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विटामिन बी समूह

सूची विटामिन बी समूह

विटामिन बी समूह या काम्पलेक्स शरीर को जीवन शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगो का गढ़ बन जता है। विटामिन बी के कई विभागो की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स कहलाते है। हालांकि सभी विभाग एक दुसरे के अभिन्न अंग है, लेकिन फिर भी सभी आपस मे भिन्नता रखते है। विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है। उससे अधिक ताप यह सहन नही कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी मे घुलनशील है। इसक प्रमुख कार्य स्नायु को स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन मे सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवन शक्ति देता है। खाया-पिया अंग लगाने मे सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थो के संयोग से यह यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नही होता। विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग.

10 संबंधों: नाइयासिन, नियासिन, बायोटिन, रिबोफ्लेविन, विटामिन ए, विटामिन बी१, विटामिन बी१२, विटामिन बी४, विटामिन बी६, खमीर

नाइयासिन

नाइयासिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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नियासिन

नियासिन एक कार्बनिक यौगिक है। श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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बायोटिन

बायोटिन एक कार्बनिक यौगिक है। इसे विटामिन बी7 भी कहा जाता है।बायोटिन एक पानी में घुलनशील बी-विटामिन है, जिसे विटामिन बी 7 भी कहा जाता है और जिसे पहले विटामिन एच या कॉनेज़ियम आर के रूप में जाना जाता था। यह एक टिटरहाइड्रथोथेनिफ़ी अंगूठी के साथ जुड़े एक यूरिया रिंग से बना है एक वैलेरिक एसिड रिट्टेस्टेंट टैटरहाइड्रथोथेनिफ़ी अंगूठी के कार्बन परमाणुओं में से एक से जुड़ा हुआ है। बायोटिन कार्बोक्ज़ीलस एंजाइम के लिए एक सहज पदार्थ है, फैटी एसिड, आइसोल्यूसीन, और वेलिन के संश्लेषण में शामिल है, और ग्लूकोनेोजेनेसिस में। बायोटिन की कमी बायोटिन चयापचय को प्रभावित करने वाले एक या अधिक जन्मजात आनुवंशिक विकारों के अपर्याप्त आहार सेवन या विरासत के कारण हो सकती है। उप-क्लिनिक की कमी आम तौर पर चेहरे पर हल्के लक्षण, जैसे कि बाल पतला हो जाना या त्वचा के धब्बे के कारण हो सकता है। बायोटिनिडेस की कमी के लिए नवजात छाननी 1 9 84 में संयुक्त राज्य अमेरिका में शुरू हुई और आज कई देशों ने जन्म पर इस विकार के लिए परीक्षण किया। 1 9 84 से पहले पैदा हुए व्यक्तियों को स्क्रीनिंग की संभावना नहीं है, इस प्रकार विकार का असली प्रसार अज्ञात है। बायोटिन में असामान्य संरचना है (उपरोक्त आंकड़ा देखें), जिसमें दो रिंग एक-दूसरे के माध्यम से एक साथ जुड़े हुए हैं। दो अंगूठियां यूरीडो और थियोफेंए मोएटिज हैं बायोटिन एक हेरोर्काइक्लिक, एस-युक्त मोनोकार्बैक्जिलिक एसिड है। यह दो पूर्ववर्ती, अलैनिन और पीमेलोएल- कोए तीन एंजाइमों के माध्यम से किया जाता है। 8-एमिनो -7-ऑक्सोपेलार्गोनिक एसिड सिंथेस एक पाइरिडोक्सल 5'-फॉस्फेट एंजाइम है। पमेलाइल-सीओए, एक संशोधित फैटी एसिड मार्ग द्वारा निर्मित किया जा सकता है जिसमें स्टार्टर के रूप में एक मैलोनील थियोस्टर शामिल होता है। 7,8 डाइमिनोपेलोर्गोनिक एसिड (डीएपीए) एमिनोट्रांसेफेरेज एस-एडेनोसिल मेथियोनीन (एसएएम) का प्रयोग एनएच 2 दाता के रूप में असामान्य है। डीथीबायोटिन सिंथेटेट एटीपी से सक्रिय डीएपीए कारबैमेट के माध्यम से यूरिया रिंग के गठन का उत्प्रेरित करता है। बायोटिन सिंथेस ने सैम को डीओकाइडेनोसिल रैडिकल में साफ़ कर दिया- डेथियोबायोटिन पर बनने वाला पहला क्रांतिकारी सल्फर दाता द्वारा फंस गया, जो एंजाइम में निहित लोहा-सल्फर (फे-एस) केंद्र था / श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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रिबोफ्लेविन

