लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

विज्ञापन का इतिहास

सूची विज्ञापन का इतिहास

विश्व फलक पर आज विज्ञापन का जो बहुआयामी स्वरुप विकसित हुआ है, उसके पीछे विज्ञापन की एक लंबी कहानी है। उसकी पृष्ठभूमि विश्व के प्राचीन इतिहास में समाई हुई है। विज्ञापन एक प्रकार का संप्रेषण है, जो संदेश ग्रहणकर्ता पर संदेश की प्रभावी प्रतिक्रिया से प्रेरित होता है। निश्चय ही मानव सभ्यता के उदय के साथ ही मानवीय संप्रेषण की आवश्यकता के लिए विज्ञापन का अस्तित्व रहा होगा। मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरण में जनता को अनुशासित, नियंत्रित करने तथा जनमत को स्वपक्ष में प्रभावित करने के लिए जो प्रयास किए जाते थे, उनमें विज्ञापन की पृष्ठभूमि निहित है। यह बात और है कि उस समय के विज्ञापन का स्वरुप आज के ग्लैमरस विज्ञापनों से बिलकुल भिन्न था। माना जाता है कि संसार का पहला विज्ञापन भारत में रचा गया। आज से लगभग डेढ हजार वर्ष पूर्व यह विज्ञापन भारतीय बुनकर व्यापारी संघ दवारा प्राचीन गुप्तकालीन दशपुर (संप्रति:मध्य प्रदेश) में स्थित एक सूर्य-मंदिर की दीवारों में लगवाया गया था। विश्व के प्रसिध्द इतिहासज्ञों और पुरातत्ववेताओं को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि प्राचीनकाल में शासक प्रजा को जिन नियमों से अनुशासित करना चाहते थे, उन नियमों को प्रजा की जानकारी के लिए सार्वजनिक स्थानों पर भिक्ति, पटूट आदि पर खुदवा दिया जाता था। धार्मिक सूचनाओं, राजाज्ञाओं और सरकारी आदेशों को शिलालेखों पर विज्ञापन के रूप में उत्कीर्ण कराने की प्रथा भारतीय सम्राट अशोक के समय में विघमान थी। सम्राटू अशोक ने शिलालेखों पर अनेक सूचनाएँ उत्कीर्ण कराई। इन्हीं सूचनाओं में जगदीश्वर चतुर्वेदी विज्ञापन की पृष्ठभूमि तलाशते हैं-"प्राचीन भारतीय समाज में विज्ञापन का लक्ष्य धार्मिक विचारों का प्रचार करना था। सम्राटू अशोक के स्तंभों और भिक्ति संदेशों, गुफा चित्रों आदि को 'आउटडोर' विज्ञापन का पूर्वज कह सकते हैं। 'इंडोर विजुअल' संप्रेषण कला के पूर्वज के रूप में अजंता, साँची और अमरावती की कलाओं को पढा जा सकता है।" विजय कुलश्रेष्ठ और प्रतुल अथइया राजस्थान पत्रिका के हवाले से लिखते हैं कि आज से तीन हजार वर्ष पूर्व मिस्त्र में विज्ञापनों का उपयोग श्रीमंतों के घरों से भागे हुए दासों को पकड्नेवालों के लिए उचित पुरस्कार देने की घोषणा के लिए किया जाता था। ये विज्ञापन उस काल में श्रीपत्र या भोजपत्र (पेपरिस) पर लिखे जाते थे। ढाई ह्जार वर्ष पूर्व मकान किराए पर दिए जाने के विज्ञापन का उल्लेख भी मिलता है-"आगामी १ जुलाई से आरियोपोलियन हवेली में कई दुकानें भाडे पर दी जाएँगी। दुकानों में ऊपर रहने के कमरे हैं। दूसरी मंजिल के कमरे राजाओं के रहने योग्य हैं-अपने निजी मकान के समान। मेरियस के क्रीतदास प्राउमस से आवेदन कीजिए।" पहले लिखित विज्ञापन के बारे में यदयपि प्रामाणिक जानकारी नहीं है, लेकिन विज्ञापनों के प्रारंभिक स्वरुप की चर्चा में इजिप्ट में थीब्ज के खंदाई के दौरान मिली पांडुलिपि के अवशेष, जो कि ३००० (तीन ह्जार) वर्ष पहले लिखी गई थी, को उदूधृत किया जाता है। इसमें शैवाल से तैयार किए गए कागज पर विज्ञापन के रूप में शीम नामक एक भगोडे दास को लौटानेवाले को एक सोने का सिक्का इनाम में दिए जाने की घोषणा की गई है। छपाई के आविष्कार से पहले प्राचीनकाल में विज्ञापनों के लिए कई अन्य रास्ते तलाश करते थे। पुराताक्त्विक खोजों और इतिहास में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार ग्रीस, रोम और चीन में विज्ञापन के लिए चित्रलिपि का प्रयोग किया जाता था। उत्पादक अपनी वस्तुओं पर कोई चिह्र, चित्र या हस्ताक्षर अंकित कर देते थे, ताकि उनके उत्पाद को पहचानने में ग्राहकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसी तरह ग्रीस और रोम के व्यापारी अपनी दुकानों के प्रवेश-द्वार पर माल के चिह्र इस रूप में चित्रित करते थे, जिससे उपभोक्ताओं को दुकान में उपलब्ध वस्तुओं की जानकारी मिल सके। इनसे यह पता चल जाता था कि दुकान खाद्य सामग्री की है, बरतनों की है, कपडों की