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संख्या सिद्धान्त

सूची संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

24 संबंधों: डायोफैंटीय समीकरण, प्राकृतिक संख्या, फर्मा का अंतिम प्रमेय, बीज-लेखन, बीजगणितीय संख्या सिद्धान्त, बीजीय संख्या, महत्तम समापवर्तक, मूल, मॉड्युलर गणित, शुद्ध गणित, सम और विषम अंक, संख्या, संख्या पद्धतियाँ, संख्या सिद्धान्त, संख्याबोध, विभाज्यता के नियम, विविक्त गणित, गणितज्ञ, गणितीय आगमन, गोल्डबैक का अनुमान, कलन, कुट्टक, अल्गोरिद्म, अंकगणित

डायोफैंटीय समीकरण

पूर्णांक भुजाओं वाले सभी समकोण त्रिभुज प्राप्त करना एक प्रकार से डायोफैंटीय समीकरण a^2+b^2.

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प्राकृतिक संख्या

प्राकृतिक संख्याओं से गणना की सकती है। उदाहरण: (ऊपर से नीचे की ओर) एक सेब, दो सेब, तीन सेब,... गणित में 1,2,3,...

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फर्मा का अंतिम प्रमेय

पियरे द फर्मा संख्या सिद्धान्त में फर्मा का अंतिम प्रमेय (Fermat's Last Theorem) के अनुसार, शून्य के अतिरिक्त a, b तथा c कोई ऐसी धनात्मक पूर्ण संख्याएँ नहीं होतीं जो समीकरण को संतुष्ट करें, जहाँ n, 2 से बड़ी कोई धनात्मक पूर्णांक हो। उदाहरण के लिए फर्मा के इस प्रमेय के अनुसार a, b, c कोई तीन धनात्मक पूर्णांक नहीं मिल सकते जिनके लिए, किंतु फर्मा ने इस प्रमेय की उपपत्ति नहीं दी। यह प्रमेय सन् १६३७ में दिया गया। बाद में n .

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बीज-लेखन

द्वितीय विश्व युद्ध में सेना के उच्च स्तरीय जनरल स्टाफ के संदेशों को कूटबद्ध करने के लिए या उन्हें गुप्त भाषा में लिखने के लिए प्रयोग की गई। Lorenz cipher) क्रिप्टोग्राफ़ी या क्रिप्टोलोजी यानि कूट-लेखन यूनानी शब्द κρυπτός,, क्रिपटोस औरγράφω ग्राफ़ो या -λογία,लोजिया (-logia), से लिया गया है। इनके अर्थ हैं क्रमशः छुपा हुआ रहस्य और मैं लिखता हूँ। यह किसी छुपी हुई जानकारी (information) का अध्ययन करने की प्रक्रिया है। आधुनिक समय में, क्रिप्टोग्राफ़ी या कूट-लेखन को गणित और कंप्यूटर विज्ञान (computer science) दोनों की एक शाखा माना जाता है और सूचना सिद्धांत (information theory), कंप्यूटर सुरक्षा (computer security) और इंजीनियरिंग से काफ़ी ज्यादा जुड़ा हुआ है। तकनीकी रूप से उन्नत समाज में कूटलेखन के अनुप्रयोग कई रूपों में मौजूद हैं। उदाहरण के लिये - एटीएम कार्ड (ATM cards), कंप्यूटर पासवर्ड (computer passwords) और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce)- ये सभी कूटलेखन पर निर्भर करते हैं। .

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बीजगणितीय संख्या सिद्धान्त

बीजगणितीय संख्या सिद्धान्त (Algebraic number theory), संख्या सिद्धान्त की एक प्रमुख शाखा है जो बीजगणितीय पूर्णांकों से सम्बन्धित बीजगणितीय संरचनाओं का अध्ययन करती है। श्रेणी:संख्या सिद्धान्त.

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बीजीय संख्या

गणित में बीजीय संख्या (algebraic number) उन संख्याओं को कहते हैं जो किसी एक चर वाले, परिमेय गुणांकों वाले, अशून्य बहुपद का मूल (रूट) हो। π आदि संख्याएँ बीजीय नहीं है। इन्हे अबीजीय (transcendental) कहते हैं। .

