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सूर्यवंशी

सूची सूर्यवंशी

सूर्यवंशी भारशिव (सूर्यवंशी, अर्कवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। ये भारशिव राजभर होते हें बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। यहाँ बालार्क मन्दिर था, बालार्क अर्थ "सूर्योदय" जो भगवान सूर्य को समर्पित था। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए। उन्होंने उत्तर भारत के बड़े हिस्सों और केंद्रीय पर उनके प्रतीक (रॉयल इन्सिग्निया) के रूप में शासन किया और अपनी गर्दन के चारों ओर पहना शुरू कर दिया। इस प्रकार उन सूर्यवंशी क्षत्रिय जो शिव (शिव) के वजन ((bhar): भार) लेते थे, को भारशिवा (भारशिव .

4 संबंधों: भर, भारशिव, सूर्यवंशी, अर्कवंशी

भर

भर भारत का एक जाति समुदाय है, जिसे नाविक या मल्लाहों की एक उपजाति के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। इन्हे राजभर भी कहते हैं। .

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भारशिव

ये 'नाग राजा' शैव धर्म को मानने वाले थे। इनके किसी प्रमुख राजा ने शिव को प्रसन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हुए शिवलिंग को अपने सिर पर धारण किया था, इसलिए ये भारशिव भी कहलाने लगे थे। इसमें संदेह नहीं कि, शिव के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए ये राजा निशान के रूप में शिवलिंग को अपने सिर रखा करते थे। इस प्रकार की एक मूर्ति भी उपलब्ध हुई है। जो इस अनुश्रृति की पुष्टि भी करती है। नवनाग (दूसरी सदी के मध्य में) से भवनाग (तीसरी सदी के अन्त में) तक इनके कुल सात राजा हुए, जिन्होंने अपनी विजयों के उपलक्ष्य में काशी में दस बार अश्वमेध यज्ञ किया। सम्भवत: इन्हीं दस यज्ञों की स्मृति काशी के 'दशाश्वमेध-घाट' के रूप में अब भी सुरक्षित है। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए।.

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सूर्यवंशी

सूर्यवंशी भारशिव (सूर्यवंशी, अर्कवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। ये भारशिव राजभर होते हें बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। यहाँ बालार्क मन्दिर था, बालार्क अर्थ "सूर्योदय" जो भगवान सूर्य को समर्पित था। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए। उन्होंने उत्तर भारत के बड़े हिस्सों और केंद्रीय पर उनके प्रतीक (रॉयल इन्सिग्निया) के रूप में शासन किया और अपनी गर्दन के चारों ओर पहना शुरू कर दिया। इस प्रकार उन सूर्यवंशी क्षत्रिय जो शिव (शिव) के वजन ((bhar): भार) लेते थे, को भारशिवा (भारशिव .

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अर्कवंशी

अर्कवंशी भारशिव (सूर्यवंशी, अर्कवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। ये भारशिव राजभर होते हें बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए।.

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