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वराह मिहिर

सूची वराह मिहिर

वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है। .

40 संबंधों: चाणक्य, त्रिकोणमिति, पटना, परावर्तन, पर्यावरणीय विज्ञान, पाणिनि, पंचसिद्धांतिका, प्रकाशिकी, पृथ्वी, पृथ्वी का वायुमण्डल, फलित ज्योतिष, बृहत्संहिता, बृहज्जातकम्, भारत, भूविज्ञान, मनु, मेरु प्रस्तार, यूनान, लघुजातक, लौह स्तंभ, शून्य, समय, संस्कृत व्याकरण, सूर्यसिद्धान्त, जलविज्ञान, ईरान, व्याकरण, वृक्षायुर्वेद, वेधशाला, खुसरू प्रथम, गुप्त राजवंश, गुरुत्वाकर्षण, गुरुकुल, आर्यभट, आर्यभट की ज्या सारणी, अपवर्तन, अयनांश, अंकगणित, उज्जैन, ऋग्वेद

चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

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त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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परावर्तन

परावर्तन निम्न में से किसी एक के लिए प्रयुक्त शब्द है: .

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पर्यावरणीय विज्ञान

MK पर्यावरणीय विज्ञान (environmental science) पर्यावरण के भौतिकीय, रासायनिक और जैविक अवयवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन है। पर्यावरणीय विज्ञान पर्यावरणीय व्यवस्था के अध्ययन के लिए समन्वित, परिमाणात्मक और अन्तरविषयक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। पर्यावरणीय वैज्ञानिक पर्यावरण की गुणवत्ता की निगरानी करते हैं, स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी व्यवस्था पर मानवीय कृत्यों की व्याख्या करते हैं तथा पारिस्थतिकी व्यवस्था की बहाली के लिए रणनीतियां तैयार करते हैं। इसके अलावा पर्यावरणीय वैज्ञानिक योजनाकारों की ऐसे भवनों, परिवहन कोरिडोरों तथा उपयोगिताओं के विकास तथा निर्माण में सहायता करते हैं जिनसे जल संसाधनों की रक्षा हो सके तथा भूमि का सदुपयोग हो सके। .

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पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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पंचसिद्धांतिका

पंचसिद्धांतिका भारत के प्राचीन खगोलशास्त्री, ज्योतिषाचार्य वराह मिहिर का एक ग्रंथ है। महाराजा विक्रमादित्य के काल में इस ग्रंथ की रचना हुई थी। वाराहमिहिर ने तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका की रचना की। पंचसिद्धान्तिका में खगोल शास्त्र का वर्णन किया गया है। इसमें वाराहमिहिर के समय प्रचलित पाँच खगोलीय सिद्धांतों का वर्णन है। इस ग्रन्थ में ग्रह और नक्षत्रों का गहन अध्ययन किया गया है। इन सिद्धांतों द्वारा ग्रहों और नक्षत्रों के समय और स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं, जो वाराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं। पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है जो सिद्धांत पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत हैं। वराहमिहिर ने इन पूर्वप्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। इस ग्रंथ की रचना का काल ई°५२० माना जाता है। .

