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साहित्य अकादमी पुरस्कार कन्नड़

सूची साहित्य अकादमी पुरस्कार कन्नड़

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और कन्नड़ भाषा इन में से एक भाषा हैं। .

137 संबंधों: चदुरंग, चन्द्रशेखर कम्बार, चन्नवीर कणवी, चित्रगळु पत्रगळु, चिदानंद मूर्ति, चिदंबर रहस्य, टी. आर. सुब्बाराव, ए. एन. मूर्तिराव, ए. आर. कृष्ण शास्त्री, एच. तिप्पेरुद्रस्वामी, एच.एस. शिवप्रकाश, एम एम कलबुर्गी, एम. शिवराम, एल.एस. शेषगिरि राव, एस. एल. भैरप्प, एस. एस. भुसनूरमठ, एस. वी. रंगण्णा, एस. आर. एक्कुण्डि, एस.बी. जोशी, डी. आर. नागराज, डी॰वी॰ गुंडप्प, तलेदंड, तकजि शिवशंकर पिल्लै, तेरु, तेरेद बागिलु, दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे, दाटु, दुर्गास्तमान, द्यावा पृथ्वी, देवनूर महादेव, देवुडु नरसिंह शास्त्री, धनंजय कीर, निर्मला (उपन्यास), पु. ति. नरसिम्हाचार, प्रेमचंद, पी. लंकेश, बदुकु, बंडाय, बंगाली कादंबरीकार बंकिमचंद्र, बकुलद हूवुगळु, बोलवार मोहम्मद कुन्ही, बी. पुट्टस्वामय्या, बी. सी. रामचंद्र शर्मा, बी. जी. एल. स्वामी, भारतीय साहित्य अकादमी, भालचंद्र नेमाडे, भुवनद भाग्य, भीष्म साहनी, मन मंथन, मब्बीन हागे कनीवेयासी, ..., महाक्षत्रिय, मार्ग–4, मास्ती वेंकटेश अयंगार, मृच्छकटिकम्, यशवंत चित्ताल, यक्षगान बायलाट, युगसंध्या, रहमत तरिकेरे, राहुल सांकृत्यायन, राजमोहन गांधी, राघवेन्द्र पाटील, रंगबिन्नप, शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई, शंकर मोकाशी पुणेकर, श्रीनिवास बी. वैद्य, श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग, श्रीरामायण दर्शनम्, शूद्रक, शून्यसंपादनेय परामर्शे, सण्ण कथेगलु, साहित्य कथन, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सिरिसंपिगे, संप्रति, सुजना (एस. नारायण शेट्टी), स्वप्न सारस्वत, सी.एन. रामचन्‍द्रन, हळ्ळा बन्तु हळ्ळा, हसुरू होन्नु, हा. मा. नायक, हंस दमयंति मत्तु इतर रूपकगळु, होसतु होसतु, ज्ञानेश्वर, ज्ञानेश्वरी, जी. एस. शिवरुद्रप्पा, जी. एस. अमुर, जी.एच. नायक, जीवध्वनि, विनायक कृष्ण गोकाक, विश्वास पाटील, व्यासराय बल्लाल, वैदेही (कन्नड़ साहित्यकार), वी. सीतारमैया, गिरीश कर्नाड, गोदान (बहुविकल्पी), गोपालकृष्ण पै, गोपालकृष्ण अडिग, गोरुरू रामास्वामी आनंद, गीता नागभूषण, ओम् णमो, ओय्यारत्तु चंतु मेनोन, आद्य रंगाचार्य, आर. एस. मुगली, आख्‍यान-व्‍याख्‍यान, इंग्लिश साहित्य चरित्रे, कत्तियंचिन दारि, कतेयादळु हुडुगि, कन्नड साहित्य चरित्रे, कन्नड़ भाषा, कर्णाटक संस्कृति समीक्षे, कर्णाटक संस्कृतिया पूर्वपीठिके, कल्लु करगुवा समय, कालिदास, काव्यार्थ चिन्तन, कविराज मार्ग मत्तु कन्नड जगत्तु, कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा, कुर्अतुल ऐन हैदर, कुसुमबाले, कुं. वीरभद्रप्पा, क्रान्ति–कल्याण, क्रौंच पक्षिगळु, के वी सुब्बण्ण, के. एस. नरसिंह स्वामी, के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी, के.वी. तिरुमलेश, कोटा शिवराम कारन्त, कीर्तिनाथ कुर्तकोटि, अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन, अमृता प्रीतम, अमेरिकादल्ली गोरुरू, अरमने, अरलु बरलु, अरलु–मरलु, अवधेश्वरी, अक्षय काव्‍य, उत्‍तरार्द्ध, उरिया नालगे सूचकांक विस्तार (87 अधिक) »

