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विकृतिविज्ञान

सूची विकृतिविज्ञान

जिन कारणों से शरीर के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्यावस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनको हेतुकीकारक (Etiological factors) और उनके शास्त्र को हेतुविज्ञान (Etiology) कहते हैं। ये कारण अनेक हैं। इन्हें निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है.

9 संबंधों: ऊतक, धमनी, निदान, प्रयोगशाला, फुल्लन, शरीर, शिरा, सूक्ष्मदर्शी, अर्बुद

ऊतक

ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति में असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) के रूप में जाना जाता है। .

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धमनी

धमनियां वे रक्त वाहिकाएं होती हैं, जो हृदय से रक्त को आगे पहुंचाती हैं। पल्मोनरी एवं आवलनाल धमनियों के अलावा सभी धमनियां ऑक्सीजन-युक्त रक्त लेजाती हैं। .

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निदान

निदान की एक महत्वपूर्ण पद्धति: रेडियोग्राफी किसी भी समस्या के बाहरी लक्षणों से आरम्भ करके उसके (उत्पत्ति के) मूल कारण का ज्ञान करना निदान (Diagnosis / डायग्नोसिस्) कहलाता है। निदान की विधि 'विलोपन' (एलिमिनेशन) पर आधारित है। निदान शब्द का प्रयोग सभी क्षेत्रों में होता है: रोगोपचार (मेडिसिन), विज्ञान, प्रौद्योगिकी, न्याय, व्यापार, एवं प्रबन्धन आदि में। निदान का बहुत महत्व है। जब तक रोग की सटीक पहचान न हो जाए, तब तक सही दिशा में उपचार असंभव है। इसलिए पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में निदान अध्याय बहुत वृहद होता था और उपचार अध्याय सीमित। कारण यह है कि यदि निदान सटीक हो गया तो उपचार भी सटीक होगा। यह सही है कि अनेक रोग स्वयमेव अच्छे हो जाते हैं और प्रकृति की निवारक शक्ति को किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं होती, परंतु अनेक रोग ऐसे भी होते हैं जिनमें प्रकृति असमर्थ हो जाती है और तब चिकित्सा द्वारा सहायता की आवश्यकता होती है। सही और सटीक चिकित्सा के लिए आवश्यक है कि निदान सही हो। सही निदान का अर्थ यह है कि कष्टदायक लक्षणों का आधारभूत कारण और उसके द्वारा उत्पन्न विकृति का सही रूप समझा जाए। .

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प्रयोगशाला

उन्नीसवीं शताब्दी के भौतिकशास्त्री एवं रसायनज्ञ माइकल फैराडे अपनी प्रयोगशाला में जैव रसायन प्रयोगशाला प्रयोगशाला एक ऐसी सुविधा (कक्ष, भवन या स्थान) को कहते हैं, जो वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रयोग एवं मापन के लिए आवश्यक माहौल प्रदान करता है। .

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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शरीर

शरीर सामान्य अर्थों में किसी भी जीवधारी के समस्त अंग-प्रत्यंगों का समुच्चय। उर्दू से आया हुआ शब्द "चंचल" के अर्थों में प्रयुक्त। संबंधित लेख निम्नवत हैं.

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शिरा

परिसंचरण तंत्र में, शिरायें वे रक्त वाहिकायें हैं जो रक्त को हृदय की ओर ले जाती हैं। पल्मोनरी और अम्बलिकल शिरा के छोड़कर जिनमें ऑक्सीजेनेटेड (ऑक्सीजन मिला हुआ) रक्त बहता है, अधिकतर शिरायें ऊतकों से डीऑक्सीजेनेटेड (ऑक्सीजन का ह्रास) रक्त को वापस फेफड़ों में ले जाती है। शिराओं की संरचना और कार्य धमनियों से पूरी तरह से अलग होते हैं, उदाहरण के लिए, धमनियों शिराओं की अपेक्षा अधिक पेशीयुक्त होती हैं और यह रक्त को हृदय से दूर शरीर के शेष अंगों तक पहुँचाती हैं। पश्चप्रवाह का रोकना दर्शाती शिरा की अनुप्रस्थ काट .

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सूक्ष्मदर्शी

सूक्ष्मदर्शी या सूक्ष्मबीन (माइक्रोस्कोप) वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से चीजों का अवलोकन व जांच किया जाता है वह सूक्ष्मदर्शन कहलाता है। सूक्ष्मदर्शी का इतिहास लगभग ४०० वर्ष पुराना है। सबसे पहले नीदरलैण्ड में सन १६०० के आस-पास किसी काम के योग्य सूक्ष्मदर्शी का विकास हुआ। .

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अर्बुद

अर्बुद, रसौली, गुल्म या ट्यूमर, कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि द्वारा हुई, सूजन या फोड़ा है जिसे चिकित्सीय भाषा में नियोप्लास्टिक कहा जाता है। ट्यूमर कैंसर का पर्याय नहीं है। एक ट्यूमर बैनाइन (मृदु), प्री-मैलिग्नैंट (पूर्व दुर्दम) या मैलिग्नैंट (दुर्दम या घातक) हो सकता है, जबकि कैंसर हमेशा मैलिग्नैंट होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पैथालॉजी, पैथालोजी, रोगविज्ञान, विकृति विज्ञान, व्याधि-विज्ञान, व्याधिविज्ञान, शरीर-विकृति-विज्ञान

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