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सोफ़िया दिलीप सिंह

सूची सोफ़िया दिलीप सिंह

राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह(8 अगस्त1876 -22 अगस्त1948)- इंगलैंड में औरतों के अधिकारों (वोट का अधिकार) के लिए संघर्ष करने वाले नारी सनगठनों की सुप्रसिद्ध (suffragette) कारकुन थी। इनके पिता महाराजा दिलीप सिंह शेरे पंजाब के नाम से जाने जाते महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र थे, जिसे पंजाब को अंग्रेज़ राज्य में शामिल करने के बाद देश निकला दे कर इंग्लेंड भेज दिया गया था। जहाँ उसने करसचीईनटी से प्रभावित होकर इस को अपना लिया।. सोफिया की माँ महारानी बाम्बा मीवलर थी। उसकी धर्ममाता महारानी विक्टोरिया थी। सोफिया एक नारीवादी थी और हेपनपटन कोर्ट महल के एक घर में रहती थी जो महारानी विक्टोरिया ने उसे लिहाज़ में दे रखा था। उसकी चार बहने, (दो सौतेली) और चार भाई थे। .

4 संबंधों: द हिन्दू, दलीप सिंह (महाराजा), महारानी विक्टोरिया, महाराजा रणजीत सिंह

द हिन्दू

द हिन्दू (द हिन्दू) भारत में प्रकाशित होने वाला एक दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र है। इसका मुख्यालय चेन्नई में है और इसका साप्ताहिक पत्रिका के रूप में प्रकाशन वर्ष 1878 में आरम्भ हुआ। यह दैनिक के रूप में वर्ष 1889 में आरम्भ हुआ। यह भारत के शीर्ष दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में से एक है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण के 2014 के अनुसार यह भारत में पढ़े जाने वाले अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में तीसरे स्थान पर है। पहले दो स्थानों पर द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स पाये गये। द हिन्दू मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पढ़ा जाता है और केरल एवं तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र है। वर्ष २०१० के आँकड़ों के अनुसार इस उद्यम में 1,600 से अधिक लोगों को काम दिया गया है और इसकी वार्षिक आय $200 मिलियन से अधिक है। इसकी आय के मुख्य स्रोतों में अंशदान और विज्ञापन प्रमुख हैं। वर्ष 1995 में अपना ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध करवाने वाला, द हिन्दू प्रथम भारतीय समाचार पत्र है। नवम्बर 2015 के अनुसार, यह भारत के नौ राज्यों में 18 स्थानों से प्रकाशित होता है: बंगलौर, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुवनन्तपुरम, विजयवाड़ा, कोलकाता, मुम्बई, कोयंबतूर, मदुरै, नोएडा, विशाखपट्नम, कोच्चि, मैंगलूर, तिरुचिरापल्ली, हुबली, मोहाली, लखनऊ, इलाहाबाद और मलप्पुरम। .

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दलीप सिंह (महाराजा)

दिलीप सिंह (१८६१ में) महाराजा दलीप सिंह (6 सितम्बर 1838, लाहौर -- 22 अक्टूबर, 1893, पेरिस) महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र तथा सिख साम्राज्य के अन्तिम शासक थे। इन्हें 1843 ई. में पाँच वर्ष की आयु में अपनी माँ रानी ज़िन्दाँ के संरक्षण में राजसिंहासन पर बैठाया गया। .

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महारानी विक्टोरिया

महारानी विक्टोरिया, संयुक्त राजशाही की महारानी थीं| .

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महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह (पंजाबी: ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) (१७८०-१८३९) सिख साम्राज्य के राजा थे। वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। जाट सिक्ख महाराजा रणजीत एक ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) जाट सिक्ख महाराजा महां सिंह के घर हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही। महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख खालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मृत्युदण्ड नहीं दी। उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जजिया पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया। .

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