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लिव वाइगोत्सकी

सूची लिव वाइगोत्सकी

लिव सिमनोविच वाइगोत्सकी (Лев Семёнович Вы́готский or Выго́тский, जन्मनाम: Лев Симхович Выгодский; 1896 - 1934) सोवियत संघ के मनोवैज्ञानिक थे तथा वाइगोत्स्की मण्डल के नेता थे। उन्होने मानव के सांस्कृतिक तथा जैव-सामाजिक विकास का सिद्धान्त दिया जिसे सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान कहा जाता है। उनका मुख्य कार्यक्षेत्र विकास मनोविज्ञान था। उन्होने बच्चों में उच्च संज्ञानात्मक कार्यों के विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। अपने करीअर के आरम्भिक काल में उनका तर्क था कि तर्क-शक्ति का विकास चिह्नों एवं प्रतीकों के माध्यम से होता है। वाइगोत्स्की का सामाजिक दृषिटकोण संज्ञानात्मक विकास का एक प्रगतिशील विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वस्तुत: वाइगोत्सकी ने बालक के संज्ञानात्मक विकास में समाज एवं उसके सांस्कृतिक संबन्धों के बीच संवाद को एक महत्त्वपूर्ण आयाम घोषित किया। ज़ाँ प्याज़े की तरह वाइगोत्स्की भी यह मानते थे कि बच्चे ज्ञान का निर्माण करते हैं। किन्तु इनके अनुसार संज्ञानात्मक विकास एकाकी नहीं हो सकता, यह भाषा-विकास, सामाजिक-विकास, यहाँ तक कि शारीरिक-विकास के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में होता है। वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए एक विकासात्मक उपागम की आवश्यकता है जो कि इसका शुरू से परीक्षण करे तथा विभिन्न रूपों में हुए परिवर्तन को ठीक से पहचान पाए। इस प्रकार एक विशिष्ट मानसिक कार्य जैसे- आत्म-भाषा को विकासात्मक प्रक्रियाओं के रूप में मूल्यांकित किया जाए, न कि एकाकी रूप से। वाइगोत्सकी के अनुसार संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए उन औजारों का परीक्षण अति आवश्यक है जो संज्ञानात्मक विकास में मध्यस्थता करते हैं तथा उसे रूप प्रदान करते हैं। इसी के आधार पर वे यह भी मानते हैं कि भाषा संज्ञानात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण औजार है। इनके अनुसार आरमिभक बाल्यकाल में ही बच्चा अपने कार्यों के नियोजन एवं समस्या समाधान में भाषा का औजार की तरह उपयोग करने लग जाता है। .

20 संबंधों: चिंतन, बाल मनोविज्ञान, भाषा, मनोविज्ञान, मास्को, मास्को राज्य विश्वविद्यालय, रूसी साम्राज्य, शैक्षिक मनोविज्ञान, सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान, संस्कृति, संज्ञान, संज्ञानात्मक विकास, संज्ञानवाद, सोवियत संघ, जल, ज़ाँ प्याज़े, ज्ञान, विकास, अणु, अधिगम

चिंतन

चिंतन अवधारणाओं, संकल्पनाओं, निर्णयों तथा सिद्धांतो आदि में वस्तुगत जगत को परावर्तित करने वाली संक्रिया है जो विभिन्न समस्याओं के समाधान से जुड़ी हुई है। चिंतन विशेष रूप से संगठित भूतद्रव्य-मस्तिष्क- की उच्चतम उपज है। चिंतन का संबंध केवल जैविक विकासक्रम से ही नहीं अपितु सामाजिक विकास से भी है। चिंतन का उद्भव लोगों के उत्पादन कार्यकलाप की प्रक्रिया के दौरान होता है और वह यथार्थ का व्यवहृत परावर्तन सुनिश्चित करता है। अपने विशिष्ट मूल, क्रियाकलाप के ढंग और परिणामों की दृष्टि से उसका स्वरूप सामाजिक होता है। इसकी पुष्टि इस बात में है कि चिंतन श्रम तथा वाणी के कार्यकलाप से, जो केवल मानव समाज की अभिलाक्षणकताएं हैं, अविच्छेद्य रूप में जुड़ा हुआ है। इसी कारण मनुष्य का चिंतन वाणी के साथ घनिष्ठ रखते हुए मूर्त रूप ग्रहण करता है और उसका परिणाम भाषा के रूप में व्यक्त होता है। .

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बाल मनोविज्ञान

बालमनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें गर्भावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक के मनुष्य के मानसिक विकास का अध्ययन किया जाता है। जहाँ सामान्य मनोविज्ञान प्रौढ़ व्यक्तियों की मानसिक क्रियाओं का वर्णन करता है तथा उनको वैज्ञानिक ढंग से समझने की चेष्टा करता है, वहीं बालमनोविज्ञान बालकों की मानसिक क्रियाओं का वर्णन करता और उन्हें समझाने का प्रयत्न करता है। .

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भाषा

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .

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मनोविज्ञान

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। .

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मास्को

thumb मास्को स्थित रेड स्केव्यर का एक दृश्य मास्को या मॉस्को (रूसी: Москва́ (मोस्कवा)), रूस की राजधानी एवं यूरोप का सबसे बडा शहर है, मॉस्को का शहरी क्षेत्र दुनिया के सबसे बडे शहरी क्षेत्रों में गिना जाता है। मास्को रूस की राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, वित्तीय एवं शैक्षणिक गतिविधियों का केन्द्र माना जाता है। यह मोस्कवा नदी के तट पर बसा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से यह पुराने सोवियत संघ एवं प्राचीन रूसी साम्राज्य की राजधानी भी रही है। मास्को को दुनिया के अरबपतियों का शहर भी कहा जाता है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा अरबपति बसते हैं। २००७ में मास्को को लगातार दूसरी बार दुनिया का सबसे महंगा शहर भी घोषित किया गया था। .

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मास्को राज्य विश्वविद्यालय

१७९८ में मास्को विश्वविद्यालय लोमोनोसोव मास्को राज्य विश्वविद्यालय (रूसी: Московский государственный университет имени М. В. Ломоносова; Lomonosov Moscow State University (MSU) रूस के मास्को नगर में स्थित एक सार्वजनिक अनुसंधान विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना मिखाइल लोमोनोसोव ने 25 जनवरी, 1755 को की थी। इसका वर्तमान नाम १९४० में इसके संस्थापक के नाम पर रखा गया। .

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रूसी साम्राज्य

सन् १८६६ में रूसी साम्राज्य (हरे रंग में) रूसी साम्राज्य (रूसी: Российская Империя, रोसिस्काया इम्पेरिया) सन् १७२१ से १९१७ तक की रूसी क्रांति तक अस्तित्व में रहने वाला एक साम्राज्य था। रूसी साम्राज्य से पहले रूस में रूसी त्सार-राज्य था और उसके बाद बहुत कम अवधि के लिए रूसी गणतंत्र चला और उसके उपरान्त सोवियत संघ स्थापित हुआ। रूसी साम्राज्य दुनिया के सब से बड़े साम्राज्यों में से एक था और केवल मंगोल और ब्रिटिश साम्राज्य ही क्षेत्रफल में उस से बड़े रहे हैं। सन् १८६६ में रूसी साम्राज्य पूर्वी यूरोप से लेकर सुदूर पूर्व एशिया तक और फिर समुद्र के पार उत्तर अमेरिका के कुछ इलाक़ों पर विस्तृत था। १८९७ में सामराज्य की जनसँख्या १२.५६ करोड़ थी।, Jane Burbank, David L. Ransel, Indiana University Press, 1998, ISBN 978-0-253-21241-2,...

