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शुष्क सेल

सूची शुष्क सेल

विभिन्न आकार-प्रकार के शुष्क सेल शुष्क सेल का रेखाचित्र (१) पीतल की टोपी (२) प्लास्टिक की सील (३) वृद्धि के लिये स्थान (४) सछिद्र कार्डबोर्ड (५) जस्ते का पात्र (६) कार्बन की छड़ (७) रासायनिक मिश्रण शुष्क सेल (dry cell) एक प्रकार के विद्युतरासायनिक सेल है जो कम बिजली से चल सकने वाले पोर्टेबल विद्युत-युक्तियों (जैसे ट्रांजिस्टर रेडियो, टार्च, कैलकुलेटर आदि) में प्रयुक्त होते हैं। इसके अन्दर जो विद्युत अपघट्य (electrolyte) उपयोग में लाया जाता है वह लेई-जैसा कम नमी वाला होता है। इसमें किसी द्रव का प्रयोग नहीं किया जाता जिसके कारण इसे "शुष्क" सेल कहा जाता है। (कार आदि में प्रयुक्त बैटरियों में प्रयुक्त विद्युत अपघट्य द्रव के रूप में होता है।) चूंकि इसमें कुछ भी चूने (लीक) लायक द्रव नहीं होता, पोर्टेबल युक्तियों में इसका उपयोग सुविधाजनक होता है। सामान्यत: प्रयोग में आने वाला शुष्क सेल वस्तुत: एक जिंक-कार्बन बैटरी होती है जिसे शुष्क लेक्लांची सेल (Leclanché cell) भी कहते हैं। इसकी सामान्य स्थिति (बिना धारा की स्थिति में) में वोल्टता १.५ वोल्ट होती है जो कि अल्कलाइन बैटरी के सामान्य वोल्टता के बराबर ही है। जहाँ १.५ वोल्ट से अधिक वोल्टेज की जरूरत होती है वहाँ कई ऐसे सेल श्रेणी क्रम (series) में जोड़ दिये जाते हैं। (३ सेल श्रेणी क्रम में जोड़ने पर ४.५ वोल्ट देते हैं; ९ वोल्ट की बहुप्रचलित बैटरी में ६ कार्बन-जिंक या अल्कलाइन-सेल सीरीज में जुड़े होते हैं)। इसी तरह जहाँ अधिक धारा की आवश्यकता होती है वहाँ कई सेलों को समान्तर क्रम (parallel) में जोड़ दिया जाता है। .

12 संबंधों: टार्च, ट्रांजिस्टर, द्रव, परिकलक, पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, प्राथमिक सेल, रेडियो, लेड-एसिड बैटरी, लेक्लांची सेल, विद्युत अपघट्य, विद्युत्-रसायन, विभिन्न आकार की बैटरियाँ

टार्च

DRAWING OF TORCH टार्च एक प्रकार का यन्त्र होता है, जिसमे एक ओं /ऑफ स्विच होता है। इसमें आगे की तरफ एक LED लेकर ४ LEDs तक लगी होती हैं। जब स्विच ओं होता है तब LEDs जलती है और जब ऑफ होता है तब LEDs ऑफ मतलब बंद हो जाती है। टोर्च मैं अलग-अलग रंगों की LED लाइट्स भी होती है। श्रेणी:प्रकाश स्रोत.

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ट्रांजिस्टर

अलग-अलग रेटिंग के कुछ प्रथनक ट्रान्जिस्टर (प्रथनक) एक अर्धचालक युक्ति है जिसे मुख्यतः प्रवर्धक (Amplifier) के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुछ लोग इसे बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण खोज मानते हैं। ट्रान्जिस्टर का उपयोग अनेक प्रकार से होता है। इसे प्रवर्धक, स्विच, वोल्टेज नियामक (रेगुलेटर), संकेत न्यूनाधिक (सिग्नल माडुलेटर), थरथरानवाला (आसिलेटर) आदि के रूप में काम में लाया जाता है। पहले जो कार्य ट्रायोड या त्रयाग्र से किये जाते थे वे अधिकांशत: अब ट्रान्जिस्टर के द्वारा किये जाते हैं। .

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द्रव

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है। संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है। एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है। द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है। साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है। .

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परिकलक

कैसियो कम्पनी का '''वैज्ञानिक परिकलक''' परिकलक (अंग्रेजी: कैलकुलेटर), अन्य हिन्दी पर्याय, गणक या गणित्र), गणितीय गणनाएं (परिकलन) करने का एक उपकरण होता है। यद्यपि आधुनिक परिकलकों में प्रायः सामान्य उपयोग का एक संगणक (कंप्यूटर) होता है, फिर भी परिकलक, कंप्यूटर से इस मामले में भिन्न है कि परिकलक की अभिकल्पना अपेक्षाकृत छोटी गणनाएं करने के लिये होता है। इसके उपयोग के लिये प्रोग्रामिंग की आवश्यकता नही होती और यह बहुत सस्ता और आकार में छोटा होता है। इसके पहले गणनाएं करने के लिये स्लाइड रूल, गणितीय सारणियाँ, अबाकस आदि प्रयोग में लाये जाते थे। इन सबका प्रयोग परिकलक की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत असुविधाजनक होता था। आधुनिक परिकलक विद्युत शक्ति (छोटे शुष्क सेल आदि) से चलते हैं; सस्ते, छोटे, अनेक जटिल गणनाओं की क्षमता वाले, सरलता से काम करने वाले तथा तेज गणना में दक्ष होते हैं। .

