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समान रैंक, समान पेंशन

सूची समान रैंक, समान पेंशन

“अधिकारिओ और जवानों के बिच समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा”। बाबासाहेब आंबेडकर समान रैंक, समान पेंशन (One Rank, one Pension (OROP)), यह सन १९७३ तक भारतीय सशस्त्र सेवाओं के कर्मचारियों के पेंशन एवं अन्य लाभ की गणना का आधार था। इसे पुनः स्थापित करने के लिये आन्दोलन चला और अब उसे भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है। (अगस्त २०१५) सैनिक की जातिगत विभावना सैनिक - शब्द एक है लेकिन इसमें दो जातियाँ है| जी हां दो जातियाँ | एक को अफसर  तथा दूसरे को अन्य रेंक कहते हैं| सैनिक शब्द सुनते ही आपको ख्याल आता होगा कि ये लोग रात में जगकर सीमाओं पे पहरा देते हैं, दुश्मन की गोलियाँ सिने पे लेते हैँ, मातृभूमि का हर हाल में हिफाजत करते हैं| बिल्कुल ऐसा ही है| लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब इनके हक की बात की जाती है तो मलाई सिर्फ एक ही जाती लूट ले जाती है| और ये वो जाति हैं जो एयर कंडीशन में  में बैठकर लडाई लडते हैं, जवानों को गुलाम समझते है, अपने लिए अलग संडास  "अफसर  संडास" एवं अलग रसोईघर "अफसर मेस" बनवाएँ हैं, इनके बच्चे अगर एक शब्द हिन्दी बोल दे तो उन्हे थप्पड मारते हैं, इनके बच्चे कितने भी नालायक हो उनका अफसर  बनना तय होता है, एक किसान का लडका कितना भी तेज हो, अगर अँग्रेजी कमजोर हो तो ये कहते हैं कि OLQ (अफसर  लाइक क्वालिटी) नहीं है, सेवा निवृति के पश्चात, चुनाव के दिन गोल्फ एन्जॉय करते हैं, अक्सर टेलिविज़न पे सैनिकों की आवाज बनते है लेकिन काम हमेशा अपनी जाती के फायदे की करते हैं, और ये लोग ही अफसर  कहलाते हैं| और ये लोग ही OROP या फिर वित्तीय आयोग का ड्राफ्ट बनाए हैं| क्या आपको अब भी लगता है कि ये जाति, दूसरी असहाय जाति " अधर रेंक" के साथ न्याय करेंगे? क्या आपको नहीं लगता कि दूसरी जाति का भी हर फोरम में प्रयाप्त प्रतिनिधीत्व होना चाहिए|  भारत रक्षक बृजेश कुमार (सूबेदार मेजर - रिटायर्ड)।।।बरेली (उत्तर प्रदेश)। ------------------------------------------------------------------------------------------ जय जवान जय किसान हमारे देश की ये विडम्बना है की जहां किसान को धरती का तात (पिता) कहा गया उसी धरती माँ की रक्षा के काबिल उसे नहीं समजा जाता। भारत की सेनाओं के सैनिक जो की गरीब किसान परिवारों में से आते है। जिनके ऊपर हिन्दुस्तान की धरती माँ का क़र्ज़ है उन्हें सेवादार, ग़ुलाम बनाकर उनकी बेइज़्ज़ती करी जाती है। आज के हिन्दुस्तान में आज़ादी के 68 साल बाद भी देश के गांवठि किसान के बच्चों को अलग संडास! अलग खाना! अलग रहना! मेमसाहब के कपडे धोना! साहब के जूते पालिश करना! ये सब ग़ुलामी के काम जबरजस्ती करवाये जाते है। सेना में 97 प्रतिशत ये गांवठि जवान है इन्हें अफसर बनने व् प्रोमोशन के काबिल नहीं गिना जाता। क्यों की ये सैनिक अंग्रेजी भाषा व् तौर तरीके नहीं जानते। राम लल्ला के समय में चाहे अकबर बादशाह के वक़्त में मेरे भारत देश में देशी होना शर्म की बात नहीं थी। आज क्यूंकि मेरा सिपाही देशी है। किसी ग़रीब किसान का बेटा है उसे फौज से 15-17 साल की देश सेवा के बाद जब उसका देशप्रेम उसकी काबिलियत और हिम्मत के चर्चे पुरे विश्व में है तब लात लात मार के सेवा निवृत्त किया जाता है। हर पे कमीशन के वक्त काले अँगरेज़ अफसरों की कमी का गाना गाते है। कोई ये जवाब देगा की अपनी प्रारंभिक सेवा का कॉन्ट्रेक्ट समय पूर्ण होने पर 99% सैनिक जो की 15-17-20 साल के अनुभव सिद्ध योद्धा है। उन्हें सेना से बाहर क्यों जाने दिया जाता है? ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट की ये कौनसी पॉलिसी है? जहाँ देशी लहजे वाले किसान के बेटे को सैनिक तो बनाया जाता है मगर अफसर बनने के लायक नहीं समजा जाता? ऐसा कौनसा गुण चाहिए जिसे कुछ एक ढोंगी काले अँगरेज़ सर्विस सिलेक्शन बॉर्ड में ढूंढते है? और जो उन्हें 99 प्रतिशत  जवानों में नहीं मिलता। हर साल 15 लाख जवानों में से केवल 10-12 जवान ही अफसर प्रोमोट किये जाते है। देश के लिए ओलंपिक्स, एशियाई खेल, एवम् एन्य अंतर राष्ट्रिय एवम् राश्ट्रीय खेलों में पदक लाने वाले और देश का सर गर्व से ऊँचा करने वाले जवानों को भी देशी पाते हुवे। ये काले अँगरेज़, अफसर प्रोमोशन नहीं देते। वहीँ सचिन तेंडुलकर महेन्द्रसिंह धोनी इन सब को कर्नल और ग्रुप केप्टन बनाकर बड़े ही गद्गादित महसूस करते है। अगर कपिलदेव, सचिन तेदुलकर और महेन्द्र सिंह धोनी को आनेररी हवलदार मेजर का पद से सुशोभित करते तो क्या यह खिलाड़ी सेना के इस सम्मान को तैयार होते।।।।शायद नही! मगर इस देश को इसी सेना ने कई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दिये जिन्होने ओलम्पिक खेलों मे भारत को जीत दिलाई मगर बदले मे सेना ने सम्मान दिया हवलदार मेजर का। हाकी का जादूगर हवलदार मेजर ध्यानचन्द उनमे से एक है इनको नायब सूबेदार के लायक भी नही समझा। जब सेना से इस बारे मे पत्रकारों ने पूछा तो सेना ने अपने स्पष्टीकरण मे कहा कि किसी भी सैनिक खिलाड़ी का प्रमोशन उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर हवलदार या नायब सूबेदार के पद तक हो सकता है। अफसर का आनेररी पद जवान को लागू नही है ऐसी पॉलिसी ही नही है। सेना मे सिपाही होने की बजह से न इस खिलाड़ी को सेना मे अफसर पद मिला और न ही भारत रत्न के लायक समझा गया। वह तो भला हो सैनिक साथी लोगों को जिन्होने ध्यानचंद को हवलदार मेजर की जगह मेजर ध्यानचंद कह कर बुलाना शुरू कर दिया और जो बाद मे पत्रकार भी मेजर ध्यानचंद कहकर सम्बोधित करने लगे। .

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पेंशन

पेंशन एक पूर्वनिर्धारित राशि है जो कोई नियोक्ता अपने कर्मचारी को उसके सेवाकाल की समाप्ति के बाद भी देने के लिये वचनवद्द है। .

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