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महत्तम समापवर्तक

अंकगणित में दो पूर्णांकों a तथा b का महत्तम समापवर्तक या मस (greatest common divisor (gcd), greatest common factor (gcf), greatest common denominator, or highest common factor (hcf)) वह महत्तम (अर्थात, सबसे बड़ी) संख्या होती है जो a तथा b दोनो को विभाजित कर सके।;उदाहरण: 8 और 12 का मस .

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मूल

मूल के कई अर्थ हो सकते हैं-.

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मॉड्युलर गणित

इस घड़ी का समय मॉड्युलो १२ के अनुसार प्रदर्शित किया जाता है। मॉड्युलर गणित पूर्णाकों के गणित की एक प्रणाली है जिसमें किसी पूर्णांक पर पहुँचने के बाद गिनती १ से शुरू हो जाती है। इसे कभी-कभी घड़ी का गणित भी कहते हैं। इस क्षेत्र में स्विस गणितज्ञ आयलर ने बहुत उल्लेखनीय कार्य किया। इसके बाद कार्ल फ्रेडरिक गाउस ने इसको और आगे बढ़ाया। मोड्युलो गणित का एक छोटा सा उपयोग घड़ियाँ के समय में होता है। अभी सुबह के ८ बजे हैं; अब से ७ घण्टे बाद ८ + ७ .

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शुद्ध गणित

मोटे तौर पर, जो गणित अनुप्रयोग की चिन्ता किये बिना विकसित किया गया हो उसे शुद्ध गणित (pure mathematics) कहते हैं। विश्लेषणात्मक जटिलता (गहराई) और अमूर्तीकरण (abstraction) की सुन्दरता इसकी प्रमुख विशेषता है। अट्ठारहवीं शती से इस क्षेत्र में काफी काम हुए हैं। .

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सम और विषम अंक

विश्व के कुछ शहरों में घरों को संख्यांक देने की यह परंपरा है कि सड़क की एक तरफ सम अंक होते हैं और सड़क की दूसरी तरफ विषम अंक। यदि किसी घर-ढूंढते हुए वाहनचालक को घर-संख्या मालूम हो तो उसे सड़क के केवल एक ही ओर देखने की आवश्यकता होती है गणित में सम (even) ऐसी संख्याओं को कहा जाता है जो २ द्वारा पूर्णतः विभाज्य (डिविज़िबल​) हों, जैसे कि ०, २, ४, ६, ८, इत्यादि। यही कहने का एक और तरीका है कि सभी सम अंक २ के गुणज (मल्टिपल) होते हैं। इस से विपरीत विषम (odd) अंक ऐसे अंकों को कहा जाता है, जो २ द्वारा विभाज्य नहीं होते, जैसे १, ३, ५, ७, ९, ११, आदि। यद्यपि मूल रूप से सम-विषम की अवधारणा अंको पर लगाई जाती थी, आधुनिक गणित में इसे अन्य चीज़ों पर भी लागू किया जाता है। किसी चीज़ की गणितीय समता (parity) उसका वह लक्षण होती है जो यह बतलाए कि वह सम है या विषम। .

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संख्या

समिश्र संख्याओं के उपसमुच्चय संख्याएं हमारे जीवन के ढर्रे को निर्धरित करती हैं। जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं। .

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संख्या पद्धतियाँ

संख्याओं को लिखने एवं उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को संख्या पद्धति (Number system) कहते हैं। इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं। दशमलव पद्धति, द्वयाधारी संख्या पद्धति, अष्टाधारी संख्या पद्धति तथा षोडषाधारी संख्या पद्धति आदि कुछ प्रमुख प्रचलित संख्या पद्धतियाँ हैं। .

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संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

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संख्याबोध

गणित की शिक्षा में संख्याबोध (number sense) का अर्थ है - संख्याओं का अंत:प्रज्ञात्मक (intuitive) समझ या बोध। संख्याओं के बोध में संख्याएँ, उनका परिमाण, उनका परस्पर सम्बन्ध (छोटा, बड़ा आदि), तथा उन पर संक्रिया (operations) करने से वे कैसे प्रभावित होते हैं; आदि सभी चीजें सम्मिलित हैं। शोधकर्ता यह मानते हैं कि बच्चों की आरम्भिक शिक्षा में संख्याबोध का अत्यन्त महत्व है। इसलिये बच्चों के संख्याबोध को विकसित करने के लिये उपयुक्त शैक्षणिक विधियों के निर्माण एवं उनके परीक्षण पर बहुत से अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। .

