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विद्युत्‌ भट्ठी

सूची विद्युत्‌ भट्ठी

विद्युत्‌ भट्ठियाँ (Electric Furnace) सामान्यत: धातु खनिजों और धातुओं को पिघलाने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं। विद्युत्‌ ऊर्जा से उत्पन्न हुई ऊष्मा विद्युतधारा के वर्ग के अनुपात में होती है। विद्युत्‌ भट्ठियाँ कोयले की भट्ठियों से अधिक ऊष्मा उत्पन्न कर सकती हैं और आकार में भी छोटी होती हैं। ये हानिकारक धुएँ अथवा गैसें नहीं उत्पन्न करतीं, परंतु इनका मुख्य लाभ इनमें सरलता से ऊष्मा नियंत्रण करने का है। धारा का परिवर्तन कर ऊष्मा का नियंत्रण बहुत सरलता से किया जाता है। इनका दूरस्थ नियंत्रण (remote control) और स्वत: चालन (automatic action) भी किया जा सकता है। इन कारणों से विद्युत्‌ भट्ठियाँ सामान्य उपयोग में आ गई हैं। विद्युत्‌ भट्ठियों के बहुत से परिष्कृत रूप अब सामान्य हो गए हैं और ज्यों ज्यों विद्युत्‌ शक्ति संभरण आर्थिक दृष्टिकोण से सस्ता होता जाता है, विद्युत्‌ भट्ठियों का प्रयोग निरंतर बढ़ता ही जाता है। .

4 संबंधों: ऊष्मा, प्रतिरोध भट्ठी, प्रेरण भट्ठी, विद्युत चाप भट्ठी

ऊष्मा

इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं। ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या ठंढे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं। .

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प्रतिरोध भट्ठी

प्रतिरोध भट्ठियों (Electric Arc Furnace) में, भट्ठी की दीवारों पर तार अंशक (coil) लगे होते हैं, जिनमें प्रवाहित होनेवाली धारा ऊष्मा उत्पन्न करती है। भट्ठी की दीवारें सामान्य भट्ठी की तरह अग्निसह ईटों की बनी होती हैं, अथवा किसी भी ऐसे उच्च तापसह (refractory) पदार्थ की जो ऊष्मा का चालक हो। ऊष्मा अंशक, सामान्यत:, नाइक्रोम (nichrome) अथवा मौलिब्डेनम (molybdenum) तार के बने होते हैं और उच्च तापसह पदार्थ की नलिका पर वर्तित (wound) होते हैं। उच्च ताप की भट्ठियों में (1,200° सें. ऊपर) प्लैटिनम धातु के तारों का प्रयोग भी किया जाता है, जो अधिक कीमती होने के कारण सभी भट्ठियों में नहीं प्रयोग किए जा सकते। उच्च ताप की भट्ठियों में तार अंशकों के स्थान पर सिलिकॉन कार्बाइड (silicon carbide) की छड़ें और नलिकाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। ऊष्मा अंशक, भट्ठी की दीवारों पर न लगाकर, सामान्यत:, उसमें ही निवेशित कर दिए जाते हैं, जिससे भट्ठी में अधिक जगह हो सके और इन अंशकों को भी क्षति से बचाया जा सके। ताप अंशक एक दूसरे से श्रेणी (series) एंवं पार्श्व संबंधन में संबद्ध होते हैं कि प्रतिरोध का विचरण कर आसानी से ताप का विचरण किया जा सके। कहीं कहीं ये स्टार एवं डेल्टा (star and delta) प्ररूप में भी संबद्ध होते हैं। पिघलानेवाली धातु भट्ठी के बीच में रखी जाती है। इसे साधारण बोलचाल में धान (charge) कहते हैं। यह पिघलने पर नली के द्वारा भट्ठी से बाहर आ जाती है, अथवा चार्ज की हाँड़ी, जिसे मूषा (crucible) कहते हैं, भट्ठी के बाहर निकाल ली जाती है। ताप नियंत्रण स्वत: चालन से ताप-वैद्युत युग्म (thermocouple) द्वारा किया जाता है। कुछ प्रतिरोध भट्ठियाँ लवण कुंडिका (salt bath) किस्म की होती हैं। कई प्रकार के लवण (सामान्य नमक नहीं) इस कार्य के लिए प्रयुक्त होते हैं। इनमें विद्युत्धारा पिघले हुए लवण के प्रतिरोध में होकर पारित होती है, जिससे लवण कुंडिका गरम हो जाती है और इसमें रखा हुआ धान पिघलाया जा सकता है, इस प्रकार की भट्ठी में ऊष्मा का अधिक अंश में उपयोग संभव है, अर्थात्‌ बहुत कम ऊष्मा नष्ट होती है, क्योंकि इसका उपयोग सीधे ही धान को गरम करने में हो जाता है। ऐसी भट्ठियाँ, कैल्सियम, सेडियम, पोटैशियम आदि लवणों को पिघलाने के लिए प्रयोग की जाती है, जिनके रासायनिक लवण सीधे ही भट्ठी में रखे जा सकें। इस प्रकार धान को ही ऊष्ण अंशक के रूप में प्रयोग किया जाता है और उसके प्रतिरोध के कारण उत्पन्न ऊष्मा उसको पिघलाती है। धारा धान में निवेशित दो एलेक्ट्रोडों द्वारा पहुँचाई जाती है। ऐलुमिनियम की इसी प्रकार की प्रतिरोध भट्ठी में प्राप्त होता है। .

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प्रेरण भट्ठी

प्रेरण क्वायल द्वारा एक पाइप को गर्म करके लाल किया गया है। प्रेरण कुण्डली स्वयं जल से ठण्डा की जा रही है। कुण्डली का चालक खोखली नली का बना है जिसमें जल भेजकर उसे ट्ण्डा किया जा रहा है। प्रेरण भट्ठियाँ (Induction furnaces), प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर कार्य करती है। परिणामित्र की भाँति, इसमें भी दो अंशक (coil) होते हैं, प्राथमिक और द्वितीयक। प्राथमिक में वोल्टता आरोपित होने पर द्वितीयक में वोल्टता प्रेरित हो जाती है। यदि द्वितीयक का लघु परिपथन कर दिया जाए, तो प्रतिरोध कम होने पर उसमें अत्यधिक धारा प्रवाहित हो जाती है। इसी सिद्धांत पर इस भट्ठी में भी प्राथमिक कुंडली को संभरण (supply) से संबद्ध कर दिया जाता है और द्वितीयक में जो स्वयं धान के रूप में होती है, अत्यधिक धारा प्रेरित हो जाती है, जिससे थान पिघल जाता है। इस भट्ठी में भी ऊष्मा सीधे धान में ही उत्पन्न होती है और इसलिए उसका अधिकतम सीधे धान में ही उत्पन्न होती है और इसलिए उसका अधिकतम उपभोग होना संभव है। परंतु इन भट्ठियों में केवल वही धातु पिघलाई जा सकती है जो चार्ज के रूप में लघुपरिपथित द्वितीयक बन सके। इन भट्ठियों में किसी वस्तु के विशिष्ट भाग को सापेक्षतया अधिक गरम कर सकना भी संभव है। इस प्रकार ये गियर (gear) को दृढ़ (harden) करने के उपयोग में तथा ऊष्मा उपचार (heat treatment) के लिए बहुत प्रयोग की जाती है। इन भट्ठियों को, सामान्यत:, उच्च आवृत्ति (high frequency) संभरण से संभरित किया जाता है, जिससे अधिक ऊष्मा उत्पन्न हो सके। 10,000 साइकिल प्रति सेकंड की आवृत्ति का प्रयोग सामान्य है, जो साधारणतया इलेक्ट्रॉनिकी युक्तियों (electronic devices) द्वारा प्राप्त की जाती है। .

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विद्युत चाप भट्ठी

विद्युत चाप भट्ठी का योजना-आरेख विद्युत चाप भट्ठी (Electric arc furnace) में विद्युत्‌ चाप द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग किया जाता है। चाप दो इलेक्ट्रोडों के बीच उत्पन्न की जाती है, अथवा इलेक्ट्रोड एवं धान (charge) के बीच। इन भट्ठियों में प्रतिरोध भट्ठियों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा उत्पन्न जा सकती है। ये भट्ठियाँ मुख्यतया लौहिक धातुओं, अथवा उनकी मिश्रधातुओं को पिघलाने के लिए काम में आती हैं। इनका संभरण (supply) कम वोल्टता तथा अधिक धारा का होता है। अत:, इसे सामान्य संभरण से विशेष परिणामित्र (transformer) द्वारा प्राप्त किया जाता है। इलेक्ट्रोड, सामान्यत:, कार्बन के होते हैं, परंतु बहुत सी भट्ठियों में उपयुक्त धातु के भी बने होते हैं, जो चाप उत्पन्न होने पर धीरे धीरे स्वयं भी उपयुक्त हो जाते हैं। धारा प्रवाहित होने पर चाप द्वारा, इलेक्ट्रोड के सिरे धीरे-धीरे क्षत हो जाते हैं। इस प्रकार चाप की लंबाई बढ़ जाती है और चाप बुझ भी जा सकती हैं। अत:, इन भट्ठियों में एलेक्ट्रोडों को धीरे धीरे आगे बढ़ाने की व्यवस्था भी करती है। .

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विद्युत भट्ठी

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