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माहेश्वर सूत्र

सूची माहेश्वर सूत्र

माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि) को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिंग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी में किया है। अष्टाध्यायी में ३२ पाद हैं जो आठ अध्यायों मे समान रूप से विभक्त हैं व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग ४००० सूत्रों में किया है, जो आठ अध्यायों में (संख्या की दृष्टि से असमान रूप से) विभाजित हैं। तत्कालीन समाज मे लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को ध्यान में रखते हुए पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं। .

12 संबंधों: ताण्डव, नटराज, नन्दिकेश्वरकाशिका, पाणिनि, प्रत्याहार, शिव, सनकादि ऋषि, संस्कृत भाषा, संस्कृत व्याकरण, सूत्र, व्याकरण, अष्टाध्यायी

ताण्डव

ताण्डव करते हुए शिव ताण्डव अथवा ताण्डव नृत्य शंकर) भगवान द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य है। ऐसा माना जाता है कि इसके अंदर भगवान की शक्तियां त्राहि मचाती हैं यह नृत्य शिव काली जैसे देव करती हैं शिव की तीसरी आंख के खुलने से हाहाकार हो जाता है। तांडव के संस्कृत में कई अर्थ होते हैं। इसके प्रमुख अर्थ हैं उद्धत नृत्य करना, उग्र कर्म करना, स्वच्छन्द हस्तक्षेप करना आदि। भारतीय संगीत में चौदह प्रमुख तालभेद में वीर तथा बीभत्स रस के सम्मिश्रण से बना तांडवीय ताल का वर्णन भी मिलता है। वनस्पति शास्त्र में एक प्रकार की घास को भी तांडव कहा गया है।  शास्त्रों में प्रमुखता से भगवान् शिव को ही तांडव स्वरूप का प्रवर्तक बताया गया है। परंतु अन्य आगम तथा काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के तांडव का भी वर्णन मिलता है। लंकेश रावण विरचित शिव ताण्डव स्तोत्र के अलावा वैश्यवर समाधि रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है। मान्यता है कि रावण के भवन में पूजन के समाप्त होने पर शिव जी ने, महिषासुर को मारने के बाद दुर्गा माता ने, गजमुख की पराजय के बाद गणेश जी ने, ब्रह्मा के पंचम मस्तक के च्छेदन के बाद आदिभैरव ने एवं रावण के वध के समय श्रीरामचंद्र जी ने तांडव किया था। .

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नटराज

चोल शासकों के काल की शिव प्रतिमा ''नटराज''रूप में जिसे मेट्रोपॉलिटिन कला संग्रहालय, न्यूयॉर्क सिटी में रखा गया है '''नटराज''' शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज। इस स्वरूप में शिव कालाओं के आधार हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। .