चदुरंग

चदुरंग कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास वैशाख के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चन्द्रशेखर कम्बार

चंद्रशेखर कंबार (ಚಂದ್ರಶೇಖರ ಕಂಬಾರ; जन्म: २ जनवरी १९३७) एक कन्नड़ भाषा के कवि, नाटककार एवं लोकसाहित्यकार हैं। उन्होंने कन्नड़ भाषा में फिल्मों का निर्देशन भी किया है और वे हम्पी में कन्नड़ विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति भी रहे हैं। उनके उल्लेखनीय साहित्यिक योगदान के आलोक में उन्हें 2010 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है। इनके द्वारा रचित एक नाटक सिरिसंपिगे के लिये उन्हें सन् १९९१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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चन्नवीर कणवी

चन्नवीर कणवी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह जीवध्वनि के लिये उन्हें सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चित्रगळु पत्रगळु

चित्रगळु पत्रगळु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. एन. मूर्तिराव द्वारा रचित एक संस्मरण है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चिदानंद मूर्ति

एम चिदानंद मूर्ति एक विख्यात कन्नड़ साहित्यकार है जिन्होंने कन्नड़ भाषा के इतिहास पर बहुत शोध किया है। ये बैंगलूर विश्वविद्यालय के कन्नड़ विभाग के अध्यक्ष भी रहे हैं, इनका जन्म १९३१ में हुआ। उन्होंने हम्पी के ऐतिहासिक अवशेषों को सुरक्षित सहेजने के लिए भी अमूल्य प्रयास किया है। ये भग्नावशेष १५-६वीं सदी के विजयनगर साम्राज्य की शुरुआती राजधानी के हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना होसतु होसतु के लिये उन्हें सन् १९९७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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चिदंबर रहस्य

चिदंबर रहस्य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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टी. आर. सुब्बाराव

टी.

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ए. एन. मूर्तिराव

ए. एन.

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ए. आर. कृष्ण शास्त्री

ए. आर.

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एच. तिप्पेरुद्रस्वामी

एच.

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एच.एस. शिवप्रकाश

एच.एस.

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एम एम कलबुर्गी

मालेशाप्पा मादीवलाप्पा कलबुर्गी (ಮಲ್ಲೇಶಪ್ಪ ಮಡಿವಾಳಪ್ಪ ಕಲಬುರ್ಗಿ; 28 नवम्बर 1938 – 30 अगस्त 2015) प्रसिद्ध कन्नड विद्वान और हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे। उन्हें अपने शोध लेखों के एक संग्रह मार्ग 4 के लिए 2006 में राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एम. शिवराम

एम.

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एल.एस. शेषगिरि राव

एल.एस.

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एस. एल. भैरप्प

एस.

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एस. एस. भुसनूरमठ

एस.

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एस. वी. रंगण्णा

एस.

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एस. आर. एक्कुण्डि

एस.

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एस.बी. जोशी

एस.बी.

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डी. आर. नागराज

डी.

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डी॰वी॰ गुंडप्प

ब्यूगल रॉक पार्क में डीवी गुण्डप्प की प्रतिमा डी वी गुण्डप्प या डीवीजी (1887 – 1975) कन्नड साहित्यकार एवं दार्शनिक थे। गुंडप्प को अपने कार्यक्षेत्र कर्नाटक से बाहर अधिक प्रसिद्धि नहीं मिल सकी। यहां उन्होंने राजनीतिक सुधार और सामाजिक जागृति के लिए 50 वर्षों तक काम किया। उन्होंने इस कार्य को अपने लेखन के द्वारा प्राप्त करने की कोशिश की। उनके लेखन में गीत, कविताएं, नाटक, राजनीतिक पर्चे, जीवनियां और भगवतगीता पर टीका शामिल हैं। वे पूरी तरह से आदर्श लोकतंत्र के समर्थक थे अनुशासन पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुशासनहीनता लोकतंत्र की दुश्मन है। उन्हें कर्नाटक सरकार ने पेंशन देने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इसे यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे जनता के बीच अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक रखने के उनके अधिकार पर अंकुश लग जाएगा। इनके द्वारा रचित एक दार्शनिक व्याख्या श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग के लिये उन्हें सन् १९६७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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तलेदंड

तलेदंड कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गिरीश कार्नाड द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तकजि शिवशंकर पिल्लै

तकाजी शिवशंकरा पिल्लै (मलयालम: तकऴि शिवशंकरप्पिळ्ळ) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेम्मीन के लिये उन्हें सन् १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९८४ में उन्हे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।.

