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शिश्न

सूची शिश्न

शिश्न की संरचना: 1 — मूत्राशय, 2 — जघन संधान, 3 — पुरस्थ ग्रन्थि, 4 — कोर्पस कैवर्नोसा, 5 — शिश्नमुंड, 6 — अग्रत्वचा, 7 — कुहर (मूत्रमार्ग), 8 — वृषणकोष, 9 — वृषण, 10 — अधिवृषण, 11— शुक्रवाहिनी शिश्न (Penis) कशेरुकी और अकशेरुकी दोनो प्रकार के कुछ नर जीवों का एक बाह्य यौन अंग है। तकनीकी रूप से शिश्न मुख्यत: स्तनधारी जीवों में प्रजनन हेतु एक प्रवेशी अंग है, साथ ही यह मूत्र निष्कासन हेतु एक बाहरी अंग के रूप में भी कार्य करता है। शिश्न आमतौर स्तनधारी जीवों और सरीसृपों में पाया जाता है। हिन्दी में शिश्न को लिंग भी कहते हैं पर, इन दोनो शब्दों के प्रयोग में अंतर होता है, जहाँ शिश्न का प्रयोग वैज्ञानिक और चिकित्सीय संदर्भों में होता है वहीं लिंग का प्रयोग आध्यात्म और धार्मिक प्रयोगों से संबंद्ध है। दूसरे अर्थो में लिंग शब्द, किसी व्यक्ति के पुरुष (नर) या स्त्री (मादा) होने का बोध भी कराता है। हिन्दी में सभी संज्ञायें या तो पुल्लिंग या फिर स्त्रीलंग होती हैं। .

21 संबंधों: ऊतक, नर, फाइमोसिस, मैथुन, मूत्र, यौन अंग, योनि, लिंग, शिश्न मुण्ड, शुक्राणु, सम्भोग, संतुलन, स्तंभन, स्तंभास्थि, स्वप्नदोष, जनन, वृषण, वीर्य, वीर्य स्खलन, खतना, कशेरुकी प्राणी

ऊतक

ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति में असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) के रूप में जाना जाता है। .

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नर

मानव के नरों को पुरुष (♂) कहा जाता है। एक जीव का लिंग है जो की छोटे मोबाइल गमेट्स पैदा करता हैं जिसे की स्पर्म या शुक्राणु भी कहते हैं। हर एक शुक्राणु एक मादा अंडे के साथ क्रिया कर एक गर्भ के रूप में विकास कर सकता हैं। हर कोई प्रजाति इस पुरुष और स्त्री के पहचान से नहीं जानी जा सकती है। इंसानों और जानवरों में लिंग जहाँ लिंग (अंग) से बताया जा सकता हैं वही अन्य जीवो में यह कई अन्य बातों पर निर्भर करता हैं। .

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फाइमोसिस

शिश्न के आगे की त्वचा संकरी हो जाती है। फाइमोसिस से ग्रस्त शिश्न के खड़ा होने पर भी शिश्न मुण्ड से त्वचा पीछे नहीं आ पाती फाइमोसिस (phimosis) या निरुद्धप्रकाश शिश्न का एक विकार है। इस्से ग्रस्त शिश्न के मुण्ड की त्वचा पीछे नहीं खींची जा पाती जिससे शिश्नमुंड बाहर नहीं निकल पाता। बच्चे में फाइमोसिस होना सामान्य बात है। इसके लिए किसी उपाय की जरूरत नहीं होती। समय के साथ यह स्वयं समाप्त हो जाती है। किन्तु युवाओं में फाइमोसिस असामान्य होती है जो किसी संक्रमण या उत्तेजना अथवा सामने की चमड़ी के इन्फेक्शन से हो सकती है। इससे यह चमड़ी पीछे नहीं जाती। पैराफामोसिस जब शिश्न के शीर्ष से त्वचा सदा ही पीछे हटी रहती है तो उसे पैराफाइमोसिस कहते हैं। यह अपने स्थान पर नहीं आ पाती और शिश्न मुण्ड को नहीं ढक पाती। ऐसी स्थिति में शिश्न का शीर्ष फंस सकता है और रक्त संचार कम होने के कारण गंभीर समस्या हो सकती है। .

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मैथुन

मैथुन जीव विज्ञान में आनुवांशिक लक्षणों के संयोजन और मिश्रण की एक प्रक्रिया है जो किसी जीव के नर या मादा (जीव का लिंग) होना निर्धारित करती है। मैथुन में विशेष कोशिकाओं (गैमीट) के मिलने से जिस नये जीव का निर्माण होता है, उसमें माता-पिता दोनों के लक्षण होते हैं। गैमीट रूप व आकार में बराबर हो सकते हैं परन्तु मनुष्यों में नर गैमीट (शुक्राणु) छोटा होता है जबकि मादा गैमीट (अण्डाणु) बड़ा होता है। जीव का लिंग इस पर निर्भर करता है कि वह कौन सा गैमीट उत्पन्न करता है। नर गैमीट पैदा करने वाला नर तथा मादा गैमीट पैदा करने वाला मादा कहलाता है। कई जीव एक साथ दोनों पैदा करते हैं जैसे कुछ मछलियाँ। .

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मूत्र

मानव का मूत्र-तंत्र मूत्र, मानव और अन्य कशेरुकी जीवों मे वृक्क (गुर्दे) द्वारा स्रावित एक तरल अपशिष्ट उत्पाद है। कोशिकीय चयापचय के परिणामस्वरूप कई अपशिष्ट यौगिकों का निर्माण होता है, जिनमे नाइट्रोजन की मात्रा अधिक हो स्कती है और इनका रक्त परिसंचरण तंत्र से निष्कासन अति आवश्यक होता है। आयुर्वेद अनुसार मूत्र को तीन प्रकार के मलो में शामिल किया है एवं शरीर मे इसका प्रमाण 4 अंजली माना गया है । .

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यौन अंग

यौन अंग, शरीर के वह अंग होते हैं, जो किसी जीव की प्रजनन प्रकिया में सम्मिलित होने के साथ साथ उसके प्रजनन तंत्र का रचना भी करते हैं। स्तनधारियों के प्रमुख यौन अंग हैं: -.

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योनि

मादा के जननांग को योनि (वेजाइना) कहा जाता है। इसके पर्यायवाची शब्द भग, आदि हैं। सामान्य तौर पर "योनि" शब्द का प्रयोग अक्सर भग के लिये किया जाता है, लेकिन जहाँ भग बाहर से दिखाई देने वाली संरचना है वहीं योनि एक विशिष्ट आंतरिक संरचना है। .

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लिंग

व्याकरण से सम्बन्धित 'लिंग' के लिये लिंग (व्याकरण) देखें। ---- मानव पुरुष और स्त्री का वाह्य दृष्य जीवविज्ञान में लिंग (Sex, Gender) से तात्पर्य उन पहचानों या लक्षणों से जिनके द्वारा जीवजगत् में नर को मादा से पृथक् पहचाना जाता है। जंतुओं में असंख्य जंतु ऐसे होते हैं जिन्हें केवल बाह्य चिह्नों से ही नर, या मादा नहीं कहा जा सकता। नर तथा मादा का निर्णय दो प्रकार के चिह्नों, प्राथमिक (primary) और गौण (secondary) लैंगिक लक्षणों (sexual characters), द्वारा किया जाता है। वानस्पतिक जगत् में नर तथा मादा का भेद, विकसित प्राणियों की भाँति, पृथक्-पृथक् नहीं पाया जाता। जो की सत्य है। .

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शिश्न मुण्ड

नर मानव की शरीर रचना के सन्दर्भ में, शिश्न के अन्तिम भाग के गोलीय भाग को शिश्न मुण्ड (glans penis) कहते हैं। नर मानव का शिश्न मुंद तथा मादा मानव (स्त्रियों) का भगशिश्निका मुंड (clitoral glans) समजात अंग (homologous) हैं। श्रेणी:मानव शारीरिकी.

