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विदेह कैवल्य

सूची विदेह कैवल्य

विदेह कैवल्य को विदेहमुक्ति या जीवन्मुक्ति भी कहा है। जीवन्मुक्त का अर्थ है जिसने इसी जीवन में मुक्ति प्राप्त की हो। वेदान्त दर्शन के अनुसार यथार्थत: आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है। ब्रह्म के साक्षात्कार से आत्मा परब्रह्म में सम्यक् रूप से प्रतिष्ठित होकर देह आदि के विकार से शून्य, विशुद्ध रूप को प्राप्त करती है। उस समय मुक्त पुरुष परमात्मा से अभिन्न रूप में अपना अनुभव करते हैं और उन्हें सभी के परमात्म स्वरूप में दर्शन होते हैं। विदेहमुक्त पुरुषों के बंधनमुक्त होने के कारण ब्रह्म से भिन्न बुद्धि उनमें स्फुरित नहीं होती, जिससे ब्रह्मरूप में ही उन्हें सबके दर्शन होते हैं। विदेह मुक्तावस्था में जीवात्मा केवल चैतन्य मात्र स्वरूप ब्रह्म को प्राप्त होकर केवल चैतन्य रूप में आविर्भूत होती है इसलिए उसे 'प्रज्ञानधमन' कहा है। चिन्मात्र होने पर भी विदेह मुक्तावस्था को सत्यसंकल्प आदि ऐश्वर्य से विशिष्ट माना गया है। इसीलिए कहा है कि मुक्त पुरुष यदि पितृलोक दर्शन की इच्छा करें तो उनके संकल्पमात्र से उनके समीप पितृगण का आगमन हो सकता है। मुक्त पुरुषों के शरीर और इंद्रिय आदि नहीं होते, अतएव प्रिय और अप्रिय उन्हें स्पर्श नहीं करते। परम ज्योति स्वरूप को प्राप्त तथा संसार से मुक्त ऐसे पुरुषों का संसार में पुनरागमन नहीं होता। वे स्वाभाविक, अचिंत्य, अनंत गुणों के सागर और सर्वविभूति से संपन्न ब्रह्म के स्वरूप में अपने आपका अनुभव करते रहते हैं। अंतिम उपाधि नष्ट होने पर जब ब्रह्मज्ञ पुरुषों की देह का अंत हो जाता है तो ब्रह्मरंध्र को भेदकर वे इस देह से सूक्ष्म शरीर द्वारा निर्गत होते हैं और अचिरादि मार्ग का अवलंबन कर ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं। यहाँ उनके सूक्ष्म देह के अंतर्गत इंद्रि आदि ब्रह्म रूप में समता को प्राप्त होते हैं, और अपने चित् रूप में अवस्थित होकर, ब्रह्म का अंग होने के कारण, वे सर्वत्र अभेददर्शी और ब्रह्मदर्शी हो जाते हैं। ध्यानमात्र से ही उनमें सब विषयों का ज्ञान उत्पन्न होता है और उनकी इच्छा अप्रतिहत होती है। वे चाहें तो देह धारण भी कर सकते हैं, किंतु ब्रह्म से अभिन्न हो जाने के कारण जगत् की सृष्टि के प्रपंच आदि के प्रति उनकी इच्छा नहीं रहती। श्रेणी:हिन्दू दर्शन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

3 संबंधों: ब्रह्म, वेदान्त दर्शन, आत्मा

ब्रह्म

ब्रह्म (संस्कृत: ब्रह्मन्) हिन्दू (वेद परम्परा, वेदान्त और उपनिषद) दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो दुनिया की आत्मा है। वो विश्व का कारण है, जिससे विश्व की उत्पत्ति होती है, जिसमें विश्व आधारित होता है और अन्त में जिसमें विलीन हो जाता है। वो एक और अद्वितीय है। वो स्वयं ही परमज्ञान है, और प्रकाश-स्त्रोत की तरह रोशन है। वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है। ब्रह्म सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। ब्रम्ह हिन्दी में ब्रह्म का ग़लत उच्चारण और लिखावट है। .

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वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

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आत्मा

आत्मा या आत्मन् पद भारतीय दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों (विचार) में से एक है। यह उपनिषदों के मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में आता है। जहाँ इससे अभिप्राय व्यक्ति में अन्तर्निहित उस मूलभूत सत् से किया गया है जो कि शाश्वत तत्त्व है तथा मृत्यु के पश्चात् भी जिसका विनाश नहीं होता। आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गीला नहीं कर सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती। जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है। .

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विदेहमुक्ति

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