6 संबंधों: बिहार, बंगाल, भागलपुर, मुर्शिदाबाद, स्थायी बन्दोबस्त, खड़िया विद्रोह।
बिहार
बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .
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बंगाल
बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .
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भागलपुर
भागलपुर बिहार प्रान्त का एक शहर है। गंगा के तट पर बसा यह एक अत्यंत प्राचीन शहर है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के कैमूर की पहाड़ी का मिलन स्थल है। भागलपुर सिल्क के व्यापार के लिये विश्वविख्यात रहा है, तसर सिल्क का उत्पादन अभी भी यहां के कई परिवारों के रोजी रोटी का श्रोत है। वर्तमान समय में भागलपुर हिन्दू मुसलमान दंगों और अपराध की वजह से सुर्खियों में रहा है। यहाँ एक हवाई अड्डा भी है जो अभी चालू नहीं है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना है। रेल और सड़क मार्ग से भी यह शहर अच्छी तरह जुड़ा है। प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों यथा तक्षशिला, नालन्दा और विक्रमशिला में से एक विश्वविद्यालय भागलपुर में ही था जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्थलों के रूप में है ये हैं बासुकीनाथ और मंदार पर्वत। पवित्र् गंगा नदी को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर गंगा को यह नाम दिया गया उसे अजगैवी नाथ कहा जाता है यह तीर्थ भी भागलपुर में ही है। प्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक तथा पूर्व सांसद प्रो.
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मुर्शिदाबाद
मुर्शिदाबाद भारत के पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। .
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स्थायी बन्दोबस्त
स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक एक सथाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया। इसके द्वारा तत्कालीन बंगाल और बिहार में भूमि कर वसूलने की जमींदारी प्रथा को आधीकारिक तरीका चुना गया। बाद में यह कुछ विनियामकों द्वारा पूरे उत्तर भारत में लागू किया गया। इस बंदोबस्त के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुए और इन्ही के द्वारा भारत में पहली बार आधिकारिक सेवाओं को तीन स्पष्ट भागों में विभक्त किया गया और राजस्व, न्याय और वाणिज्यिक सेवाओं को अलग-अलग किया गया। जमींदारी व्यवस्था अंग्रेजो की देन थी इसमें कई आर्थिक उद्देश्य निहित थे इस पद्दति को जांगीरदारी, मालगुजारी, बिसवेदारी, इत्यादि भिन्न भिन्न नामों से भी जाना जाता था पृष्ठभूमि इससे पहले बंगाल, बिहार और ओडिशा के ज़मीनदारों ने बंगाल में मुगल सम्राट और उनके प्रतिनिधि दीवाण की तरफ से राजस्व एकत्र करने का अधिकार ग्रहण किया था। दीवान ने यह सुनिश्चित करने के लिए ज़मीनदारों की देखरेख की कि वे न तो ढीला और न ही कड़े कड़े थे। जब ईस्ट इंडिया कंपनी को 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद साम्राज्य द्वारा दिवाणी या बंगाल की अधिपति से सम्मानित किया गया था, तो यह खुद को प्रशिक्षित प्रशासकों की कमी पाया, विशेष रूप से स्थानीय प्रथा और कानून से परिचित लोगों को। नतीजतन, भूमिधारकों को भ्रष्ट और आलोक अधिकारियों के बारे में बताया गया इसका नतीजा यह था कि भविष्य की आय या स्थानीय कल्याण के लिए बिना कमाई निकाली गई। .
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खड़िया विद्रोह
तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ। यह आंदोलन अपनी माटी की रक्षा के लिए शुरू हुआ। जंगल की जमीन से अंग्रेजों को हटाने के लिए युवा वर्ग को गदका, तीर और तलवार चलाने की शिक्षा दी गई। तेलंगा की पत्नी रत्नी खड़िया ने हर मोर्चे पर पति का साथ दिया। रत्नी ने कई जगह अकेले ही नेतृत्व संभालते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया। 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों के दलाल बोधन सिंह ने गोली मारकर तेलंगा खड़िया की हत्या कर दी। उनकी हत्या के बाद रत्नी खड़िया ने पति के अधूरे कार्यां को पूरा किया। वह अपनी सादगी, ईमानदारी और सत्यवादिता से लोगों में जीवन का संचार करती रहीं। .
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