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लाप्लास रूपान्तर

सूची लाप्लास रूपान्तर

लाप्लास रूपान्तर (Laplace transform) एक प्रकार का समाकल रूपान्तर (integral transform) है। यह भौतिकी एवं इंजीनियरी के अनेकानेक क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए परिपथ विश्लेषण में। इसको \displaystyle\mathcal \left\ से निरूपित करते हैं। यह एक रैखिक संक्रिया है जो वास्तविक अर्गुमेन्ट t (t ≥ 0) वाले फलन f(t) को समिश्र अर्गुमेन्ट वाले फलन F(s) में बदल देता है। लाप्लास रूपान्तर, प्रसिद्ध गणितज्ञ खगोलविद पिएर सिमों लाप्लास के नाम पर रखा गया है। लाप्लास रूपान्तर का उपयोग अवकल समीकरण तथा समाकल समीकरण (इंटीग्रल इक्वेशन) हल करने में किया जाता है। .

14 संबंधों: डिरैक डेल्टा फलन, नाभिकीय भौतिकी, परिपथ विश्लेषण, पियेर सिमों लाप्लास, फूर्ये रूपान्तर, भौतिक शास्त्र, रैखिक निकाय, समिश्र संख्या, संवलन, जेड रूपान्तर, किरचॉफ के परिपथ के नियम, अभियान्त्रिकी, अवकल समीकरण, अंतरण प्रकार्य

डिरैक डेल्टा फलन

डिरैक डेल्टा फलन का योजनामूलक निरुपण: तीरयुक्त रेखा डिरैक डेल्टा फलन (Dirac delta function) या डिरैक का डेल्टा फलन या δ फलन वास्तविक संख्या रेखा पर एक सामान्यीकृत फलन या वितरण है जो शून्य के अलावा सर्वत्र शून्य होता है तथा सम्पूर्ण वास्तविक रेखा पर इसका समाकल १ होता है। कभी-कभी डेल्टा फलन को मूलबिन्दु पर अन्नत ऊँची किन्तु अनन्त पतली स्पाइक के रूप में भी समझा जाता है जिसका कुल क्षेत्रफल १ है। इसका उपयोग आदर्श द्रव्यमान के घनत्व या आदर्श आवेश के घनत्व को निरुपित करने के लिये किया जा सकता है। इसका प्रचलन सैद्धान्तिक भौतिकीविद पॉल डिरैक ने किया। संकेत प्रसंस्करण के क्षेत्र में इसे प्रायः 'इकाई आवेग फलन' (unit impulse function) कहते हैं। .

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नाभिकीय भौतिकी

यह भौतिकी की एक शाखा है, जो अणु के नाभि से सम्बंधित है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं:-.

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परिपथ विश्लेषण

विश्लेषण के लिये दो लूप वाला एक सरल परिपथ इस परिपथ में लगे सभी प्रतिरोध '''R''' हों तो इस 'घन' के आमने-सामने के दो कोनों के बीच तुल्य प्रतिरोध '''(5/6)R''' होगा। किसी परिपथ के सभी अवयवों (वोल्टता स्रोत, धारा के स्रोत, प्रतोरोध, संधारित्र, ट्रांजिस्टर आदि) के मान (या अन्य वैशिष्ट्य) दिये होने पर परिपथ की विभिन्न शाखाओं में धारा एवं नोडों की वोल्टता ज्ञात करना परिपथ विश्लेषण (Circuit analysis) कहलाती है। वैश्लेषिक औजारों का उपयोग करते हुए किसी व्यक्ति द्वारा केवल सरल और प्रायः रैखिक नेटवर्कों का विश्लेषण ही किया जा सकता है। हजारों-लाखों अवयवों वाले बड़े परिपथों या अरैखिक अवयवों से युक्त परिपथों का विश्लेषण करने के लिये संगणक द्वारा परिपथ सिमुलेशन (circuit simulation) करना पड़ता है जिसमें कम्प्यूटर प्रोग्राम 'इटरेटिव सन्निकटन विधियों' का सहारा लेकर परिपथ विश्लेषण करता है। परिपथ विश्लेषण ही परिपथ डिजाइन (सर्किट डिजाइन) का आधार है। .

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पियेर सिमों लाप्लास

पियेर सिमों लाप्लास पियेर सिमों लाप्लास (Pierre Simon Laplace, १७४९ ई. - १८२७ ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री तथा खगोलविद थे। लाप्लास का जन्म २८ मार्च १७४९ ई., को एक दरिद्र किसान के परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा धनी पड़ोसियों की सहायता से हुई। .

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फूर्ये रूपान्तर

फूर्ये रूपान्तर (Fourier transform) एक गणितीय रूपान्तर है जो भौतिकी एवं इंजीनियरी में अत्यन्त उपयोगी है। इसका नाम जोसेफ फूर्ये के नाम पर पड़ा है। फूर्ये रूपान्तर समय \scriptstyle f(t) के किसी फलन को एक नए फलन \scriptstyle \hat f or \scriptstyle F, में रूपन्तरित करता है जिसका अर्गुमेन्ट आवृत्ति (रेडियन प्रति सेकेण्ड) है। इस नए फलन F को फलन f का फूर्ये रूपान्तर या 'फ्रेक्वेंसी स्पेक्ट्रम' कहते हैं। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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रैखिक निकाय

रेखीय तन्त्र (Linear systems) वे तन्त्र हैं अध्यारोपण का सिद्धान्त (superposition) तथा स्केलिंग (scaling) के गुण को सन्तुष्ट करते हैं .

