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द वेल्थ ऑफ नेशन्स

सूची द वेल्थ ऑफ नेशन्स

द वेल्थ ऑफ नेशन्स (An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations) स्कॉटलैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की प्रसिद्ध कृति है। इसका प्रथम प्रकाशन 1776 में हुआ था। यह क्लासिअक्ल अर्थशास्त्र की मूलभूत ग्रन्थ है। औद्योगिक क्रान्ति के पूर्ववर्ती अर्थशास्त्रीय विचारों के साथ इस ग्रन्थ में कार्य विभाजन, उत्पादकता तथा मुक्त बाजार आदि विषयों पर विचार किया गया है। एड्म स्मिथ के अनुसार कम से कम सरकारी हस्तक्षेप होने पर ही पूंजी का व्यक्तिगत व देश की समृद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सकता है। उनका मानना था कि मुक्त बाजार में प्रतिस्पर्घा से व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ती हैं, जो किसी भी देश और उसके नागरिकों के लिए हर मायने में फादयेमंद होती है। श्रेणी:अर्थशास्त्र श्रेणी:अंग्रेजी पुस्तकें.

3 संबंधों: एडम स्मिथ, औद्योगिक क्रांति, कार्य विभाजन

एडम स्मिथ

अर्थशास्त्री '''एडम स्मिथ''' एडम स्मिथ (५जून १७२३ से १७ जुलाई १७९०) एक स्कॉटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है।आधुनिक अर्थशास्त्र के निर्माताओं में एडम स्मिथ (जून 5, 1723—जुलाई 17, 1790) का नाम सबसे पहले आता है.

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औद्योगिक क्रांति

'''वाष्प इंजन''' औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था। अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया। औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं। अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी। .

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कार्य विभाजन

किसी कार्य को छोटे-छोटे कार्यों में बांटना कार्य विभाजन (Division of work) कहलाता है। कार्य को जिन 'उपकार्यों' में बांटा जाता है उन कार्यों को पूरा करने की अवधि भी निर्धारित की जा सकती है। बड़े संगठनों में ऑपरेशन्स, वित्त, उत्पादन, विपणन (marketing) आदि विभाग बनाना वास्तव में कार्य का विभाजन ही है। .

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