लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

सुधर्मास्वामी

सूची सुधर्मास्वामी

आचार्य सुधर्मास्वामी भगवान महावीर के पांचवे गणधर थे वर्तमान में सभी जैन आचार्य व साधू उनके नियमों का समान रूप से पालन करते हैं। इनका जन्म ६०७ ईसा पूर्व हुआ था तथा इन्हें ५१५ ईसा पूर्व में केवलज्ञान प्राप्त हुआ एवं ५०७ ईसा पूर्व में १०० वर्ष की आयु में इनका निर्वाण हुआ। जिन्होंने गौतम गणधर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। श्रेणी:गणधर श्रेणी:607 में जन्में लोग श्रेणी:मृत लोग श्रेणी:जैन आचार्य.

3 संबंधों: महावीर, इंद्रभूति गौतम, केवल ज्ञान

महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

नई!!: सुधर्मास्वामी और महावीर · और देखें »

इंद्रभूति गौतम

इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर (मुख्य शिष्य) थे। जिन्होंने भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। .

नई!!: सुधर्मास्वामी और इंद्रभूति गौतम · और देखें »

केवल ज्ञान

जैन दर्शन के अनुसार केवल विशुद्धतम ज्ञान को कहते हैं। इस ज्ञान के चार प्रतिबंधक कर्म होते हैं- मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय। इन चारों कर्मों का क्षय होने से केवलज्ञान का उदय होता हैं। इन कर्मों में सर्वप्रथम मोहकर का, तदनन्तर इतर तीनों कर्मों का एक साथ ही क्षय होता है। केवलज्ञान का विषय है- सर्वद्रव्य और सर्वपर्याय (सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य-तत्वार्थसूत्र, १.३०)। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी कोई भी वस्तु नहीं, ऐसा कोई पर्याय नहीं जिसे केवलज्ञान से संपन्न व्यक्ति नहीं जानता। फलत: आत्मा की ज्ञानशक्ति का पूर्णतम विकास या आविर्भाव केवलज्ञान में लक्षित होता हैं। यह पूर्णता का सूचक ज्ञान है। इसका उदय होते ही अपूर्णता से युक्त, मति, श्रुत आदि ज्ञान सर्वदा के लिये नष्ट हो जाते हैं। उस पूर्णता की स्थिति में यह अकेले ही स्थित रहता है और इसी लिये इसका यह विशेष अभिधान है। जैन दर्शन के अनुसार जीव १३वें गुणस्थान में केवल ज्ञान की प्राप्ति करता है। १४ गुणस्थान इस प्रकार है।.

नई!!: सुधर्मास्वामी और केवल ज्ञान · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

लोहाचार्य

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »