सामग्री की तालिका
14 संबंधों: डेकन कॉलेज, पुणे, भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान, भवभूति, महाभारत, मुकुंदराव आनंदराव जयकर, रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे, सर्वेपल्लि राधाकृष्णन, संस्कृत भाषा, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, काव्यादर्श, कोल्हापुर, अहमदाबाद, उत्तररामचरितम्।
डेकन कॉलेज
डेकन कॉलेज पुणे का एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान है। वर्तमान समय में इसका नाम डेक्कन कॉलेज परास्नातक एवं अनुसंधान संस्थान (Deccan College Post-Graduate and Research Institute) है। यह पुरातत्व एवं भाषाविज्ञान के शिक्षण के लिये जाना जाता है। यह भारत में आधुनिक शिक्षा के सबसे प्राचीन संस्थानों में से एक है। मुळा-मुठा नदीयोंपे काफी संशोधन इस काॅलेजमे हुआ है.
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पुणे
पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .
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भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान
भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान का भवन भांडारकर शोध संस्थान पुणे स्थित एक संस्थान है। यही सर्वभारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन का केंद्रीय कार्यालय है जिसे अब भारतीय प्राच्यविदों की राष्ट्रीय संस्था के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो चुकी है। संस्थान का अपना पुस्तकालय तथा वाचनालय और एक अतिथिभवन भी है। .
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भवभूति
भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में महावीरचरित् की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी श्री भट्टगोपाल के पुत्र थे। इनके पिता का नाम नीलकंठ और माता का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था। मालतीमाधव की पुरातन प्रति में प्राप्त 'भट्ट श्री कुमारिल शिष्येण विरचित मिंद प्रकरणम्' तथा 'भट्ट श्री कुमारिल प्रसादात्प्राप्त वाग्वैभवस्य उम्बेकाचार्यस्येयं कृति' इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि श्रीकंठ के गुरु कुमारिल थे जिनका 'ज्ञाननिधि' भी नाम था और भवभूति ही मीमांसक उम्बेकाचार्य थे जिनका उल्लेख दर्शन ग्रंथों में प्राप्त होता है और इन्होंने कुमारिल के श्लोकवार्तिक की टीका भी की थी। संस्कृत साहित्य में महान् दार्शनिक और नाटककार होने के नाते ये अद्वितीय हैं। पांडित्य और विदग्धता का यह अनुपम योग संस्कृत साहित्य में दुर्लभ है। शंकरदिग्विजय से ज्ञात होता है कि उम्बेक, मंडन सुरेश्वर, एक ही व्यक्ति के नाम थे। भवभूति का एक नाम 'उम्बेक' प्राप्त होता है अत: नाटककार भवभूति, मीमांसक उम्बेक और अद्वैतमत में दीक्षित सुरेश्वराचार्य एक ही हैं, ऐसा कुछ विद्वानों का मत है। राजतरंगिणी के उल्लेख से इनका समय एक प्रकार से निश्चित सा है। ये कान्यकुब्ज के नरेश यशोवर्मन के सभापंडित थे, जिन्हें ललितादित्य ने पराजित किया था। 'गउडवहो' के निर्माता वाक्यपतिराज भी उसी दरबार में थे अत: इनका समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्ध सिद्ध होता है। .
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महाभारत
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .
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मुकुंदराव आनंदराव जयकर
मुकुंदराव आनंदराव जयकर मुकुंदराव आनंदराव जयकर (13 नवम्बर 1873 - 10 मार्च 1959, मुम्बई)) प्रख्यात विधि विशारद्, संविधानशास्त्रज्ञ, न्यायाधीश, प्रसिद्ध वक्ता, शिक्षाशास्त्री एवं समाजसेवक थे। 1917 के बाद हिंदुस्तान का ऐसा कोई भी आंदोलन नहीं जिससे आपका संबंध न रहा हो। 1948 से पूना के कुलपति के रूप में रहे। आपका व्यक्तित्व अत्यंत व्यापक रहा है। आपके सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी कार्यों का मूल्यांकन किए बिना भारत का आधुनिक इतिहास अधूरा रहेगा। इस दृष्टि से आपके भाषणों, पत्रों तथा लेखों का अध्ययन आवश्यक है। .
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रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे
डॉ॰ रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे (३ जुलाई १८८६ - ६ जून १९५७) संस्कृत के विद्वान एवं दर्शनशास्त्री थे। .
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सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (५ सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। .
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संस्कृत भाषा
संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .
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हार्वर्ड विश्वविद्यालय
250px हार्वर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका के मैसाचुसैट्स शहर के कैंब्रिज में स्थित एक निजी विश्वविद्यालय है, जो इवी लीग का सदस्य है। इसकी स्थापना 1636 में औपनिवेशिक मैसाचुसैट्स कानून के तहत हुआ। हार्वर्ड अमेरिका में उच्च शिक्षा का सबसे पुराना संस्थान है और वर्तमान में इसकी दस शैक्षणिक ईकाईयां हैं। यह अमेरिका का पहला और सबसे पुराना निगम है। शुरुआत में यह न्यू कॉलेज या द कॉलेज ऑफ न्यू टाऊन के नाम से जाना जाता था। 13 मार्च 1639 को इसका नाम बदलकर हार्वर्ड कॉलेज रखा गया.