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तेरु

तेरु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार राघवेन्द्र पाटील द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तेरेद बागिलु

तेरेद बागिलु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. एस. नरसिंह स्वामी द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे

दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे (31 जनवरी 1896 – 26 अक्टूबर 1981) एक कन्नड साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह अरलु–मरलु के लिये उन्हें सन् १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें १९७३ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .

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दाटु

दाटु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. एल. भैरप्प द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दुर्गास्तमान

दुर्गास्तमान कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार टी. आर. सुब्बाराव (ता. रा. सु.) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द्यावा पृथ्वी

द्यावा पृथ्वी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार विनायक़ (वी. के. गोकाक) द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1960 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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देवनूर महादेव

देवनूर महादेव (१९४८) कन्नड़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनका जन्म कर्नाटक में नंजगुड़ा तालुक के देवनूर ग्राम में हुआ था। उनका पहला कहानी संग्रह द्यावानूरु १९७३ में प्रकाशित हुआ। १९८१ में प्रकाशित उनके उपन्यास औडालाला को भारतीय भाषा परिषद द्वारा तथा कर्नाटक सरकार द्वारा राज्योत्सव प्रशस्ति से सम्मानित किया गया है। उनके लघु उपन्यास कुसुमबाले को साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। .

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देवुडु नरसिंह शास्त्री

देवुडु नरसिंह शास्त्री कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास महाक्षत्रिय के लिये उन्हें सन् 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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धनंजय कीर

ए विट्ठल धनंजय कीर को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९७१ पद्म भूषण श्रेणी:1913 में जन्मे लोग श्रेणी:१९८४ में निधन.

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निर्मला (उपन्यास)

निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है। निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे ने केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है। .

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पु. ति. नरसिम्हाचार

पु.

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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पी. लंकेश

पी.

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बदुकु

बदुकु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गीता नागभूषण द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बंडाय

बंडाय कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार व्यासराय बल्लाल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बंगाली कादंबरीकार बंकिमचंद्र

बंगाली कादंबरीकार बंकिमचंद्र कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. आर. कृष्ण शास्त्री द्वारा रचित एक एक आलोचनात्मक अध्ययन है जिसके लिये उन्हें सन् 1961 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बकुलद हूवुगळु

बकुलद हूवुगळु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. आर. एक्कुण्डि द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बोलवार मोहम्मद कुन्ही

बोलवार मोहम्मद कुन्ही कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास स्‍वतंत्रायदा ओटा के लिये उन्हें सन् २०१६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बी. पुट्टस्वामय्या

बी.

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बी. सी. रामचंद्र शर्मा

बी.

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बी. जी. एल. स्वामी

बी.

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भारतीय साहित्य अकादमी

भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। .

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भालचंद्र नेमाडे

भालचंद्र नेमाडे (जन्म-१९३८) भारतीय मराठी लेखक, उपन्यासकार, कवि, समीक्षक तथा शिक्षाविद हैं। १९६३ में केवल २५ वर्ष की आयु में प्रकाशित 'कोसला' नामक उपन्यास से उन्हें अपार सफलता मिली। सन १९९१ में उनकी टीकास्वयंवर इस कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष २०१४ का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।श्री नेमाडे की प्रमुख कृतियों में 'कोसला' और 'हिन्‍दू' उपन्‍यास शामिल हैं। उनके साहित्य में 'देशीवाद' (स्वदेशीकरण) पर बल दिया गया है। वह 60के दशक के लघु पत्रिका आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे। प्राध्यापक भालचंद्र नेमाडे मराठी के प्रसिध्द लेखक वी.स. खांडेकर, वि.वा.

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भुवनद भाग्य

भुवनद भाग्य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार जी. एस. अमुर द्वारा रचित एक समालोचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भीष्म साहनी

रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। १९३७ में लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए करने के बाद साहनी ने १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। १९६५ से १९६७ तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पात्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे। भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। .

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मन मंथन

मन मंथन कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. शिवराम द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मब्बीन हागे कनीवेयासी

मब्बीन हागे कनीवेयासी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एच.एस. शिवप्रकाश द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महाक्षत्रिय

महाक्षत्रिय कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार देवुडु नरसिंह शास्त्री द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1962 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मार्ग–4

मार्ग–4 कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. एम. कलबुर्गी द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मास्ती वेंकटेश अयंगार

मास्ती वेंकटेश अयंगार (६ जून १८९१ - ६ जून १९८६) कन्नड भाषा के एक जाने माने साहित्यकार थे। वे भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किये गये हैं। यह सम्मान पाने वाले वे कर्नाटक के चौथे लेखक थे। 'चिक्कवीरा राजेंद्र' नामक कथा के लिये उनको सन् १९८३ में ज्ञानपीठ पंचाट से प्रशंसित किया गया था। मास्तीजी ने कुल मिलाकर १३७ पुस्तकें लिखीं जिसमे से १२० कन्नड भाषा में थीं तथा शेष अंग्रेज़ी में। उनके ग्रन्थ सामाजिक, दार्शनिक, सौंदर्यात्मक विषयों पर आधारित हैं। कन्नड भाषा के लोकप्रिय साहित्यिक संचलन, "नवोदया" में वे एक प्रमुख लेखक थे। वे अपनी क्षुद्र कहानियों के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। वे अपनी सारी रचनाओं को 'श्रीनिवास' उपनाम से लिखते थे। मास्तीजी को प्यार से मास्ती कन्नडदा आस्ती कहा नजाता था, क्योंकि उनको कर्नाटक के एक अनमोल रत्न माना जाता था। मैसूर के माहाराजा नलवाडी कृष्णराजा वडियर ने उनको राजसेवासकता के पदवी से सम्मानित किया था।। .

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मृच्छकटिकम्

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित '''वसन्तसेना''' मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें 10 अंक है। इसके रचनाकार महाराज शूद्रक हैं। नाटक की पृष्टभूमि पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) है। भरत के अनुसार दस रूपों में से यह 'मिश्र प्रकरण' का सर्वोत्तम निदर्शन है। ‘मृच्छकटिकम’ नाटक इसका प्रमाण है कि अंतिम आदमी को साहित्य में जगह देने की परम्परा भारत को विरासत में मिली है जहाँ चोर, गणिका, गरीब ब्राह्मण, दासी, नाई जैसे लोग दुष्ट राजा की सत्ता पलट कर गणराज्य स्थापित कर अंतिम आदमी से नायकत्व को प्राप्त होते हैं। .

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यशवंत चित्ताल

यशवंत विठोबा चित्ताल (३ अगस्त १९२८ - २२ मार्च २०१४) अग्रणी कन्नड़ कथा लेखक थे। उन्होंने अपने कार्य पुरुषोत्तम के लिए अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया। उनका जन्म कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के हनेहल्ली नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने अपनी प्रथमिक शिक्षा अपने गाँव के विद्यालय से एवं उच्च शिक्षा गिब्ब्ज़ हाई स्कूल, कुमता से १९४४ में पूर्ण की। .

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यक्षगान बायलाट

यक्षगान बायलाट कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. एस. कारंत द्वारा रचित एक लोक नाट्य–विवेचन है जिसके लिये उन्हें सन् 1959 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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युगसंध्या

युगसंध्या कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार सुजना (एस. नारायण शेट्टी) द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रहमत तरिकेरे

रहमत तरिकेरे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह कत्तियंचिन दारि के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार थे। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। वह हिंदी यात्रासहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। २१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इण्टरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कोई व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए, रोमांचक लगता है। पर ऐसे ही थे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरूष राहुल सांकृत्यायन। राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था। आधुनिक हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक यात्राकार, इतिहासविद्, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है। .

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राजमोहन गांधी

नयी दिल्ली भारत में १९३५ में जन्मे श्री राजमोहन गांधी महात्मा गांधी के पौत्र एवं भारत के एक प्रमुख शिक्षाविद, राजनैतिक कार्यकर्ता, एवं जीवनी लेखक हैं। श्री गांधी की शिक्षा का आरंभ मॉडर्न स्कूल में हुआ था। श्री गांधी इस समय दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज में रिसर्च प्रोफेसर हैं। श्री गांधी इस समय अमरीका के इलिनॉय विश्वविद्यालय अर्बाना-शैंपेन में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। .

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राघवेन्द्र पाटील

राघवेन्द्र पाटील कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तेरु के लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रंगबिन्नप

रंगबिन्नप कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. वी. रंगण्णा द्वारा रचित एक दार्शनिक चिन्तन है जिसके लिये उन्हें सन् 1965 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई

शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ओम् णमो के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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शंकर मोकाशी पुणेकर

शंकर मोकाशी पुणेकर कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अवधेश्वरी के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीनिवास बी. वैद्य

श्रीनिवास बी.

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श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग

श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. वी. गुंडप्पा द्वारा रचित एक दार्शनिक व्याख्या है जिसके लिये उन्हें सन् 1967 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीरामायण दर्शनम्

श्रीरामायण दर्शनम् कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. वी. पुट्टप्पा (कुवेंपु) द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1955 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शूद्रक

शूद्रक नामक राजा का संस्कृत साहित्य में बहुत उल्लेख है। ‘मृच्छकटिकम्’ इनकी ही रचना है। जिस प्रकार विक्रमादित्य के विषय में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं वैसे ही शूद्रक के विषय में भी अनेक दंतकथाएँ हैं। कादम्बरी में विदिशा में, कथासरित्सागर में शोभावती तथा वेतालपंचविंशति में वर्धन नामक नगर में शूद्रक के राजा होने का उल्लेख है। मृच्छकटिकम् में कई उल्लेखों से ज्ञात होता है कि शूद्रक दक्षिण भारतीय थे तथा उन्हें प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। वे वर्ण व्यवस्था में विश्वास रखते थे तथा गायों और ब्राह्मणों का विशेष आदर करते थे। शूद्रक का समय छठी शताब्दी था। मृच्छकटिकम के अतिरिक्त उन्होने वासवदत्ता, पद्मप्रभृतका आदि की रचना भी की। राजा शूद्रक बड़ा कवि था। कुछ लोग कहते हैं, शूद्रक कोई था ही नहीं, एक कल्पित पात्र है। परन्तु पुराने समय में शूद्रक कोई राजा था इसका उल्लेख हमें स्कन्दपुराण में मिलता है। महाकवि भास ने एक नाटक लिखा है जिसका नाम ‘दरिद्र चारुदत्त’ है। ‘दरिद्र चारुदत्त’ भाषा और कला की दृष्टि से ‘मृच्छकटिक’ से पुराना नाटक है। निश्चयपूर्वक शूद्रक के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। बाण ने अपनी ‘कादम्बरी’ में राजा शूद्रक को अपना पात्र बनाया है, पर यह नहीं कहा कि वह कवि भी था। बाण का समय छठी शती है। ऐसा लगता है कि शूद्रक कोई कवि था, जो राजा भी था। वह बहुत पुराना था। परन्तु कालिदास के समय तक उसे प्रधानता नहीं दी गई थी, या कहें कि जिस कालिदास ने सौमिल्ल, भास और कविपुत्र का नाम अपने से पहले बड़े लेखकों में गिनाया है, उसने सबकी सूची नहीं दी थी। शूद्रक का बनाया नाटक पुराना था, जो निरन्तर सम्पादित होता रहा और बाद में प्रसिद्ध हो गया। हो सकता है वह भास के बाद हुआ हो। भास का समय ईसा की पहली या दूसरी शती माना जाता है। .

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शून्यसंपादनेय परामर्शे

शून्यसंपादनेय परामर्शे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. एस. भुसनूरमठ द्वारा रचित एक टीका है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सण्ण कथेगलु

सण्ण कथेगलु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार श्रीनिवास (मास्ति वेंकटेश आयंगर) द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1968 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साहित्य कथन

साहित्य कथन कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. आर. नागराज द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत में एक साहित्यिक सम्मान है, जो साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष भारत की अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त प्रमुख भाषाओं में से प्रत्येक में प्रकाशित सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति को पुरस्कार प्रदान करती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल २२ भारतीय भाषाओं के अलावा ये राजस्थानी और अंग्रेज़ी भाषा; याने कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं। पहली बार ये पुरस्कार सन् 1955 में दिए गए। पुरस्कार की स्थापना के समय पुरस्कार राशि 5,000/- रुपए थी, जो सन् 1983 में ब़ढा कर 10,000/- रुपए कर दी गई और सन् 1988 में ब़ढा कर इसे 25,000/- रुपए कर दिया गया। सन् 2001 से यह राशि 40,000/- रुपए की गई थी। सन् 2003 से यह राशि 50,000/- रुपए कर दी गई है। .

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सिरिसंपिगे

सिरिसंपिगे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संप्रति

संप्रति कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हा. मा. नायक द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुजना (एस. नारायण शेट्टी)

सुजना (एस. नारायण शेट्टी) कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य युगसंध्या के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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स्वप्न सारस्वत

स्वप्न सारस्वत कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गोपालकृष्ण पै द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सी.एन. रामचन्‍द्रन

सी.एन.

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हळ्ळा बन्तु हळ्ळा

हळ्ळा बन्तु हळ्ळा कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार श्रीनिवास बी. वैद्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हसुरू होन्नु

हसुरू होन्नु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार बी. जी. एल. स्वामी द्वारा रचित एक यात्रा–वृत्तांत है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हा. मा. नायक

हा.

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हंस दमयंति मत्तु इतर रूपकगळु

हंस दमयंति मत्तु इतर रूपकगळु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार पु. ति. नरसिम्हाचार द्वारा रचित एक संगीत नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 1966 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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होसतु होसतु

होसतु होसतु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. चिदानंद मूर्ति द्वारा रचित एक समालोचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे जिन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं। .

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ज्ञानेश्वरी

ज्ञानेश्वरी महाराष्ट्र के संत कवि ज्ञानेश्वर द्वारा मराठी भाषा में रची गई श्रीमदभगवतगीता पर लिखी गई सर्वप्रथम भावार्थ रचना है। वस्तुत: यह काव्यमलेकनय प्रवचन है जिसे संत ज्ञानेश्वर ने अपने जेष्ठ बंधू तथा गुरू निवृत्तिनाथ के निदर्शन किया था। इसमें गीता के मूल ७०० श्लोकों का मराठी भाषा की ९००० ओवियों में अत्यंत रसपूर्ण विशद विवेचन है। अंतर केवल इतना ही है कि यह श्री शंकराचार्य के समान गीता का प्रतिपद भाष्य नहीं है। यथार्थ में यह गीता की भावार्थदीपिका है। .

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जी. एस. शिवरुद्रप्पा

जी.

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जी. एस. अमुर

जी.

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जी.एच. नायक

जी.एच.

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जीवध्वनि

जीवध्वनि कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार चन्नवीर कणवी द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1981 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विनायक कृष्ण गोकाक

विनायक कृष्ण गोकक (1909-1992) कन्नड़ भाषा के लेखक थे। वो ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता पाँचवे लेखक थे। उनकी सबसे विख्यात कृति भारत सिन्धु रश्मि है। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह द्यावा पृथ्वी के लिये उन्हें सन् १९६० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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विश्वास पाटील

विश्वास पाटील (जन्म:28 नवम्बर, 1959) मराठी भाषा के एक साहित्यकार, इतिहासकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। उन्होंने रायगढ़ जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मुंबई उपनगर जिला के जिलाधिकारी के रूप में काम किया है। .

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व्यासराय बल्लाल

व्यासराय बल्लाल कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बंडाय के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वैदेही (कन्नड़ साहित्यकार)

वैदेही कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह क्रौंच पक्षिगळु के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वी. सीतारमैया

वी.

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गिरीश कर्नाड

गिरीश कार्नाड (जन्म 19 मई, 1938 माथेरान, महाराष्ट्र) भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार हैं। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती है। 1998 में ज्ञानपीठ सहित पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता कार्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुये और भारत की अनेकों भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है। प्रमुख भारतीय निदेशको - इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और बी.वी. कारंत ने इनका अलग- अलग तरीके से प्रभावी व यादगार निर्देशन किया हैं। .

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गोदान (बहुविकल्पी)

* गोदान प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है।.

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गोपालकृष्ण पै

गोपालकृष्ण पै कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास स्वप्न सारस्वत के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोपालकृष्ण अडिग

गोपालकृष्ण अडिग कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह वर्धमान के लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोरुरू रामास्वामी आनंद

गोरुरू रामास्वामी आनंद कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक यात्रा–वृत्तांत अमेरिकादल्ली गोरुरू के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गीता नागभूषण

गीता नागभूषण कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बदुकु के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ओम् णमो

ओम् णमो कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ओय्यारत्तु चंतु मेनोन

