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लोनार झील

सूची लोनार झील

लूनार झील लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित एक खारे पानी की झील है। इसका निर्माण एक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था। स्मिथसोनियन संस्था, संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण, सागर विश्वविद्यालय और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला ने इस स्थल का व्यापक अध्ययन किया है। जैविक नाइट्रोजन यौगिकीकरण इस झील में 2007 में खोजा गया था। .

9 संबंधों: झील, डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, नाइट्रोजन यौगिकीकरण, पृथ्वी, बुलढाणा जिला, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, महाराष्ट्र, संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण, उल्का

झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

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डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय

डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय भारत के मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसको सागर विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना डॉ॰ हरिसिंह गौर ने १८ जुलाई १९४६ को अपनी निजी पूंजी से की थी। अपनी स्थापना के समय यह भारत का १८वाँ विश्वविद्यालय था। किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। वर्ष १९८३ में इसका नाम डॉ॰ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय कर दिया गया। २७ मार्च २००८ से इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय की श्रेणी प्रदान की गई है। .

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नाइट्रोजन यौगिकीकरण

नाइट्रोजन यौगीकीकरण (Nitrogen fixation) उस प्रक्रिया को कहते हैं है जिसके द्वारा पृथ्वी के वायुमण्डल की नाइट्रोजन, (N2) अमोनियम (NH4+) या और जीवों के लिए लाभदायक अन्य अणुओं में परिवर्तित की जाती है । वायुमण्डलीय नाइट्रोजन या आणविक नाइट्रोजन (N2) अपेक्षाकृत निष्क्रिय पदार्थ है जो यह नए यौगिकों के निर्माण के लिए अन्य रसायनों के साथ आसानी से प्रतिक्रिया नहीं करता है। किन्तु यौगीकरण की प्रक्रिया से N≡N बन्ध से नाइट्रोजन परमाणु को मुक्त कर देता है और यह मुक्त नाइट्रोजन दूसरे तरीकों से उपयोग में लाया जा सकता है। नाइट्रोजन यौगीकीकरण वानस्पतिक एवं कुछ अन्य जीवों के लिए अनिवार्य है क्योंकि जीवों के बुनियादी निर्माण, एवं जैविक संश्लेषण के लिए अकार्बनिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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बुलढाणा जिला

भारतीय राज्य महाराष्ट्र का एक जिला है। जिले का मुख्यालय है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.(९,६४० किमी²) जनसंख्या - लिंग गुणोत्तर १.०१ ♂/♀ साक्षरता - ८२.०९% एस.

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भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला

भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory (PRL)) भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत एक अनुसंधान संस्थान है। यहाँ अंतरिक्ष एवं इससे सम्बन्धित विज्ञानों पर अनुसंधान किया जाता है। इसकी स्थापना १९४७ में विक्रम साराभाई ने की थी। यहाँ भौतिकी, अन्तरिक्ष एवं वायुमण्डलीय विज्ञान, खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रहीय एवं भूविज्ञान के चुनिन्दा क्षेत्रों में मूलभूत अनुसन्धान किया जाता है। जून 2018 में, भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 600 प्रकाश वर्ष दूर स्थित हमारे सौर मंडल से बाहर के एक ग्रह ईपीआईसी 211945201 बी या 2के-236बी की खोज की। .

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महाराष्ट्र

महाराष्ट्र भारत का एक राज्य है जो भारत के दक्षिण मध्य में स्थित है। इसकी गिनती भारत के सबसे धनी राज्यों में की जाती है। इसकी राजधानी मुंबई है जो भारत का सबसे बड़ा शहर और देश की आर्थिक राजधानी के रूप में भी जानी जाती है। और यहाँ का पुणे शहर भी भारत के बड़े महानगरों में गिना जाता है। यहाँ का पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है। महाराष्ट्र की जनसंख्या सन २०११ में ११,२३,७२,९७२ थी, विश्व में सिर्फ़ ग्यारह ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या महाराष्ट्र से ज़्यादा है। इस राज्य का निर्माण १ मई, १९६० को मराठी भाषी लोगों की माँग पर की गयी थी। यहां मराठी ज्यादा बोली जाती है। मुबई अहमदनगर पुणे, औरंगाबाद, कोल्हापूर, नाशिक नागपुर ठाणे शिर्डी-अहमदनगर आैर महाराष्ट्र के अन्य मुख्य शहर हैं। .

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संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण

संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण (अंग्रेज़ी: United States Geological Survey या USGS) अमेरिकी सरकार की वैज्ञानिक संस्था है। यूएसजीएस के वैज्ञानिक अमेरिकी धरती, प्राकृतिक संसाधन और प्राकृतिक आपदाओं इत्यादि के बारे में शोधकार्य करते हैं। इस संस्था की चार प्रमुख विज्ञान शाखाएं है जो हैं: भूगोल, जीव विज्ञान, भूगर्भविद्या और जलविज्ञान। यूएसजीएस एक अनुसंधान संस्था है और इसपर कोई विनियामक दायित्व नहीं है। यह संयुक्त राज्य का एकमात्र आंतरिक वैज्ञानिक विभाग है। यूएसजीएस में लगभग १०,००० लोग कार्यरत हैं और इसका मुख्यालय रेस्टन (वर्जीनिया) में स्थित है और अन्य प्रमुख कार्यालय डेनवर (कोलोरैडो) और मेन्लो पार्क (कैलीफोर्निया) में भी स्थित हैं। यूएसजीएस का भूकम्प सूचना केन्द्र गोल्डन (कोलोरैडो) में स्थित है और यह विभाग विश्वभर में भूकम्पों की स्थिति और तीव्रता का पता लगाने का काम करता है। .

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उल्का

आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .

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