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प्रकाशिकी

दर्पणो से प्रकाश के परिवर्तन प्रकाशिकी का विषय है। प्रकाश का अध्ययन भी दो खंडों में किया जाता है। पहला खंड, ज्यामितीय प्रकाशिकी, प्रकाश किरण की संकल्पना पर आधृत है। दर्पणों से प्रकाश का परार्वतन और लेंसों तथा प्रिज्मों से प्रकाश का अपवर्तन, ज्यामितीय प्रकाशिकी के विषय है। सूक्ष्मदर्शी, दूरदर्शी, फोटोग्राफी कैमरा तथा अन्य उपयोगी प्रकाशिकी यंत्रों की क्रियाविधि ज्यामितीय प्रकाशिकी के नियमों पर ही आधृत है। प्रकाशिकी का दूसरा खंड भौतिक प्रकाशिकी है। इसमें प्रकाश की मूल प्रकृति तथा प्रकाश और द्रव्य की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन किया जाता है। प्रकाश सूक्ष्म कणों का संचार है, ऐसा मानकर न्यूटन ने ज्यामितीय प्रकाशिकी के मुख्य परिणामों की व्याख्या की। पर 19वीं शताब्दी में प्रकाश के व्यतिकरण की घटनाओं का आविष्कार हुआ। इन क्रियाओं की व्याख्या कणिका सिद्धांत से संभव नहीं है, अत: बाध्य होकर यह मानना पड़ा कि प्रकाश तरंगसंचार ही है। ऊपर वर्णित मैक्सवेल के विद्युतचुंबकीय सिद्धांत ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत को ठोस आधार दिया। भौतिक प्रकाशिकी का एक महत्वपूर्ण भाग * श्रेणी:प्राकृतिक दर्शन श्रेणी:विद्युतचुंबकीय विकिरण.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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फलित ज्योतिष

फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं। ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, अतएव उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न भिन्न प्रभाव हैं। इन्हीं किरणों के प्रभाव का भारत, बैबीलोनिया, खल्डिया, यूनान, मिस्र तथा चीन आदि देशों के विद्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्वभाव ज्ञात किया। पृथ्वी सौर मंडल का एक ग्रह है। अतएव इसपर तथा इसके निवासियों पर मुख्यतया सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी विशेष कक्षा में चलती है जिसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का निवासियों को सूर्य इसी में चलता दिखलाई पड़ता है। इस कक्षा के इर्द गिर्द कुछ तारामंडल हैं, जिन्हें राशियाँ कहते हैं। इनकी संख्या है। मेष राशि का प्रारंभ विषुवत् तथा क्रांतिवृत्त के संपातबिंदु से होता है। अयन की गति के कारण यह बिंदु स्थिर नहीं है। पाश्चात्य ज्योतिष में विषुवत् तथा क्रातिवृत्त के वर्तमान संपात को आरंभबिंदु मानकर, 30-30 अंश की 12 राशियों की कल्पना की जाती है। भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार पाश्चात्य गणनाप्रणाली तथा भारतीय गणनाप्रणाली में लगभग 23 अंशों का अंतर पड़ जाता है। भारतीय प्रणाली निरयण प्रणाली है। फलित के विद्वानों का मत है कि इससे फलित में अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि इस विद्या के लिये विभिन्न देशों के विद्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभावों का अध्ययन अपनी अपनी गणनाप्रणाली से किया है। भारत में 12 राशियों के 27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अश्विनी, भरणी आदि। फल के विचार के लिये चंद्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है। .

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बृहत्संहिता

बृहत्संहिता वाराहमिहिर द्वारा ६ठी शताब्दी संस्कृत में रचित एक विश्वकोश है जिसमें मानव रुचि के विविध विषयों पर लिखा गया है। इसमें खगोलशास्त्र, ग्रहों की गति, ग्रहण, वर्षा, बादल, वास्तुशास्त्र, फसलों की वृद्धि, इत्रनिर्माण, लग्न, पारिवारिक संबन्ध, रत्न, मोती एवं कर्मकांडों का वर्णन है। वृहत्संहिता में १०६ अध्याय हैं। यह अपने महान संकलन के लिये प्रसिद्ध है। .

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बृहज्जातकम्

बृहज्जातकम या 'वृहत जातक' वराहमिहिर द्वारा रचित पाँच प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। उनके द्वारा रचित अन्य ४ ग्रन्थ ये हैं- पंचसिद्धान्तिका, बृहत संहिता, लघुजातक, और योगयात्रा। इसके साथ ही यह ग्रन्थ हिन्दू ज्योतिष के ५ प्रमुख ग्रन्थों में से एक है, अन्य चार ग्रन्थ ये हैं- कल्याणवर्मा कृत सारावली, वेंकटेश कृत सर्वार्थ चिन्तामणि, वैद्यनाथ कृत जातक पारिजात, मन्त्रेश्वर कृत फलदीपिका। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भूविज्ञान

पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

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मनु

मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। मानव का हिन्दी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है। मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। और ये सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। .

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मेरु प्रस्तार

pascal triangleगणित में, मेरुप्रस्तार या हलायुध त्रिकोण या पास्कल त्रिकोण (Pascal's triangle) द्विपद गुणांकों को त्रिभुज के रूप में प्रस्तुत करने से बनता है। पश्चिमी जगत में इसका नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल के नाम पर रखा गया है। किन्तु पास्कल से पहले अनेक गणितज्ञों ने इसका अध्ययन किया है, उदाहरण के लिये भारत के पिंगलाचार्य, परसिया, चीन, जर्मनी आदि के गतिज्ञ। मेरु प्रस्तार की छः पंक्तियां मेरु प्रस्तार का सबसे पहला वर्णन पिंगल के छन्दशास्त्र में है। जनश्रुति के अनुसार पिंगल पाणिनि के अनुज थे। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू॰ अनुमानित है। छन्दों के विभेद को वर्णित करने वाला 'मेरुप्रस्तार' (मेरु पर्वत की सीढ़ी) पास्कल (Blaise Pascal 1623-1662) के त्रिभुज से तुलनीय बनता है। पिंगल द्वारा दिये गये मेरुप्रस्तार (Pyramidal expansion) नियम की व्याख्या हलायुध ने अपने मृतसंंजीवनी में इस प्रकार की है- मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिकोण) की निर्माण विधि .

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यूनान

यूनान यूरोप महाद्वीप में स्थित देश है। यहां के लोगों को यूनानी अथवा यवन कहते हैं। अंग्रेजी तथा अन्य पश्चिमी भाषाओं में इन्हें ग्रीक कहा जाता है। यह भूमध्य सागर के उत्तर पूर्व में स्थित द्वीपों का समूह है। प्राचीन यूनानी लोग इस द्वीप से अन्य कई क्षेत्रों में गए जहाँ वे आज भी अल्पसंख्यक के रूप में मौज़ूद है, जैसे - तुर्की, मिस्र, पश्चिमी यूरोप इत्यादि। यूनानी भाषा ने आधुनिक अंग्रेज़ी तथा अन्य यूरोपीय भाषाओं को कई शब्द दिये हैं। तकनीकी क्षेत्रों में इनकी श्रेष्ठता के कारण तकनीकी क्षेत्र के कई यूरोपीय शब्द ग्रीक भाषा के मूलों से बने हैं। इसके कारण ये अन्य भाषाओं में भी आ गए हैं।ग्रीस की महिलाएं देह व्यापार के धंधे में सबसे आगे है.

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लघुजातक

लघुजातक, वराहमिहिर द्वारा रचित पाँच प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। उनके द्वारा रचित अन्य चार ग्रन्थ ये हैं- बृहज्जातकम्, पंचसिद्धान्तिका, बृहत संहिता, और योगयात्रा। .

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लौह स्तंभ

लौह स्तंभ पर लिखित चिह्न लौह स्तंभ लिखित लिपि का अंग्रेज़ी अनुवाद लौह स्तंभ दिल्ली में क़ुतुब मीनार के निकट स्थित एक विशाल स्तम्भ है। यह अपनेआप में प्राचीन भारतीय धातुकर्म की पराकाष्ठा है। यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज ३७५ - ४१३) से निर्माण कराया गया, किंतु कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया, संभवतः ९१२ ईपू में। स्तंभ की उँचाई लगभग सात मीटर है और पहले हिंदू व जैन मंदिर का एक हिस्सा था। तेरहवीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की। लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब ९८% है और अभी तक जंग नहीं लगा है। .

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शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

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समय

समय मापने की प्राचीन (किन्तु मेधापूर्ण) तरीका: '''रेतघड़ी''' समय (time) एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश (स्पेस) के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं। .

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संस्कृत व्याकरण

संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग' देखें)। व्याकरण के मूलतः पाँच प्रयोजन हैं - रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण के बारे में निम्नलिखित श्लोक बहुत प्रसिद्ध है।- - जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ? .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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जलविज्ञान

जलविज्ञान (Hydrology) विज्ञान की वह शाखा है जो जल के उत्पादन, आदान-प्रदान, स्त्रोत, सरिता, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, उतारचढ़ाव, प्रपात, बाँध, संभरण तथा मापन आदि से संबंधित है। जो जल वृष्टि द्वारा पृथ्वी पर गिरता है, वह प्रथम तो भूमि के प्राकृतिक गुरुत्व के कारण या तो भूमि के अंतस्तल में प्रविष्ट हो जाता है, या नाली और नालिकाओं द्वारा नदियों में जा गिरता है और वहाँ से पुन: सागरों में प्रवेश करता है। कुछ जल वाष्प रूप में वायुमंडल में मिश्रित हो जाता है, कुछ वनस्पतियों द्वारा भूगर्भ से खिंचकर वायु के संपर्क से वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी के अंतस्तल में प्रविष्ट जल का कुछ अंश स्त्रोतों द्वारा प्रकट होकर नदी, नालों या अन्य नीचे स्थलों पर प्रवाहित या संकलित होने लगता है। जब जल की मात्रा किसी कारण बहुत बढ़ जाती है, तो नदी, नाले बाढ़ अथवा बढ़ोत्तरी के रूप में बह निकलते हैं और यदाकदा बड़ी क्षति पहुँचाते हैं। वैसे तो पानी का बहाव प्रकृति के अकाट्य नियमों के अंतर्गत होता है, किंतु प्रत्येक स्थल की भूमि की रूपरेखा, वनस्पति, आबहवा और मनुष्य द्वारा बनाए हुए साधनों के कारण, पानी के बहाव में बहुत परिवर्तन हो जाता है। यदि किसी जगह कोई रोक हो तो उस रोक के कारण, पानी के बहाव का वेग बढ़ना आवश्यक है। इसीलिये पानी की वेगवती धारा के संपर्क में बड़ी बड़ी चट्टानें भी धीरे धीरे घुल जाती हैं। इसी कारण नदियों के मुहानों पर नदियों द्वारा लाई हुई रेत से नई भूमि बनती जाती है, जिसको डेल्टा (delta) कहते हैं। वास्तव में पृथ्वी पर बड़े बड़े मैदान, जैसे उत्तरी भारत में गंगा और सिंधु के विशाल मैदान, हिमालय से लाई हुई रेत के बने हुए हैं। इस बनावट में सहस्त्रों क्या करोड़ों वर्ष लगे होंगे। अब भी गंगा के मुहाने पर सुंदरवन आदि के क्षेत्र प्राकृतिक जलागमन द्वारा ही बढ़ते चले जा रहे हैं। पृथ्वी के अंतस्तल में भी जल की अनेक परतें स्थित हैं। कहीं कहीं जल पृथ्वी तल के समीप मिलता है और कहीं पर अधिक गहराई में। इस क्षेत्र में जलविज्ञान का संबंध भूगर्भ विद्या से हो जाता है। जलोत्पादन के निमित्त जहाँ बड़े बड़े कूप खोदे जाते हैं या कृत्रिम नलकूप बनाए जाते हैं, वहाँ यह प्रकट हाता है कि रेत की परतों में जो जल विद्यमान है, वह अवसर मिलने पर साधारण जलस्त्रोत के तल तक आ जाता है। कभी कभी जल पृथ्वी के गर्भ में प्रविष्ट होकर वहाँ उसी दशा में सहस्त्रों वर्ष पड़ा रहता है। कुछ जलराशि धीरे धीरे समुद्र की ओर भूगर्भ में प्रवाहित होती रहती है। इस दिशा में जलविज्ञान की प्रगति अभी बहुत सीमित है। प्रवाहित जल का मापन भी जलविज्ञान का एक विशेष अंग है। इसका प्रयोग विशेषत: भूमिसिंचन के साधनों में जलविद्युत्, पनचक्की आदि में होता है। आजकल के युग में तो बहुत से कारखानों में भी जल का प्रयोग ठंडक पहुँचाने अथवा जल द्वारा चालित मशीनों को चलाने के लिये होता है। अत: भिन्न भिन्न प्रकार की जलमापन की विधियों का होना अनिवार्य है। बड़ी नदियों में जब बाढ़ आती है, उस समय जलमापन एक समस्या बन जाता है, क्योंकि नदियों के तल में रेत और मिट्टी भी जल के साथ बहती चलती है। वैसे जलमापन के निमित्त बहुत से यंत्र बन चुके हैं, जैसे धारावेगमापी (Current meter) आदि वर्षा द्वारा प्राप्त जल के मापन के लिये जगह जगह यंत्र लगाए जाते हैं, जिससे इस बात का अनुमान हो सके कि कितना जल वर्षा द्वारा प्राप्त होता है, कितना नदियों द्वारा समुद्र में चला जाता हे, कितना भूगर्भ में प्रविष्ट हो जाता हे और कित वाष्प में परिवर्तित होता है। जल के आवागमन का यही ज्ञान साधारणतया जलविज्ञान कहलाता है। .