है अथवा किन्हीं अन्य वस्तुओं की। डिक सटफेन के अनुसार-"बुनकरों का चक्र बुनकर को इंगित करता था। यदि एक बोर्ड दरवाजे के आगे टँगा है तो वह किसी होटल का संकेत देता था। यदि एक स्वर्णिम हाथ हथौडा लिये हुए दरशाया जाता, तो उसका अर्थ स्वर्णकार से लिया जाता था। प्रत्येक छोटे-से-छोटे दुकानदार इस प्रकार अपनी दुकान की दीवारों पर निर्मित करते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह दुकान डबलरोटी,शराब, प्लेट-प्याले अथवा किसी अन्य वस्तु की है।" मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ विज्ञापन के स्वरुप में भी बदलाव आता चला गया है। व्यापारिक चिह्रों को लकडी, धातु अथवा पत्थर पर चित्रित कर सूचना-पटूट का निर्माण किया गया। आज वाहनों के पीछे बस स्टॉप आदि पर जो होर्डिंग या नियोग साइन दिखाई पडते है, वे प्राचीनकाल में मौजूद सूचना-पटूट का विकसित स्वरुप हैं। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार विज्ञापन के प्रारंभिक चरण में विक्रेता ऊँची आवाज में बडे रोचक और नाटकीय अंदाज में अपने माल की खूबियों को वर्णित करता था। यानी गलियों और सडकों पर फेरीवाले आवाज लगाते हुए अपनी वस्तुओं का विज्ञापित करते थे। बाद में चना बेचनेवालों के ये बोल बहुत चर्चित भी हुए-'बाबू मैं लाया मजेदार चना जोर गरम, मेरा चना बना है आला' अनोखे स्वरों दवारा अपने माल को विज्ञापित कर खरीदारों को आकर्षित करने की यह कला आज भी बनी हुई है। गाँवों, कस्बों और शहरों की गलियों में ठेले और साइकिल पर अपना सामान बेचनेवाले छोटे-छोटे विक्रेता इसी कला का सहारा लेते हैं। सही अर्थों में विज्ञापन के इतिहास का प्रारंभ पंद्रहवीं शताब्दी में मुद्रण कला के आविष्कार के साथ हुआ। नए विचारों के प्रवाह को जन-जन तक पहुँचाने के लिए मुद्रण कला का सहारा लिया गया। यदयपि मुद्रण कला का सूत्रपात चीन में हुआ। इतिहासकार आधुनिक मुद्रण कला का श्रेय पश्चिमी जर्मनी के गुटनबर्ग को देते हैं। गुटनबर्ग ने ४२ पंक्तियों की विश्व की पहली मुद्रित पुस्तक 'बाइबिल' का प्रकाशन किया। मुद्रण कला के आविष्कार और विस्तार के साथ ही यातायात व संचार के विभिन्न साधन भी उपलब्ध हुए। जनमत को प्रभावित करने के लिए मुद्रण कला का व्यावहारिक रूप सामने आया। पहला मुद्रित विज्ञापन कौन सा है इस बारे में मतभेद हैं। कुछ लोग मानते हैं कि सन १४७३ ई. में इंग्लैंड में विलियम कैक्टसन ने सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा में पहला विज्ञापन एक परचे के रूप में प्रकाशित किया। लेकिन इतिहासकार फेंक प्रेस्वी के अनुसार-'मक्यूरियम ब्रिटानिक्स' पुस्तक में एक विज्ञापित घोषणा के रूप में विज्ञापन का पहला रूप सामने आया। हेनरी सैंपसन के अनुसार-सन १६५० में सर्वप्रथम विज्ञापन का स्वरुप एक पुस्तक में देखने को मिला, जिसमें चोरी किए गए बारह घोडों को लौटाने पर पुरस्कार की घोषणा विज्ञप्ति के रूप में छपी थी। विज्ञापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इंग्लैंड के समाचार-पत्रों में विज्ञापन के रूप में प्रकाशित घोषणाओं में दिखाई देती है। उसके बाद चाय, काँफी, चाँकलेट, किताब आदि के विज्ञापनों के साथ-साथ खोई-पाई वस्तुओं के विज्ञापन प्रकाशन की प्रथा चल पडी। अमेरिका में विज्ञापन का विकास बडी तीव्र गति से हुआ। विजय कुलश्रेष्ठ और प्रतुल अथइया के अनुसार-सन १८७० में अमेरिका में पहला विज्ञापन प्रकाशित हुआ था, जो उस काल की बीज कंपनियों की पहल कहा जाता है; लेकिन प्राप्त जानकारियों के अनुसार अमेरिका में सन १८४१ में पहली विज्ञापन एजेंसी वाल्नी पाँल्मर स्थापित हो चुकी थी। अमेरिका का पहला विज्ञापन ८ मई, १७०४ में 'बोस्टन न्यूज लैटर' में प्रकाशित हुआ। धीरे-धीरे सचित्र विज्ञापन की प्रथा भी शुरु हो गई। विज्ञापन में आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा। औदयोगिक क्रांति के फलस्वरुप विज्ञापन की दुनिया में तेजी से बदलाव आने लगा। आज उच्च प्रौदयोगिकी के युग में विज्ञापन संसार को वैविध्यपूर्ण बना दिया है। विज्ञापन उदयोग एक आकर्षक उदयोग बन चुका है। श्रेणी:विज्ञापन श्रेणी:विकिपरियोजना क्राइस्ट विश्वविद्यालय २०१६.

1 संबंध: विज्ञापन

विज्ञापन

400000000 ही विज्ञापन (टाइम्स स्क्वायर) किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन (Advertising) कहलाता है। विज्ञापन विक्रय कला का एक नियंत्रित जनसंचार माध्यम है जिसके द्वारा उपभोक्ता को दृश्य एवं श्रव्य सूचना इस उद्देश्य से प्रदान की जाती है कि वह विज्ञापनकर्ता की इच्छा से विचार सहमति, कार्य अथवा व्यवहार करने लगे। औद्योगिकीकरण आज विकास का पर्याय बन गया है। उत्पादन बढ़ने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुआें को उपभोक्ता तक पहुँचाया ही नहीं जाय बल्कि उसे उस वस्तु की जानकारी की दी जाय। वस्तुतः मनुष्य को जिन वस्तुआें की आवश्यकता होती है व उन्हें तलाश ही लेता इसके ठीक विपरीत उसे जिसकी जरूरत नहीं होती वह उसके बारे में सुनकर अपना समय खराब नहीं करना चाहता। इस अर्थ में विज्ञापन वस्तुआें को ऐसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है जो यह मान चुके होते है कि उन वस्तुआें की उसे कोई जरूरत नहीं है। आशय यह कि उत्पादित वस्तु को लोकप्रिय बनाने तथा उसकी आवश्यकता महसूस कराने का कार्य विज्ञापन करता है। विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते है। वह बहुत कम बोलकर भी बहुत कुछ कह जाते है। आज विज्ञापन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। सुबह आंख खुलते ही चाय की चुस्की के साथ अखबार में सबसे पहले दृष्टि विज्ञापन पर ही जाती है। घर के बाहर पैर रखते ही हम विज्ञापन की दुनिया से घिर जाते है। चाय की दुकान से लेकर वाहनों और दिवारों तक हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देते हैं। किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाये तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है - यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते है। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाजार में आती है, उसके रूप - रंग - सरंचना व गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। जिसके कारण ही उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसलिए विज्ञापन हमारे लिए जरूरी है। जहाँ तक उपभोक्ता वस्तुओं का सवाल है, विज्ञापनों का मूल उद्देश्य ग्राहको के अवचेतन मन पर छाप छोड़ जाता है और विज्ञापन इसमें सफल भी होते है। यह 'कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना' का सा अन्दाज है। विज्ञापन सन्देश आमतौर पर प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया है और विभिन्न माध्यमों के द्वारा देखा जाता है जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी विज्ञापन, रेडियो विज्ञापन, आउटडोर विज्ञापन, ब्लॉग या वेब्साइट आदि। वाणिज्यिक विज्ञापनदाता अक्सर उपभोक्ताओं के मन में कुछ गुणों के साथ एक उत्पाद का नाम या छवि जोड़ जाते हैं जिसे हम "ब्रान्डिग" कहते है। ब्रान्डिग उत्पाद या सेवा की बिक्री बढाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। गैर-वाणिज्यिक विज्ञापनों का उपयोग राजनीतिक दल, हित समूह, धार्मिक संगठन और सरकारी एजेंसियाँ करतीं हैं। 2015 में पूरे विश्व में विज्ञापन पर कोई 529 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये जाने का अनुमान है। .

नई!!: विज्ञापन का इतिहास और विज्ञापन · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »