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विद्युतरोधी

सूची विद्युतरोधी

११० किलोवोल्ट का एक सिरैमिक कुचालक विद्युतरोधी (Insulator) वे पदार्थ होते हैं जो तुलनात्मक रूप से विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करते हैं या जिनमें से होकर समान स्थितियों में बहुत कम धारा प्रवाहित होती है। लकड़ी (सूखी हुई), बैकेलाइट, एस्बेस्टस, चीनी मिट्टी, कागज, पीवीसी आदि कुचालकों के कुछ उदाहरण हैं। वैद्युत प्रौद्योगिकी में जिस तरह सुचालकों, अर्धचालकों एवं अतिचालकों के विविध उपयोग हैं, उसी प्रकार कुचालकों के भी विविध प्रकार से उपयोग किये जाते हैं। ये सुचालक तारों के ऊपर चढ़ाये जाते हैं; विद्युत मशीनों के वाइंडिंग में तारों की परतों के बीच उपयोग किये जाते हैं; उच्च वोल्टता की लाइनों को खम्भों या तावरों से आश्रय देने (लटकाने/झुलाने) आदि विविध कामों में प्रयुक्त होते हैं। .

11 संबंधों: चालक (भौतिकी), चीनी मिट्टी, प्रतिरोधकता, पॉलीविनाइल क्लोराइड, बैकेलाइट, विद्युत चालक, विद्युत चालकता, विद्युत धारा, विद्युत अभियान्त्रिकी, काग़ज़, अतिचालकता

चालक (भौतिकी)

*(1) विद्युत चालक.

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चीनी मिट्टी

चीनी मिट्टी के टुकड़े चीनी मिट्टी (या, केओलिनाइट / Kaolinite) एक प्रकार की सफेद और सुघट्य मिट्टी हैं, जो प्राकृतिक अवस्था में पाई जाती है। इसका रासायनिक संघटन जलयुक्त ऐल्यूमिनो-सिलिकेट (Al2O3. 2SiO2. 2H2O) है। चीनी मिट्टी को 'केओलिन' भी कहते हैं। चीनी भाषा में केओलिन का अर्थ 'पहाड़ी डाँडा' होता है। डांडे बहुधा फेल्सपार खनिज के होते हैं और इस फेल्सपार का रासायनिक विघटन होने के कारण चीन मिट्टी या केओलिन इन्हीं डाँडों में पाई जाती है, बल्कि उस सफेद और सुघट्य मिट्टी को भी कहते हैं जो विघटन के स्थान से बहकर किसी अन्य स्थान में जमा हो जाती है। इसलिये चीनी मिट्टी दो प्रकार की होती है: .

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प्रतिरोधकता

किसी पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता (Electrical resistivity; या resistivity, specific electrical resistance, or volume resistivity) से उस पदार्थ द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करने की क्षमता का पता चलता है। कम प्रतिरोधकता वाले पदार्थ आसानी से विद्युत आवेश को चलने देते हैं। इसकी SI ईकाई ओम मीटर है। .

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पॉलीविनाइल क्लोराइड

पॉलीविनाइल क्लोराइड का अणुसूत्र पॉली विनाइल क्लोराइड का अणुपॉली विनाइल क्लोराइड (PVC) एक अक्रिस्टलीय तापसुघट्टय (अमॉर्फस प्लास्टिक) पदार्थ है। कठोर पदार्थ है। ऊष्मा तथा रासायनिक पदार्थों का इस पर प्रभाव नहीं पड़ता है। पॉलीएथिलीन और पॉलीप्रोपीलीन के बाद यह तीसरा सर्वाधिक उत्पादित प्लास्टिक है। निर्माण कार्यों में पीवीसी का उपयोग होता है। पीवीसी से पाइप, केबल इंसुलेशन, फर्श पर बिछाने की चादर, दरवाजे आदि बनाए जाते हैं। पॉलीविनाइल क्लोराइड का निर्माण मोनोमर विनाइल क्लोराइड के बहुलीकरण द्वारा किया जाता है। शुद्ध पीवीसी मूलतः सफेद, कठोर और भंगुर ठोस होता है जिसमें सुघट्यकारी (प्लास्टिसाइजर) मिलाकर उसे नरम व लचीला बनाया जाता है। सुघट्यकारी के रूप में थैलेट्स (phthalates) का प्रयोग सबसे अधिक होता है। नरम पॉलीविनाइल क्लोराइड का उपयोग वस्त्र तथा गद्दे आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। .

