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वृत्ति

सूची वृत्ति

ऐसे कार्य को व्यवसाय (Profession) कहते हैं जो एक विशेष प्रशिक्षण के बाद शुरू किया जाता है। व्यवसायिक प्रक्षिक्षण लिया हुआ व्यक्ति कुछ पैसा लेकर दूसरों को सलाह अथवा सेवा देता है। इंजीनियरी, वैद्यकी (डॉक्टर), प्रबन्धन, विधि आदि आधुनिक युग के कुछ व्यवसाय हैं। .

10 संबंधों: चिकित्सक, डॉक्टर, प्रबन्धन, विधि, वैद्य, वैज्ञानिक, आचार्य, अधिवक्ता, अभियन्ता, अभियान्त्रिकी

चिकित्सक

चिकित्सक वो व्यक्ति हैं जो दवाओं, रोग तथा आयुर्विज्ञान का ज्ञान रखतें हैं। श्रेणी:व्यवसाय.

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डॉक्टर

कोई विवरण नहीं।

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प्रबन्धन

व्यवसाय एवं संगठन के सन्दर्भ में प्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं। kisi bhi business ko start krne se phle prabandh yaani ke managements ki jaroort hoti h .

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विधि

विधि (या, कानून) किसी नियमसंहिता को कहते हैं। विधि प्रायः भलीभांति लिखी हुई संसूचकों (इन्स्ट्रक्शन्स) के रूप में होती है। समाज को सम्यक ढंग से चलाने के लिये विधि अत्यन्त आवश्यक है। विधि मनुष्य का आचरण के वे सामान्य नियम होते है जो राज्य द्वारा स्वीकृत तथा लागू किये जाते है, जिनका पालन अनिवर्य होता है। पालन न करने पर न्यायपालिका दण्ड देता है। कानूनी प्रणाली कई तरह के अधिकारों और जिम्मेदारियों को विस्तार से बताती है। विधि शब्द अपने आप में ही विधाता से जुड़ा हुआ शब्द लगता है। आध्यात्मिक जगत में 'विधि के विधान' का आशय 'विधाता द्वारा बनाये हुए कानून' से है। जीवन एवं मृत्यु विधाता के द्वारा बनाया हुआ कानून है या विधि का ही विधान कह सकते है। सामान्य रूप से विधाता का कानून, प्रकृति का कानून, जीव-जगत का कानून एवं समाज का कानून। राज्य द्वारा निर्मित विधि से आज पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। राजनीति आज समाज का अनिवार्य अंग हो गया है। समाज का प्रत्येक जीव कानूनों द्वारा संचालित है। आज समाज में भी विधि के शासन के नाम पर दुनिया भर में सरकारें नागरिकों के लिये विधि का निर्माण करती है। विधि का उदेश्य समाज के आचरण को नियमित करना है। अधिकार एवं दायित्वों के लिये स्पष्ट व्याख्या करना भी है साथ ही समाज में हो रहे अनैकतिक कार्य या लोकनीति के विरूद्ध होने वाले कार्यो को अपराध घोषित करके अपराधियों में भय पैदा करना भी अपराध विधि का उदेश्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1945 से लेकर आज तक अपने चार्टर के माध्यम से या अपने विभिन्न अनुसांगिक संगठनो के माध्यम से दुनिया के राज्यो को व नागरिकों को यह बताने का प्रयास किया कि बिना शांति के समाज का विकास संभव नहीं है परन्तु शांति के लिये सहअस्तित्व एवं न्यायपूर्ण दृष्टिकोण ही नहीं आचरण को जिंदा करना भी जरूरी है। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है। .

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वैद्य

आयुर्वेद या अन्य पारम्परिक चिकित्साप्रणाली का अभ्यास करने वाले चिकित्सकों को वैद्य या वैद्यराज कहते हैं। 'वैद्य' का शाब्दिक अर्थ है, 'विद्या से युक्त'। आधुनिक 'डॉक्टर' इसका पर्याय है। अधिक अनुभवी वैद्यों को 'वैद्यराज' कहते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के अपने निजी वैद्य हुआ करते थे जिन्हें 'राजवैद्य' कहते थे।.

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वैज्ञानिक

रूस शोधकर्ता नई पृथ्वी की खाड़ी में प्रयोगशाला अनुसंधान के लिए सामग्री इकट्ठा। कोई भी व्यक्ति जो ज्ञान प्राप्ति के लिये विधिवत (systematic) रूप से कार्यरत हो उसे वैज्ञानिक (scientist) कहते हैं। किन्तु एक सीमित परिभाषा के अनुसार वैज्ञानिक विधि का अनुसरण करते हुए किसी क्षेत्र में ज्ञानार्जन करने वाले व्यक्ति को वैज्ञानिक कहते हैं। .

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आचार्य

प्राचीन काल में शिक्षा का एक तरीका प्राचीन काल में आचार्य एक शिक्षा संबंधी पद था। उपनयन संस्कार के समय बालक का अभिभावक उसको आचार्य के पास ले जाता था। विद्या के क्षेत्र में आचार्य के पास बिना विद्या, श्रेष्ठता और सफलता की प्राप्ति नहीं होती (आचार्याद्धि विद्या विहिता साधिष्ठं प्रापयतीति।-छांदोग्य 4-9-3)। उच्च कोटि के प्रध्यापकों में आचार्य, गुरु एवं उपाध्याय होते थे, जिनमें आचार्य का स्थान सर्वोत्तम था। मनुस्मृति (2-141) के अनुसार उपाध्याय वह होता था जो वेद का कोई भाग अथवा वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) विद्यार्थी को अपनी जीविका के लिए शुल्क लेकर पढ़ाता था। गुरु अथवा आचार्य विद्यार्थी का संस्कार करके उसको अपने पास रखता था तथा उसके संपूर्ण शिक्षण और योगक्षेम की व्यवस्था करता था (मनु: 2-140)। 'आचार्य' शब्द के अर्थ और योग्यता पर सविस्तार विचार किया गया है। निरुक्त (1-4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहते हैं कि वह विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है। आपस्तंब धर्मसूत्र (1.1.1.4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थी उससे धर्म का आचयन करता है। आचार्य का चुनाव बड़े महत्व का होता था। 'वह अंधकार से घोर अंधकार में प्रवेश करता है जिसका अपनयन अविद्वान्‌ करता है। इसलिए कुलीन, विद्यासंपन्न तथा सम्यक्‌ प्रकार से संतुलित बुद्धिवाले व्यक्ति को आचार्य पद के लिए चुनना चाहिए।' (आप.ध.सू. 1.1.1.11-13)। यम (वीरमित्रोदय, भाग 1, पृ. 408) ने आचार्य की योग्यता निम्नलिखित प्रकार से बतलाई है: 'सत्यवाक्‌, धृतिमान्‌, दक्ष, सर्वभूतदयापर, आस्तिक, वेदनिरत तथा शुचियुक्त, वेदाध्ययनसंपन्न, वृत्तिमान्‌, विजितेंद्रिय, दक्ष, उत्साही, यथावृत्त, जीवमात्र से स्नेह रखनेवाला आदि' आचार्य कहलाता है। आचार्य आदर तथा श्रद्धा का पात्र था। श्वेताश्वतरोपनिषद् (6-23) में कहा गया है: जिसकी ईश्वर में परम भक्ति है, जैसे ईश्वर में वैसे ही गुरु में, क्योंकि इनकी कृपा से ही अर्थों का प्रकाश होता है। शरीरिक जन्म देनेवाले पिता से बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जन्म देनेवाले आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है (मनुस्मृति 2. 146)। प्राचीन काल में आचार्य एक शिक्षा संबंधी पद था। उपनयन संस्कार के समय बालक का अभिभावक उसको आचार्य के पास ले जाता था। विद्या के क्षेत्र में आचार्य के पास बिना विद्या, श्रेष्ठता और सफलता की प्राप्ति नहीं होती (आचार्याद्धि विद्या विहिता साधिष्ठं प्रापयतीति।-छांदोग्य 4-9-3)। उच्च कोटि के प्रध्यापकों में आचार्य, गुरु एवं उपाध्याय होते थे, जिनमें आचार्य का स्थान सर्वोत्तम था। मनुस्मृति (2-141) के अनुसार उपाध्याय वह होता था जो वेद का कोई भाग अथवा वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) विद्यार्थी को अपनी जीविका के लिए शुल्क लेकर पढ़ाता था। गुरु अथवा आचार्य विद्यार्थी का संस्कार करके उसको अपने पास रखता था तथा उसके संपूर्ण शिक्षण और योगक्षेम की व्यवस्था करता था (मनु: 2-140)। 'आचार्य' शब्द के अर्थ और योग्यता पर सविस्तार विचार किया गया है। निरुक्त (1-4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहते हैं कि वह विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है। आपस्तंब धर्मसूत्र (1.1.1.4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थी उससे धर्म का आचयन करता है। आचार्य का चुनाव बड़े महत्व का होता था। 'वह अंधकार से घोर अंधकार में प्रवेश करता है जिसका अपनयन अविद्वान्‌ करता है। इसलिए कुलीन, विद्यासंपन्न तथा सम्यक्‌ प्रकार से संतुलित बुद्धिवाले व्यक्ति को आचार्य पद के लिए चुनना चाहिए।' (आप.ध.सू. 1.1.1.11-13)। यम (वीरमित्रोदय, भाग 1, पृ. 408) ने आचार्य की योग्यता निम्नलिखित प्रकार से बतलाई है: 'सत्यवाक्‌, धृतिमान्‌, दक्ष, सर्वभूतदयापर, आस्तिक, वेदनिरत तथा शुचियुक्त, वेदाध्ययनसंपन्न, वृत्तिमान्‌, विजितेंद्रिय, दक्ष, उत्साही, यथावृत्त, जीवमात्र से स्नेह रखनेवाला आदि' आचार्य कहलाता है। आचार्य आदर तथा श्रद्धा का पात्र था। श्वेताश्वतरोपनिषद् (6-23) में कहा गया है: जिसकी ईश्वर में परम भक्ति है, जैसे ईश्वर में वैसे ही गुरु में, क्योंकि इनकी कृपा से ही अर्थों का प्रकाश होता है। शरीरिक जन्म देनेवाले पिता से बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जन्म देनेवाले आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है (मनुस्मृति 2. 146)। .

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अधिवक्ता

अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील (ऐडवोकेट advocate) के अनेक अर्थ हैं, परंतु हिंदी में ऐसे व्यक्ति से है जिसको न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उसके हेतु या वाद का प्रतिपादन करने का अधिकार प्राप्त हो। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर (या उसके तरफ से) दलील प्रस्तुत करता है। इसका प्रयोग मुख्यत: कानून के सन्दर्भ में होता है। प्राय: अधिकांश लोगों के पास अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति नहीं होती। अधिवक्ता की जरूरत इसी बात को रेखांकित करती है। अन्य बातों के अलावा अधिवक्ता का कानूनविद (lawyer) होना चाहिये। कानूनविद् उसको कहते हैं जो कानून का विशेषज्ञ हो या जिसने कानून का व्यावसायिक अध्ययन किया हो। वकील की भूमिका कानूनी न्यायालय में काफी भिन्न होती है। भारतीय न्यायप्रणाली में ऐसे व्यक्तियों की दो श्रेणियाँ हैं: (१) ऐडवोकेट तथा (२) वकील। ऐडवोकेट के नामांकन के लिए भारतीय "बार काउंसिल' अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक उच्च न्यायालय के अपने-अपने नियम हैं। उच्चतम न्यायालय में नामांकित ऐडवोकेट देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन कर सकता है। वकील, उच्चतम या उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन नहीं कर सकता। ऐडवोकेट जनरल अर्थात्‌ महाधिवक्ता शासकीय पक्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रमुखतम अधिकारी है। अभी महाराष्ट्र के महाधीवक्ता रोहित देव है। ● अपनी मुकद्दमे की पैरवी स्वम कर सकते है इसके लिए कुछ कुछ महत्वपूर्ण बातो को धयान में रखने की जरूरत है क्यो की वकील के पास अनेको मुकद्दमे देखने की जिम्मेदारी होती है इस कारण से जितनी बातें पीड़ित की रखनी होती है नही रख पाते इस कारण मुकद्दमा हल्का हो जाता है मुवक्किल अपना पछ रखने के लिए स्वतंत्र है वह अपनी बात अच्छे से प्रस्तुत कर सकता है क्यो की उसे न किसी वकालत नामे की जरूरत नही होती है न वकालत के डिग्री की............#लेख जारी है .

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अभियन्ता

अभियंता (इंजिनीयर) वह व्यक्ति है जिसे अभियाँत्रिकी की एक या एक से अधिक शाखाओं में प्रशिक्षण प्राप्त हो अथवा जो कि व्यावसायिक रूप से अभियाँत्रिकी सम्बन्धित कार्य कर रहा हो। कभी कभी इन्हे यंत्रवेत्ता भी कहा जाता है | यद्यपि अभियंता एक शुद्ध हिन्दी शब्द है लेकिन बोलचाल की भाषा मे इसके स्थान पर अंग्रेजी भाषा के इंजीनियर (Engineer) शब्द का प्रयोग अधिक होता है। एक अभियंता का मुख्य कार्य होता है समस्याओं का समाधान करना। इसके लिये उन्हें प्राय: उच्च शिक्षा में पाये हुए अपने प्रशिक्षण और तकनीक का अनुप्रयोग करना पड़ता है। अधिकतर अभियंता अभियाँत्रिकी की किसी एक शाखा में प्रशिक्षण तथा शिक्षा प्राप्त होते हैं। .

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अभियान्त्रिकी

लोहे का 'कड़ा' (O-ring): कनाडा के इंजिनियरों का परिचय व गौरव-चिह्न सन् 1904 में निर्मित एक इंजन की डिजाइन १२ जून १९९८ को अंतरिक्ष स्टेशन '''मीर''' अभियान्त्रिकी (Engineering) वह विज्ञान तथा व्यवसाय है जो मानव की विविध जरूरतों की पूर्ति करने में आने वाली समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है। इसके लिये वह गणितीय, भौतिक व प्राकृतिक विज्ञानों के ज्ञानराशि का उपयोग करती है। इंजीनियरी भौतिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है; औद्योगिक प्रक्रमों का विकास एवं नियंत्रण करती है। इसके लिये वह तकनीकी मानकों का प्रयोग करते हुए विधियाँ, डिजाइन और विनिर्देश (specifications) प्रदान करती है। .

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