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समिश्र संख्या

किसी समिश्र संख्या का अर्गेन्ड आरेख पर प्रदर्शन गणित में समिश्र संख्याएँ (complex number) वास्तविक संख्याओं का विस्तार है। किसी वास्तविक संख्या में एक काल्पनिक भाग जोड़ देने से समिश्र संख्या बनती है। समिश्र संख्या के काल्पनिक भाग के साथ i जुड़ा होता है जो निम्नलिखित सम्बन्ध को संतुष्ट करती है: किसी भी समिश्र संख्या को a + bi, के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें a और b दोनो ही वास्तविक संख्याएं हैं। a + bi में a को वास्तविक भाग तथा b को काल्पनिक भाग कहते हैं। उदाहरण: 3 + 4i एक समिश्र संख्या है। .

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संवलन

दो आयताकार पल्सों का संवलन एक त्रिभुज होता है। गणित में संवलन (convolution) दो फलनों की एक गणितीय संक्रिया है जिससे एक तीसरा फलन प्राप्त होता है। संवलन, अन्तःसहसंबंध (cross-correlation) के समान है। इसका उपयोग फलनीय विश्लेषण तथा संकेत प्रसंस्करण में होता है। कुछ प्रमुख अनुप्रयोग हैं- प्रायिकता, सांख्यिकी, संगणक दृष्टि (computer vision), छबि प्रसंस्करण, संकेत प्रसंस्करण, अवकल समीकरण आदि। .

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जेड रूपान्तर

गणित एवं संकेत प्रसंस्करण में जेड रूपान्तर (Z-transform) किसी डिस्क्रीट टाइम-डोमेन संकेत को समिश्र (कम्प्लेक्स) आवृत्ति-डोमेन में बदलता है। डिस्क्रीट टाइम-डोमेन संकेत से तात्पर्य ऐसे संकेत से है जो केवल कुछ निश्चित समयों पर अशून्य मान रखता है, शेष समय वह शून्य रहता है। जेड-रूपान्तर को लाप्लास रूपान्तर का विविक्त-समय अनुरूप (discrete-time equivalent) के रूप में समझा जा सकता है। इसका उपयोग आंकिक संकेत प्रसंस्करण (डीएसपी) एवं आंकिक नियंत्रण (डिजिटल कन्ट्रोल) में किया जाता है। .

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किरचॉफ के परिपथ के नियम

गुस्टाव किरचॉफ सन् १८४५ में गुस्ताव किरचॉफ (या, गुस्ताव किरखॉफ) ने विद्युत परिपथों में वोल्टता एवं धारा सम्बन्धी दो नियम प्रतिपादित किये। ये दोनो नियम संयुक्त रूप से किरचॉफ के परिपथ के नियम कहलाते हैं। ये नियम विद्युत परिपथों के लिये वस्तुत: आवेश संरक्षण एवं उर्जा संरक्षण के नियमों के भिन्न रूप हैं। ये नियम वैद्युत इंजीनियरी से सम्बन्धित गणनाओं के आधार हैं और बहुतायत में प्रयोग होते हैं। ये दोनो नियम मैक्सवेल के समीकरणों से सीधे व्युत्पन्न किये जा सकते हैं किन्तु इतिहास यह है कि किरचॉफ ने इन्हें मैक्सवेल से पहले प्रतिपादित कर दिया था। .

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अभियान्त्रिकी

लोहे का 'कड़ा' (O-ring): कनाडा के इंजिनियरों का परिचय व गौरव-चिह्न सन् 1904 में निर्मित एक इंजन की डिजाइन १२ जून १९९८ को अंतरिक्ष स्टेशन '''मीर''' अभियान्त्रिकी (Engineering) वह विज्ञान तथा व्यवसाय है जो मानव की विविध जरूरतों की पूर्ति करने में आने वाली समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है। इसके लिये वह गणितीय, भौतिक व प्राकृतिक विज्ञानों के ज्ञानराशि का उपयोग करती है। इंजीनियरी भौतिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है; औद्योगिक प्रक्रमों का विकास एवं नियंत्रण करती है। इसके लिये वह तकनीकी मानकों का प्रयोग करते हुए विधियाँ, डिजाइन और विनिर्देश (specifications) प्रदान करती है। .

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अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

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अंतरण प्रकार्य

इंजीनियरिंग में, किसी गतिकीय तंत्र के आउटपुट के लाप्लास ट्रान्सफॉर्म तथा इन्पुट के लाप्लास ट्रान्सफॉर्म के अनुपात को अन्तरण प्रकार्य (transfer function या system function या network function) कहते हैं। (इनपुट का आरम्भिक मान .

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