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पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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प्राथमिक सेल

प्राथमिक सेल (primary cell) वे सेल हैं जिनकी डिजाइन ऐसी होती है कि उन्हें प्रयोग करने के बाद पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये शुष्क सेल एक प्रकार का प्राथमिक सेल है। मानक आकार वाले विभिन्न प्राथमिक सेल; बायें से:4.5V बहुसेल बैटरी, D, C, AA, AAA, AAAA, A23, 9V बहुसेल बैटरी, (ऊपर) LR44, (नीचे) CR2032 .

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रेडियो

कुछ पुराने रेडियो (रिसिवर) 24 दिसम्बर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी। इससे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने भारत में तथा गुल्येल्मो मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई। ली द फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया। .

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लेड-एसिड बैटरी

कार आदि में प्रयुक्त '''लेड-एसिड बैटरी''' लेड-एसिड बैटरी (Lead-acid batteries) बहुतायत में प्रयोग आने वाली बैटरी है जिसका आविष्कार सन् १८५९ में फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री गैस्टन प्लेन्टी (Gaston Planté) ने किया था। पुन: आवेशित (चार्ज) करने योग्य बैटरियों में यह सबसे पुरानी बैटरी है। सबसे कम उर्जा-से-भार के अनुपात की दृष्टि से निकिल-कैडमियम बैटरी के बाद यह दूसरे स्थान पर आती है। इसमें थोड़े समय के लिये उच्च धारा प्रदान करने की क्षमता होती है। उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त यह बहुत ही सस्ती भी होती है जिसके कारण कारों, ट्रकों, अन्य गाड़ियों तथा व्यवधानरहित शक्ति स्रोतों में बहुतायत में प्रयोग की जाती है। .

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लेक्लांची सेल

लेक्लान्ची सेल (Leclanché cell) एक सेल (Cell) है जिसका आविष्कार और पेटेन्ट फ्रान्स के वैज्ञानिक जॉर्जेस लेक्लान्ची (Georges Leclanché) ने १८६६ में किया था। इसमें विद्युत अपघट्य के रूप में अलुमिनियम क्लोराइड और कार्बन का धनाग्र (कैथोड) एवं जस्ते का ऋणाग्र (एनोड) प्रयुक्त होता था। इसमें विध्रुवकारक (depolarizer) के रूप में मैंगनीज डाईऑक्साइड का प्रयोग किया जाता था। इसी के आधार पर आगे शुष्क सेल का विकास हुआ। .

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विद्युत अपघट्य

एल्युमिनियम के एलेक्ट्रोरोलाइटिक कैपेसिटर रसायन विज्ञान में उन पदार्थों को विद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं जिनमें मुक्त एलेक्ट्रॉन होते हैं जो उस पदार्थ को विद्युत चालक बनाते हैं। किसी आयनिक यौगिक का जल में विलयन सबसे साधारण (आम) विद्युत अपघट्य है। इसके अलावा पिघले हुए आयनिक यौगिक तथा ठोस विद्युत अपघट्य भी होते हैं। सामान्यत: विद्युत अपघट्य अम्लों, क्षारों एवं लवणों के विलयन के रूप में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ताप एवं कम दाब पर कुछ गैसें भी विद्युत अपघट्य जैसा गुण प्रदर्शित करतीं हैं। कुछ जैविक (जैसे डीएनए, पॉलीपेप्टाइड्स आदि) एवं संश्लेषित बहुलकों (जैसे पॉलीस्टरीन सल्फोनेट) के विलयन भी विद्युत अपघटनीय होते हैं। श्रेणी:भौतिक रसायन श्रेणी:विद्युत चालक.

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विद्युत्-रसायन

जॉन डेनियल और माइकल फैराडे (दायें तरफ), जिन्हे विद्युतरसायन का जनक माना जाता है विद्युतरसायन (eletro-chemistry), भौतिक रसायन की वह शाखा है जिसमें उन रासायनिक अभिक्रियों का अध्ययन किया जाता है जो किसी विलयन (सलूशन्) के अन्दर एक एलेक्ट्रान चालक और एक ऑयनिक चालक (विद्युत अपघट्य) के मिलन-तल (इन्टरफेस) पर होती है। इसमें इलेक्ट्रान चालक कोई धातु या अर्धचालक हो सकता है। यदि रासायनिक अभिक्रिया किसी बाहर से आरोपित विभवान्तर (वोल्टेज्) के कारण घटित होती है (जैसे विद्युत अपघटन में); या रासायनिकभिक्रिया के परिणामस्वरूप विभवान्तर पैदा होता है (जैसे बैटरी में) तो ऐसी रासायनिक अभिक्रियों को विद्युत्त्-रासायनिक अभिक्रिया (electrochemical reaction) कहते हैं। सामान्य रूप से देखें तो पाते हैं कि विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाएं निहित होती हैं जो समय या स्थान (स्पेस और टाइम) में अलग होती हैं और किसी बाहरी परिपथ से जुड़ी होती हैं। .

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विभिन्न आकार की बैटरियाँ

left इस लेख में घरों और छोटे उद्योगों में प्रायः उपयोग में आने वालीं कुछ प्रमुख बैटरियों के आकार एवं स्वरूप (shape) के बारे में जानकारी दी गयी है। शुष्क सेल का इतिहास बहुत पुराना है। इसी कारण इनके आकार आदि से सम्बन्धित अन्तरराष्ट्रीय मानक आने के पूर्व ही निर्माता और देश के अनुसार अनेकों प्रकार के मानक चल पड़े थे। .

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