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वेदनाहर

सूची वेदनाहर

ऐसी सारी ओषधियाँ एवं प्रणालियाँ जिनसे पीड़ा का निवारण हो सकता है, वेदनाहर या पीड़ापहारक (analgesic) कहलाती हैं। बहुत सी औषधियों में अन्यान्य गुणों के साथ-साथ पीड़ापहरण के गुण भी होते हैं। लेकिन वास्तविक पीड़ापहारक केवल उन्हीं औषधियों को कहते हैं जिनसे बिना निद्रा अथवा अचेतनता उत्पन्न किए ही पीड़ापहरण हो सके, उदाहरणार्थ ऐसीटिल सैलिसिलिक अम्ल। कुछ औषधियाँ ऐसी हैं जो मस्तिष्क में पीड़ा चेतना की प्रवेशात्मक शक्ति को कम करने का गुण रखती हैं, अथवा पीड़ा के प्रवाह को नाड़ियों में ही रोक देती हैं, उदाहरणत: अफीम और कोकेग। कुछ अन्य पीड़ापहारक औषधियाँ पीड़ा के कारणों को दूर करके पीड़ापहरण में सफल होती हैं, अर्थात् जकड़ी हुई मांसपेशियों को ढीला करके अथवा शरीर के रक्तहीन अंगों में रक्तप्रवाह बढ़ाकर, जैसे पापैवरिन हैं। 'पीड़ापहरण' को अंग्रेजी में ऐनलजीसिया (analgesia) की संज्ञा दी गई है। यह शब्द ऐल्जीसिस (algesis) से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है व्यथा होना। पीड़ापहरण में व्यथा का अभाव अथवा लोप हो जाता है। पीड़ा के अभाव के दो कारण हो सकते हैं: प्रथम, जिसमें पीड़ा की चेतना का प्रवाह नाड़ियों में किसी औषधि या किसी अन्य क्रिया द्वारा रोक दिया जाए और वह मस्तिष्क तक न पहुँच सके तथा द्वितीय, जिसमें मस्तिष्क स्वयं ही पीड़ा का किसी कारणवश अनुभव कर सके। अगर शरीर के केवल निश्चित अंग की नाड़ियों में पीड़ा-हरण किया जाय तो इसे स्थानिक संवेदनहारी (Local analgesia) कहा जाता है। पर अगर सारा शरीर औषधि का किसी अन्य प्रणाली से पीड़ारहित कर दिया जाए, तो इसे सार्वदैहिक पीड़ापहरण (General analgesia) कहा जाता है। पीड़ा के बहुत से कारण होते हैं। इन कारणों के दो प्रमुख अंग हैं: प्रथम वह जिसमें शरीरविज्ञान का और दूसरा वह जिसमें मानस विज्ञान का आधार हो। इसलिए जिन औषधियों तथा प्रणालियों से प्राणी की शारीरीक क्रियाओं, या मानसिक अवस्था में, हेर फेर लाया जाता है, वे पीड़ापहारक हो सकते हैं; अर्थात् मानसिक एवं शारीरिक अवस्था के परिवर्तन से पीड़ा में, एवं पीड़ापहारक औषधियों के असर में, परिवर्तन आ जाता है। भिन्न-भिन्न चेतनाएँ, जैसे स्पर्श चेतना, ताप चेतना और पीड़ा चेतना शरीर के हर भाग से सुषुम्ना कांड तक इंद्रिय-ज्ञान-वाहक नाड़ियों द्वारा पहुँचती हैं। इसलिए इन नाड़ियों के रोगों में सभी चेतनाएँ लुप्त हो जाती हैं। परंतु सुषुम्ना कांड में प्रवेश के बाद इन चेतनाओं को ले जानेवाले ज्ञानतंतु सुषुम्ना कांड में अलग-अलग हो जाते हैं। इसलिए कुछ रोगों में सारी चेतनाओं पर एक-सा ही असर नहीं होता, जैसे सिरिंगो मायलिया में स्पर्श चेतना वर्तमान रहती है, किंतु पीड़ाचेतना एवं तापचेतना अपेक्षित या लुप्त हो जाती है। .

4 संबंधों: निद्रा, निश्चेतक, मस्तिष्क, अफ़ीम

निद्रा

सोऐ हुए बच्चे बिल्ली का बच्चा सो रहा है नींद अपेक्षाकृत निलंबित संवेदी और संचालक गतिविधि की चेतना की एक प्राकृतिक बार-बार आनेवाली रूपांतरित स्थिति है, जो लगभग सभी स्वैच्छिक मांसपेशियों की निष्क्रियता की विशेषता लिए हुए होता है। इसे एकदम से जाग्रत अवस्था, जब किसी उद्दीपन या उत्तेजन पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता कम हो जाती है और अचेतावस्था से भी अलग रखा जाता है, क्योंकि शीत नींद या कोमा की तुलना में नींद से बाहर आना कहीं आसान है। नींद एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक (एनाबोलिक) स्थिति है, जो विकास पर जोर देती है और जो रोगक्षम तंत्र (इम्यून), तंत्रिका तंत्र, कंकालीय और मांसपेशी प्रणाली में नयी जान डाल देती है। सभी स्तनपायियों में, सभी पंछियों और अनेक सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों में इसका अनुपालन होता है। नींद के उद्देश्य और प्रक्रिया सिर्फ आंशिक रूप से ही स्पष्ट हैं और ये गहन शोध के विषय हैं। .

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निश्चेतक

जिन दवाओं का उपयोग इसलिए किया जाता है कि शल्यचिकित्सा के दौरान दर्द का अनुभव न हो, उन्हें निश्चेतक (anesthetic या anaesthetic) कहते हें। .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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अफ़ीम

अफ़ीम की खेती अफ़ीम (Opium; वैज्ञानिक नाम: lachryma papaveris) अफ़ीम के पौधे पैपेवर सोमनिफेरम के 'दूध' (latex) को सुखा कर बनाया गया पदार्थ है, जिसके सेवन से मादकता आती है। इसका सेवन करने वाले को अन्य बातों के अलावा तेज नीद आती है। अफीम में १२% तक मार्फीन (morphine) पायी जाती है जिसको प्रसंस्कृत (प्रॉसेस) करके हैरोइन (heroin) नामक मादक द्रब्य (ड्रग) तैयार किया जाता है। अफीम का दूध निकालने के लिये उसके कच्चे, अपक्व 'फल' में एक चीरा लगाया जाता है; इसका दूध निकलने लगता है, जो निकल कर सूख जाता है। यही दूध सूख कर गाढ़ा होने पर अफ़ीम कहलाता है। यह लसीला (sticky) होता है। अफ़ीम के पौधे के विभिन्न भाग विश्व में अफ़ीम-उत्पादक मेख्य क्षेत्र .

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पीड़ाहरण, पीड़ाहारी

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