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नन्दिकेश्वरकाशिका

नन्दिकेश्वरकाशिका २७ पदों से युक्त दर्शन एवं व्याकरण का एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता नन्दि या नन्दिकेश्वर (२५० ईसापूर्व) हैं। इस ग्रन्थ में शैव अद्वैत दर्शन का वर्णन है, साथ ही यह माहेश्वर सूत्रों की व्याख्या के रूप में है। उपमन्यु ऋषि ने इस पर 'तत्त्वविमर्शिणी' नामक टीका रची है। नन्दिकेश्वर को पाणिनि, तिरुमूल, पतंजलि, व्याघ्रपाद, तथा शिवयोगमुनि का गुरु माना जाता है। नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपंचवारम्। उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥ १॥ अत्र सर्वत्र सूत्रेषु अन्त्यवर्णचतुर्दशम्। धात्वर्थं समुपादिष्टं पाणिन्यादीष्टसिद्धये॥ २॥; ॥ अइउण्॥ १॥ अकारो ब्रह्मरूपः स्यान्निर्गुणः सर्ववस्तुषु। चित्कलामिं समाश्रित्य जगद्रूप उणीश्वरः॥ ३॥ अकारः सर्ववर्णाग्र्यः प्रकाशः परमेश्वरः। आद्यमन्त्येन संयोगादहमित्येव जायते॥ ४॥ सर्वं परात्मकं पूर्वं ज्ञप्तिमात्रमिदं जगत्। ज्ञप्तेर्बभूव पश्यन्ती मध्यमा वाक ततः स्मृता॥ ५॥ वक्त्रे विशुद्धचक्राख्ये वैखरी सा मता ततः। सृष्ट्याविर्भावमासाद्य मध्यमा वाक समा मता॥ ६॥ अकारं सन्निधीकृत्य जगतां कारणत्वतः। इकारः सर्ववर्णानां शक्तित्वात् कारणं गतम्॥ ७॥ जगत् स्रष्टुमभूदिच्छा यदा ह्यासीत्तदाऽभवत्। कामबीजमिति प्राहुर्मुनयो वेदपारगाः॥ ८॥ अकारो ज्ञप्तिमात्रं स्यादिकारश्चित्कला मता। उकारो विष्णुरित्याहुर्व्यापकत्वान्महेश्वरः॥ ९॥; ॥ ऋऌक्॥ २॥ ऋऌक् सर्वेश्वरो मायां मनोवृत्तिमदर्शयत्। तामेव वृत्तिमाश्रित्य जगद्रूपमजीजनत्॥ १०॥ वृत्तिवृत्तिमतोरत्र भेदलेशो न विद्यते। चन्द्रचन्द्रिकयोर्यद्वद् यथा वागर्थयोरपि॥ ११॥ स्वेच्छया स्वस्य चिच्छक्तौ विश्वमुन्मीलयत्यसौ। वर्णानां मध्यमं क्लीबमृऌवर्णद्वयं विदुः॥ १२॥; ॥ एओं॥ ३॥ एओं मायेश्वरात्मैक्यविज्ञानं सर्ववस्तुषु। साक्षित्वात् सर्वभूतानां स एक इति निश्चितम्॥ १३॥; ॥ ऐऔच्॥ ४॥ ऐऔच् ब्रह्मस्वरूपः सन् जगत् स्वान्तर्गतं ततः। इच्छया विस्तरं कर्त्तुमाविरासीन्महामुनिः॥ १४॥; ॥ हयवरट्॥ ५॥ भूतपंचकमेतस्माद्धयवरण्महेश्वरात्। व्योमवाय्वम्बुवह्न्याख्यभूतान्यासीत् स एव हि॥ १५॥ हकाराद् व्योमसंज्ञं च यकाराद्वायुरुच्यते। रकाराद्वह्निस्तोयं तु वकारादिति सैव वाक्॥ १६॥; ॥ लण्॥ ६॥ आधारभूतं भूतानामन्नादीनां च कारणम्। अन्नाद्रेतस्ततो जीवः कारणत्वाल्लणीरितम्॥ १७॥; ॥ ञमङणनम्॥ ७॥ शब्दस्पर्शौ रूपरसगन्धाश्च ञमङणनम्। व्योमादीनां गुणा ह्येते जानीयात् सर्ववस्तुषु॥ १८॥; ॥ झभं॥ ८॥ वाक्पाणी च झभञासीद्विराड्रूपचिदात्मनः। सर्वजन्तुषु विज्ञेयं स्थावरादौ न विद्यते॥ वर्गाणां तुर्यवर्णा ये कर्मेन्द्रियमया हि ते॥ १९॥; ॥ घढधष्॥ ९॥ घढधष् सर्वभूतानां पादपायू उपस्थकः। कर्मेन्द्रियगणा ह्येते जाता हि परमार्थतः॥ २०॥; ॥ जबगडदश्॥ १०॥ श्रोत्रत्वंनयनघ्राणजिह्वाधीन्द्रियपंचकम्। सर्वेषामपि जन्तूनामीरितं जबगडदश्॥ २१॥; ॥ खफछठथचटतव्॥ ११॥ प्राणादिपंचकं चैव मनो बुद्धिरहंकृतिः। बभूव कारणत्वेन खफछठथचटतव्॥ २२॥ वर्गद्वितीयवर्णोत्थाः प्राणाद्याः पंच वायवः। मध्यवर्गत्रयाज्जाता अन्तःकरणवृत्तयः॥ २३॥; ॥ कपय्॥ १२॥ प्रकृतिं पुरुषंचैव सर्वेषामेव सम्मतम्। सम्भूतमिति विज्ञेयं कपय् स्यादिति निश्चितम्॥ २४॥; ॥ शषसर्॥ १३॥ सत्त्वं रजस्तम इति गुणानां त्रितयं पुरा। समाश्रित्य महादेवः शषसर् क्रीडति प्रभुः॥ २५॥ शकारद्राजसोद्भूतिः षकारात्तामसोद्भवः। सकारात्सत्त्वसम्भूतिरिति त्रिगुणसम्भवः॥ २६॥; ॥ हल्॥ १४॥ तत्त्वातीतः परं साक्षी सर्वानुग्रहविग्रहः। अहमात्मा परो हल् स्यामिति शम्भुस्तिरोदधे॥ २७॥; ॥ इति नन्दिकेश्वरकृता काशिका समाप्ता॥ .

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पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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प्रत्याहार

पतंजलि के अष्टांग योग के सन्दर्भ में प्रत्याहार का अलग अर्थ है। यहाँ प्रत्याहार को पाणिनीय व्याकरण के सन्दर्भ में दिया गया है। ---- प्रत्याहार का अर्थ होता है – 'संक्षिप्त कथन'। व्याकरण में प्रत्याहार विभिन्न वर्ण-समूह को अभीप्सित रूप से संक्षेप में ग्रहण करने की एक पद्धति है। जैसे, 'अण्' से अ इ उ और 'अच्' से समग्र स्वर वर्ण— अ, इ, उ, ऋ, लृ, ओ और औ, इत्यादि। अष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद के 71वें सूत्र ‘आदिरन्त्येन सहेता’(1-1-71) सूत्र द्वारा प्रत्याहार बनाने की विधि का पाणिनि ने निर्देश किया है। आदिरन्त्येन सहेता (1-1-71): (आदिः) आदि वर्ण (अन्त्येन इता) अन्तिम इत् वर्ण (सह) के साथ मिलकर प्रत्याहार बनाता है जो आदि वर्ण एवं इत्संज्ञक अन्तिम वर्ण के पूर्व आए हुए वर्णों का समष्टि रूप में (collectively) बोध कराता है। उदाहरण: अच् .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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सनकादि ऋषि

सनकादिक ऋषि ब्रह्मा के चार मानस पुत्र हैं। पुराणों में उनकी विशेष महत्ता है। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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संस्कृत व्याकरण

संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग' देखें)। व्याकरण के मूलतः पाँच प्रयोजन हैं - रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण के बारे में निम्नलिखित श्लोक बहुत प्रसिद्ध है।- - जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ? .

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सूत्र

सूत्र, किसी बड़ी बात को अतिसंक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त करने का तरीका है। इसका उपयोग साहित्य, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि में होता है। सूत्र का शाब्दिक अर्थ धागा या रस्सी होता है। जिस प्रकार धागा वस्तुओं को आपस में जोड़कर एक विशिष्ट रूप प्रदान करतअ है, उसी प्रकार सूत्र भी विचारों को सम्यक रूप से जोड़ता है। हिन्दू (सनातन धर्म) में सूत्र एक विशेष प्रकार की साहित्यिक विधा का सूचक भी है। जैसे पतंजलि का योगसूत्र और पाणिनि का अष्टाध्यायी आदि। सूत्र साहित्य में छोटे-छोटे किन्तु सारगर्भित वाक्य होते हैं जो आपस में भलीभांति जुड़े होते हैं। इनमें प्रायः पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दों का खुलकर किया जाता है ताकि गूढ से गूढ बात भी संक्षेप में किन्तु स्पष्टता से कही जा सके। प्राचीन काल में सूत्र साहित्य का महत्व इसलिये था कि अधिकांश ग्रन्थ कंठस्थ किये जाने के ध्येय से रचे जाते थे; अतः इनका संक्षिप्त होना विशेष उपयोगी था। चूंकि सूत्र अत्यन्त संक्षिप्त होते थे, कभी-कभी इनका अर्थ समझना कठिन हो जाता था। इस समस्या के समाधान के रूप में अनेक सूत्र ग्रन्थों के भाष्य भी लिखने की प्रथा प्रचलित हुई। भाष्य, सूत्रों की व्याख्या (commentary) करते थे। बौद्ध धर्म में सूत्र उन उपदेशपरक ग्रन्थों को कहते हैं जिनमें गौतम बुद्ध की शिक्षाएं संकलित हैं। .

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व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

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अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

महेश्वर सूत्र, शिव सूत्र, शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र

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