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शुक्राणु

नर शुक्राणु का मादा के अंडाणुओं से मिलन शुक्राणु(स्पर्म) शब्द यूनानी शब्द (σπέρμα) स्पर्मा से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है 'बीज' जिसका अर्थ पुरुष की प्रजनन कोशिकाओं से है। विभिन्न प्रकार के यौन प्रजननो जैसे एनिसोगैमी (anisogamy) और ऊगैमी (oogamy) में एक चिह्नित अंतर है, जिसमें छोटे आकार के युग्मकों (gametes) को 'नर' या शुक्राणु कोशिका कहा जाता है। पुरुष शुक्राणु अगुणित होते है इसलिए पुरुष के २३ गुण सूत्र (chromosome) मादा के अंडाणुओं के २३ गुणसूत्रों के साथ मिलकर द्विगुणित बना सकते है। एक मानव शुक्राणु सेल के आरेख अवधि शुक्राणु यूनानी (σπέρμα) शब्द sperma से ली गई है (जिसका अर्थ है "बीज") और पुरुष प्रजनन कोशिकाओं को संदर्भित करता है। यौन प्रजनन anisogamy और oogamy के रूप में जाना जाता है के प्रकार में, वहाँ छोटे "पुरुष" या शुक्राणु सेल कहा जा रहा है एक के साथ gametes के आकार में एक स्पष्ट अंतर है। एक uniflagellar शुक्राणु सेल चलता - फिरता है, एक शुक्राणु के रूप में जाना जाता है, जबकि एक गैर motile शुक्राणु सेल एक spermatium रूप में करने के लिए भेजा है। शुक्राणु कोशिकाओं के विभाजन और एक सीमित जीवन काल है, कर सकते हैं लेकिन अंडे की कोशिकाओं के साथ निषेचन के दौरान विलय के बाद, एक नया जीव के विकास, एक totipotent युग्मनज के रूप में शुरू शुरू होता है मानव शुक्राणु सेल अगुणित है, ताकि अपने 23 क्रोमोसोम में शामिल कर सकते हैं। मादा अंडे के 23 गुणसूत्रों एक द्विगुणित सेल बनाने के लिए। स्तनधारियों में, शुक्राणु अंडकोष में विकसित और है लिंग से जारी है। .

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सम्भोग

सम्भोग (अंग्रेजी: Sexual intercourse या सेक्सुअल इन्टरकोर्स) मैथुन या सेक्स की उस क्रिया को कहते हैं जिसमे नर का लिंग मादा की योनि में प्रवेश करता हैं। सम्भोग अलग अलग जीवित प्रजातियों के हिसाब से अलग अलग प्रकार से हो सकता हैं। सम्भोग को योनि मैथुन, काम-क्रीड़ा, रति-क्रीड़ा भी कहते हैं। संभोग की क्रिया केवल पति-पत्नी के बीच ही हो सकती है । यदि कोई महिला या पुरुष अपने पति-पत्नी के अलावा किसी और से संबंध बनाता है । तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। इस अपराध की सजा भारत मे 30 साल की उम्रकैद है। यदि कोई स्त्री पुरुष अपने पति पत्नी को छोड़कर किसी अन्य से संबंध बनाता बनाती है । तो उस स्त्री अथवा पुरुष का उसकी पति अथवा पत्नी से तलाक हो जाता है । तथा उस स्त्री अथवा पुरुष को 30 साल की जेल होती है। विवाह से पूर्व संभोग करने भी अपराध की श्रेणी में आता है । इसकी दज यह है कि उस उन दोनों का विवाह करना अनिवार्य हो जाता है । तथा वे एक-दूसरे से जीवन भर तलाक नही ले सकते है । और किसी अन्य से संभोग भी नही कर सकते है । सृष्टि में आदि काल से सम्भोग का मुख्य काम वंश को आगे चलाना व बच्चे पैदा करना है। जहाँ कई जानवर व पक्षी सिर्फ अपने बच्चे पैदा करने के लिए उपयुक्त मौसम में ही सम्भोग करते हैं वहीं इंसानों में सम्भोग इस वजह के बिना भी हो सकता हैं। सम्भोग इंसानों में सुख प्राप्ति या प्यार या जज्बात दिखाने का भी एक रूप हैं। सम्भोग अथवा मैथुन से पूर्व की क्रिया, जजिसे अंग्रेजी में फ़ोर प्ले कहते हैं, के दौरान हर प्राणी के शरीर से कुछ विशेष प्रकार की गन्ध (फ़ीरोमंस) उत्सर्जित होती है जो विषमलिंगी को मैथुन के लिये अभिप्रेरित व उत्तेजित करती है। कुछ प्राणियों में यह मौसम के अनुसार भी पाया जाता है। वस्तुत: फ़ोर प्ले से लेकर चरमोत्कर्ष की प्राप्ति तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया ही सम्भोग कहलाती है बशर्ते कि लिंग व्यवहार का यह कार्य विषमलिंगियों के बीच हो रहा हो। कई ऐसे प्रकार के सम्भोग भी हैं जिसमें लिंग का उपयोग नर और मादा के बीच नहीं होता जैसे मुख मैथुन, हस्तमैथुन अथवा गुदा मैथुन उन्हें मैथुन तो कहा जा सकता है परन्तु सम्भोग कदापि नहीं। उपरोक्त प्रकार के मैथुन अस्वाभाविक अथवा अप्राकृतिक व्यवहार के अन्तर्गत आते हैं या फिर सम्भोग के साधनों के अभाव में उन्हें केवल मनुष्य की स्वाभाविक आत्मतुष्टि का उपाय ही कहा जा सकता है, सम्भोग नहीं। .