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शैक्षिक मनोविज्ञान

गिनतारा, अमूर्त वस्तुओं वस्तुओं को मूर्त बनाकर गणित की मूलभूत बातें सिखाने की युक्ति है। शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है। बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है। .

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सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान

सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान (Cultural-historical psychology), मनोविज्ञान की एक शाखा है जिसका विकास लिव वाइगोत्सकी, अलेक्सांद्र लूरिया तथा उनके मण्डल द्वारा १९२० और १९३० के धशकों के मध्य प्रतुत किया गया। यद्यपि वाइगोत्सकी के लेखन में 'सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान' कहीं भी नहीं आता, किन्तु उनके मण्डल तथा अनुयायियों ने इसी नाम से उनके सिद्धान्त को आगे बढ़ाया। वाइगोत्सकी-लूरिया परियोजना का लक्ष्य एक 'नये मनोविज्ञान' की स्थापना करना था जो मन, मस्तिष्क और संस्कृति के अपृथक्करणीय एकता को की भूमिका को समझा सके। श्रेणी:मनोविज्ञान.

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संस्कृति

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा की धातु ‘कृ’ (करना) से बना है। इस धातु से तीन शब्द बनते हैं ‘प्रकृति’ (मूल स्थिति), ‘संस्कृति’ (परिष्कृत स्थिति) और ‘विकृति’ (अवनति स्थिति)। जब ‘प्रकृत’ या कच्चा माल परिष्कृत किया जाता है तो यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो ‘विकृत’ हो जाता है। अंग्रेजी में संस्कृति के लिये 'कल्चर' शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के ‘कल्ट या कल्टस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है जोतना, विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना। संक्षेप में, किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके। यह ठीक उसी तरह है जैसे संस्कृत भाषा का शब्द ‘संस्कृति’। संस्कृति का शब्दार्थ है - उत्तम या सुधरी हुई स्थिति। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। ऐसी प्रत्येक जीवन-पद्धति, रीति-रिवाज रहन-सहन आचार-विचार नवीन अनुसन्धान और आविष्कार, जिससे मनुष्य पशुओं और जंगलियों के दर्जे से ऊँचा उठता है तथा सभ्य बनता है, सभ्यता और संस्कृति का अंग है। सभ्यता (Civilization) से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति (Culture) से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किन्तु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं। मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है। .

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संज्ञान

कई उदाहरणों को देखकर बुद्धि संज्ञान से उनकी समानताएँ निकाल लेती है और फिर 'वृक्ष' नामक एक उच्च-स्तरीय अवधारणा से वास्तविकता में मौजूद करोड़ों अलग-अलग दिखने वाले वृक्षों को एक ही अवधारणा के प्रयोग से समझने में सक्षम होती है संज्ञान (cognition, कोग्निशन) कुछ महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रियाओं का सामूहिक नाम है, जिनमें ध्यान, स्मरण, निर्णय लेना, भाषा-निपुणता और समस्याएँ हल करना शामिल है। संज्ञान का अध्ययन मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, भाषाविज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान और विज्ञान की कई अन्य शाखाओं के लिए ज़रूरी है। मोटे तौर पर संज्ञान दुनिया से जानकारी लेकर फिर उसके बारे में अवधारणाएँ बनाकर उसे समझने की प्रक्रिया को भी कहा जा सकता है।, CUP Archive, 1988, ISBN 978-0-521-31246-2,...

