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हपुषा

सूची हपुषा

हपुषा (Juniper) एक कोणधारी वृक्ष है जिसकी ५० से ६७ जीववैज्ञानिक जातियाँ हैं जो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर विस्तृत हैं। यह कूप्रेसाएसिए जीववैज्ञानिक कुल में आते हैं, जिसका सबसे प्रसिद्ध वृक्ष-प्रकार सरो है। हपुषा आयुर्वेद और अन्य पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों में बहुत महत्वपूर्ण है। .

13 संबंधों: तालिसपत्र, पादप, पायनालेज़, पृथ्वी, सरो, जाति (जीवविज्ञान), वृक्ष, आयुर्वेद, कार्ल लीनियस, कुल (जीवविज्ञान), कूप्रेसाएसिए, कोणधारी, उत्तरी गोलार्ध

तालिसपत्र

तालिसपत्र के बीजों के इर्द-गिर्द एक लाल बीजचोल होता है - इस चित्र में कुछ छोटे बीज ऐसे भी दिख रहें हैं जिनपर यह बीजचोल नहीं बना है इंग्लैण्ड में उगते कुछ तालिसपत्र के वृक्ष तालिसपत्र, बिरमी या ज़रनब (अंग्रेज़ी: yew, यू) एक कोणधारी वृक्ष है जो दुनिया के उत्तरी गोलार्ध (हॅमिस्फ़ीयर) के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलता है। इसकी बहुत सी (३० से ज़्यादा) नस्लें हैं जिनमें से कुछ छोटे पेड़ हैं और कुछ झाड़ियाँ हैं। इनकी बहुत सी टहनियाँ होती हैं जिनपर सदाबहार पत्ते लगे होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में यह वृक्ष हिमालय क्षेत्र में मिलते हैं। इन पेड़ों पर लगे नर कोण बहुत छोटे होते हैं (२ से ५ मिलीमीटर)। मादा कोण भी छोटे होते हैं और उनमें सिर्फ़ एक बीज बनता है। जैसे-जैसे बीज पनपता है उसके बाहर एक छोटे फल जैसा लाल-सुर्ख़ चोला (बीजचोल या ऐरिल) बनता है। यह रसदार और मीठा होता है जिस वजह से चिड़ियाँ इसे बीज समेत खा लेती हैं और फिर दूर-दराज़ के इलाक़ों में बीज गिरा देती हैं। मनुष्यों के लिए तालिसपत्र के बीज बहुत ज़हरीले होते हैं इसलिए इन्हें कभी भी नहीं खाना चाहिए। .

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पादप

पादप या उद्भिद (plant) जीवजगत का एक बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकांश सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में समर्थ होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं। हरा शैवाल (green algae) भी पादप है जबकि लाल/भूरे सीवीड (seaweeds), कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पादप के अन्तर्गत नहीं आते। पादपों के सभी प्रजातियों की कुल संख्या की गणना करना कठिन है किन्तु प्रायः माना जाता है कि सन् २०१० में ३ लाख से अधिक प्रजाति के पादप ज्ञात हैं जिनमें से 2.7 लाख से अधिक बीज वाले पादप हैं। पादप जगत में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इनके भोजन बनाने की क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। पादपों में सुकेन्द्रिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। पादप जगत इतना विविध है कि इसमें एक कोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल बरगद के वृक्ष शामिल हैं। ध्यातव्य है कि जो जीव अपना भोजन खुद बनाते हैं वे पौधे होते हैं, यह जरूरी नहीं है कि उनकी जड़ें हों ही। इसी कारण कुछ बैक्टीरिया भी, जो कि अपना भोजन खुद बनाते हैं, पौधे की श्रेणी में आते हैं। पौधों को स्वपोषित या प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है। 'पादपों में भी प्राण है' यह सबसे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने कहा था। पादपों का वैज्ञानिक अध्ययन वनस्पति विज्ञान कहलाता है। .