रिबोफ्लेविन (Riboflavin) जीवित ऊतक के एक बुनियादी घटक है और प्रोटीन चयापचय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि आप इस प्रपत्र या नहीं कर सकते नई क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत वाले विटामिन याद आती है। यह भी महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह प्रोटीन एंजाइमों कि जिगर में विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित फार्म के साथ प्रतिक्रिया.

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विटामिन ए

पोषक ए आंखों से देखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। साथ ही यह बीमारी से बचने के काम आता है। यह पोषक शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि त्वचा, बाल, नाखून, ग्रन्थि, दांत, मसूडा और हड्डी। सबसे महत्वपूर्ण स्थिती जो कि सिर्फ पोषक ए के अभाव में होता है, वह है अंधेरे में कम दिखाई देना, जिसे रतौंधी भी कहते हैं। इसके साथ आंखों में आंसू के कमी से आंख सूख जाते हैं और उसमें घाव भी हो सकता है। बच्चों में पोषक ए के अभाव में विकास की गति धीमि हो जाती है, जिससे कि उनके कद पर असर कर सकता है। त्वचा और बालों में भी सूखापन हो जाता है और उनमें से चमक चला जाता है। संक्रमित बीमारी होने का संभावना बढ जाता है। अत्याधिक पोषक ए लेने से शरीर पर अनेक दुर्प्रभाव हो सकते हैं जैसे कि सिरदर्द, देखने में दिक्कत, थकावट, दस्त, बाल गिरना, त्वचा खराब हो जाना, हड्डी और जोडों में दर्द, कलेजा को नुकसान पहुँचना और लडकियों में असमय मासिक धर्म। गर्भ के दौरान खास सावधानी – अत्याधिक पोषक ए, पेट में पलते बच्चे को नुकसान पहुँचा सकता है। .