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संज्ञानात्मक विकास

संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) तंत्रिकाविज्ञान तथा मनोविज्ञान का एक अध्ययन क्षेत्र है जिसमें बालक द्वारा सूचना प्रसंस्करण, भाषा सीखने, तथा मस्तिष्क के विकास के अन्य पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। संज्ञान (कॉग्नीशन) से तात्पर्य मन की उन आन्तरिक प्रक्रियाओं और उत्पादों से है, जो जानने की ओर ले जाती हैं। इसमें सभी मानसिक गतिविधियाँ शामिल रहती हैं- ध्यान देना, याद करना, सांकेतीकरण, वर्गीकरण, योजना बनाना, विवेचना, समस्या हल करना, सृजन करना और कल्पना करना। निश्चित ही हम इस सूची को आसानी से बढ़ा सकते हैं क्योंकि मनुष्यों के द्वारा किये जाने वाले लगभग किसी भी कार्य में मानसिक प्रक्रियाएँ शामिल हो जाती हैं। जीवन निर्वाह के लिए हमारी संज्ञानात्मक शक्तियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। पर्यावरण की बदलती दशाओं के अनुरूप अपने को ढालने में दूसरी प्रजातियों को छद्मावरण, पंखों, फरों और विलक्षण रफ़्तार का लाभ मिलता है। इसके विपरीत, मनुष्य सोचने पर निर्भर करते हैं जिसके द्वारा वे न सिर्फ अपने पर्यावरण के अनुरूप खुद को ढाल लेते हैं बल्कि उसे रूपांतरित भी कर देते हैं। अपनी असाधारण मानसिक क्षमताओं के चलते हम पृथ्वी के समस्त प्राणियों के बीच श्रेष्ठ हो जाते हैं। .

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संज्ञानवाद

मनोविज्ञान में, संज्ञानवाद (cognitivism) मन को समझने का एक सिद्धान्त है जो १९५० के दशक में सामने आया। इस आन्दोलन का जन्म व्यवहारवाद के विरोधस्वरूप हुआ क्योंकि संज्ञानवादियों का मानना था कि व्यवहारवाद, संज्ञान (cognition) की व्याख्या करने से बचता रहा था। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (cognitive psychology) सूचना का प्रसंस्करण करने वाला मनोविज्ञान है और कुछ अंश तक पहले की उन परम्पराओं से व्युत्पन्न हुआ है जिनमें विचारों की तथा समस्याओं के हल करने की प्रक्रिया की जाँच-पड़ताल की जाती थी। .

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सोवियत संघ

सोवियत संघ (रूसी भाषा: Сове́тский Сою́з, सोवेत्स्की सोयूज़; अंग्रेज़ी: Soviet Union), जिसका औपचारिक नाम सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ (Сою́з Сове́тских Социалисти́ческих Респу́блик, Union of Soviet Socialist Republics) था, यूरेशिया के बड़े भूभाग पर विस्तृत एक देश था जो १९२२ से १९९१ तक अस्तित्व में रहा। यह अपनी स्थापना से १९९० तक साम्यवादी पार्टी (कोम्युनिस्ट पार्टी) द्वारा शासित रहा। संवैधानिक रूप से सोवियत संघ १५ स्वशासित गणतंत्रों का संघ था लेकिन वास्तव में पूरे देश के प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर केन्द्रीय सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा। रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणतंत्र (Russian Soviet Federative Socialist Republic) इस देश का सबसे बड़ा गणतंत्र और राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था, इसलिए पूरे देश का गहरा रूसीकरण हुआ। यही कारण रहा कि विदेश में भी सोवियत संघ को अक्सर गलती से 'रूस' बोल दिया जाता था। .

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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ज़ाँ प्याज़े