ओय्यारत्तु चंतु मेनोन (१८४६-१८९९) मलयालम के उपन्यासकार थे। उनका जन्म मालाबार में हुआ था। तत्कालीन मद्रास प्रदेश में न्यायाधीश का काम करते थे। उनका 'इदुंलेखा' उपन्यास अब भी मलयालम के उच्चतम उपन्यासों में से एक है। यह एक सामाजिक सुखांत उपन्यास है जिसमें वह उन मूढ़ एवं तुच्छ रीति रिवाजों और व्यवहारों का वर्णन करता है जो आदर्श के रूप में नंबूदिरियों और उच्च वर्ग के नायरों में प्रचलित थे। नायक एवं नायिका माधवन और इंदुलेखा प्रबुद्ध नवीन पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो जीवन के मानवीय मूल्यों का समर्थन करते हैं। सामाजिक पृष्ठभूमि और पात्रों का चित्रण ओज, मर्मज्ञता एवं शुद्धता से किया गया है। चंतुमेनोन ने 'शारदा' नाम का दूसरा उपन्यास लिखना प्रारंभ किया था किंतु अभाग्यवश इसे पूरा करने के पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। इसमें विश्व के न्यायालयों का सजीव चित्रण किया गया है और उसमे अनेक स्मरणीय पात्र मिलते हैं। श्रेणी:मलयालम साहित्यकार.

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आद्य रंगाचार्य

आद्य रंगाचार्य को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये कर्नाटक से थे। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण श्रेणी:1904 में जन्मे लोग श्रेणी:१९८४ में निधन श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा के साहित्यकार.

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आर. एस. मुगली

आर.

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आख्‍यान-व्‍याख्‍यान

आख्‍यान-व्‍याख्‍यान कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार सी.एन. रामचन्‍द्रन द्वारा रचित एक निबंध-संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2013 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इंग्लिश साहित्य चरित्रे

इंग्लिश साहित्य चरित्रे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एल.एस. शेषगिरि राव द्वारा रचित एक साहित्येतिहास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कत्तियंचिन दारि

कत्तियंचिन दारि कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार रहमत तरिकेरे द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कतेयादळु हुडुगि

कतेयादळु हुडुगि कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार यशवंत चित्ताल द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कन्नड साहित्य चरित्रे

कन्नड साहित्य चरित्रे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार आर. एस. मुगली द्वारा रचित एक साहित्येतिहास है जिसके लिये उन्हें सन् 1956 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कन्नड़ भाषा

कन्नड़ (ಕನ್ನಡ) भारत के कर्नाटक राज्य में बोली जानेवाली भाषा तथा कर्नाटक की राजभाषा है। यह भारत की उन २२ भाषाओं में से एक है जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में साम्मिलित हैं। name.

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कर्णाटक संस्कृति समीक्षे

कर्णाटक संस्कृति समीक्षे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एच. तिप्पेरुद्रस्वामी द्वारा रचित एक सांस्कृतिक अध्ययन है जिसके लिये उन्हें सन् 1969 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कर्णाटक संस्कृतिया पूर्वपीठिके

कर्णाटक संस्कृतिया पूर्वपीठिके कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस.बी. जोशी द्वारा रचित एक सांस्कृतिक अध्ययन है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कल्लु करगुवा समय

कल्लु करगुवा समय कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार पी. लंकेश द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कालिदास

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। thumb .

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काव्यार्थ चिन्तन

काव्यार्थ चिन्तन कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार जी. एस. शिवरुद्रप्पा द्वारा रचित एक समालोचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कविराज मार्ग मत्तु कन्नड जगत्तु

कविराज मार्ग मत्तु कन्नड जगत्तु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. बी. सुबण्णा द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा

कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा (ಕುಪ್ಪಳ್ಳಿ ವೆಂಕಟಪ್ಪಗೌಡ ಪುಟ್ಟಪ್ಪ) (२९ दिसम्बर १९०४ - ११ नवम्बर १९९४) एक कन्नड़ लेखक एवं कवि थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। ये कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले सात व्यक्तियों में प्रथम थे। पुटप्पा ने सभी साहित्यिक कार्य उपनाम 'कुवेम्पु' से किये हैं। उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य श्रीरामायण दर्शनम् के लिये उन्हें सन् १९५५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुर्अतुल ऐन हैदर

ऐनी आपा के नाम से जानी जानी वाली क़ुर्रतुल ऐन हैदर (२० जनवरी १९२७ - २१ अगस्त २००७) प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं। .