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बैकेलाइट

बैकेलाइट का पेपर नाइफ़, १९२० बैकेलाइट, या पॉलीऑक्सीबेन्ज़ाइलमेथाइलीनग्लाइकोऐनहाइड्राइड, एक आरंभिक प्लास्टिक था। यह थर्मोसेटिंग फिनॉल फॉर्मैल्डिहाइड रेसिन होता है, जो फिनॉल के फॉर्मैल्डिहाइड से एलिमिनेशन प्रतिक्रिया पर बनता है। इसकी खोज १९०७-१९०९ के बीच बेल्जियम के रसायनज्ञ लियो बैकेलैंड ने की थी। श्रेणी:थर्मोसेटिंग प्लास्टिक.

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विद्युत चालक

विद्युत चालक (electrical conductors) वे पदार्थ है जिनसे होकर विद्युत धारा सरलता से प्रवाहित होती हैं। ताँबा, अलुमिनियम, जस्ता, सोना, चाँदी आदि विद्युत चालक हैं। .

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विद्युत चालकता

पदार्थों द्वारा विद्युत धारा संचालित करने की क्षमता के माप को विद्युत चालकता (Electrical conductivity) या विशिष्ट चालकता (specific conductance) कहते हैं। जब किसी पदार्थ से बने किसी 'चालक' के दो सिरों के बीच विभवान्तर आरोपित किया जाता है तो इसमें विद्यमान घूम सकने योग्य आवेश प्रवाहित होने लगते हैं जिसे विद्युत धारा कहते हैं। आंकिक रूप से धारा घनत्व \mathbf तथा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता \mathbf के अनुपात को चालकता (σ) कहते हैं। अर्थात - विद्युत चालकता के व्युत्क्रम (reciprocal) राशि को विद्युत प्रतिरोधकता (ρ) कहते हैं जिसकी SI इकाई सिमेन्स प्रति मीटर (S·m-1) होती है। विद्युत चालकता के आधार पर पदार्थों को कुचालक, अर्धचालक, सुचालक तथा अतिचालक आदि कई वर्गों में बांटा जाता है जिनका अपना-अपना महत्व एवं उपयोग होता है चालकता ___(Conductance) जिस प्रकार प्रतिरोध, विधुत धारा प्रवाह का विरोध करता है उसी प्रकार चालकता प्रतिरोध के प्रभाव के विपरीत है, परंतु चालकता विधुत धारा प्रवाह को सुगमता प्रदान करती है। .

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विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

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विद्युत अभियान्त्रिकी

विद्युत अभियन्ता, वैद्युत-शक्ति-तन्त्र का डिजाइन करते हैं; और … … जटिल एलेक्ट्रानिक तन्त्रों का डिजाइन भी करते हैं। नियंत्रण तंत्र आधुनिक सभ्यता का अभिन्न अंग है। यह विद्युत अभियान्त्रिकी का भी प्रमुख विषय है। विद्युत अभियान्त्रिकी विद्युत और विद्युतीय तरंग, उनके उपयोग और उनसे जुड़ी तमाम तकनीकी और विज्ञान का अध्ययन और कार्य है। प्रायः इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स भी शामिल रहता है। इसमे मुख्य रूप से विद्युत मशीनों की कार्य विधि एवं डिजाइन; विद्युत उर्जा का उत्पादन, संचरण, वितरण, उपयोग; पावर एलेक्ट्रानिक्स; नियन्त्रण तन्त्र; तथा एलेक्ट्रानिक्स का अध्ययन किया जाता है। एक अलग व्यवसाय के रूप में वैद्युत अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में हुआ जब विद्युत शक्ति का व्यावसायिक उपयोग होना आरम्भ हुआ। आजकल वैद्युत अभियांत्रिकी के अनेकों उपक्षेत्र हो गये हैं। .