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संतुलन

संतुलन या साम्य या साम्यावस्था (इक्विलिब्रिअम) से तात्पर्य किसी निकाय की उस अवस्था से है जब दो या अधिक परस्पर विरोधी वस्तुओं या बलों के होने पर भी 'स्थिरता' (अगति) का दर्शन हो। बहुत से निकायों में साम्यावस्था देखने को मिलती है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से संतुलन का अर्थ निम्नलिखित है- .

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स्तंभन

स्तम्भन क्रम (लिंग बृद्धि की चार अवस्थाओं के चित्र) स्तम्भन से अभिप्राय शिश्न (लिंग) के आकार में बढ़ने और कड़ा होने से है, जो यौनिच्छा करने पर शिश्न के उत्तेजित होने के कारण होता है, यद्यपि यह गैर यौन स्थितियों में भी हो सकता है। प्राथमिक शारीरिक तन्त्र जिसके चलते स्तम्भन होता है, में शिश्न की धमनियाँ स्वतः फैल जाती हैं, जिसके कारण अधिक रक्त शिश्न के तीन स्पंजी ऊतक कक्षों में भर जाता है जो इसे लम्बाई और कठोरता प्रदान करता है। यह रक्त से भरे ऊतक रक्त को वापस ले जाने वाली शिराओं पर दबाव डाल कर सिकोड़ देते हैं, जिसके कारण अधिक रक्त प्रवेश करता है और कम रक्त वापस लौटता है। थोड़ी देर बाद एक साम्यावस्था अस्तित्व में आ जाती है जिसमें फैली हुई धमनियों और सिकुडी़ हुई शिराओं में रक्त की समान मात्रा बहने लगती है और इस साम्यावस्था के कारण शिश्न को एक निश्चित स्तम्भन आकार स्वत: ही मिल जाता है। स्तम्भन यद्यपि संभोग के लिये आवश्यक है पर विभिन्न अन्य यौन गतिविधियों के लिए यह आवश्यक नहीं है। .