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काव्यादर्श
काव्यादर्श अलंकारशास्त्राचार्य दंडी (६ठी - ७वीं शती ई.) द्वारा रचित संस्कृत काव्यशास्त्र संबंधी प्रसिद्ध ग्रंथ है। .
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कोल्हापुर
thumb कोल्हापुर महाराष्ट्र प्रान्त का एक शहर है। मुंबई से 400 किलोमीटर दूर कोल्हापुर महाराष्ट्र का एक जिला है। मुंबई से पास होने के कारण बड़ी संख्या में पर्यटक सप्ताहंत में यहां आते हैं। यह स्थान ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। कोल्हापुर का मराठी कला के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशेष रूप से कोल्हापुरी हस्तशिल्प बहुत प्रसिद्ध है। कोल्हापुरी चप्पलें तो देश विदेश में मशहूर हैं ही। प्रकृति, इतिहास, संस्कृति और आध्यात्म से रूबरू कराता कोल्हापुर सभी आयु के लोगों को कुछ न कुछ अवश्य देता है। .
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अहमदाबाद
अहमदाबाद (અમદાવાદ अमदावाद) गुजरात प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। भारतवर्ष में यह नगर का सातवें स्थान पर है। इक्क्यावन लाख की जनसंख्या वाला ये शहर, साबरमती नदी के किनारे बसा हुआ है। १९७० में गांधीनगर में राजधानी स्थानांतरित होने से पहले अहमदाबाद ही गुजरात की राजधानी हुआ करता था। अहमदाबाद को कर्णावती के नाम से भी जाना जाता है। इस शहार की बुनियाद सन १४११ में डाली गयी थी। शहर का नाम सुलतान अहमद शाह पर पड़ा था। .
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उत्तररामचरितम्
उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इस कथानक का आकर्षण भारत के साथ साथ विदेशी जनमानस में भी सदा से रहा है और रहेगा। अपनी लेखनी चातुर्य से कवि ने राम के पत्नी परित्याग रूपी चरित्र के दोष को सदा के लिये दूर करदिया। साथ ही सीता को वनवास देने वाले राम का रुदन दिखाकर कवि ने सीता के अपमानित तथा दुःख भरे हृदय को बहुत शान्त किया हैं। साहित्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वही भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक लिखकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्ति ला दी। भवभूति तो यहॉं तक कहते हैं कि करुण ही एकमात्र रस है। वही करुण निमित्त भेद से अन्य रूपों में व्यक्त हुआ है। विवाह से पूर्व नायक नायिका का श्रृंगार वर्णन तो प्रायः सभी कवियों ने सफलता के साथ किया है परन्तु भवभूति ने दाम्पत्य प्रेम का जैसा उज्जवल एवं विशद चित्र खींचा है वैसा अन्यत्र दुलर्भ है। सात अंकों में निबद्ध उत्तररामचरितम भवभूति की सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति है। इसमें रामराज्यमिषेक के पश्चात् जीवन का लोकोत्तर चरित वर्णित है जो महावीरचरित का ही उत्तर भाग माना जाता है।। संस्कृत नाट्यसाहित्य में मर्यादापुरषोत्तम श्री रामचन्द्र के पावन चरित्र से सम्बद्ध अनेक नाटक है किन्तु उनमें भवभूति का उत्तरराम चरितम् अपना एक अलग ही वैशिष्ट्य रखता है। काव्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वहीं भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक रचकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्तिला दी है। उत्तररामचरितम् में प्रेम का जैसा शुद्ध रूप देखने को मिलता है वैसा अन्य कवियों की कृत्तियों में दुर्लभ है। कवि ने इस नाटक के माध्यम से राजा का वह आदर्श रूप प्रस्तुत किया है जो स्वार्थ और त्याग की मूर्ति है तथा प्रजारंजन ही जिसका प्रधान धर्म है। प्रजा सुख के लिये प्राणप्रिया पत्नी का भी त्याग करने में जिसे कोई हिचक नहीं है। इस नाटक में प्रकृति के कोमल तथा मधुर रूप के वर्णन की अपेक्षा उसके गम्भीर तथा विकट रूप का अधिक वर्णन हुआ है जो अद्वितीय एवं श्लाघनीय हैं। वास्तव में यह नाटक अन्य नाटकों की तुलना में निराला ही है। इसी कारण संस्कृत नाट्य जगत में इसका विशेष स्थान है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि विश्वास की महिमा में, प्रेम की पवित्रता में, भावनाओं की तरंगक्रीड़ा में, भाषा के गम्भीर्य में और हृदय के माहात्म्य में उत्तररामचरितम् श्रेष्ठ एवं अतुलनीय नाटक है। .
देखें श्रीपाद कृष्ण बेलवेलकर और उत्तररामचरितम्
श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के रूप में भी जाना जाता है।