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ईरान

ईरान (جمهوری اسلامی ايران, जम्हूरीए इस्लामीए ईरान) जंबुद्वीप (एशिया) के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश है। इसे सन १९३५ तक फारस नाम से भी जाना जाता है। इसकी राजधानी तेहरान है और यह देश उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अज़रबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में इराक और तुर्की, पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तथा पाकिस्तान से घिरा है। यहां का प्रमुख धर्म इस्लाम है तथा यह क्षेत्र शिया बहुल है। प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को १९७९ में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की १५ प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है। ईरान में फारसी, अजरबैजान, कुर्द और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह हैं .

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व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

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वृक्षायुर्वेद

वृक्षायुर्वेद एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसमें वृक्षों के स्वास्थ्यपूर्ण विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा से समन्धित चिन्तन है। यह सुरपाल की रचना मानी जाती है जिनके बारे में बहुत कम ज्ञात है। सन् १९९६ में डॉ वाय एल नेने (एशियन एग्रो-हिस्ट्री फाउन्डेशन, भारत) ने यूके के बोल्डियन पुस्तकालय (आक्सफोर्ड) से इसकी पाण्डुलिपि प्राप्त की। डॉ नलिनी साधले ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया। वृक्षायुर्वेद की पाण्दुलिपि देवनागरी के प्राचीन रूप वाली लिपि में लिखी गयी है। ६० पृष्ठों में ३२५ परस्पर सुगठित श्लोक हैं जिनमें अन्य बातों के अलावा १७० पौधों की विशेषताएँ दी गयीं हैं। इसमें बीज खरीदने, उनका संरक्षण, उनका संस्कार (ट्रीटमेन्ट) करने, रोपने के लिये गड्ढ़ा खोदने, भूमि का चुनाव, सींचने की विधियाँ, खाद एवं पोषण, पौधों के रोग, आन्तरिक एवं वाह्य रोगों से पौधों की सुरक्षा, चिकित्सा, बाग का विन्यास (ले-आउट) आदि का वर्नन है। इस प्रकार यह वृक्षों के जीवन से सम्बन्धित सभी मुद्दों पर ज्ञान का भण्डार है। .

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वेधशाला

ऐल्प्स की पहाड़ियो पर स्थित स्फ़िंक्स् वेधशाला ऐसी एक या एकाधिक बेलनाकार संरचनाओं को आधुनिक वेधशाला (Observatory) कहते हैं जिनके ऊपरी सिर पर घूमने वाला अर्धगोल गुंबद स्थित होता है। इन संरचनाओं में आवश्यकतानुसार अपवर्तक या परावर्तक दूरदर्शक रहता है। दूरदर्शक वस्तुत: वेधशाला की आँख होता है। खगोलीय पिंडों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आँकड़े एकत्रित करके उनका अध्ययन और विश्लेषण करने में इनका उपयोग होता है। कई वेधशालाएँ ऋतु की पूर्व सूचनाएँ भी देती हैं। कुछ वेधशालाओं में भूकंपविज्ञान और पार्थिव चुंबकत्व के संबंध में भी कार्य होता है। .

