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संगठन सिद्धान्त

सूची संगठन सिद्धान्त

संगठन सिद्धान्त (Organizational theory) के अन्तर्गत राष्ट्रीय सामाजिक संगठन एक स्वयं सेवी एवं सामुदायिक संगठन है।जो की समाजशास्त्रीय अध्ययन किया जाता है। संगठन तथा मानव सेवा प्रकृत निर्मित प्राणियों की सेवा ही परम कर्तव्य है राष्ट्रीय सामाजिक संगठन की कार्य सम्पूर्ण भारत है। सभी वर्गी की राष्ट्रके हित में एकता स्थापित करना,मानव सेवा के लिए युवाओ को चरित्र निर्माण करना और भारत माता की सेवा व राष्ट्र भगति के लिए सादर समर्पित करना व देश स्मपुर भागीदारी सौपना जिससे देश व राष्ट्र बिकसित हो आदि कार्य है व भारत देश की संविधान की रक्षा करना,युवाओ की हक व अधिकार लड़ाई लड़ना भरतीय लोकतंत्र की हत्या होने से बचना। दिन दुखनियो को सेवा ही परम कर्तब व मुख सिद्धयन्त है। राष्ट्रीय अध्यक्ष सोशल वैज्ञानिक सह समाज सुधारक श्री शशीभूषण गाँन्धी Rashtriya samajik sangthan indian science reasurch organization welfare charitable mission head quater cnnagar nathpur narpatganj araria bihar.

2 संबंधों: श्रम का विभाजन, संगठन

श्रम का विभाजन

जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे श्रम विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (specialization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक रूप से श्रम-विभाजन व्यापार की वृद्धि, सम्पूर्ण आउटपुट की वृद्धि, पूंजीवाद का उदय तथा औद्योगीकरण की जटिलता में वृद्धि से जुड़ा रहा है। परिष्कृत होकर धीरे-धीरे श्रम-विभाजन वैज्ञानिक प्रबन्धन के स्तर तक जा पहुँचा। मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं; कुछ लोग कुम्भकारी करते हैं और कुछ लोग लोहारी करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है। .

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संगठन

संगठन (organisation) वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों की समीक्षा करते हुए स्वयं का नियन्त्रण करती है, तथा अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है। संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं - सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक आदि। .

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संगठन के सिद्धान्त

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