। किन्तु पास्कल से पहले अनेक गणितज्ञों ने इसका अध्ययन किया है, उदाहरण के लिये भारत के पिंगलाचार्य, परसिया, चीन, जर्मनी आदि के गतिज्ञ। मेरु प्रस्तार की छः पंक्तियां मेरु प्रस्तार का सबसे पहला वर्णन पिंगल के छन्दशास्त्र में है। जनश्रुति के अनुसार पिंगल पाणिनि के अनुज थे। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू॰ अनुमानित है। छन्दों के विभेद को वर्णित करने वाला 'मेरुप्रस्तार' (मेरु पर्वत की सीढ़ी) पास्कल (Blaise Pascal 1623-1662) के त्रिभुज से तुलनीय बनता है। पिंगल द्वारा दिये गये मेरुप्रस्तार (Pyramidal expansion) नियम की व्याख्या हलायुध ने अपने मृतसंंजीवनी में इस प्रकार की है- मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिकोण) की निर्माण विधि .

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मील

मील विभिन्न मापन प्रणालियों में लंबाई की एक इकाई है। मील प्रणाली मुख्यत: ब्रिटेन से संबंधित है जहां एक कानूनी मील, 5280 फुट या 1760 गज या 1609.344 मीटर के बराबर होता है। एक सर्वेक्षण मील 5280 फुट या 1609.3472 मीटर के बराबर होता है, जबकि एक समुद्री मील, 1852 मीटर (6076.12 फुट) के बराबर होता है। यह लंबाई की पुरातन इकाई लीग का लगभग एक तिहाई होता है। .

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संगीत

नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .

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सूरजमुखी

पूरा बीज (दाएं) और कर्नेल बिना छिलके के (बाएं) सूरजमुखी या 'सूर्यमुखी' (वानस्पतिक नाम: हेलियनथस एनस) अमेरिका के देशज वार्षिक पौधे हैं। यह अनेक देशों के बागों में उगाया जाता है। यह कंपोजिटी (Compositae) कुल के हेलिएंथस (Helianthus) गण का एक सदस्य है। इस गण में लगभग साठ जातियाँ पाई गई हैं जिनमें हेलिएंथस ऐमूस (Helianthus annuus), हेलिएंथस डिकैपेटलेस (Helianthus decapetalus), हेलिएंथिस मल्टिफ्लोरस (Helianthus multiflorus), हे.

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हेमचन्द्राचार्य

ताड़पत्र-प्रति पर आधारित '''हेमचन्द्राचार्य''' की छवि आचार्य हेमचन्द्र (1145-1229) महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, गणितज्ञ एवं अद्भुत प्रतिभाशाली मनीषी थे। भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्रमें उनका नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाड्मयके सभी अंड्गो पर नवीन साहित्यकी सृष्टि तथा नये पंथको आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था। संस्कृत के मध्यकालीन कोशकारों में हेमचंद्र का नाम विशेष महत्व रखता है। वे महापंडित थे और 'कालिकालसर्वज्ञ' कहे जाते थे। वे कवि थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्रमर्मज्ञ थे, जैनधर्म और दर्शन के प्रकांड विद्वान् थे, टीकाकार थे और महान कोशकार भी थे। वे जहाँ एक ओर नानाशास्त्रपारंगत आचार्य थे वहीं दूसरी ओर नाना भाषाओं के मर्मज्ञ, उनके व्याकरणकार एवं अनेकभाषाकोशकार भी थे। समस्त गुर्जरभूमिको अहिंसामय बना दिया। आचार्य हेमचंद्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्र्वासों से मुक्त हो कीर्ति का कैलास एवं धर्मका महान केन्द्र बन गया। अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र सर्वजनहिताय एवं सर्वापदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। १२वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वलभी, उज्जयिनी, काशी इत्यादि समृद्धिशाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परामें गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। .

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वित्त बाज़ार

अर्थ के संबंध में वित्त बाजार (financial market) वह व्यवस्था है जो लोगों को वित्तीय प्रतिभूतियों (जैसे शेयर, बांड आदि), वस्तुओं (जैसे मूल्यवान धातुएँ, कृषि उत्पाद आदि) एवं अन्य सामानों के क्रय-विक्रय (व्यापार) की सुविधा देता है ताकि वे कम खर्चे पर दक्षतापूर्वक क्रय-विक्रय कर सकें। .

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खरगोश

ख़रघोश खरहारूपी गण के खरहादृष्ट कुल के, खरहा और पिका के साथ, छोटे स्तनधारी हैं। खनखरहा शशबिल में यूरोपीय ख़रगोश और उसके वंशज, पालतू ख़रगोश की दुनिया की ३०५ नस्ले शामिल हैं। सिल्वीखरहा में तेरह वन्य ख़रगोश शामिल हैं, जिनमें से सात कपासपुच्छ के प्रकार हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर परिचय में आया हुआ यूरोपीय ख़रगोश, दुनिया भर में एक जंगली शिकार प्राणी के रूप में और पशुधन और पालतू जानवर के पालतू रूप में परिचित है। पारिस्थितिकी और संस्कृतियों पर इसके व्यापक प्रभाव के साथ, खरगोश (या बनी) दुनिया के कई क्षेत्रों में, दैनिक जीवन का एक हिस्सा है- भोजन, कपड़ों और साथी के रूप में, और कलात्मक प्रेरणा के स्रोत के रूप में। वह लेपोरिडी परिवार का एक छोटा स्तनपायी है, जो विश्व के अनेक स्थानों में पाया जाता है। विश्व में खरगोश की आठ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। खरगोश जंगलों, घास के मैदानों, मरुस्थलों तथा पानी वाले इलाकों में समूह में रहते हैं। अंगोरा ऊन खरगोश से प्राप्त होता है। ख़रगोश अपने दिमाग़ में हर जगह का नक़्शा बनाता है और उसको कोई चीज़ इधर से उधर होना पसंद नहीं होता है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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गोपाल (गणितज्ञ)

गोपाल एक प्राचीन भारतीय गणितज्ञ थे। इन्होने ११३५ में उन संख्याओं का अध्ययन किया था जिन्हें आजकल फिबोनाकी संख्याएँ या गोपाल-हेमचन्द्र संख्याएँ कहा जाता है। .

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अनानास

अनन्नास (अंग्रेज़ी:पाइनऍप्पल, वैज्ञा:Ananas comosus) एक खाद्य उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है हालांकि तकनीकी दृष्टि से देखें, तो ये अनेक फलों का समूह विलय हो कर निकलता है। यह मूलतः पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है। अनन्नास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी सेवन किया जाता है। इसे खाने के उपरांत मीठे के रूप में सलाद के रूप में एवं फ्रूट-कॉकटेल में मांसाहार के विकल्प के रूप में प्रयोग भी किया जाता है।। याहू जागरण मिष्टान्न रूप में ये उच्च स्तर के अम्लीय स्वभाव (संभवतः मैलिक या साइट्रिक अम्ल) का होता है। अनन्नास कृषि किया गया ब्रोमेल्याकेऐ एकमात्र फल है। अनन्नास फल व अनुप्रस्थ काट अनन्नास के औषधीय गुण भी बहुत होते हैं। ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है। इसमें क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलिया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है। ये गले एवं मूत्र के रोगों में लाभदायक है। इसके अलावा ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। अनन्नास में प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है। एक प्याला अनन्नास के रस-सेवन से दिन भर के लिए आवश्यक मैग्नीशियम के ७५% की पूर्ति होती है। साथ ही ये कई रोगों में उपयोगी होता है। इस फल में पाया जाने वाला ब्रोमिलेन सर्दी और खांसी, सूजन, गले में खराश और गठिया में लाभदायक होता है। यह पाचन में भी उपयोगी होता है। अनन्नास अपने गुणों के कारण नेत्र-ज्योति के लिए भी उपयोगी होता है। दिन में तीन बार इस फल को खाने से बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी कम हो जाने का खतरा कम हो जाता है। आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के शोधों के अनुसार यह कैंसर के खतरे को भी कम करता है। ये उच्च एंटीआक्सीडेंट का स्रोत है व इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। .

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अनुक्रम

वस्तुओं की किसी क्रमित सूची को अनुक्रम (sequence) कहते हैं। अनुक्रम में 'क्रम' का महत्व है जबकि समुच्चय में क्रम का महत्व नहीं होता। अनुक्रम में एक ही सदस्य अलग-अलग स्थानों पर भी आ सकते हैं। अनुक्रम के सदस्य 'कुछ भी' हो सकते हैं, जैसे संख्याएँ, शब्द, वर्ण, रंग, नाम आदि। अनुक्रम सीमित या असीमित दोनों प्रकार के होते हैं। अनुक्रम के कुछ उदाहरण: श्रेणी और अनुक्रम अलग-अलग हैं। श्रेणी, 'संख्याओं के योग' का नाम है। इस श्रेणी में जो संख्याएँ जोड़ी जा रहीं हैं उनका एक अनुक्रम है। अर्थात .

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अपरिमेय संख्या

गणित में, अपरिमेय संख्या (irrational number) वह वास्तविक संख्या है जो परिमेय नहीं है, अर्थात् जिसे भिन्न p /q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, जहां p और q पूर्णांक हैं, जिसमें q गैर-शून्य है और इसलिए परिमेय संख्या नहीं है। अनौपचारिक रूप से, इसका मतलब है कि एक अपरिमेय संख्या को एक सरल भिन्न के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये २ का वर्गमूल, और पाई अपरिमेय संख्याएँ हैं। यह साबित हो सकता है कि अपरिमेय संख्याएं विशिष्ट रूप से ऐसी वास्तविक संख्याएं हैं जिन्हें समापक या सतत दशमलव के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता है, हालांकि गणितज्ञ इसे परिभाषा के रूप में नहीं लेते हैं। कैंटर प्रमाण के परिणामस्वरूप कि वास्तविक संख्याएं अगणनीय हैं (और परिमेय गणनीय) यह मानता है कि लगभग सभी वास्तविक संख्याएं अपरिमेय हैं। शायद, सर्वाधिक प्रसिद्ध अपरिमेय संख्याएं हैं π, e और √२.

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अभाज्य संख्या

वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और १ के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें अभाज्य संख्या कहते हैं। वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ जो अभाज्य संख्याँ (whole number) नहीं हैं उन्हें भाज्य संख्या कहते है। अभाज्य संख्याओं की संख्या अनन्त है जिसे ३०० ईसापूर्व यूक्लिड ने प्रदर्शित कर दिया था। १ को परिभाषा के अनुसार अभाज्य नहीं माना जाता है। प्रथम २५ अभाज्य संख्याएं नीचे दी गयीं हैं- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47, 53, 59, 61, 67, 71, 73, 79, 83, 89, 97 अभाजय संख्याओं का महत्व यह है कि किसी भी अशून्य प्राकृतिक संख्या के गुणनखण्ड को केवल अभाज्य संख्याओं के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और यह गुणनखण्ड एकमेव (unique) होता है। इसे अंकगणित का मौलिक प्रमेय कहा जाता है। .

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छन्दशास्त्र

छन्दः शास्त्र पिंगल द्वारा रचित छन्द का मूल ग्रन्थ है। यह सूत्रशैली में है और बिना भाष्य के अत्यन्त कठिन है। इस ग्रन्थ में पास्कल त्रिभुज का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे 'मेरु-प्रस्तार' कहा गया है। दसवीं शती में हलायुध ने इस पर 'मृतसंजीवनी' नामक भाष्य की रचना की। अन्य टीकाएं-.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

फिबोनाची श्रेणी, फिबोनाची संख्या, फिबोनाची संख्याएँ, फिबोनाकी श्रेणी, फिबोनाकी सिरीस, हेमचन्द्र श्रेणी (फिबोनाची श्रेणी)

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