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श्रोगेन सिन्ड्रोम

सूची श्रोगेन सिन्ड्रोम

श्रोगेन सिन्ड्रोम (Sjögren's syndrome (SjS, SS)) वह रोग है जिसमें शरीर की नमी पैदा करने वाली ग्रन्थियाँ नमी बनाना बन्द कर देतीं हैं। इसके कारण शुष्क मुख एवं शुष्क नेत्र की समस्या एवं अन्य कई समस्याएँ पैदा होतीं हैं। शोग्रेन्स सिन्ड्रोम से उत्पन्न शुष्क त्वचा की विशेष देखभाल जरूरी है। खुजली, लालिमा, फटना या गलना - यह सब शुष्क त्वचा के लक्षण हैं। शुष्क त्वचा का प्रमुख कारण है शोग्रेन्स रोग द्वारा शरीर में प्रतिरोधक क्षमता की कमी और इससे नमी पैदा करने वाली ग्रंथियों का निष्क्रिय होना। एक बार निष्क्रिय होने पर तेल अथवा पसीने की ग्रंथियां पुनः सक्रिय नहीं हो सकतीं। हालांकि शोग्रेन्स सिन्ड्रोम से पीड़ित रोगी को सूखी त्वचा से परेशानी लगभग पूरे वर्ष बनी रहती है, फिर भी इसके लक्षण सर्दी के मौसम में अधिक प्रबल हो जाते हैं। बाहों, पैरों व कमर पर शुष्क त्वचा का सबसे गंभीर असर होता है। .

5 संबंधों: नारियल तेल, शुष्क नेत्र, शुष्क मुख, घृत कुमारी, विटामिन डी

नारियल तेल

सेशेल्स में बैल-चालित चक्की के प्रयोग से नारियल तेल बनाने का पारंपरिक तरीका. नारियल तेल नारियल के पेड़ (कोकोस न्यूसीफेरा) में लगे पके हुए नारियल के गूदे या सार से निकाला जाता है। समूची उष्णकटिबंधीय दुनिया में यह पीढ़ी दर पीढ़ी लाखों लोगों के आहार में वसा का मुख्य स्रोत रहा है। भोजन, औषधि एवं उद्योग में इसकी विभिन्न उपयोगिताएं हैं। नारियल तेल बेहद उष्णता सुचालक है अतः यह खाना पकाने एवं तलने का एक उत्कृष्ट तेल है। इसका धूम्र बिंदु लगभग 360 °F (180 °C) है। इसकी स्थिरता की वजह से इसका ऑक्सीकरण धीमी गति से होता है, जिससे यह जल्दी बासी नहीं होता और उच्च संतृप्त वसा तत्व की वजह से दो वर्षों तक टिक सकता है। .

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शुष्क नेत्र

शुषक नेत्र रोग (Dry eye syndrome (DES)) में आँखों में नमी की कमी अनुभव होती है। इससे कारण आंखों में उत्तेजन (इर्रिटेशन), लाली, तथा थकावट होती है। इससे धुँधला दिखाई पड़ने की समस्या भी आ सकती है। कुछ मामलों में इसका इलाज न कराने पर श्वेतपटल (कार्निया) भी क्षतिग्रस्त हो सकती है। .

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शुष्क मुख

शुष्क मुख (Xerostomia) एक विकार है जिसमें मुख में नमी की कमी या सूखापन होने लगता है। यह लार की संरचना बदलने के कारण हो सकता है या लार के कम बनने के कारण। यह अधिक उम्र के लोगों में अधिक देखने को मिलता है। .

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घृत कुमारी

घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा, जिसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है। यह प्रजाति विश्व के अन्य स्थानों पर स्वाभाविक रूप से नहीं पायी जाती पर इसके निकट संबंधी अलो उत्तरी अफ्रीका में पाये जाते हैं। इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप में मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसके अतिरिक्त इसका उल्लेख नए करार (न्यू टेस्टामेंट) में किया है लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि बाइबल में वर्णित अलो और अलो वेरा में कोई संबंध है। घृत कुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे चिरयौवनकारी (त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम), आरोग्यी या सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन घृत कुमारी के औषधीय प्रयोजनों के प्रभावों की पुष्टि के लिये बहुत कम ही वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद है और अक्सर एक अध्ययन दूसरे अध्ययन की काट करता प्रतीत होता है। इस सबके बावजूद, कुछ प्रारंभिक सबूत है कि घृत कुमारी मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है। माना जाता है ये सकारात्मक प्रभाव इसमे उपस्थिति मन्नास, एंथ्राक्युईनोनेज़ और लिक्टिन जैसे यौगिकों के कारण होता है। इसके अलावा मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी डॉ॰गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ॰ए पी जैन के सहयोग से एलोविरा और मशरूम के कैप्सूल तैयार किए हैं, जो एड्स रोगियों के लिए बहुत लाभदायक हैं। यह रक्त शुद्धि भी करता है। .

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विटामिन डी

कोलेकैल्सिफेरॉल (डी३) विटामिन डी वसा-घुलनशील प्रो-हार्मोन का एक समूह होता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं:विटामिन डी२ (या अर्गोकेलसीफेरोल) एवं विटामिन डी३ (या कोलेकेलसीफेरोल).

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