यज्ञ
यज्ञ, योग की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है। यज्ञ का अर्थ जबकि योग है किन्तु इसकी शिक्षा व्यवस्था में अग्नि और घी के प्रतीकात्मक प्रयोग में पारंपरिक रूचि का कारण अग्नि के भोजन बनाने में, या आयुर्वेद और औषधीय विज्ञान द्वारा वायु शोधन इस अग्नि से होने वाले धुओं के गुण को यज्ञ समझ इस 'यज्ञ' शब्द के प्रचार प्रसार में बहुत सहायक रहे। अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीता शरीर या देह के दासत्व को छोड़ देने का वरण या निश्चय करने वालों में, यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा के योग की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय, मुझ परमात्मा का कार्य है। अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीता .
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जनमेजय
जनमेजय महाभारत के अनुसार कुरुवंश का राजा था। महाभारत युद्ध में अर्जुनपुत्र अभिमन्यु जिस समय मारा गया, उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। उसके गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठा। जनमेजय इसी परीक्षित तथा मद्रावती का पुत्र था। महाभारत के अनुसार (१.९५.८५) मद्रावती उनकी जननी थीं, किन्तु भगवत् पुराण के अनुसार (१.१६.२), उनकी माता ईरावती थीं, जो कि उत्तर की पुत्री थीं। .
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