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शीतला माता कुण्ड

सूची शीतला माता कुण्ड

भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताजी के सामने ऐक ऊखली है, जो एक फिट गहरी व आधा फिट चौड़ी है, जिसको शीतला मााता कुण्ड भी कहते हैं,साल मे दो बार चैत्र वदि ७ व वैशाख शुक्ल १५ को इस ऊखली मे पुरा गाँव घड़ों द्वारा पानी डालता है लेकिन यह ऊखली कभी नहीं भरती है, गाँव वालो की मान्यता है कि पुरा पानी राक्षस पिता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।.

2 संबंधों: भाटुन्द, माँ शीतला माताजी

भाटुन्द

भाटुन्द, राजस्थान के पाली जिले में स्थित एक गाँव है। यह गाँव पाली जिले के बाली तहसील से 21 किमी दूर है। गाँव की जनसंख्या लगभग 6 - 7 हजार है। यह गाँव पहले सिरोही रियासत में आता था। देश आजाद होने के बाद अब पाली ज़िले में चला गया है। गाँव से 3 किमी दूर चेतन बालाजी का भव्य तीर्थ स्थल है। गाँव में एक ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर है। यह मन्दिर लगभग 10 वी व 11 वी शताब्दी के बीच श्री महाराजा भोज ने बनाया था। ईस गाँव में लगभग 13 वी शताब्दी में 18 परिवारों सहित श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) ने लाखाजौहर किया था। यह जौहर अलाउद्दीन खिलजी, चित्तौड़गढ़ फतह करने के बाद जालौर रियासत पर आक्रमण करने के लिए ईसी गाँव से गुजर रहे थे। रास्ता ऊस समय इस गाँव से निकलता था, यहाँ पर आदोरजी महाराज के परिवार की मुगली सेना से लडाई हो गई। ईसके कारण मुगली साम्राज्य की सेना के हाथो न मरने के कारण लाखाजौहर में 18 परिवारों सहित समर्पित हो गए थे। यह घटना चित्तौड़गढ़ कि रानी पद्मिनी के जौहर के ठीक 6 माह बाद की है। यह गाँव सिरोही दरबार द्वारा 3600 बीघा जमीन दान के रूप में श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) को भेंट में यह गाँव दिय़ा हुआ था। ईस गाँव का नामकरन भी उन्होंने ही करवाया था। जो गाँव का नाम दरबार में खताता था। ऊसे दरबार में खत श्री की उपमा से नवाजा जाता था। आज भी आदोरजी महाराज के परिवार को खत् नाम से भी संबोधित किया जाता है। पुरा परिवार लाखा जौहर में समर्पित होने के बाद, ईनकी एक बहु मुहर्रते गई हुई थी। जिसके लडके का वंशज आज विद्यमान हैं। ईस गाँव के नामकरण के लिए श्री आदोरजी महाराज ने भाट (राव) को बुलवाया गया। भाट ने ब्राहमणो के मुँह से बार बार अपनी जाति का नाम लेने के प्रयोजन से उन्होंने भाटुन नाम सुझाया गया, ईस गाँव का नाम श्री आदोरजी महाराज ने भाटून रखा। बाद में यह भाटुन्द पडा। यहाँ पर काफी देवताओं के बड़े भव्य मंदिर हैं। कहाँ जाता है कि यह गाँव भुकंम्भ के कारण दो से तीन बार उजड़ा (डटन) भी है। यह सदियों पुरानी ब्राहमणो की नगरी है। ब्राहमणो के आव्हान पर माँ शीतला माता साक्षात दर्शन देकर यहाँ विराजमान हुईं है। साल में दो बार माँ शीतला माताज़ी का विशाल मेला लगता है। सदियों पुरानी एतिहासिक कहानी इस प्रकार है कि यहाँ पहाड़ी जंगलों में ऐक राक्षस रहता था। यह राक्षस किसी की शादी नहीं होने देता था, जब किसी की शादी होती, फैरे लेने के समय आ जाता था और वर (दुल्ला)को खा जाता था। इस कारण यहाँ कि लड़कियों से कोई शादी नहीं करता था। लड़कियों का ऐसा हाल देखकर ब्राहमणों ने शीतला माता की घोर तपस्या की, जब माँ ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन किया, माँ बोली अब आप लोग धूमधाम से शादी करो मैं आप लोगों की रक्षा करूँगी। इस प्रकार माँ का वचन सुनकर ब्राहमण लोग बहुत खुश हो गए। ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों के विवाह की तैयारियां चालु की। फैरो के समय राक्षस आ गया, माँ शीतला ने अपने त्रिशूल से राक्षस का वध किया था। वध करते समय राक्षस ने माँ शीतला माता से पानी पीने व खाने की इच्छा प्रकट की, माँ ने राक्षस को वरदान दिया कि साल में दो बार तुझको पानी व खाने केलिए दिया जाएगा। जो हर साल चैत्र शुक्ल ७ को, वह ज्येष्ठ शुक्ल १५ को दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने ऐक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो ऐक फिट गहरी है। पुरा गांव ईस ऊखली में घड़ो से पानी डालता है, लेकिन पानी किधर जाता है, ईसका आज तक किसको मालुम नहीं है। पुरा पानी राक्षस पिता है। ऐसा गाँव वालो का मानना है। ऐक बार सिरोही दरबार ने भी ईस ऐक फुट गहरी ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप का सामना करना पड़ा था। पूरे शरीर पर कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने से ही कोड समाप्त हुए थे। .

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माँ शीतला माताजी

भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताज़ी का भव्य व ऐतिहासिक मन्दिर है। यहाँ पर साल में दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। लोक मान्यता इस प्रकार है कि यहाँ पर जंगलों में बाबरा नामक राक्षस रहता था। यहाँ पर ब्राहमणो की लड़कियों की शादी होती थी तब वह राक्षस फेरो के समय वहाँ आ जाता था और वर (दुल्हे) को खा जाता था, इसलिए यहाँ के ब्राहमणो की लड़कियां कुंवारी ही रहने लगी, कोई भी लड़का शादी केलिए तैयार नही होता था। तब यहाँ के ब्राहमण बहुत दुखी रहनें लगे । ब्राहमणो ने माँ शीतला माता की घोर तपस्या की, ब्राहमणो की तपस्या से माँ प्रसन्न होकर दर्शन दिए, ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन माँ के समक्ष प्रस्तुत किया, माँ ने वचन दिया कि तुम अपनी बेटियों की शादी धूम धाम से करो, माँ का वचन सुनकर ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों की शादी करने की तैयारी की, फैरो के समय राक्षस वहाँ दुल्हे को खाने के लिए आया, माँ उस राक्षस का वध किया, मरते मरते राक्षस ने माँ से पानी व खाना खाने की इच्छा प्रकट की । माँ ने उसको वचन दिया कि साल मे दो बार तुमको पानी व खाना दिया जाएगा, ब्राहमणो के आव्हान पर माँ सदैव के लिए यहाँ रह गई। चैत्र कृष्ण सप्तमी व ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को साल मे दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। और उस राक्षस को पानी व खाना दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने एक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो एक फिट गहरी है जिसमे गाँव की महिलाएं घड़ों द्वारा पानी डालती है लेकिन वह ऊखली कभी नहीं भरती, गाँव वालो की मान्यता है कि यह पानी राक्षस पीता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोढ़ निकल गये थे, माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।.

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