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खुसरू प्रथम

खुसरू प्रथम एक न्यायप्रिय राजा था। (तेहरान राजदरबार में) खुसरू प्रथम कवाध या कोवाद प्रथम का प्रिय पुत्र और फारस के ससानीद वंश का सबसे गौरवशाली राजा था। इसे 'नौशेरवाँ आदिल', 'नौशेरवाँ' या 'अनुशेरवाँ' भी कहते हैं। पश्चिमी लेखकों ने इसे 'खोसरोज' अर्थात् खुसरू और अरबों ने 'किसरा' कहा है। .

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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गुरुकुल

अंगूठाकार ऐसे विद्यालय जहाँ विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरू के परिवार का हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता है। भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे विद्यालयों का बहुत महत्व था। प्रसिद्ध आचार्यों के गुरुकुल के पढ़े हुए छात्रों का सब जगह बहुत सम्मान होता था। राम ने ऋषि वशिष्ठ के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। इसी प्रकार पाण्डवों ने ऋषि द्रोण के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। प्राचीन भारत में तीन प्रकार की शिक्षा संस्थाएँ थीं-.

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभट की ज्या सारणी

आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटीय में दिये गये २४ संख्याओं का समुच्चय आर्यभट की ज्या-सारणी (Āryabhaṭa's sine table) कहलाता है। आधुनिक अर्थ में यह कोई गणितीय सारणी (टेबुल) नहीं है जिसमें संख्याएँ पंक्ति व स्तम्भ के रूप में विन्यस्त (arranged) हों। वृत्त में चाप (Arc) तथा जीवा (chord) परम्परागत अर्थों में यह त्रिकोणमिति में प्रयुक्त ज्या फलन (sine function) के मानों की सूची भी नहीं है बल्कि यह ज्या फलन के मानों के प्रथम अन्तर (first differences) है। इसी लिये इसे 'आर्यभट की ज्या-अन्तर सारणी (Āryabhaṭa's table of sine-differences) भी कहा जाता है। आर्यभट की यह सारणी, गणित के इतिहास में, विश्व की सबसे पहले रचित ज्या-सारणी है। .

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अपवर्तन

अपवर्तन के कारण छड़ी टेढ़ी दिखती है। एक माध्यम से दूसरे माध्यम में पहुँचने तरंग की गति की दिशा में परिवर्तन हो जाता है जिसे अपवर्तन कहते हैं। .

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अयनांश

अयनांश (अयन + अंश) या अयनभाग भारतीय ज्योतिष में अयन (precession) के लिये संस्कृत शब्द है। सायन और निरयण का अन्तर अयनांश कहलाता है। .

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अंकगणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० अंकगणित (ग्रीक मेंΑριθμητική, जर्मन मेंArithmetik, अंग्रेजी मेंArithmetic) गणित की तीन बड़ी शाखाओं में से एक है। अंकों तथा संख्याओं की गणनाओं से सम्बंधित गणित की शाखा को अंकगणित कहा जाता हैं। यह गणित की मौलिक शाखा है तथा इसी से गणित की प्रारम्भिक शिक्षा का आरम्भ होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने दैनिक जीवन में प्रायः अंकगणित का उपयोग करता है। अंकगणित के अन्तर्गत जोड़, घटाना, गुणा, भाग, भिन्न, दशमलव आदि प्रक्रियाएँ आती हैं। .

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उज्जैन

उज्जैन का प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन (उज्जयिनी) भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि॰मी॰ पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मंदिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल है। इसकी जनसंख्या लगभग 5.25 लाख है। यह मध्य प्रदेश का पाँचवा सबसे बड़ा शहर है। नगर निगम सीमा का क्षेत्रफल ९३ वर्ग किलोमीटर है। .

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

बराहमिहिर, वराहमिहिर, वाराहमिहिर

निवर्तमानआने वाली
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