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स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी

सूची स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी

स्पेक्ट्रमी दूरदर्शी का कार्य-सिद्धान्त स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी या एकवर्ण सूर्यदर्शक (स्पेक्ट्रोहेलियोस्कोप) एक प्रकार का सौर दूरदर्शी है जो किसी चुने हुए तरंगदैर्घ्य में सूर्य को देखने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका विकास १९२४ में जॉर्ज एलरी ने किया था। .

सामग्री की तालिका

  1. 3 संबंधों: दूरदर्शी, स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री, सूर्य

  2. खगोलीय उपकरण
  3. मापक यंत्र
  4. स्पेक्ट्रोस्कोपी

दूरदर्शी

न्यूटनीय दूरदर्शी का आरेख दूरदर्शी वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका प्रयोग दूर स्थित वस्तुओं को देख्नने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से सामान्यत: लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं, परन्तु दूरदर्शी विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के अन्य भागों मै भी काम करता है जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो कि अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है। दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं। दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं। .

देखें स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी और दूरदर्शी

स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री

Solar flare photographed in the light of ionized helium, using the extreme-ultraviolet spectroheliograph of the U.S. Naval Research Laboratory. स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री या एकवर्ण सूर्यचित्रक (स्पेक्ट्रोहीलियोग्राफ़) वह यंत्र है जिसके द्वारा सूर्य के समूचे भाग या किसी एक भाग की विशेषताओं का चित्रांकन किसी भी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग खगोलिकी में किया जाता है। यह वास्तव में एक रश्मिचित्रांकक (स्पेक्ट्रोग्राफ़) है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य के विकिरण को (उदाहरणत: एक फ्राउनहोफ़र रेखा को) अलग कर लेता है और इस प्रकार सूर्य के समूचे भाग की जाँच इस रेखा के प्रकाश में करने की क्षमता प्रदान करता है। एक साधारण स्पेक्ट्रोग्राफ़ की कल्पना कीजिए जिसके अंतिम भाग में, जहाँ वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का फोटोग्राफ़ अंकित किया जाता है, एक दूसरा सँकरा छिद्र लगा हो। इस छिद्र के द्वारा कोई विशिष्ट वर्णक्रम रेखा (या उसका एक भाग) अलग हो सकता है। यह छिद्र इस प्रकार सारे विकिरण का वही भाग बाहर आने देता है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य का है और उस छिद्र पर पड़ रहा है। यदि फोटो खींचनेवाली पट्टिका इस दूसरे छिद्र के साथ सटाकर रख दी जाए तो इस छिद्र से होकर बाहर आनेवाले विकिरण का फोटो लिया जा सकता है। अब यदि सारा यंत्र धीरे धीरे बराबर, किंतु नियंत्रित गति से, इस प्रकार चलाया जाए कि यंत्र का अक्ष सूर्य के समूचे प्रतिबिंब को पार कर सके और छिद्र की सभी अनुगामी स्थितियाँ एक दूसरे के समांतर रह सकें, तो पट्टिका पर एक पूरा प्रतिबिंब बनेगा जो एकवर्णीय कहा जा सकता है। यदि प्रथम छिद्र सूर्यप्रतिबिंब के व्यास से बड़ा हो तो फोटो की पट्टिका पर बना प्रतिबिंब वास्तव में सूर्य के समूचे भाग में चित्र होगा। यह प्रथम छिद्र द्वारा लिए गए, रेखा के समान सँकरे, अनेक चित्रों का एकीकरण होगा। .

देखें स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी और स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री

सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K.

देखें स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी और सूर्य

यह भी देखें

खगोलीय उपकरण

मापक यंत्र

स्पेक्ट्रोस्कोपी