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अधिवक्ता

सूची अधिवक्ता

अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील (ऐडवोकेट advocate) के अनेक अर्थ हैं, परंतु हिंदी में ऐसे व्यक्ति से है जिसको न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उसके हेतु या वाद का प्रतिपादन करने का अधिकार प्राप्त हो। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर (या उसके तरफ से) दलील प्रस्तुत करता है। इसका प्रयोग मुख्यत: कानून के सन्दर्भ में होता है। प्राय: अधिकांश लोगों के पास अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति नहीं होती। अधिवक्ता की जरूरत इसी बात को रेखांकित करती है। अन्य बातों के अलावा अधिवक्ता का कानूनविद (lawyer) होना चाहिये। कानूनविद् उसको कहते हैं जो कानून का विशेषज्ञ हो या जिसने कानून का व्यावसायिक अध्ययन किया हो। वकील की भूमिका कानूनी न्यायालय में काफी भिन्न होती है। भारतीय न्यायप्रणाली में ऐसे व्यक्तियों की दो श्रेणियाँ हैं: (१) ऐडवोकेट तथा (२) वकील। ऐडवोकेट के नामांकन के लिए भारतीय "बार काउंसिल' अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक उच्च न्यायालय के अपने-अपने नियम हैं। उच्चतम न्यायालय में नामांकित ऐडवोकेट देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन कर सकता है। वकील, उच्चतम या उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन नहीं कर सकता। ऐडवोकेट जनरल अर्थात्‌ महाधिवक्ता शासकीय पक्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रमुखतम अधिकारी है। अभी महाराष्ट्र के महाधीवक्ता रोहित देव है। ● अपनी मुकद्दमे की पैरवी स्वम कर सकते है इसके लिए कुछ कुछ महत्वपूर्ण बातो को धयान में रखने की जरूरत है क्यो की वकील के पास अनेको मुकद्दमे देखने की जिम्मेदारी होती है इस कारण से जितनी बातें पीड़ित की रखनी होती है नही रख पाते इस कारण मुकद्दमा हल्का हो जाता है मुवक्किल अपना पछ रखने के लिए स्वतंत्र है वह अपनी बात अच्छे से प्रस्तुत कर सकता है क्यो की उसे न किसी वकालत नामे की जरूरत नही होती है न वकालत के डिग्री की............#लेख जारी है .

9 संबंधों: दुर्ग, न्यायधीश, न्यायालय, भारत का उच्चतम न्यायालय, महाधिवक्ता, मुख्तारनामा, हिन्दी, विधि, विधिक वृत्ति

दुर्ग

दुर्ग छत्तीसगढ़ प्रान्त के 27 जिलो मे तीसरा सबसे बड़ा जिला है। दुर्ग जिले के मुख्य शहर भिलाई और दुर्ग को सम्मिलित रूप से टि्वन सिटी कहा जाता है। भिलाई में लौह इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही दुर्ग का महत्व काफी बढ़ गया। शिवनाथ नदी के पूर्वी तट पर स्थित दुर्ग शहर के बीचोबीच से राष्ट्रीय राजमार्ग ६ (कोलकाता-मुंबई) गुजरती है। टि्वनसिटी के तौर पर दुर्ग-भिलाई शैक्षणिक और खेल केंद्र के रूप में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अपना स्थान रखता है। श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर.

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न्यायधीश

न्यायधीश (Judge) उस व्यक्ति को कहते हैं जो अकेले या अन्य लोगों के साथ सम्मिलित रूप से किसी न्यायालय की कार्यवाही की अध्यक्षता करे। उसका कार्य गवाहों के वक्तव्य सुनना, प्रस्तुत किये गये गये साक्ष्यों की परख करना, दोनो पक्षों की दलीलें सुनना और अन्त में निर्णय देना होता है। न्यायधीश का धर्म है कि वह निष्पक्ष होकर निर्णय करे और न्यायालय की कार्यवाई को खुला बनाये रखे। .

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न्यायालय

लंदन के पुरानी बेली स्थित एक कोर्ट का दृष्य न्यायालय (अदालत या कोर्ट) का तात्पर्य सामान्यतः उस स्थान से है जहाँ पर न्याय प्रशासन कार्य होता है, परंतु बहुधा इसका प्रयोग न्यायाधीश के अर्थ में भी होता है। बोलचाल की भाषा में अदालत को कचहरी भी कहते हैं। .

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भारत का उच्चतम न्यायालय

भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं। .

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महाधिवक्ता

महाधिवक्ता (ऐडवोकेट जनरल) किसी देश या प्रान्त का उच्च विधि अधिकारी होता है जो प्राय: विधिक मामलों में न्यायालय या सरकारों को सलाह देने का काम करता है। उदाहरण के लिये भारत में सभी राज्यों में महाधिवक्ता होते हैं। राज्य में जो स्थिति महाधिवक्ता की है वही स्थिति केन्द्र में महान्यायवादी (एटॉर्नी जनरल) की होती है। .

