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वैदिक छंद

सूची वैदिक छंद

वैदिक छंद वेदों के मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम १५ प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं। गायत्री छंद इनमें सबसे प्रसिद्ध है जिसके नाम ही एक मंत्र का नाम गायत्री मंत्र पड़ा है। इसके अलावे अनुष्टुप, त्रिष्टुप इत्यादि छंद हुए हैं। पिंगल द्वारा रचित छंदशास्त्र वैदिक छंदों की सबसे मान्य विवेचना है। इनके विवरण इस सूची में दिए गए हैं- .

20 संबंधों: एकपदा विराट छंद, त्रिष्टुप छंद, द्विपदा विराट छंद, धृति छंद, पंक्ति छंद, प्रगाथा छंद, बृहती छंद, महाबृहती छंद, शक्वरी छंद, श्लोक, जगती छंद, विराट छंद, वेद, गायत्री मन्त्र, गायत्री छंद, अतिशक्वरी छंद, अतिजगती छंद, अत्यष्टि छंद, अनुष्टुप छंद, अष्टि छंद

एकपदा विराट छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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त्रिष्टुप छंद

त्रिष्टुप अथवा त्रिष्टुप् वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल ४४ वर्ण होते हैं जो ११-११-११-११ वर्णों के चार पदों में व्यवस्थित होते हैं। उदाहरण: अबोधि होता यजथाय देवानुर्ध्वो अग्निः सुमनाः प्रातरस्थात्। समिद्धस्य रुशददर्शि पाजो महान् देवस्तमंसो निरमोचि।। -ऋग्वेद (५.१.२) इसके अन्य भेद भी हैं, जैसे एकपदा त्रिष्टुप (११ वर्ण), द्विपदा (११+११), पुरस्ताज्योतिः, विराट् पूर्वा, विराट रूपा इत्यादि। श्रेणी:वैदिक छंद.

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द्विपदा विराट छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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धृति छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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पंक्ति छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - ४० वर्ण (मात्रा) होते हैं। पङक्ति कहने का मूल पाँच पादों से हैं। यानि इन्ही ४० मात्राओं से अनुष्टुप (या गायत्री) के पाँच पाद बनते हैं - क्योंकि उनके एक पाद में आठ मात्राएँ होती हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है - .

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प्रगाथा छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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बृहती छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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महाबृहती छंद

महाबृहती यवमध्या वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - ४४ वर्ण होते हैं (८ ८ ८ ८ १२)। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है (६.४८.२१) सद्यःचिद्दश्य चर्कृति परि द्यां देवो नैतिः सूर्यं त्वेषं शवो दधिरे नाम यज्ञियं मरुतो वृत्रहं शवो ज्येष्ठं वृत्रहं शवो। । श्रेणी:वैदिक छंद.

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शक्वरी छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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श्लोक

संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोकथन किया जाता है, श्लोक कहलाता है। श्लोक प्रायः छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है। छंद के रूप में होने के कारण ये आसानी से याद हो जाते हैं। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करके रखने की प्रथा न होने के कारण ही इस प्रकार का प्रावधान किया गया था। श्लोक 'अनुष्टुप छ्न्द' का पुराना नाम भी है। किन्तु आजकल संस्कृत का कोई छंद या पद्य 'श्लोक' कहलाता है।; 'श्लोक' का शाब्दिक अर्थ १. आवाज, ध्वनि, शब्द। २. पुकारने का शब्द, आह्वान, पुकार। ३. प्रशंसा, स्तुति। ४. कीर्ति, यश। ५. किसी गुण या विशेषता का प्रशंसात्मक कथन या वर्णन। जैसे—शूर-श्लोक अर्थात् शूरता का वर्णन। श्रेणी:संस्कृत साहित्य श्रेणी:लेखन.

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जगती छंद

jagtya: aaditya: JAGATI CHHAND, AADITYA CHHAND KE SAMAN HE.

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विराट छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद.

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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गायत्री मन्त्र

गायत्री महामंत्र (13px 13px) वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रुप मे भी पुजा जाता है। 'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है: .

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गायत्री छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल तीन पाद अथवा चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में ८ वर्ण होते हैं। कुल मिलाकर २४ वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है यथा गायत्री मंत्र श्रेणी:वैदिक छंद.

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अतिशक्वरी छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अतिजगती छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - ५२ वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अत्यष्टि छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद में मिलता है श्रेणी:वैदिक छंद श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुष्टुप छंद

अनुष्टुप छन्द संस्कृत काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है, इसका वेदों में भी प्रयोग हुआ है।। रामायण, महाभारत तथा गीता के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही हैं।इसमें कुल - ३२ वर्ण होते हैं - आठ वर्णों के चार पाद। हिन्दी में जो लोकप्रियता और सरलता दोहा की है वही संस्कृत में अनुष्टुप की है। प्राचीन काल से ही सभी ने इसे बहुत आसानी के साथ प्रयोग किया है। गीता के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं। आदि कवि वाल्मिकी द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक (मा निषाद प्रतिष्ठा) भी अनुष्टुप छन्द में है। .

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अष्टि छंद

वेदों में प्रयुक्त एक छंद है। इसमें कुल - ६४ वर्ण होते हैं। उदाहरण - ऋग्वेद के दूसरे मंडल में ऐसा मिलता है - त्रिकद्रुकेषु महिषो यवाशिरं तुविशिष्मस्तृप्त् सोममपिबद्विष्णुना सुतं यथावसत। सइम ममाद महिकर्म्म कर्तवे महामुरु सैनं सश्चद्देवो देवं सत्यमिन्द्रः सत्य इन्दुः।। अक्षरों (मात्राओं) का विन्यास है - १६ +१६+ १६+ ८+ ८। श्रेणी:वैदिक छंद.

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