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वातानुकूलन

सूची वातानुकूलन

वातानुकूलक उपकरण का वह भाग जो कमरों के अन्दर लगाया जाता है किसी निश्चित क्षेत्र अथवा कक्षा के ताप, आर्द्रता, वायु की गति तथा वायुमंडल के स्तर के स्वतंत्र अथवा एक साथ की नियंत्रण क्रिया को वातानुकूलन (Air-conditoning) कहा जाता है। वातानुकूलित क्षेत्र के ताप, आर्द्रता, वायु की गति तथा वायुमंडल के स्तर में विभिन्न कारकों का नियंत्रण आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। सामान्यत; वातानुकूलन का उद्देश्य शारीरिक सुख तथा औद्योगिक सुविधा प्रदान करना होता है। शारीरिक सुख के लिए ऊष्मा-संबंधी उपयुक्त एवं सुखप्रद परिस्थितियों को उत्पन्न करने में कक्ष के ताप, आर्द्रता, वायु की गति एवं वायुमंडल के स्तर को शरीरक्रिया विज्ञान की दृष्टि से निश्चित सीमाओं के भीतर नियंत्रित किया जाता है। जब औद्योगिक उद्देश्यों के लिए, जैसे विभिन्न संगृहीत पदार्थों की सुरक्षा के लिए, वस्त्र एवं सूत तथा संश्लिष्ट रेशों के उत्पादन में, अथवा छपाई में, वातानुकूलन का उपयोग होता है, उस समय प्रक्रम तथा औद्योगिक आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तरों पर उपर्युक्त वातानुकूलन कारकों का निर्धारण किया जाता है। .

4 संबंधों: तापमान, पृथ्वी का वायुमण्डल, शरीरक्रिया विज्ञान, आर्द्रता

तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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शरीरक्रिया विज्ञान

शरीरक्रियाविज्ञान या कार्यिकी (Physiology/फ़िज़ियॉलोजी) के अंतर्गत प्राणियों से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन और उनका वर्गीकरण किया जाता है, साथ ही घटनाओं का अनुक्रम और सापेक्षिक महत्व के साथ प्रत्येक कार्य के उपयुक्त अंगनिर्धारण और उन अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे प्रत्येक क्रिया निर्धारित होती है। शरीरक्रियाविज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें शरीर में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मनुष्य या किसी अन्य प्राणी/पादप के शरीर में मौजूद भिन्न-भिन्न अंगों एवं तन्त्रों (Systems) के कार्यों और उन कार्यों के होने के कारणों के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित चिकित्सा विज्ञान के नियमों का भी ज्ञान दिया जाता है। उदाहरण के लिए कान सुनने का कार्य करते है और आंखें देखने का कार्य करती हैं लेकिन शरीर-क्रिया विज्ञान सुनने और देखने के सम्बन्ध में यह ज्ञान कराती है कि ध्वनि कान के पर्दे पर किस प्रकार पहुँचती है और प्रकाश की किरणें आंखों के लेंसों पर पड़ते हुए किस प्रकार वस्तु की छवि मस्तिष्क तक पहुँचती है। इसी प्रकार, मनुष्य जो भोजन करता है, उसका पाचन किस प्रकार होता है, पाचन के अन्त में उसका आंतों की भित्तियों से अवशोषण किस प्रकार होता है, आदि। .

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आर्द्रता

वायुमण्डल में विद्यमान अदृष्य जलवाष्प की मात्रा आर्द्रता (humidity) कहलाती हैं। यह आर्द्रता पृथ्वी से वाष्पीकरण के विभिन्न रुपों द्वारा वायुमण्डल में पहुंचती हैं। आर्द्रता का जलवायु विज्ञान में सर्वाधिक महत्व होता हैं, क्योंकि इसी पर वर्षा, तथा वर्षण के विभिन्न रूप जैसे वायुमण्डलीय तूफान तथा विक्षोभ (चक्रवात आदि) आधारित होते हैं। वर्षा, बादल, कुहरा, ओस, ओला, पाला आदि से ज्ञात होता है कि पृथ्वी को घेरे हुए वायुमंडल में जलवाष्प सदा न्यूनाधिक मात्रा में विद्यमान रहता है। प्रति घन सेंटीमीटर हवा में जितना मिलीग्राम जलवाष्प विद्यमान है, उसका मान हम रासायनिक आर्द्रतामापी से निकालते है, किंतु अधिकतर वाष्प की मात्रा को वाष्पदाव द्वारा व्यक्त किया जाता है। वायु-दाब-मापी से जब हम वायुदाब ज्ञात करते हैं तब उसी में जलवाष्प का भी दाब सम्मिलित रहता है। आर्द्रतामापी - हवा में आर्द्रता की मात्रा को नापने का उपकरण .

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