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मुख्तारनामा

मुख्तारनामा या अधिकार पत्र (power of attorney (POA) या letter of attorney) एक लिखित दस्तावेज है जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि वह उसके किसी निजी कार्य, व्यापार या किसी कानूनी कार्य के लिये उसका प्रतिनिधित्व करे (अर्थात उसकी ओर से कार्य करे)। जिसको यह अधिकार दिया जाता है उसे मुख्तार या एटार्नी (attorney) कहते हैं। अधिकार पत्र के सम्बन्ध में कानून, एजेन्सी कानून के अन्तर्गत बनाया गया है। अधिकार पत्र एक लिखित साधन है जो कि किसी व्यक्ति को उसके लिखने वाले व्यक्ति की जगह कार्य कर सकने का अधिकार देता है। यह निम्न दो प्रकार का होता है -.

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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विधि

विधि (या, कानून) किसी नियमसंहिता को कहते हैं। विधि प्रायः भलीभांति लिखी हुई संसूचकों (इन्स्ट्रक्शन्स) के रूप में होती है। समाज को सम्यक ढंग से चलाने के लिये विधि अत्यन्त आवश्यक है। विधि मनुष्य का आचरण के वे सामान्य नियम होते है जो राज्य द्वारा स्वीकृत तथा लागू किये जाते है, जिनका पालन अनिवर्य होता है। पालन न करने पर न्यायपालिका दण्ड देता है। कानूनी प्रणाली कई तरह के अधिकारों और जिम्मेदारियों को विस्तार से बताती है। विधि शब्द अपने आप में ही विधाता से जुड़ा हुआ शब्द लगता है। आध्यात्मिक जगत में 'विधि के विधान' का आशय 'विधाता द्वारा बनाये हुए कानून' से है। जीवन एवं मृत्यु विधाता के द्वारा बनाया हुआ कानून है या विधि का ही विधान कह सकते है। सामान्य रूप से विधाता का कानून, प्रकृति का कानून, जीव-जगत का कानून एवं समाज का कानून। राज्य द्वारा निर्मित विधि से आज पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। राजनीति आज समाज का अनिवार्य अंग हो गया है। समाज का प्रत्येक जीव कानूनों द्वारा संचालित है। आज समाज में भी विधि के शासन के नाम पर दुनिया भर में सरकारें नागरिकों के लिये विधि का निर्माण करती है। विधि का उदेश्य समाज के आचरण को नियमित करना है। अधिकार एवं दायित्वों के लिये स्पष्ट व्याख्या करना भी है साथ ही समाज में हो रहे अनैकतिक कार्य या लोकनीति के विरूद्ध होने वाले कार्यो को अपराध घोषित करके अपराधियों में भय पैदा करना भी अपराध विधि का उदेश्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1945 से लेकर आज तक अपने चार्टर के माध्यम से या अपने विभिन्न अनुसांगिक संगठनो के माध्यम से दुनिया के राज्यो को व नागरिकों को यह बताने का प्रयास किया कि बिना शांति के समाज का विकास संभव नहीं है परन्तु शांति के लिये सहअस्तित्व एवं न्यायपूर्ण दृष्टिकोण ही नहीं आचरण को जिंदा करना भी जरूरी है। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है। .

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विधिक वृत्ति

विधिक वृत्ति (Legal profession) वह वृत्ति (व्यवसाय) है जिससे सम्बन्धित लोग विधि का अध्ययन करते हैं, उसका विकास करते एवं उसे लागू करते हैं। वर्तमान समय में विधिक वृत्ति चुनने के इच्छुक व्यक्ति को पहले विधि में डिग्री प्राप्त करना होता है या कोई अन्य विधिक शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है। आरंभ में विधिक वृत्ति न्यायालय में विधि के गूढ़ार्थ को स्पष्ट करने के सहायतार्थ थी। आज भी इसका मुख्य कार्य यही है। इसके अतिरिक्त आज अधिवक्ता केवल विधिविशेषज्ञ नहीं, समाज के निर्देशक भी हैं। आधुनिक समाज का स्वरूप एवं प्रगति मुख्यत: विधि द्वारा नियंत्रित होती है और विधानसभाओं द्वारा निर्मित विधि केवल सैद्धांतिक मूल नियम होती है, उसके शब्दजाल को व्यवस्थित कर जो स्वरूप चाहें अधिवक्ता उसे प्रदान करते हैं। अतएव विधि का व्यावहारिक रूप अधिवक्ताओं के हाथों ही निर्मित होता है, जिसके सहारे समाज प्रगति करता है। विधिक वृत्ति आधुनिक समाज का मुख्य आधार स्तंभ है। विधि का स्वरूप और निर्माण स्वभावतया विधिकारों से संबद्ध और संतुलित होता है। विधि का रूप तभी परिष्कृत एवं परिमार्जित हो पाता है जब उस देश की विधिक वृत्ति पुष्ट और परिष्कृत होती है। प्राचीन आदियुग में समाज की संपूर्ण क्रियाशक्ति मुखिया के हाथ में होती थी। तब विधि का स्वरूप बहुत आदिम था। ज्यों ही न्यायप्रशासन व्यक्ति के हाथ से समुदायों के हाथ में आया कि विधि का रूप निखरने लगा, क्योंकि अब नियम व्यक्तिविशेष की निरंकुश मनोवांछाएँ नहीं, सार्वजनिक सिद्धांत के रूप में होते। विधि के उत्कर्ष में सदा किसी समुदाय की सहायता रही है। मध्य एशिया में सर्वप्रथम न्यायाधीशों, धर्मप्रधान देशों में धर्मपंडितों, मिस्र और मेसोपोटामिया में न्यायाधीशों, ग्रीस में अधिवक्ताओं और पंचों, रोम में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं न्यायविशेषज्ञों, मध्यकालीन ब्रिटेन और फ्रांस में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं एटर्नी तथा भारत में विधिपंडितों ने सर्वप्रथम विधि को समुचित रूप दिया। प्रत्येक देश का क्रम यही रहा है कि विधिनिर्माण क्रमश: धर्माधिकारियों के नियंत्रण से स्वतंत्र होकर विधिकारों के क्षेत्र में आता गया। विधिविशेषज्ञों के शुद्ध बौद्धिक चिंतन के सम्मुख धर्माधिकारियों का अनुशासन क्षीण होता गया। आरंभ में व्यक्ति न्यायालय में स्वयं पक्षनिवेदन करते थे, किसी विशेष द्वारा पक्षनिवेदन की प्रथा नहीं थी। विधि का रूप ज्यों ज्यों परिष्कृत हुआ उसमें जटिलता और प्राविधिकता आती गई, अत: व्यक्ति के लिए आवश्यक हो गया कि विधि के गूढ़ तत्वों को वह किसी विशेषज्ञ द्वारा समझे तथा न्यायालय में विधिवत् निवेदन करवाए। कभी व्यक्ति की निजी कठिनाइयों के कारण भी यह आवश्यक होता कि वह अपनी अनुपस्थिति में किसी को प्रतिनिधि रूप में न्यायालय में भेज दे। इस प्रकार वैयक्तिक सुविधा और विधि के प्राविधिक स्वरूप ने अधिवक्ताओं (ऐडवोकेट्स) को जन्म दिया। पाश्चात्य एवं पूर्वी दोनों देशों में विधिज्ञाताओं ने सदा से समाज में, विद्वान् होने के कारण, बड़ा समान प्राप्त किया। इनकी ख्याति और प्रतिष्ठा से आकृष्ट होकर समाज के अनेक युवक विधिज्ञान की ओर आकर्षित होने लगे। क्रमश: विधिविशेषज्ञों के शिष्यों की संख्या में वृद्धि होती गई और विधिसम्मति प्रदान करने के अतिरिक्त इनका कार्य विधिदीक्षा भी हो गया। फलस्वरूप इन्हीं के नियंत्रण में विधि-शिक्षा-केंद्र स्थापित हुए। विधि सम्मति देने अथवा न्यायालय में अन्य का प्रतिनिधि बन पक्षनिवेदन करने का यह पारिश्रमिक भी लेते थे। क्रमश: यह एक उपयोगी व्यवसाय बन गया। आरंभ में धर्माधिकारी तथा न्यायालय इस विधिक व्यवसाय को नियंत्रित करते थे किंतु कुछ समय पश्चात् व्यवसाय तनिक पुष्ट हुआ तो इनके अपने संघ बन गए, जिनके नियंत्रण से विधिक वृत्ति शुद्ध रूप में प्रगतिशील हुई। विधिक वृत्ति में सदा दो प्रकार के विशेषज्ञ रहे-एक वह जो अन्य व्यक्ति की ओर से न्यायालय में प्रतिनिधित्व कर पक्षनिवेदन करते, दूसरे वह जो न्यायालय में जाकर अधिवक्तृत्व नहीं करते किंतु अन्य सब प्रकार से दावे का विधि-दायित्व लेते। यही भेद आज के सौलिसिटर तथा ऐडवोकेट में है। विधिक वृत्ति की प्रगति की यह रूपरेखा प्राय सब देशों में रही है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

वकालत, वकालतनामा, वकील, अभिभाषक

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