वाल्टन के अनुसार वर्ष 1901 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 2,091 थी जिसमें ब्राह्मण, राजपूत, जैन, अग्रवाल, बनिया, सुनार तथा कुछ मुसलमान भी शामिल थे। वह बताता है कि व्यापारी मुख्यतः नजीबाबाद से कार्य करते थे जहां से वे कपड़े, गुड़ तथा अन्य व्यापारिक वस्तुएं प्राप्त करते थे। एटकिंस बताता है कि श्रीनगर के वासी अधिक पुराने एवं जिले के अधिक महत्वपुर्ण परिवारों के हैं जिनमें से कई सरकारी कर्मचारी हैं, इर्द-गिर्द के मंदिरों के पूजारी हैं तथा बनिये हैं जो नजीबाबाद (जिला बिजनौर) से आकर यहां बस गये। जब अजय पाल ने श्रीनगर में अपना राजदरबार बनाया तो वह अपने साथ सरोलाओं एवं गंगरियों जैसे उच्च कुल के ब्राह्मणों को भी ले आया। राजदरबार में ठाकुरों, भंडारियों, नेगियों एवं कठैतों की श्रेणी के राजपूत भी शामिल थे। वास्तव में जातियों का नामकरण दो तरीकों से हुआ, लोगों की पेशानुसार (नेगी सैनिक हुआ करते तथा भंडारी- भंडार नियंत्रक) या फिर अपने गांव (जैसे नौटी के नौटियाल तथा थपली से थपलियाल) के नाम से। आज, फिर भी श्रीनगर एक विकसित होता शहर तथा शिक्षण केंद्र है जहां के अधिकांश लोग शैक्षणिक संस्थाओं, सरकारी सेवाओं, तथा चार धामों की यात्रा प्रक्रिया में नियोजित होते हैं। श्रीनगर के इर्द-गिर्द रहने वालों की जीविका कृषि ही है। .
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