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कुसुमबाले

कुसुमबाले कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार देवनूर महादेव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुं. वीरभद्रप्पा

कुं.

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क्रान्ति–कल्याण

क्रान्ति–कल्याण कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार बी. पुट्टस्वामय्या द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1964 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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क्रौंच पक्षिगळु

क्रौंच पक्षिगळु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार वैदेही द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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के वी सुब्बण्ण

कुन्तगोडु विभूति सुब्बण्ण (20 फरवरी 1932 – 16 जुलाई 2005) प्रसिद्ध कन्नड लेखक एवं नाटककार थे। उन्होने विश्वप्रसिद्ध 'नीनासं (नीलकण्ठ नाट्य संघ) की स्थापना की। इनके द्वारा रचित एक निबंध–संग्रह कविराज मार्ग मत्तु कन्नड जगत्तु के लिये उन्हें सन् २००३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया। .

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के. एस. नरसिंह स्वामी

के.

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के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी

के.

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के.वी. तिरुमलेश

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कोटा शिवराम कारन्त

कोटा शिवराम कारन्त (October 10, 1902 - December 9, 1997) ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता। वह कन्नड लेखक, यक्षगान कलाकार और फिल्म के निदेशक आदि थे। इनके द्वारा रचित एक लोक नाट्य–विवेचन यक्षगान बायलाट के लिये उन्हें सन् १९५९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार () से सम्मानित किया गया। .

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कीर्तिनाथ कुर्तकोटि

कीर्तिनाथ कुर्तकोटि कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना उरिया नालगे के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन

अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन (ಅತ್ತಿಪೇಟೆ ಕೃಷ್ಣಸ್ವಾಮಿ ರಾಮಾನುಜನ್) (அத்திப்பட்டு கிருஷ்ணசுவாமி ராமானுஜன்) (१६ मार्च १९२९ - १३ जुलाई १९९३) एक कवि, निबंधकार, शोधकर्ता, अनुवादक, भाषाविद्, नाटककार और लोककथाओं के विशेषज्ञ थे। उन्होंने तमिल, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में कवितायें लिखी है जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि अमेरिका में भी प्रभाव बनाया और आज भी बहुचर्चित कविताओं में से एक हैं। यद्यपि वह भारतीय थे और उनके अधिकांश काम भारत से संबंधित थे परन्तु उन्होंने अपने जीवन का दूसरा भाग, अपने मृत्यु तक अमेरिका में ही बिताया। विपुल निबंधकार और कवि, रामानुजन ने अनगिनत शैक्षिक और साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए योगदान दिया। उन्होंने अपने कार्यों के द्वारा पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों को पारस्परिक रूप से सुबोध्य बनाने की कोशिश की। उन्हें यह कहते हुए पाया गया है कि - "मैं भारत-अमेरिका में एक संबंधक (हायफेन) हूँ"। A.K. Ramanujan, University of Chicago, 1993 शैक्षिक और साहित्यिक टिप्पणीकारों ने रामानुजन की प्रतिभा, मानवता और विनम्रता को काफी सराहा है। उन्होंने अपने कन्नड़ और तमिल कविताओ के श्रमसाध्य अनुवादों में प्राचीन साहित्य की भव्यता और बारीकियों को दर्शाया है जिनमे तमिल साहित्य तो करीब २००० वर्ष पुराने थे। .

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अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था। अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित। १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी। .

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अमेरिकादल्ली गोरुरू

अमेरिकादल्ली गोरुरू कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गोरुरू रामास्वामी आनंद द्वारा रचित एक यात्रा–वृत्तांत है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरमने

अरमने कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार कुं. वीरभद्रप्पा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरलु बरलु

अरलु बरलु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार वी. सीतारमैया द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरलु–मरलु

अरलु–मरलु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. आर. बेन्द्रे द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1958 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अवधेश्वरी

अवधेश्वरी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार शंकर मोकाशी पुणेकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अक्षय काव्‍य

अक्षय काव्‍य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के.वी. तिरुमलेश द्वारा रचित एक कविता है जिसके लिये उन्हें सन् 2015 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उत्‍तरार्द्ध

उत्‍तरार्द्ध कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार जी.एच. नायक द्वारा रचित एक निबंध है जिसके लिये उन्हें सन् 2014 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उरिया नालगे

उरिया नालगे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार कीर्तिनाथ कुर्तकोटि द्वारा रचित एक समालोचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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