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पायनालेज़

पायनालेज़ (Pinales) वृक्षों का वह जीववैज्ञानिक गण है जिसमें वह सारे कोणधारी (कोनिफ़ेरस​) पेड़ आते हैं जो इस समय विश्व में अस्तित्व में हैं। इस गण को पहले 'कोनिफ़ेरालेज़​' (Coniferales) कहा जाता था। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से पायनालेज़ 'पिनोप्सिडा' (Pinopsida) जीववैज्ञानिक वर्ग का हिस्सा है जो आगे 'पिनोफ़ाईटा' (Pinophyta) या 'कोणधारी' विभाग में आता है। पायनालेज़ की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह वृक्ष और पौधे प्रजनन के लिए कोण (शंकु) बनाते हैं। हालांकि सभी जीवित कोणधारी पायनालेज़ के गण में आते हैं, कुछ अतिप्राचीन कोणधारियों के जीवाश्म (फ़ोसिल) मिले हैं जो इस गण में नहीं थे।, Australian Heritage Council, pp.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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सरो

सरो (अंग्रेज़ी: cypress, सिप्रेस) कूप्रेसाएसिए नामक जीववैज्ञानिक कुल में सम्मिलित कई कोणधारी वृक्ष जातियों का नाम है। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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वृक्ष

fdgfdf c/xdfffffgfg/ffggg एक वृक्ष वृक्ष का सामान्य अर्थ ऐसे पौधे से होता है जिसमें शाखाएँ निकली हों, जो कम से कम दो-वर्ष तक जीवित रहे, जिससे लकड़ी प्राप्त हो। वृक्ष की एक जड़ होती है जो प्रायः ज़मीन के अन्दर में होती है, तथा जड़ से निकलकर तना तथा पत्तियां हवा में रहते हैं। यह प्रदूषण कम करने में कारगर सिद्ध हुआ है। पर लकड़ियो तथा ज़मीन की आवश्यकताओं के कारण लोग इसे काटते जा रहे हैं। .

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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कार्ल लीनियस

कार्ल लीनियस (लैटिन: Carolus Linnaeus) या कार्ल वॉन लिने (२३ मई १७०७ - १० जनवरी १७७८) एक स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री, चिकित्सक और जीव विज्ञानी थे, जिन्होने द्विपद नामकरण की आधुनिक अवधारणा की नींव रखी थी। इन्हें आधुनिक वर्गिकी (वर्गीकरण) के पिता के रूप में जाना जाता है साथ ही यह आधुनिक पारिस्थितिकी के प्रणेताओं मे से भी एक हैं। .

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कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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कूप्रेसाएसिए

कूप्रेसाएसिए (Cupressaceae) कोणधारी (कोनिफ़ेरस​) वृक्षों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसकी सदस्य जातियाँ विश्व-भर में पाई जाती हैं। इस कुल को कभी-कभी अनौपचारिक रूप से सरो (साइप्रेस, cypress) भी कहा जाता है। हपुषा (जूनिपर) और रेडवुड भी इसी कुल में सम्मिलित हैं। .

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कोणधारी

उत्तरी कैलीफ़ोरनिया में एक कोणधारियों का जंगल कोणधारी या शंकुधारी (अंग्रेज़ी: coniferous, कॉनिफ़ॅरस) वृक्षों की एक क़िस्म है। यह ठन्डे या कम गरम इलाक़ों में पनपते हैं और इनपर कोण या शंकु उगते हैं। इन पेड़ों का जनन इन्ही कोणों के ज़रिये होता है। ऐसे पेड़ों के पत्ते भी अक्सर चपटे होने की बजाए लम्बी तीलियों जैसे होते हैं। वैज्ञानिक रूप से इन पेड़ों को 'पाइनोफ़ाइटा' (Pinophyta), 'कॉनिफ़ॅरोफ़ाइटा' (Coniferophyta) या कॉनिफ़ॅरे (Coniferae) कहा जाता है। चीड़ (पाइन), तालिसपत्र (यू), प्रसरल (स्प्रूस), सनोबर (फ़र) और देवदार (सीडर) के पेड़ इसी कोणधारियों की श्रेणी में आते हैं।, Helena Curtis, N. Sue Barnes, Macmillan, 1994, ISBN 978-0-87901-679-1,...

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उत्तरी गोलार्ध

उत्तरी गोलार्ध पीले में दर्शित उत्तरी गोलार्ध उत्तरी ध्रुव के ऊपर से उत्तरी गोलार्ध पृथ्वी का वह भाग है जो भूमध्य रेखा के उत्तर में है। अन्य सौर मण्डल के ग्रहों की उत्तर दिशा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के स्थिर समतल में लिया जाता है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव की वजह से उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु, दक्षिणायन (२२ दिसंबर के आसपास) से वसंत विषुव (लगभग २३ मार्च) तक चलता है और ग्रीष्म ऋतु, उत्तरायण (२१ जून) से शरद विषुव (लगभग २३ सितंबर) तक चलता है। उत्तरी गोलार्ध का उत्तरी ‌छोर पूरी तरह ठोस नहीं है, वहाँ समुद्र के बीच जगह-जगह विशाल हिमखन्ड मिलते हैं। .

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