ज़ाँ प्याज़े (Jean Piaget; 9 अगस्त, 1896 – 16 सितम्बर, 1980) स्विटजरलैण्ड के एक चिकित्सा मनोविज्ञानी थे जो बाल विकास पर किये गये अपने कार्यों के कारण प्रसिद्ध हैं। पियाजे, विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती हैं। अनेक पांडित्यपूर्ण अवधारणाओं के लिए हम पियाजे के ऋणी हैं जिनमें आज भी टिके रहने की क्षमता और आकर्षण है, जैसे समायोजन/आत्मसातकरण (Assimilation), अनुकूलन वस्तु स्थायित्व (object permanence), आत्मकेंन्द्रीकरण (Egocentrism), संरक्षण (conservation), तथा परिकाल्पनिक-निगमित सोच (Hypothetico-deductive reasoning)। बच्चों के सक्रिय, रचनात्मक विचारक होने की वर्तमान दृष्टि के लिए भी हम, विलियम जेम्स तथा जॉन डुई के साथ-साथ, पियाजे के ऋणी हैं। बच्चों का निरीक्षण करने की पियाजे में विलक्षण प्रतिभा थी। उसके सावधानीपूर्वक किये गये प्रेक्षणों ने हमें यह खोजने के सूझबूझ भरे तरीके दिखाये कि बच्चे कैसे अपने संसार के साथ क्रिया करते हैं और तालमेल बिठाते हैं। पियाजे ने हमें संज्ञानात्मक विकास में कुछ खास चीजें खोजना सिखाया, जैसे पूर्वसंक्रियात्मक सोच से मूर्त संक्रियात्मक सोच में होने वाला बदलाव। उसने हमें यह भी दिखाया कि कैसे बच्चों को अपने अनुभवों की संगत अपनी योजनाओं (schemas/congnitive frameworks), संज्ञानात्मक ढांचों और साथ ही साथ अपनी योजनाओं की संगत अपने अनुभवों से बिठाने की जरूरत होती है। पियाजे ने यह भी दिखलाया कि यदि परिवेश की संरचना ऐसी हो जिसमें एक स्तर से दूसरे स्तर तक धीरे-धीरे बढ़ने की सुविधा हो तो, संज्ञानात्मक विकास होने की संभावना रहती है।हम अब इस प्रचलित मान्यता के लिए भी उसके ऋणी हैं कि अवधारणाएं अचानक अपने पूरे स्वरूप में प्रकट नहीं हो जातीं, बल्कि वे ऐसी छोटी-छोटी आंशिक उपलब्धियों की श्रृंखला से होती हुई विकसित होती हैं जिनके परिणाम स्वरूप क्रमशः अधिक परिपूर्ण समझ पैदा होती है। .

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ज्ञान

निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय अप्रिय सुख-दू:ख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। इसका विभाजन विषयों के आधार पर होता है। विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श। ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज; संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अलावा समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है। gyan .

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विकास

विकास नाम से कई लेख हैं:-.

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अणु

साधारण चीनी का अणु - इसमें १२ कार्बन (काला रंग), २२ हाइड्रोजन (सफ़ेद रंग) और ११ आक्सीजन (लाल रंग) के परमाणु एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं अणु पदार्थ का वह छोटा कण है जो प्रकृति के स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है लेकिन रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। रसायन विज्ञान में अणु दो या दो से अधिक, एक ही प्रकार या अलग अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु मजबूत रसायनिक बंधन के कारण आपस में जुड़े रहते हैं और अणु का निर्माण करते हैं। अणु की संकल्पना ठोस, द्रव और गैस के लिये अलग अलग हो सकती है। अणु पदार्थ के सबसे छोटे भाग को कहते हैं। यह कथन गैसो के लिये ज्यादा उपयुक्त है। उदाहरण के लिये, ओक्सीजन गैस उसके स्वतन्त्र अणुओ का एक समूह है। द्रव और ठोस में अणु एक दूसरे से किसी ना किसी बन्धन में रह्ते है, इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है। कई अणु एक दूसरे से जुडे होते है और एक अणु को अलग नहीं किया जा सकता है। अणु में कोई विद्युत आवेश नहीं होता है। अणु एक ही तत्व के परमाणु से मिलकर बने हो सकते हैं या अलग अलग तत्वों के परमाणु से मिलकर। .

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अधिगम

सीखना या अधिगम (जर्मन: Lernen, learning) एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाऐं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। उदाहरणार्थ - छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जानेपर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो जाता है। इसीविचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। .

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