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विषुव (खगोलीय निर्देशांक)

सूची विषुव (खगोलीय निर्देशांक)

Earth-lighting-equinox PL.png विषुव के दौरान पृथ्वी बिजली खगोलशास्त्र में विषुव (equinox) समय के उस क्षण को कहते हैं जिसके आधार पर किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली (celestial coordinate system) के तत्वों की परिभाषा की जाती है। उदाहरण के लिए भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली ऐसी एक प्रकार की पद्धति है और इसमें खगोलीय मध्य रेखा, खगोलीय ध्रुव और बसंत विषुव की दिशा को पहले से तय करके किसी भी वस्तु का स्थान इनके हिसाब से लगाया जाता है। ध्यान रहे कि समय के साथ यह सभी बदलते रहते हैं इसलिए किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली में एक समय को मानक मानकर उसी के आधार पर निर्देशांक बताये जाते हैं। 'विषुव' युग से अलग चीज़ है क्योंकि युग वह समय होता है कि जब किसी खगोलीय वस्तु की स्थिति मापी गई हो। .

9 संबंधों: निर्देशांक पद्धति, भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली, युग (खगोलशास्त्र), विषुव, खगोल शास्त्र, खगोलीय ध्रुव, खगोलीय निर्देशांक पद्धति, खगोलीय मध्य रेखा, खगोलीय वस्तु

निर्देशांक पद्धति

दो आयाम (डिमॅनशनों) में ध्रुवीय निर्देशांक पद्धति में किसी भी बिंदु का स्थान उसके कोण और त्रिज्या (रेडियस) से पूर्णतः निर्धारित हो जाता है निर्देशांक पद्धति (अंग्रेजी: coordinate system) ज्यामिति में ऐसी प्रणाली को कहते हैं जिसमें एक या उस से अधिक अंकों के प्रयोग से किसी भी बिंदु का किसी दिक् (स्पेस) में स्थान पूर्ण रूप से बताया जा सके। यह दिक् मनुष्यों का जाना-पहचाना त्रिआयामी (तीन डिमॅनशनों वाला) हो सकता है या फिर ऐसा कोई उलझा हुआ बहुमोड़ (मैनीफ़ोल्ड) दिक् जिसकी गणित में कल्पना की जाती है। सरल एक, दो या तीन आयामों वाले दिक् में अक्सर कार्तीय निर्देशांक पद्धति का प्रयोग किया जाता है, हालांकि ध्रुवीय (पोलर) पद्धति जैसी अन्य प्रणालियाँ भी उपलब्ध हैं।, Edward J. Denecke, Jr., pp.

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भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली

वृत्त्य़ निर्देशांक प्रणाली भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली एक बहुप्रचलित प्रणाली है, जिसके प्रयोग से खगोलीय पिंडों या बिन्दुओं का मापन किया जाता है। इसमें पृथ्वी की भूमध्य रेखा, ध्रुवओं को आगे खगोलीय वृत्त में प्रोजेक्ट कर माप किया जाता है। इसके दो निर्देशांक होते हैं.

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युग (खगोलशास्त्र)

यह बाहरी सौर मंडल की वस्तुओं की स्थिति का चित्रण है (हरी बिन्दुएँ काइपर घेरे की वस्तुएँ हैं)। यह J2000.0 खगोलीय युग पर आधारित है - यानि १ जनवरी २००० को यह वस्तुएँ इन स्थानों पर थीं लेकिन तब से ज़रा-बहुत हिल चुकी होंगी खगोलशास्त्र में युग (epoch) समय के किसी एक आम सहमती से चुने हुए क्षण को बोलते हैं जिसपर आधारित किसी खगोलीय वस्तु या प्रक्रिया की स्थिति के बारे में जानकारी दी जाए। ब्रह्माण्ड में लगभग सभी वस्तुओं में लगातार परिवर्तन आते रहते हैं - तारों की हमसे दूसरी बदलती है, तारों की रौशनी उतरती-चढ़ती है, ग्रहों का अक्षीय झुकाव बदलता है, इत्यादि - इसलिए यह आवश्यक है कि जब भी किसी वास्तु का कोई माप दिया जाए तो यह स्पष्ट कर दिया जाए कि वह माप किस समय के लिए सत्य था। इसलिए जब पंचांग बनाए जाते हैं जो खगोलीय वस्तुओं की भिन्न समयों पर दशा बताते हैं तो उन्हें किसी खगोलीय युग पर आधारित करना ज़रूरी होता है। खगोलशास्त्रियों के समुदाय समय-समय पर एक दिनांक को नया खगोलीय युग घोषित कर देते हैं और फिर उसका प्रयोग करते हैं। समय गुज़रने के साथ ब्रह्माण्ड बदलता है और एक समय आता है जब उस खगोलीय युग पर जो वस्तुओं की स्थिति थी वह वर्तमान स्थिति से बहुत अलग हो जाती है। ऐसा होने पर आपसी सहमती बनाकर फिर एक नया खगोलीय युग घोषित किया जाता है और सभी वस्तुओं की स्थिति का उस नए युग के लिए अद्यतन किया जाता है। .