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विटामिन बी१

विटामिन बी१ एक विटामिन है। विटामिन “बी1” का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है। वयस्को को प्रतिदिन विटामिन “बी1” की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है। गर्भवती स्त्रियो को संपूर्ण काल तक विटामिन “बी1” की 5 मिलीग्राम आवश्यक होती है। आवश्यकता से अधिक हो जाने पर विटामिन “बी1” मूत्र से बाहर हो जाता है। आयु बढ़ाने के लिए विटामिन “बी1” का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है अतः इसलिए इसको वैज्ञानिक बेरी-बेरी विटामिन भी कहते है। यदि भोजन मे विटामिन “बी1” की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का संपूर्ण प्रयोग कर पाने मे समर्थ नही हो पता। इससे एक विषैल एसिड जमा होकर रक्त मे मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग मे रोगी की मांसपेशियो को जहा भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शुन्यता का आभास होता है। वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन “बी1” 900 युनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन “बी1” मूलांकुरो मे अधिक पाया जाता है। दूध पीते बच्चो का विटामिन “बी1” की कमी से कै (उलटी) और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते है। विटामिन “बी1” निशास्ता युक्त भोजन को पचाने मे सहयोग करता है। विटामिन “बी1” की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्रदय और मस्तिष्क मे कमजोरी तथा अन्य अनेक दोष हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पाचनांगो को भारी हानि पहुंचती है जो पहले रोगी को समझ मे नही आती लेकिन बाद मे जब उसके भयंकर परिणाम सामने आते है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और सामने मृत्यु का संकट आ खड़ा होता है। कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का शरीर मे पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है। जब शरीर मे पर्याप्त मात्रा मे विटामिन “बी1” हाजिर हो। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अंदर नही संजो पाता है। कठोर परिश्रम करने वाले लोगो का सामान्य मनुष्यो की अपेक्षा विटामिन “बी1” की मात्रा अधिक आवश्यक होती है। विटामिन “बी1” की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है। विटामिन “बी1” की कमी का रोगी अक्सर अजीर्ण का रोगी रहता है। बेरी-बेरी रोग विशेष रूप से उन लोगो को होता है जो मशीन से पिसा हुआ गेहुं तथा मशीन से पालिश किया हुआ चावल ज्यादा मात्रा मे खाते है। बेरी- बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र। आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियो की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उसका ह्रदय कमजोर हो जाता है। शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, कृषकाय, हीन, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है। कभी-कभी, किसी-किसी रोगी मे शुष्क और आर्द्र दोनो प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते है। शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुकत रोगी को ह्रदय संबंधी अनेक विकार होते है। उनका ह्रदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है। शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी मे एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदरी जान का खतरा पैदा कर सकती है। विटामिन “बी1” की कमी से वात संस्थान प्रभावित होता है। इसीलिए वात नाड़ियो मे वेदना होती है। गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन “बी1” की कमी का सूचक कहा जा सकता है। गर्भावस्था की विषममयता विटामिन “बी1” की कमी से होती है अतः विटामिन “बी1” की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषममयता नष्ट हो जाती है। अनेक चर्म रोग विटामिन “बी1” की कमी की वजह से भोगने पड़ते है। विटामिन “बी1” की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बंद हो जाना है। ध्यान रहे बेरी-बेरी रोग मारक भी सिद्ध हो सकता है। वनस्पतियो, पत्तेदार शाक तथा खमीर मे विटामिन “बी1” अधिक मात्रा मे विद्यमान रहता है। पाण्डु रोग के पीछे भी विटामिन “बी1” की कमी होती है। विटामिन “बी1” की कमी से पतले वस्तु वमन तथा मितली जैसे उपद्रव हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पर्यूदर्या मे जल भर जाता है। मोटे मनुष्यो को विटामिन “बी1” की अधिक आवश्यकता होती है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्र्दय बड़ा हो जाना मृत्यु का सूचक कहलाता है। सुखे किण्व मे विटामिन “बी1” सबसे अधिक 9000 अ. ई. युनिट होता है। मटर मे विटामिन “बी1” सबसे कम 100 युनिट अ. ई. होता है। विटामिन “बी1” की कमी से फेफ्ड़ो की झिल्ली मे तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डाकोश मे भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है। आंतड़ियो की मांसपेशियो को शक्तिशाली बनाने मे इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त मात्रा शरीर मे रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त भाग से आंतो के संक्रमण सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतो की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नही कर पाते है। यह विटामिन यकृत की कार्य पणाली को स्वस्थ रखता है। यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर मे विटामिन “बी1” की पर्याप्त मात्रा विद्यमान है। जो लोग हरी साग-सब्जी नही खाते वे निश्चय ही विटामिन “बी1” की कमी के शिकार हो जाते है। मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रो को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे है। यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग मे प्रोटीन को यथाचित मात्रा मे संतुलित रखता है। .

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विटामिन बी१२

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में विभिन विटामिन्स, मिनरल्स, प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स और फाइबर इत्यादि की आवश्यकता होती हैं। शरीर के लिए ज्यादातर आवश्यक तत्वों का पोषण आहार पदार्थो से हो जाता हैं। एक विटामिन ऐसा है जो शरीर के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है परन्तु आहार तत्वों में वह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने से ज्यादातर भारतीय लोगो में इस विटामिन की कमी पायी जाती हैं। इस विटामिन का नाम हैं - विटामिन B12 विटामिन B12 को Cobalamin भी कहा जाता हैं। यह एकलौता ऐसा विटामिन है जिसमे Cobalt धातु पाया जाता हैं। यह शरीर के स्वास्थ्य और संतुलित कार्य प्रणाली के लिए बेहद आवश्यक विटामिन हैं। विटामिन B12 की कमी से शरीर को क्या नुकसान होता हैं और किन खाद्य पदार्थो में यह मिलता हैं इसकी अधिक जानकारी निचे दी गयी हैं: .

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विटामिन बी४

विटामिन बी४ एक कार्बनिक यौगिक है। श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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विटामिन बी६

विटामिन बी६ एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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खमीर

खमीर खमीर एक कवक है। यह शर्करायुक्त कार्बनिक पदार्थ में बहुतायत से पाये जाने वाला विशेष प्रकार का कवक है। यह फूल विहीन पौधा है। शरीर मूल, तना एवं पत्ति में विभक्त नहीं होता है। इसकी लगभग १५०० जातियाँ हैं।Kurtzman, C.P., Fell, J.W. 2006.

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विटामिन बी

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