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विभाज्यता के नियम

विभाज्यता के नियम (divisibility rule) उन विधियों को कहते हैं जो सरलता से बता देते हैं कि कोई संख्या किसी दूसरी संख्या से विभाजित हो सकती है या नहीं। किसी भी आधार वाले संख्या-पद्धति (जैसे, द्वयाधारी या अष्टाधारी संख्याओं) के लिये ऐसे नियम बनाये जा सकते हैं किन्तु यहाँ केवल दाशमिक प्रणाली (decimal system) के संख्याओं के लिये विभाज्यता के नियम नियम दिये गये हैं। .

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विविक्त गणित

यह एक छः नोड वाला ग्राफ है। अन्य चीजों के अलावा इस तरह के ग्राफ भी विविक्त गणित के अध्ययन के विषय हैं। विविक्त गणित (Discrete mathematics) गणित की वह शाखा है जो ऐसी गणितीय संरचनाओं का अध्ययन करती है जो मूलतः विविक्त (discrete) होती हैं, न कि सतत (continuous)। विविक्त गणित में पूर्णांकों, ग्राफों, तथा तार्किक कथनों का अध्ययन किया जाता है जिनका परिवर्तन असतत होता है न कि वास्तविक संख्याओं की भांति सतत। विविक्त गणित में प्रयुक्त संरचनाएँ सतत नहीं होतीं बल्कि परस्पर विलग (separated) मान ही धारण करतीं हैं। इस कारण विविक्त गणित में कैलकुलस तथा विश्लेषण आदि विषय नहीं आते और वे 'सतत गणित' के विषय हैं। .

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गणितज्ञ

लियोनार्ड यूलर को हमेशा से एक प्रसिद्ध गणितज्ञ माना गया है एक गणितज्ञ वह व्यक्ति होता है जिसके अध्ययन और अनुसंधान का प्राथमिक क्षेत्र गणित ही रहता है। .

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गणितीय आगमन

गणितीय आगमन (Mathematical induction) गणितीय उपपत्ति (mathematical proof) प्रस्तुत करने की एक विधि है जिसका उपयोग प्रायः। यह दर्शाने के लिये किया जाता है कि कोई कथन (statement) सभी प्राकृतिक संख्याओं के लिये सत्य है। यद्यपि इसके नाम में 'आगमन' (induction) शब्द आया है किन्तु सही बात यह है कि यह विधि एक निगमन विधि (deductive logic) है न कि आगमन विधि (inductive logic)। इस विधि का सबसे पहला उल्लेख सन् १५७५ में फ्रांसेस्को माउरोलिको (Francesco Maurolico) द्वारा हुआ मिलता है। .

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गोल्डबैक का अनुमान

गोल्डबैक का अनुमान (Goldbach's conjecture) गणित एवं संख्या सिद्धान्त की सबसे पुरानी अनसुलझी समस्याओं में से एक है। इसके अनुसार, " 2 से बड़ी सभी सम संख्याओं को दो अभाज्य संख्याओं के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।; उदाहरण किसी सम संख्या को दो अभाज्यों के योग के रूप में लिखने की विधियों की संख्याhttp://demonstrations.wolfram.com/GoldbachConjecture/ “Goldbach's Conjecture" by Hector Zenil, Wolfram Demonstrations Project, 2007. .

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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कुट्टक

कुट्टक रैखिक डायोफैंटीय समीकरणों के पूर्णांक हल निकालने की विधि (algorithm) हैं जो भारतीय गणित में बहुत प्रसिद्ध हैं। .

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अल्गोरिद्म

महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .

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अंकगणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० अंकगणित (ग्रीक मेंΑριθμητική, जर्मन मेंArithmetik, अंग्रेजी मेंArithmetic) गणित की तीन बड़ी शाखाओं में से एक है। अंकों तथा संख्याओं की गणनाओं से सम्बंधित गणित की शाखा को अंकगणित कहा जाता हैं। यह गणित की मौलिक शाखा है तथा इसी से गणित की प्रारम्भिक शिक्षा का आरम्भ होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने दैनिक जीवन में प्रायः अंकगणित का उपयोग करता है। अंकगणित के अन्तर्गत जोड़, घटाना, गुणा, भाग, भिन्न, दशमलव आदि प्रक्रियाएँ आती हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

संख्या सिद्धांत, उच्च अंकगणित

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