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विद्युतचिकित्सा और निदान

सूची विद्युतचिकित्सा और निदान

रोगी के सिर पर पर दिष्ट धारा लगाने से चेहरे की मांसपेशियों का सिकुड़न कुछ रोगों के निदान और चिकित्सा में विद्युत् का उपयोग होता है। यह समझना भूल है कि सभी रोगों के निदान और चिकित्सा विद्युत से हो सकते है। विद्युत दिष्ट या गैलवेनिक विद्युत्‌ धारा (Direct or Galvanic Current), फैराडिक विद्युत धारा (Faradic Current), ज्यावक्रीय विद्युतधारा (Sinusoidal, Current), तथा उच्च आवृत्ति धारा (High Frequency Current), या डायाथर्मी (Diathermy) के रूप में हो सकती है। .

5 संबंधों: चिकित्सा, ताम्र, दिष्टधारा, निदान, रोग

चिकित्सा

संकीर्ण अर्थ में, रोगों से आक्रांत होने पर रोगों से मुक्त होने के लिये जो उपचार किया जाता है वह चिकित्सा (Therapy) कहलाता है। पर व्यापक अर्थ में वे सभी उपचार 'चिकित्सा' के अंतर्गत आ जाते हैं जिनसे स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों का निवारण होता है। .

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ताम्र

तांबा (ताम्र) एक भौतिक तत्त्व है। इसका संकेत Cu (अंग्रेज़ी - Copper) है। इसकी परमाणु संख्या 29 और परमाणु भार 63.5 है। यह एक तन्य धातु है जिसका प्रयोग विद्युत के चालक के रूप में प्रधानता से किया जाता है। मानव सभ्यता के इतिहास में तांबे का एक प्रमुख स्थान है क्योंकि प्राचीन काल में मानव द्वारा सबसे पहले प्रयुक्त धातुओं और मिश्रधातुओं में तांबा और कांसे (जो कि तांबे और टिन से मिलकर बनता है) का नाम आता है। .

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दिष्टधारा

दिष्ट धारा वह धारा हैं जो सदैव एक ही दिशा में बहती हैं व जिसकी ध्रुवीयता नियत रहती हैं। इस प्रकार की धारा में +ve और -ve दोनों ध्रुव होते हैं। इसकी तुलना हम डिजिटल सर्किट से कर सकते हैं। कोई भी इलेक्ट्रोनिक कॉम्पोनेन्ट केवल दिष्ट धारा से ही चल सकती है। चूँकि इसमें सिर्फ दो परिमाण होते हैं इसलिए सारे डिजिटल सर्किट केवल इसी धारा पर चलते हैं न की प्रत्यावर्ती धारा पर.

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निदान

निदान की एक महत्वपूर्ण पद्धति: रेडियोग्राफी किसी भी समस्या के बाहरी लक्षणों से आरम्भ करके उसके (उत्पत्ति के) मूल कारण का ज्ञान करना निदान (Diagnosis / डायग्नोसिस्) कहलाता है। निदान की विधि 'विलोपन' (एलिमिनेशन) पर आधारित है। निदान शब्द का प्रयोग सभी क्षेत्रों में होता है: रोगोपचार (मेडिसिन), विज्ञान, प्रौद्योगिकी, न्याय, व्यापार, एवं प्रबन्धन आदि में। निदान का बहुत महत्व है। जब तक रोग की सटीक पहचान न हो जाए, तब तक सही दिशा में उपचार असंभव है। इसलिए पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में निदान अध्याय बहुत वृहद होता था और उपचार अध्याय सीमित। कारण यह है कि यदि निदान सटीक हो गया तो उपचार भी सटीक होगा। यह सही है कि अनेक रोग स्वयमेव अच्छे हो जाते हैं और प्रकृति की निवारक शक्ति को किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं होती, परंतु अनेक रोग ऐसे भी होते हैं जिनमें प्रकृति असमर्थ हो जाती है और तब चिकित्सा द्वारा सहायता की आवश्यकता होती है। सही और सटीक चिकित्सा के लिए आवश्यक है कि निदान सही हो। सही निदान का अर्थ यह है कि कष्टदायक लक्षणों का आधारभूत कारण और उसके द्वारा उत्पन्न विकृति का सही रूप समझा जाए। .

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रोग

पहले मोटापा को 'बड़प्पन' का सूचक माना जाता था। आजकल प्राय: इसे रोग माना जाता है। रोग अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार की कमी होना 'रोग' कहलाता है। किन्तु रोग की परिभाषा करना उतना ही कठिन है जितना 'स्वास्थ्य' को परिभाषित करना। .

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