लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

संरचना इंजीनियरी

सूची संरचना इंजीनियरी

विश्व की सबसे बड़ी इमारत - '''बुर्ज दुबई''' संरचना इंजीनियरी, इंजीनियरी की वह शाखा है जो लोड (बल) सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के के लिये बनायी जाने वाली संरचनाओं (structures) के विश्लेषण एवं डिजाइन से सम्बन्ध रखती है। इसे प्रायः सिविल इंजीनियरी के अन्दर एक विशेषज्ञता का क्षेत्र समझा जाता है। संरचना इंजीनियर का काम प्रायः भवनों तथा विशाल गैर-भवन संरचनाओं की डिजाइन करना होता है किन्तु वे मशीनरी, चिकित्सा उपकरण, वाहनों आदि के डिजाइन से भी जुड़े हो सकते हैं। संरचना इंजीनियरी का सिद्धान्त भौतिक नियमों तथा विभिन्न पदार्थों/ज्यामितियों के गुणधर्म से सम्बन्धित अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है। अनेकों छोटे छोटे संरचनात्मक अवयवों के योग से जटिल संरचनाएँ निर्मित की जातीं हैं। संरचना इंजीनियर को लोहे और इस्पात का ही नहीं, बल्कि लकड़ी, ईंट, पत्थर, चूना और सीमेंट का भी आधुनिकतम ज्ञान तथा यांत्रिक एवं विद्युत् इंजीनियरी के कामों में भी दक्ष होना चाहिए, क्योंकि इन्हें अपने ढाँचे यांत्रिकी तथा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार निरापद ढंग से बनाने पड़ते हैं। भूमि, जल और वायु की प्रकृति का भी पूर्ण ज्ञान सिविल इंजीनियर के समान ही होना चाहिए। .

30 संबंधों: चूना, ट्रस, त्रिभुज, त्रिकोणमिति, धरन, पत्थर, प्रतिबल, प्रत्यास्थता, प्वासों अनुपात, बल, भवन, यंग का प्रत्यास्थता मापांक, रवीन्द्र सेतु, लकड़ी, लक्ष्मण झूला, सिविल इंजीनियरी, संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै, स्थैतिकी, सेतु, सीमेंट, हरिद्वार, ईंट, विद्युत अभियान्त्रिकी, विकृति, इस्पात, कोलकाता, कीलक, अभियान्त्रिकी, ऋषिकेश, छत

चूना

चूना पत्थर की खादान चूना (Lime) कैल्सियमयुक्त एक अकार्बनिक पदार्थ है जिसमें कार्बोनेट, आक्साइड, और हाइड्राक्साइड प्रमुख हैं। किन्तु सही तौर पर (Strictly speaking) कैल्सियम आक्साइड या कैल्सियम हाइड्राक्साइड को ही चूना मानते हैं। चूना एक खनिज भी है। गृहनिर्माण में जोड़ाई के लिये प्रयुक्त होनेवली वस्तुओं में चूना, सबसे प्राचीन पदार्थ है, किंतु अब इसका स्थान पोर्टलैंड सीमेंट ने लिया है। चूने का निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और चूना · और देखें »

ट्रस

एक पुल के नीचे बनी 'ट्रस संरचना' आर्किटेक्चर और संरचना इंजीनियरी में ट्रस (truss) एक ऐसी संरचना होती है जो एक या एक से अधिक त्रिकोणीय इकाइयों से मिलकर बनी होती है। ये इकाइयाँ सरल अवयवों से बनी होतीं है और इनके सिरे परस्पर 'नोड' पर जुड़े होते हैं। सभी वाह्यबल और प्रतिक्रियाएँ (रिएक्शन) इन्ही नोडों पर लगते है और यहाँ से अवयवों में टेन्साइल या कम्प्रेसिव (तन्य या संपीडक) बल के रूप में प्रकट होते हैं। 'एकतलीय ट्रस' (planer truss) वह ट्रस होती है जिसके सभी अवयव और नोड द्विबीमीय समतल में होते है जबकि 'स्पेस ट्रस' के अंदर मेंबर और नोड्स त्रिबिम के अंदर होते है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और ट्रस · और देखें »

त्रिभुज

त्रिभुज (Triangle), तीन शीर्षों और तीन भुजाओं वाला एक बहुभुज (Polygon) होता है। यह ज्यामिति की मूल आकृतियों में से एक है। शीर्षों A, B, और C वाले त्रिभुज को \triangle ABC द्वारा दर्शाया जाता है। यूक्लिडियन ज्यामिति में कोई भी तीन असंरेखीय बिन्दु, एक अद्वितीय त्रिभुज का निर्धारण करते हैं और साथ ही, एक अद्वितीय तल (यानी एक द्वि-विमीय यूक्लिडियन समतल) का भी। दूसरे शब्दों में, तीन सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति को त्रिभुज या त्रिकोण कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएं और तीन कोण होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इन भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और त्रिभुज · और देखें »

त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और त्रिकोणमिति · और देखें »

धरन

समान रूप से वितरित लोड के कारण एक धरन में नमन (बेन्डिंग) धरन (Beam) अथवा धरनी, धरणी, या कड़ी, संरचना इंजीनियरी में प्राय: लकड़ी आदि के उस अवयव को कहते हैं जो इमारत में किसी पाट पर छत (पाटन) आदि का कोई भारी बोझ अपनी लंबाई पर धारण करते हुए उसे अपने दोनों सिरों द्वारा सुस्थिर आधारों (आलंबों) तक पहुँचता है। लकड़ी के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की भी धरनें बनती हैं। लोहे की धरनें गर्डर कहलाती हैं। प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete) की धरनें प्राय: छत के स्लैब के साथ समांग ढाली जाती हैं। पन्ना (मध्यप्रदेश, भारत) की पत्थर की खानों के निकट पत्थर की धरनों का प्रयोग भी असामान्य नहीं हैं। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और धरन · और देखें »

पत्थर

पहाड़ों से प्राप्त होने बाला एक कठोर पदार्थ जो भवन निर्माण में प्रयुक्त होता है। इस शब्द का मूल संस्कृत शब्द पाषाण है। श्रेणी:भवन निर्माण.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और पत्थर · और देखें »

प्रतिबल

विभिन्न प्रकार के प्रतिबल सतत यांत्रिकी में प्रतिबल (stress) से आशय ईकाई क्षेत्रफल पर आरोपित उस आन्तरिक बल से है जो दूसरे कणों द्वारा अपने पड़ोसी कणों पर लगाया जाता है। इसकी इकाई न्यूटन/वर्ग मीटर या पासकल या किलोग्राम/मीटर/वर्ग सेकेण्ड होता है। किसी बिन्दु के आसपास एक अत्यन्त छोटे से क्षेत्र \Delta A पर \Delta\vec F बल लगा हो तो कुल प्रतिबल \vec s निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जाता है- कुल प्रतिबल को निम्नलिखित दो प्रतिबलों के सदिश योग के रूप में भी लिखा जा सकता है: जहाँ: तीन विमाओं में प्रतिबल के घटक .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और प्रतिबल · और देखें »

प्रत्यास्थता

यांत्रिकी में प्रत्यास्थता (elasticity) पदार्थों के उस गुण को कहते हैं जिसके कारण उस पर वाह्य बल लगाने पर उसमें विकृति (deformation) आती है परन्तु बल हटाने पर वह अपनी मूल स्थिति में आ जाता है। यदि वाह्यबल के परिमाण को धीरे-धीरे बढ़ाया जाय तो विकृति समान रूप से बढ़ती जाती है, साथ ही साथ आंतरिक प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। किन्तु किसी पदार्थ पर एक सीमा से अधिक बल लगाया जाय तो उस वाह्य बल को हटा लेने के बाद भी पदार्थ पूर्णत: अपनी मूल अवस्था में नहीं लौट पाता; बल्कि उसमें एक स्थायी विकृति शेष रह जाती है। पदार्थ की इसी सीमा को प्रत्यास्थता सीमा (Limit of elasticity या Elastic limit) कहते हैं। आंकिक रूप से स्थायी परिवर्तन लानेवाला, इकाई क्षेत्र पर लगनेवाला, न्यूनतम बल ही "प्रत्यास्थता सीमा" (Elastic limit) कहलाता है। प्रत्यास्थता की सीमा पार चुके पदार्थ को सुघट्य (Plastic) कहते हैं। प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, विकृति वस्तु में कार्य करनेवाले प्रतिबल की समानुपाती होती है। यह एक प्रायोगिक तथ्य है एवं हुक के नियम (Hooke's law of elasticity) के नाम से विख्यात है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और प्रत्यास्थता · और देखें »

प्वासों अनुपात

किसी वस्तु पर अक्षीय दिशा में बल लगाने से अक्षीय दिशा में लम्बाई में परिवर्तन तो होता ही है, बल के लम्बवत दिशा (पार्श्व दिशा) में भी परिवर्तन होता है। किसी वस्तु की पार्श्व विकृति (transverse strain) तथा प्रत्यक्ष विकृति (अक्षीय विकृति) के अनुपात के ऋणात्मक मान को प्वासों अनुपात (Poisson's ratio) कहते हैं। यह नाम साइमन प्वासों (Siméon Poisson) के नाम पर रखा गया है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और प्वासों अनुपात · और देखें »

बल

भौतिकि संबंधी बल के लिए देखें बल (भौतिकी) बल, जिसे ताकत भी कहा जाता है, कार्य करने की शक्ति है। परंपरागत रूप से इसे शरीर से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसलिए प्रायः यह शारिरिक बल का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन इसके अतिरिक्त मानसिक एवं आध्यात्मिक बल की संकल्पना भी की गई है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और बल · और देखें »

भवन

वाशिंगटन डीसी की पुरानी एक्सक्यूटिव ऑफिस भवन चीन के हांगकांग का चीनी बैंक का टॉवर मानव द्वारा निर्मित किसी भी संरचना को भवन या घर कहते हैं जो निवास या किसी अन्य उद्देश्य से बनायी जाती हैं। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और भवन · और देखें »

यंग का प्रत्यास्थता मापांक

यांत्रिकी में प्रत्यास्थता (elasticity) पदार्थों के उस गुण को कहते हैं जिसके कारण उस पर वाह्य बल लगाने पर उसमें विकृति (deformation) आती है परन्तु बल हटाने पर वह अपनी मूल स्थिति में आ जाता है। यदि वाह्यबल के परिमाण को धीरे-धीरे बढ़ाया जाय तो विकृति समान रूप से बढ़ती जाती है, साथ ही साथ आंतरिक प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। किन्तु किसी पदार्थ पर एक सीमा से अधिक बल लगाया जाय तो उस वाह्य बल को हटा लेने के बाद भी पदार्थ पूर्णत: अपनी मूल अवस्था में नहीं लौट पाता; बल्कि उसमें एक स्थायी विकृति शेष रह जाती है। पदार्थ की इसी सीमा को प्रत्यास्थता सीमा (Limit of elasticity या Elastic limit) कहते हैं। आंकिक रूप से स्थायी परिवर्तन लानेवाला, इकाई क्षेत्र पर लगनेवाला, न्यूनतम बल ही "प्रत्यास्थता सीमा" (Elastic limit) कहलाता है। प्रत्यास्थता की सीमा पार चुके पदार्थ को सुघट्य (Plastic) कहते हैं। प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, विकृति वस्तु में कार्य करनेवाले प्रतिबल की समानुपाती होती है। यह एक प्रायोगिक तथ्य है एवं हुक के नियम (Hooke's law of elasticity) के नाम से विख्यात है। श्रेणी:यान्त्रिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली श्रेणी:भौतिक लक्षण.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और यंग का प्रत्यास्थता मापांक · और देखें »

रवीन्द्र सेतु

रवीन्द्र सेतु भारत के पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के उपर बना एक "कैन्टीलीवर सेतु" है। यह हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। इसका मूल नाम "नया हावड़ा पुल" था जिसे बदलकर १४ जून सन् १९६५ को 'रवीन्द्र सेतु' कर दिया गया। किन्तु अब भी यह "हावड़ा ब्रिज" के नाम से अधिक जाना जाता है। यह अपने तरह का छठवाँ सबसे बड़ा पुल है। सामान्यतया प्रत्येक पुल के नीचे खंभे होते है जिन पर वह टिका रहता है परंतु यह एक ऐसा पुल है जो सिर्फ चार खम्भों पर टिका है दो नदी के इस तरफ और पौन किलोमीटर की चौड़ाई के बाद दो नदी के उस तरफ। सहारे के लिए कोई रस्से आदि की तरह कोई तार आदि नहीं। इस दुनिया के अनोखे हजारों टन बजनी इस्पात के गर्डरों के पुल ने केवल चार खम्भों पर खुद को इस तरह से बैलेंस बनाकर हवा में टिका रखा है कि 80 वर्षों से इस पर कोई फर्क नहीं पडा है जबकि लाखों की संख्या में दिन रात भारी वाहन और पैदल भीड़ इससे गुजरती है। अंग्रेजों ने जब इस पुल की कल्पना की तो वे ऐसा पुल बनाना चाहते थे कि नीचे नदी का जल मार्ग न रुके। अतः पुल के नीचे कोई खंभा न हो। ऊपर पुल बन जाय और नीचे हुगली में पानी के जहाज और नाव भी बिना अवरोध चलते रहें। ये एक झूला अथवा कैंटिलिवर पुल से ही संभव था। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और रवीन्द्र सेतु · और देखें »

लकड़ी

कई विशेषताएं दर्शाती हुई लकड़ी की सतह काष्ठ या लकड़ी एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसका उत्पादन वृक्षों(और अन्य काष्ठजन्य पादपों) के तने में परवर्धी जाइलम के रूप में होता है। एक जीवित वृक्ष में यह पत्तियों और अन्य बढ़ते ऊतकों तक पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है, साथ ही यह वृक्ष को सहारा देता है ताकि वृक्ष खुद खड़ा रह कर यथासंभव ऊँचाई और आकार ग्रहण कर सके। लकड़ी उन सभी वानस्पतिक सामग्रियों को भी कहा जाता है, जिनके गुण काष्ठ के समान होते हैं, साथ ही इससे तैयार की जाने वाली सामग्रियाँ जैसे कि तंतु और पतले टुकड़े भी काष्ठ ही कहलाते हैं। सभ्यता के आरंभ से ही मानव लकड़ी का उपयोग कई प्रयोजनों जैसे कि ईंधन (जलावन) और निर्माण सामग्री के तौर पर कर रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में इसका उपयोग मुख्य रूप भवन, औजार, हथियार, फर्नीचर, पैकेजिंग, कलाकृतियां और कागज आदि बनाने में किया जाता है। लकड़ी का काल निर्धारण कार्बन डेटिंग और कुछ प्रजातियों में वृक्षवलय कालक्रम के द्वारा किया जाता है। वृक्ष वलयों की चौड़ाई में साल दर साल होने वाले परिवर्तन और समस्थानिक प्रचुरता उस समय प्रचलित जलवायु का सुराग देते हैं। विभिन्न प्रकार के काष्ठ .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और लकड़ी · और देखें »

लक्ष्मण झूला

लक्ष्मण झूला लक्ष्मण झूला ऋषिकेश में गंगा नदी पर बना एक पुल है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और लक्ष्मण झूला · और देखें »

सिविल इंजीनियरी

द पेट्रोनस ट्विन टावर्स, जिसे वास्तुकार सीज़र पेली और थोरनटन-टोमेसिटी और रेन हिल बरसेकुटू एस.डी. एन. बी. एच. डी. इंजीनियरों ने बनाया था। ये इमारत 1998-2004 तक दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। सिविल इंजीनियरी, व्यावसायिक इंजीनियरिंग की एक शाखा है जो कि भौतिक और प्राकृतिक रूप से बने परिवेश में पुल, सड़क,नहरें, बाँध और भवनों आदि के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव से जुड़ी है।सिविल इंजीनियरिंग, सैन्य अभियान्त्रिकी के बाद आने वाली इंजीनियरिंग की सबसे पुरानी शाखा है। इसे सैन्य इंजीनियरिंग से अलग करने के लिए 'असैनिक इंजीनियरिंग' (सिविल इंजीनियरी) के रूप में परिभाषित किया गया। परंपरागत रूप से इसे कई उप-शाखाओं में बांटा गया है, जिनमें -पर्यावरण इंजीनियरिंग, भू-तकनीक इंजीनियरिंग, संरचनात्मक इंजीनियरिंग, परिवहन इंजीनियरिंग, नगरपालिका या शहरी इंजीनियरिंग, जल संसाधन इंजीनियरिंग, पदार्थ इंजीनियरिंग, तटीय इंजीनियरिंग, सर्वेक्षण और निर्माण इंजीनियरिंग. सिविल इंजीनियरिंग हर स्तर पर होती है: सार्वजनिक क्षेत्र में नगरपालिका के क्षेत्र से संघीय स्तरों तक और निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत घरों के मालिकों से अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों तक.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और सिविल इंजीनियरी · और देखें »

संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै

संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र (Structuarl engineering Research Centre) भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। यह चेन्नै में स्थित है। यहाँ संरचना एवं संरचनात्मक घटकों के विश्लेषण, अभिकल्प एवं परीक्षण के लिए उत्तम सुविधाएँ मौजूद हैं। इस केन्द्र की सेवाओं से केन्द्र और राज्य सरकार, निजी संस्थान एवं उपक्रम विस्तृत रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। एस.ई.आर.सी के वैज्ञानिक अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समितियों में काम करते हैं और संरचनात्मक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस केन्द्र ने अपना नाम प्रतिष्ठित किया है। स.ई.आर.सी अभी हाल ही में ISO 9001:2008 गुणवत्ता संस्थान का प्रमाणन प्राप्त किया है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र, चेन्नै · और देखें »

स्थैतिकी

स्थैतिक संतुलन में स्थित एक धरन (बीम) - सभी बलों का योग शून्य है; इसी प्रकार सभी आघूर्णों का योग भी शून्य है। स्थैतिकी या स्थिति विज्ञान (Statics) यांत्रिकी की वह शाखा है जिसमें भौतिक वस्तुओं पर लगे लोडों (बलों एवं आघूर्णों) की उपस्थिति में उसके स्थैतिक संतुलन (static equilibrium) का अध्ययन किया जाता है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और स्थैतिकी · और देखें »

सेतु

thumb सेतु एक प्रकार का ढाँचा जो नदी, पहाड़, घाटी अथवा मानव निर्मित अवरोध को वाहन या पैदल पार करने के लिये बनाया जाता है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और सेतु · और देखें »

सीमेंट

सीमेंट का उपयोग। सीमेंट आधुनिक भवन निर्माण मे प्रयुक्त होने वाली एक प्राथमिक सामग्री है। सीमेंट मुख्यतः कैल्शियम के सिलिकेट और एलुमिनेट यौगिकों का मिश्रण होता है, जो कैल्शियम ऑक्साइड, सिलिका, एल्यूमीनियम ऑक्साइड और लौह आक्साइड से निर्मित होते हैं। सीमेंट बनाने कि लिये चूना पत्थर और मृत्तिका (क्ले) के मिश्रण को एक भट्ठी में उच्च तापमान पर जलाया जाता है और तत्पश्चात इस प्रक्रिया के फल:स्वरूप बने खंगर (क्लिंकर) को जिप्सम के साथ मिलाकर महीन पीसा जाता है और इस प्रकार जो अंतिम उत्पाद प्राप्त होता है उसे साधारण पोर्टलैंड सीमेंट (सा.पो.सी.) कहा जाता है। भारत में, सा.पो.सी.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और सीमेंट · और देखें »

हरिद्वार

हरिद्वार, उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह नगर निगम बोर्ड से नियंत्रित है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। ३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है; जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ "हरि (ईश्वर) का द्वार" होता है। पश्चात्कालीन हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब God Dhanwantari उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। ध्यातव्य है कि कुम्भ या महाकुम्भ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। अतः कथा का रूप भी भिन्न-भिन्न रहा है। मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२वें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। 'हर की पौड़ी' हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है। हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसम्बर १९८८ को अस्तित्व में आया। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, १९९८' पारित किया, अंततः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००' पारित किया और इस प्रकार ९ नवम्बर २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया। आज, यह अपने धार्मिक महत्त्व के अतिरिक्त भी, राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में, तेज़ी से विकसित हो रहा है। तेज़ी से विकसित होता औद्योगिक एस्टेट, राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम, SIDCUL (सिडकुल), भेल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और इसके सम्बंधित सहायक इस नगर के विकास के साक्ष्य हैं। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और हरिद्वार · और देखें »

ईंट

शीर्षों और चौखटों के वैकल्‍पिक विधियों के साथ रखा गया अंग्रेजी बंध पत्र में पुरानी ईंट की दीवार ऐतिहासिक नत्चितोचेस, लुइसियाना में ईंट से निर्मिति केन नदी के साथ सामने की गली चिनाई के कार्य में उपयोग किया जाने वाला ईंट मिट्टी का ब्लॉक है, जिन्हें सामान्‍यत: विभिन्‍न प्रकार के गारे का उपयोग कर चिना जाता है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और ईंट · और देखें »

विद्युत अभियान्त्रिकी

विद्युत अभियन्ता, वैद्युत-शक्ति-तन्त्र का डिजाइन करते हैं; और … … जटिल एलेक्ट्रानिक तन्त्रों का डिजाइन भी करते हैं। नियंत्रण तंत्र आधुनिक सभ्यता का अभिन्न अंग है। यह विद्युत अभियान्त्रिकी का भी प्रमुख विषय है। विद्युत अभियान्त्रिकी विद्युत और विद्युतीय तरंग, उनके उपयोग और उनसे जुड़ी तमाम तकनीकी और विज्ञान का अध्ययन और कार्य है। प्रायः इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स भी शामिल रहता है। इसमे मुख्य रूप से विद्युत मशीनों की कार्य विधि एवं डिजाइन; विद्युत उर्जा का उत्पादन, संचरण, वितरण, उपयोग; पावर एलेक्ट्रानिक्स; नियन्त्रण तन्त्र; तथा एलेक्ट्रानिक्स का अध्ययन किया जाता है। एक अलग व्यवसाय के रूप में वैद्युत अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में हुआ जब विद्युत शक्ति का व्यावसायिक उपयोग होना आरम्भ हुआ। आजकल वैद्युत अभियांत्रिकी के अनेकों उपक्षेत्र हो गये हैं। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और विद्युत अभियान्त्रिकी · और देखें »

विकृति

विकृति ' यह वस्तु या पदार्थ मे होने वाले विरूपण (deformation) को प्रदर्शित करती हैं| बाह्य बल(external force) के कारण वस्तु की लंबाई मे होने वाली परिवर्तन एवं उसकी प्रारंभिक लंबाई के अनुपात को विकृति (strain) कहते हैं | अतः नोट:- यह दो लंबाई का अनुपात हैं अर्थात इसकी कोई इकाई नहीं होती हैं | ' .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और विकृति · और देखें »

इस्पात

इस्पात (Steel), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्रातु है। इसकी तन्य शक्ति (tensile strength) अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। 'इस्पात' शब्द इतने विविध प्रकार के परस्पर अत्यधिक भिन्न गुणोंवाले पदार्थो के लिए प्रयुक्त होता है कि इस शब्द की ठीक-ठीक परिभाषा करना वस्तुत: असंभव है। परंतु व्यवहारत: इस्पात से लोहे तथा कार्बन (कार्बन) की मिश्र धातु ही समझी जाती है (दूसरे तत्व भी साथ में चाहे हों अथवा न हों)। इसमें कार्बन की मात्रा साधारणतया 0.002% से 2.14% तक होती है। किसी अन्य तत्व की अपेक्षा कार्बन, लोहे के गुणों को अधिक प्रभावित करता है; इससे अद्वितीय विस्तार में विभिन्न गुण प्राप्त होते हैं। वेसे तो कई अन्य साधारण तत्व भी मिलाए जाने पर लोहे तथा इस्पात के गुणों को बहुत बदल देते हैं, परंतु इनमें कार्बन ही प्रधान मिश्रधातुकारी तत्व है। यह लोहे की कठोरता तथा पुष्टता समानुपातिक मात्रा में बढ़ाता है, विशेषकर उचित उष्मा उपचार के उपरांत। इस्पात एक मिश्रण है जिसमें अधिकांश हिस्सा लोहा का होता है। इस्पात में 0.2 प्रतिशत से 2.14 प्रतिशत के बीच कार्बन होता है। लोहा के साथ कार्बन सबसे किफायत मिश्रक होता है, लेकिन जरूरत के अनुसार, इसमें मैंगनीज, क्रोमियम, वैंनेडियम और टंग्सटन भी मिलाए जाते हैं। कार्बन और दूसरे पदार्थ मिश्र-धातु को कठोरता प्रदान करते हैं। लौहे के साथ, उचित मात्रा में मिश्रक मिलाकर लोहे को आवश्यक कठोरता, तन्यता और सुघट्यता प्रदान किया जाता है। लौहे में जितना ज्यादा कार्बन मिलाते हैं इस्पात उतना ही कठोर बनता जाता है, कठोरता बढ़ने के साथ ही उसकी भंगुरता भी बढ़ती जाती है। 1149 डिग्री सेल्सियस पर लौहे में कार्बन की अधिकतम घुल्यता 2.14 प्रतिशत है। कम तापमान पर अगर लौहे में ज्यादा मात्रा में कार्बन हो तो इससे सिमेंटाइट का निर्माण होगा। लौहे में अगर इससे ज्यादा कार्बन हो तो यह कास्ट आयरन कहलाता है, क्योंकि इसका गलनाक कम हो जाता है। इस्पात, कास्ट आयरन से इसलिए भी अलग होता है क्योंकि इसमें दूसरे तत्वों की मात्रा अत्यंत कम होती है यानी 1 से तीन प्रतिशत के करीब.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और इस्पात · और देखें »

कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और कोलकाता · और देखें »

कीलक

कीलक (Rivet) एक स्थायी यांत्रिक योक्‍ता (fastener) है। श्रेणी:यांत्रिक योक्‍ता en:Rivet.

नई!!: संरचना इंजीनियरी और कीलक · और देखें »

अभियान्त्रिकी

लोहे का 'कड़ा' (O-ring): कनाडा के इंजिनियरों का परिचय व गौरव-चिह्न सन् 1904 में निर्मित एक इंजन की डिजाइन १२ जून १९९८ को अंतरिक्ष स्टेशन '''मीर''' अभियान्त्रिकी (Engineering) वह विज्ञान तथा व्यवसाय है जो मानव की विविध जरूरतों की पूर्ति करने में आने वाली समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है। इसके लिये वह गणितीय, भौतिक व प्राकृतिक विज्ञानों के ज्ञानराशि का उपयोग करती है। इंजीनियरी भौतिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है; औद्योगिक प्रक्रमों का विकास एवं नियंत्रण करती है। इसके लिये वह तकनीकी मानकों का प्रयोग करते हुए विधियाँ, डिजाइन और विनिर्देश (specifications) प्रदान करती है। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और अभियान्त्रिकी · और देखें »

ऋषिकेश

ऋषिकेश (संस्कृत: हृषीकेश) उत्तराखण्ड के देहरादून जिले का एक नगर, हिन्दू तीर्थस्थल, नगरपालिका तथा तहसील है। यह गढ़वाल हिमालय का प्रवेश्द्वार एवं योग की वैश्विक राजधानी है। ऋषिकेश, हरिद्वार से २५ किमी उत्तर में तथा देहरादून से ४३ किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं। .

नई!!: संरचना इंजीनियरी और ऋषिकेश · और देखें »

छत

टोक्यो में कुछ घरों की छतें वास्तुकला में छत किसी कमरे, मकान, स्थापत्य या अन्य जगह को ऊपर से ढकने के लिए बनाए गए ढाँचे को कहते हैं। छत के द्वारा किसी इमारत की धूप, वर्षा, बर्फ़, हवा-आंधी और अन्य मौसमी तत्वों से, व जानवरों और कीटों से रक्षा की जा सकती है।, David Johnston, Scott Gibson, Taunton Press, 2008, ISBN 978-1-56158-973-9,...

नई!!: संरचना इंजीनियरी और छत · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

संरचना अभियांत्रिकी, संरचनात्मक इंजीनियरिंग, संरचनात्मक इंजीनियरी, संरचनात्मक अभियांत्रिकी

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »