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संरचनात्मक विश्‍लेषण

सूची संरचनात्मक विश्‍लेषण

लोड के कारण भौतिक संरचनाओं तथा उनके विभिन्न भागों पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करना संरचनात्मक विश्‍लेषण (Structural analysis) कहलाता है। भवन, पुल, वाहन, मशीनें, फर्नीचर, जैव उत्तक आदि सभी में संरचनात्मक विश्लेषण करने की आवश्यकता पड़ सकती है। संरचनात्मक विश्लेषण के अन्तर्गत प्रयुक्त यांत्रिकी, पदार्थ विज्ञान, तथा अनुप्रयुक्त गणित का उपयोग होता है। इनका प्रयोग करते हुए संरचना की विकृतियों, आन्तरिक बलों, प्रतिबलों, सपोर्ट की प्रतिक्रियाओं, त्वरण तथा स्थायित्व आदि की गणना की जाती है। इस गणना से यह जाँचा जाता है कि कोई संरचना उपयोग के योग्य है या नहीं। संरचनात्मक विश्लेषण करके भौतिक जाँचों से बचा जा सकता है। अतः संरचनाओं के डिजाइन के लिए संरचनात्मक विश्लेषण की महती भूमिका है। .

4 संबंधों: पदार्थ विज्ञान, संरचना इंजीनियरी, व्यावहारिक गणित, उद्भार

पदार्थ विज्ञान

पदार्थ विज्ञान एक बहुविषयक क्षेत्र है जिसमें पदार्थ के विभिन्न गुणों का अध्ययन, विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रायोगिक भौतिक विज्ञान और रसायनशास्त्र के साथ-साथ रासायनिक, वैद्युत, यांत्रिक और धातुकर्म अभियांत्रिकी जैसे विषयों का समावेश होता है। नैनोतकनीकी और नैनोसाइंस में उपयोजता के कारण, वर्तमान समय में विभिन्न विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और संस्थानों में इसे काफी महत्व मिला है। .

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संरचना इंजीनियरी

विश्व की सबसे बड़ी इमारत - '''बुर्ज दुबई''' संरचना इंजीनियरी, इंजीनियरी की वह शाखा है जो लोड (बल) सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के के लिये बनायी जाने वाली संरचनाओं (structures) के विश्लेषण एवं डिजाइन से सम्बन्ध रखती है। इसे प्रायः सिविल इंजीनियरी के अन्दर एक विशेषज्ञता का क्षेत्र समझा जाता है। संरचना इंजीनियर का काम प्रायः भवनों तथा विशाल गैर-भवन संरचनाओं की डिजाइन करना होता है किन्तु वे मशीनरी, चिकित्सा उपकरण, वाहनों आदि के डिजाइन से भी जुड़े हो सकते हैं। संरचना इंजीनियरी का सिद्धान्त भौतिक नियमों तथा विभिन्न पदार्थों/ज्यामितियों के गुणधर्म से सम्बन्धित अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है। अनेकों छोटे छोटे संरचनात्मक अवयवों के योग से जटिल संरचनाएँ निर्मित की जातीं हैं। संरचना इंजीनियर को लोहे और इस्पात का ही नहीं, बल्कि लकड़ी, ईंट, पत्थर, चूना और सीमेंट का भी आधुनिकतम ज्ञान तथा यांत्रिक एवं विद्युत् इंजीनियरी के कामों में भी दक्ष होना चाहिए, क्योंकि इन्हें अपने ढाँचे यांत्रिकी तथा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार निरापद ढंग से बनाने पड़ते हैं। भूमि, जल और वायु की प्रकृति का भी पूर्ण ज्ञान सिविल इंजीनियर के समान ही होना चाहिए। .

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व्यावहारिक गणित

वाहन को शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर कम से कम समय में ले जाने के लिए गणित का उपयोग करना पड़ सकता है। इसके लिए सांयोगिक इष्टतमीकरण (combinatorial optimization) तथा पूर्णांक प्रोग्रामन (integer programming) का उपयोग करना पड़ सकता है। व्यावहारिक गणित (अनुप्रयुक्त गणित या प्रायोगिक गणित), गणित की वह शाखा है जो ज्ञान की अन्य विधाओं की समस्याओं को गणित के जुगाड़ों (तकनीकों) के प्रयोग से हल करने से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहास दृष्टि से देखें तो भौतिक विज्ञानों (physical sciences) की आवश्यकताओं ने गणित की विभिन्न शाखाओं के विकास में महती भूमिका निभायी। उदाहरण के लिये तरल यांत्रिकी में गणित का उपयोग करने से एक हल्का एवं कम ऊर्जा से की खपत करने वाला वायुयान की डिजाइन की जा सकती है। बहुत पुरातन काल से ही विषयों में गणित सर्वाधिक उपयोगी रहा है। यूनानी लोग गणित को न केवल संख्याओं और दिक् (स्पेस) का बल्कि खगोलविज्ञान और संगीत का भी अध्ययन मानते थे। गणितसारसंग्रह के 'संज्ञाधिकार' में मंगलाचरण के पश्चात महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है और गणित के अनेकानेक उपयोगों को गिनाया है- आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी। अंकगणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं। व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है। संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक अन्तरिक्ष यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। .

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उद्भार

उद्भार या लोड (load) से विभिन्न सन्दर्भों में भिन्न-भिन्न अर्थ निकल सकते हैं, जैसे-.

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