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विषुव

सूर्य द्वारा पृथ्वी पर विषुव के दिन प्रकाश (संध्या छोड़कर) विषुव (अंग्रेज़ी:इक्विनॉक्स) ऐसा समय-बिंदु होता है, जिसमें दिवस और रात्रि लगभग बराबर होते हैं। इसका शब्दिक अर्थ होता है - समान। 'विषुव' शब्द संस्कृत से है और इसका अर्थ दिन और रात्रि के समान होने से है (दिनरात्र्योः साम्यं वाति वा) | इक्वीनॉक्स शब्द लैटिन भाषा के शब्द एक्वस (समान) और नॉक्स (रात्रि) से लिया गया है। किसी क्षेत्र में दिन और रात की लंबाई को प्रभावित करने वाले कई दूसरे कारक भी होते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर २३½° झुके हुए सूर्य के चक्कर लगाती है, इस प्रकार वर्ष में एक बार पृथ्वी इस स्थिति में होती है, जब वह सूर्य की ओर झुकी रहती है, व एक बार सूर्य से दूसरी ओर झुकी रहती है।|हिन्दुस्तान लाइव। १७ मई २०१०। तैयारी डेस्क इसी प्रकार वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति भी आती है, जब पृथ्वी का झुकाव न सूर्य की ओर ही होता है और न ही सूर्य से दूसरी ओर, बल्कि बीच में होता है। इस स्थिति को विषुव या इक्विनॉक्स कहा जाता है। इन दोनों तिथियों पर दिन और रात की बराबर लंबाई लगभग बराबर होती है। यदि दो लोग भूमध्य रेखा से समान दूरी पर खड़े हों तो उन्हें दिन और रात की लंबाई बराबर महसूस होगी। ग्रेगोरियन वर्ष के आरंभ होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्ध को अग्रसर होता है। वर्ष के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्द्ध पहुचं जाता है। इस तरह से सूर्य वर्ष में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। हिन्दू नव वर्ष एवं भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर व विश्व में अन्य कई नव वर्ष इसी समय के निकट ही आरंभ हुआ करते हैं। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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खगोलीय ध्रुव

पृथ्वी के घूर्णन अक्ष को अगर बढ़ा दिया जाए तो जहाँ वह खगोलीय गोले को काटता है वहीं खगोलीय ध्रुव पड़ता है खगोलीय ध्रुव (celestial pole) आकाश में दो काल्पनिक बिन्दुओं को कहा जाता है जहाँ पृथ्वी के घूर्णन (रोटेशन) का अक्ष पृथ्वी के इर्द-गिर्द बने काल्पनिक खगोलीय गोले को काटता है। यानि अगर यह कल्पना की जाए कि पूर्वी पृथ्वी एक महान गोले के ठीक बीच में स्थित है और उस गोले की अन्दर की तरफ़ आसमान में दिखने वाले सभी तारे चिपके हुए हैं, तो पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर अगर सीधा सिर के ऊपर देखा जाए तो वहाँ उस खगोलीय गोले का 'खगोलीय उत्तरी ध्रुव' दिखेगा। इसी तरह अगर पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर खड़ा हुआ जाए तो सिर के बिलकुल ऊपर खगोलीय गोले पर दिखने वाला बिंदु 'खगोलीय दक्षिणी ध्रुव' होगा।, Michael Seeds, Dana Backman, pp.

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खगोलीय निर्देशांक पद्धति

खगोलीय गोले पर एक तारे के तीन भिन्न खगोलीय निर्देशांक प्रणालियों में माप: भूमध्यीय प्रणाली (नीली), गैलेक्सीय प्रणाली (पीली) और क्रांतिवृत्तीय प्रणाली (लाल) खगोलीय निर्देशांक पद्धति (celestial coordinate system) ब्रह्माण्ड में किसी भी प्रकार की खगोलीय वस्तु (ग्रह, उपग्रह, तारा, गैलेक्सी, नीहारिका, वग़ैराह) का स्थान निर्धारित करने का एक तरीक़ा है। जहाँ तक मनुष्यों का अनुभव है पूरा ब्रह्माण्ड एक तीन आयामों (डायमेंशन) वाला दिक् (स्पेस) है। इसमें एक निर्देशांक पद्धति के ज़रिये किसी भी स्थान को अंकों के साथ बताया जा सकता है। .

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खगोलीय मध्य रेखा

खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर है और सूर्यपथ से २३.४ डिग्री के कोण पर है खगोलशास्त्र में खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर आसमान में काल्पनिक खगोलीय गोले पर बना हुआ एक काल्पनिक महावृत्त (ग्रेट सर्कल) है। पृथ्वी के उत्तरी भाग (यानि उत्तरी गोलार्ध या हॅमिस्फ़ेयर) में रहने वाले अगर खगोलीय मध्य रेखा की तरफ़ देखना चाहें तो आसमान में दक्षिण की दिशा में देखेंगे। उसी तरह पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में रहने वाले खगोलीय मध्य रेखा की तरफ़ देखने के लिए आकाश में उत्तर की तरफ़ देखेंगे। पृथ्वी के भूमध्य में रहने वाले खगोलीय मध्य रेखा की ओर देखने के लिए ठीक अपने सिर के ऊपर देखेंगे। खगोलीय मध्य रेखा से खगोलीय वस्तुओं के स्थानों के बारे में बताना आसान हो जाता है। उदहारण के लिए हम कह सकते हैं के ख़रगोश तारामंडल खगोलीय मध्य रेखा के ठीक दक्षिण में है। .

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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