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सक्सीनिक अम्ल

सूची सक्सीनिक अम्ल

सक्सिनिक अम्ल (Succinic Acid) ऐवर में यह अम्ल तीन से चार प्रतिशत तक पाया जाता है। सक्सिनिक शब्द लैटिन के सक्सिनम (Succinum) से निकला है, जिसका अर्थ होता है ऐबर। इसका IUPAC नाम है ब्यूतेनिडिओइक अम्ल (butanedioic acid)। ऐतिहासिक रूप से इसे 'स्पिरिट ऑफ ऐम्बर (spirit of amber) कहा जाता रहा है। वस्तुत: यह एक डाइकार्बोजिलिक अम्ल (dicarboxylic acid) है। साइट्रिक अम्ल-चक्र में सक्सिनेट एक जैवरासायनिक भूमिका अदा करता है। अन्य रेज़िनों, लिग्नाइट, काष्टाश्म और अनेक पेड़ों में यह पाया जाता है। अंगूर, चुकंदर, गूजंकेरी तथा रेवंद चीनी के रसों में भी यह रहता है। प्राणी जगत् में भी यह थाइमस ग्रंथि (thymus gland) और प्लीहा (spleen) में पाया जाता है। अनेक पदार्थो से, जैसे अमोनियम टाट्रेंट व कैल्सियम मैलेट के जीवाणु किण्वन से तथा वसा या वसाम्लों के ऑक्सीकरण से भी यह बनता है। एथिलीन गैस से इसका संश्लेषण हुआ है। बेंजीन के ऑक्सीकरण से मैलेइक अम्ल बनता है और मैलेइक अम्ल के ऑक्सीकरण से सक्सिनिक अम्ल प्राप्त हो सकता है। .

8 संबंधों: चुकंदर, चीनी, प्रिज़्म, बेंजीन, लातिन भाषा, जीवाणु, किण्वन, अंगूर

चुकंदर

चुकंदर एक मूसला जड़ वाला वनस्पति है। यह बीटा वल्गैरिस नामक जाति के पौधे होते हैं जिन्हें मनुष्यों ने शताब्दियों से कृषि में पाला है और कई नस्लों में विकसित करा है। इसकी मूसला जड़ अक्सर हलकी-मीठी होती है और उसका रंग लाल, जामुनी, पीला या श्वेत होता है। .

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चीनी

* चीनी भाषा, चीन में बोली जाने वाली भाषा.

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प्रिज़्म

इस प्रिज़्म के पदार्थ का अपवर्तनांक प्रकाश की आवृत्ति के अनुसर अलग-अलग है। इस कारण से इस पर आपतित प्रकाश बाहर निकलने पर अलग-अलग रंगों में बंटा हुआ दिखता है। प्रकाशिकी में, प्रिज़्म (Prism / संक्षेत्र या क्रकच आयत) एक सपाट चिकनी सतहों वाला एक पारदर्शी प्रकाशीय अवयव है जो, प्रकाश का अपवर्तन करता है। कम से कम दो सपाट सतहों के मध्य एक कोण का होना अनिवार्य है। सतहों के मध्य के कोण की सटीकता उसके अनुप्रयोग पर निर्भर करती हैं। पारंपरिक रूप से संक्षेत्र उस ज्यामितीय आकार को परिभाषित करता है जिसका एक त्रिकोणीय आधार और आयताकार पक्ष होते हैं। कुछ प्रकाशीय संक्षेत्र वास्तव में एक ज्यामितीय संक्षेत्र के आकार के नहीं होते हैं। संक्षेत्रों को हर उस सामग्री से बनाया जा सकता है जो कि, उस तरंगदैर्य के लिए पारदर्शी हो जिसके लिए उन्हें तैयार किया जा रहा है। संक्षेत्रों का निर्माण मुख्यत: कांच, प्लास्टिक और फ्लुराइट से किया जाता है। प्रिज़्म का प्रयोग प्रकाश को उसके संघटक वर्णक्रमीय रंगों (इंद्रधनुष के रंग) में तोड़ने के लिए किया जा सकता है। संक्षेत्रों को प्रकाश के परावर्तन, अथवा प्रकाश के विभिन्न ध्रुवीकरण वाले संघटकों में विभाजित करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। .

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बेंजीन

बेंजीन के विभिन्न प्रकार के निरूपण बेंज़ीन या धूपेन्य एक हाइड्रोकार्बन है जिसका अणुसूत्र C6H6 है। बेंजीन का अणु ६ कार्बन परमाणुओं से बना होता है जो एक छल्ले की तरह जुड़े होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु से एक हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा होता है। बेंजीन, पेट्रोलियम (क्रूड ऑयल) में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी आसवन (fractional distillation) से बेंजीन बड़ी मात्रा में तैयार होता है। प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम इसे प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम बेंजीन रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन (Hoffmann) ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को 'बेंज़ोल' कहते हैं। बेंजीन रंगहीन, मीठी गन्थ वाला, अत्यन्त ज्वलनशील द्रव है। इसका उपयोग एथिलबेंजीन्न और क्यूमीन (cumene) आदि भारी मात्रा में उत्पादित रसायनों के निर्माण में होता है। चूँकि बेंजीन का ऑक्टेन संख्या अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल में कुछ प्रतिशत तक यह मिलाया गया होता है। यह कैंसरजन है जिसके कारण इसका गैर-औद्योगिक उपयोग कम ही होता है। .

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लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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किण्वन

किण्वन की क्रिया किण्वन एक जैव-रासायनिक क्रिया है। इसमें जटिल कार्बनिक यौगिक सूक्ष्म सजीवों की सहायता से सरल कार्बनिक यौगिक में विघटित होते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किण्वन के प्रयोग से अल्कोहल या शराब का निर्माण होता है। पावरोटी एवं बिस्कूट बनाने में भी इसका उपयोग होता है। दही, सिरका एवं अन्य रासायनिक पदार्थों के निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:श्वसन.

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अंगूर

अंगूर अंगूर (संस्कृत: द्राक्षा) एक फल है। अंगूर एक बलवर्द्धक एवं सौन्दर्यवर्धक फल है। अंगूर फल माँ के दूध के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। यह निर्बल-सबल, स्वस्थ-अस्वस्थ आदि सभी के लिए समान उपयोगी होता है। ये अंगूर की बेलों पर बड़े-बड़े गुच्छों में उगता है। अंगूर सीधे खाया भी जा सकता है, या फिर उससे अंगूरी शराब भी बनायी जा सकती है, जिसे हाला (अंग्रेज़ी में "वाइन") कहते हैं, यह अंगूर के रस का ख़मीरीकरण करके बनायी जाती है। .

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