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शोध-प्रबन्ध

सूची शोध-प्रबन्ध

वह दस्तावेज जो किसी शोधार्थी द्वारा किये गये शोध को विधिवत प्रस्तुत करता है, शोध-प्रबन्ध (dissertation या thesis) कहलाता है। इसके आधार पर शोधार्थी को कोई डिग्री या व्यावसायिक सर्टिफिकेट प्रदान की जाती है। यह विश्वविद्यालय से शोध-उपाधि प्राप्त करने के लिए लिखा जाता है। इसे एक ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सरल भाषा में कहें तो एम फिल अथवा पी एच डी की डिग्री के लिए किसी स्वीकृत विषय पर तैयार की गई किताब जिसमें तथ्य संग्रहित रहते हैं तथा उनके आधार पर किसी निष्कर्ष तक पहुँचने की कोशिश की जाती है। यह आलोचनात्मक तो होता है किंतु उससे थोड़ा भिन्न भी होता है। डॉ नगेन्द्र के शब्दों के सहारे कहें तो एक अच्छा शोध प्रबंध एक अच्छी आलोचना भी होती है। मनुष्य की आंतरिक जिज्ञासा सदा से ही अनुसंधान का कारण बनती रही है। अनुसंधान, खोज, अन्वेषण एवं शोध पर्यायवाची है। शोध में उपलब्ध विषय के तथ्यों में विद्यमान सत्य को नवरूपायित कर पुनरोपलब्ध किया जाता है। शोध में शोधार्थी के सामने तथ्य मौजूद होते है, उसे उसमें से अपनी सूझ व ज्ञान द्वारा नवीन सिद्धियों को उद्घाटित करना होता है। .

5 संबंधों: डॉ॰ नगेन्द्र, पीएचडी, शोधपत्र, अनुसंधान, अनुसंधान एवं विकास

डॉ॰ नगेन्द्र

डॉ॰ नगेन्द्र (जन्म: 9 मार्च 1915 अलीगढ़, मृत्यु: 27 अक्टूबर 1999 नई दिल्ली) हिन्दी के प्रमुख आधुनिक आलोचकों में थे। वे एक सुलझे हुए विचारक और गहरे विश्लेषक थे। अपनी सूझ-बूझ तथा पकड़ के कारण वे गहराई में पैठकर केवल विश्लेषण ही नहीं करते, बल्कि नयी उद्भावनाओं से अपने विवेचन को विचारोत्तेजक भी बना देते थे। उलझन उनमें कहीं नहीं थी। 'साधारणीकरण' सम्बन्धी उनकी उद्भावनाओं से लोग असहमत भले ही रहे हों, पर उसके कारण लोगों को उस सम्बन्ध में नये ढंग से विचार अवश्य करना पड़ा है। 'भारतीय काव्य-शास्त्र' (1955ई.) की विद्वत्तापूर्ण भूमिका प्रस्तुत करके उन्होंने हिन्दी में एक बड़े अभाव की पूर्ति की। उन्होंने 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र: सिद्धांत और वाद' नामक आलोचनात्मक कृति में अपनी सूक्ष्म विवेचन-क्षमता का परिचय भी दिया। अरस्तू के काव्यशास्त्र की भूमिका-अंश उनका सूक्ष्म पकड़, बारीक विश्लेषण और अध्यवसाय का परिचायक है। बीच-बीच में भारतीय काव्य-शास्त्र से तुलना करके उन्होंने उसे और भी उपयोगी बना दिया है। उन्होंने हिंदी मिथक को भी परिभाषित किया है। .

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पीएचडी

डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Doctor of Philosophy), या संक्षेप में पीएचडी (PhD या Ph.D.) विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदत्त उच्च शैक्षिक डिग्री है। किसी को प्रदान की जाने वाली यह प्राय: सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री है। पीएचडी एक उन्नत शैक्षणिक डिग्री है। जिसे विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित किया गया है। अधिकांश अंग्रेजी बोलने वाले देशों में, पीएचडी सर्वोच्च डिग्री है जिसे अर्जित किया जा सकता है (जैसे हालाँकि कुछ देशों में ब्रिटेन, आयरलैंड और राष्ट्रमंडल देश कानून और चिकित्सा के उच्च doctorates से सम्मानित कर रहे हैं)। पीएचडी या समकक्ष डिग्री के रूप में एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर या शोधकर्ता के रूप में कैरियर की शुरुआत के लिए एक आवश्यकता बन गई है। .

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शोधपत्र

शोधपत्र (Academic Paper), शैक्षणिक प्रकाशन की एक विधि है। इसमें किसी शोध-पत्रिका (जर्नल) में लेख प्रकाशित किया जाता है या किसी संगोष्ठी में किसी विषय पर एक लेपढ़ा जाता है। प्राय: शोधपत्रों का प्रकाशन कुछ विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा करने/जाँचने के बाद ही सम्भव हो पाता है। .

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अनुसंधान

जर्मनी का 'सोन' (Sonne) नामक अनुसन्धान-जलयान व्यापक अर्थ में अनुसंधान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं कि खोज और पुराने वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुन: परीक्षण करना, जिससे की नए तथ्य प्राप्त हो सके, उसे शोध कहते हैं। गुणात्मक तथा मात्रात्मक शोध इसके प्रमुख प्रकारों में से एक है। वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में उच्च शिक्षा की सहज उपलब्धता और उच्च शिक्षा संस्थानों को शोध से अनिवार्य रूप से जोड़ने की नीति ने शोध की महत्ता को बढ़ा दिया है। आज शैक्षिक शोध का क्षेत्र विस्तृत और सघन हुआ है। .

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अनुसंधान एवं विकास

अनुसंधान एवं विकास (Research and development; often called R&D) योजनाबद्ध ढ़ंग से किये गये सृजनात्मक कार्य को कहते हैं। इसका ध्येय मानव की ज्ञान-संपदा की वृद्धि करना होता है। इसमें मानव के बारे में, उसकी संस्कृति के बारे में एवं समाज के बारे में ज्ञान की वृद्धि भी शामिल है। वाणिज्य की दुनिया में किसी उत्पाद के विकास की परिकल्पना (conception) करने का प्रभाग (phrase) अनुसंधान एवं विकास कहलाता है। इसका अर्थ है कि उत्पाद बनाने के लिये आवश्यक 'मूलभूत विज्ञान' पता होना चाहिये या यदि इस ज्ञान का अभाव है तो इसकी 'खोज' की जानी चाहिये - यह अनुसंधान का फेज कहलायेगा। किन्तु यदि उत्पाद से सम्बन्धित विज्ञान मौजूद है तो इस ज्ञान को एक उपयोगी उत्पाद में बदलना भी एक बड़ा काम होता है जिसे 'विकास' कहते हैं। अलग शब्दों में 'विकास' के लिये 'प्रौद्योगिकी' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है जिसका मुख्य ध्येय उचित मूल्य, उचित आकार, उचित उर्जा-खपत आदि की प्राप्ति होता है। .

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