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काग़ज़

कागज का पुलिन्दा चीन में कागज का निर्माण कागज एक पतला पदार्थ है जिस पर लिखा या प्रिन्ट किया जाता है। कागज मुख्य रूप से लिखने और छपाई के लिए प्रयुक्त होता है। यह वस्तुओं की पैकेजिंग करने के काम भी आता है। मानव सभ्यता के विकास में कागज का बहुत बड़ा योगदान है। गीले तन्तुओं (फाइबर्स्) को दबाकर एवं तत्पश्चात सुखाकर कागज बनाया जाता है। ये तन्तु प्राय: सेलुलोज की लुगदी (पल्प) होते हैं जो लकड़ी, घास, बांस, या चिथड़ों से बनाये जाते हैं। पौधों में सेल्यूलोस नामक एक कार्बोहाइड्रेट होता है। पौधों की कोशिकाओं की भित्ति सेल्यूलोज की ही बनी होतीं है। अत: सेल्यूलोस पौधों के पंजर का मुख्य पदार्थ है। सेल्यूलोस के रेशों को परस्पर जुटाकर एकसम पतली चद्दर के रूप में जो वस्तु बनाई जाती है उसे कागज कहते हैं। कोई भी पौधा या पदार्थ, जिसमें सेल्यूलोस अच्छी मात्रा में हो, कागज बनाने के लिए उपयुक्त हो सकता है। रुई लगभग शुद्ध सेल्यूलोस है, किंतु कागज बनाने में इसका उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि यह महँगी होती है और मुख्य रूप से कपड़ा बनाने के काम में आती है। परस्पर जुटकर चद्दर के रूप में हो सकने का गुण सेल्यूलोस के रेशों में ही होता है, इस कारण कागज केवल इसी से बनाया जा सकता है। रेशम और ऊन के रेशों में इस प्रकार परस्पर जुटने का गुण न होने के कारण ये कागज बनाने के काम में नहीं आ सकते। जितना अधिक शुद्ध सेल्यूलोस होता है, कागज भी उतना ही स्वच्छ और सुंदर बनता है। कपड़ों के चिथड़े तथा कागज की रद्दी में लगभग शतप्रतिशत सेल्यूलोस होता है, अत: इनसे कागज सरलता से और अच्छा बनता है। इतिहासज्ञों का ऐसा अनुमान है कि पहला कागज कपड़ों के चिथड़ों से ही चीन में बना था। पौधों में सेल्यूलोस के साथ अन्य कई पदार्थ मिले रहते हैं, जिनमें लिग्निन और पेक्टिन पर्याप्त मात्रा में तथा खनिज लवण, वसा और रंग पदार्थ सूक्ष्म मात्राओं में रहते हैं। इन पदार्थों को जब तक पर्याप्त अंशतक निकालकर सूल्यूलोस को पृथक रूप में नहीं प्राप्त किया जाता तब तक सेल्यूलोस से अच्छा कागज नहीं बनाया जा सकता। लिग्निन का निकालना विशेष आवश्यक होता है। यदि लिग्निन की पर्याप्त मात्रा में सेल्यूलोस में विद्यमान रहती है तो सेल्यूलोस के रेशे परस्पर प्राप्त करना कठिन होता है। आरंभ में जब तक सेल्यूलोस को पौधों से शुद्ध रूप में प्राप्त करने की कोई अच्छी विधि ज्ञात नहीं हो सकी थी, कागज मुख्य रूप से फटे सूती कपड़ों से ही बनाया जाता था। चिथड़ों तथा कागज की रद्दी से यद्यपि कागज बहुत सरलता से और उत्तम कोटि का बनता है, तथापि इनकी इतनी मात्रा का मिल सकना संभव नहीं है कि कागज़ की हामरी पूरी आवश्यकता इनसे बनाए गए कागज से पूरी हो सके। आजकल कागज बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का उपयोग मुख्य रूप से होता है: चिथड़े, कागज की रद्दी, बाँस, विभिन्न पेड़ों की लकड़ी, जैसे स्प्रूस और चीड़, तथा विविध घासें जैसे सबई और एस्पार्टो। भारत में बाँस और सबई घास का उपयोग कागज बनाने में मुख्य रूप से होता है। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

विद्युत इंसुलेटर, कुचालक

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