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स्तंभास्थि

रैकून की स्तंभास्थि. स्तंभास्थि (अंग्रेजी:baculum) जिसे शिश्नास्थि या लिंग की हड्डी, भी कहा जाता है प्रायः सभी स्तनधारियों के शिश्न में पायी जाती है। परन्तु यह मनुष्यों, अश्व परिवार के सदस्यों (घोडा़, गधा आदि), शिशुधानी वाले जीवों (कंगारू), शशक परिवार के सदस्यों (खरगोश, खरहा) और लकड़बग्घों मे अनुपस्थित होती है। इसका प्रयोग संभोग के लिए किया जाता है और अलग प्रजातियों मे इसका आकार और आकृति अलग अलग होती है। इसकी विशेषताओं का उपयोग कभी कभी प्रजातियों के बीच अंतर करने के लिए किया जाता है। बड़े उत्तरी मांसाहारी जानवरों जैसे वॉलरस आदि की एक चमकाई हुई और नक़्क़ाशीदार स्तंभास्थि को अलास्काई संस्कृति मे उसिक (oosik) कहा जाता है। रैकून की स्तंभास्थि को कभी कभी किस्मत या यौनाकर्षण के लिए पहना जाता है। .

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स्वप्नदोष

अपने नाम के विपरीत स्वप्नदोष (Nocturnal emission) कोई दोष न होकर एक स्वाभाविक दैहिक क्रिया है जिसके अंतर्गत एक पुरुष को नींद के दौरान वीर्यपात (स्खलन) हो जाता है। यह महिने में अगर 1 या 2 बार ही हो तो सामान्य बात कही जा सकती है।और यह कहा जा सकता है कि कोई रोग नहीं है किन्तु यदि यह इससे ज्यादा बार होता है तो वीर्य की या शुक्र की हानि होती है और व्यक्ति को शारीरिक कमजोरी का अहसास होता है। क्योंकि यह शुक्र भी रक्त कणों से पैदा होता है। अतः अत्यधिक शुक्र क्षय व्यक्ति को कमजोर कर देता हैं। स्वप्नदोष, किशोरावस्था और शुरुआती वयस्क वर्षों में के दौरान होने वाली एक सामान्य घटना है, लेकिन यह उत्सर्जन यौवन के बाद किसी भी समय हो सकता है। आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक पुरुष स्वप्नदोष को अनुभव करे, जहां अधिकांश पुरुष इसे अनुभव करते हैं वहीं कुछ पूर्ण रूप से स्वस्थ और सामान्य पुरुष भी इसका अनुभव नहीं करते। स्वप्नदोष के दौरान पुरुषों को कामोद्दीपक सपने आ सकते हैं और यह स्तंभन के बिना भी हो सकता है। .

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जनन

जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं। जीवधारियों के अंतअंतहेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है। .

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वृषण

अंडकोष पुरूष के नीचे एक थैली होती है। इसे स्क्रोटम कहा जाता है। इस थैली की त्वचा ढीली होती है। जो गर्मियों में अधिक बढ़कर लटक जाती है तथा सर्दियों में सिकुड़कर छोटी होती है। इसके अंदर वृषण होते है इनका मुख्य कार्य शुक्राणु और पुरूष उत्तेजित द्रव को बनाना होता है। वे पुरूष जो आग के सामने कार्य करते है, अधिक गर्म पानी से नहाते हैं। यह कच्छा को अधिक कसकर बांधते हैं। उनके अंडकोष से शुक्राणु कम मात्रा में या नहीं बन पाते है। अंडकोश की लंबाई 5 cm सेमी और चौड़ाई 2.5 सेमी होती है। इसमें रक्त का संचार बहुत अधिक होता है। दोनों तरफ के अंडकोष एक नलिका के द्वारा जुड़े होते हैं। जिसको वास डिफेरेन्स कहते है तथा दूसरी तरफ ये अन्य ग्रंथि से जुड़े रहते हैं। जिनको सेमिनाल वेसाईकल कहते है। Image:Hanging testicles.JPG| Image:Human_Scrotum.JPG| .

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वीर्य

ऑल्ट.

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वीर्य स्खलन

यौन संगम या हस्त मैथुन के समय जब पुरुष के शिश्न (पुरुष जननांग या लिंग) में यौन उत्तेजना होती है और यौन-उत्तेजना के चरम बिन्दु पर शिश्न से वीर्य निकलता है, इसे ही वीर्यपात या वीर्यस्खलन (ejaculation) कहते हैं। वीर्यपात के समय पुरुष को चरमानन्द प्राप्त होता है। स्खलन शूरू होने की उम्र क्या है? सामान्यतः 10 से 15 वर्ष की आयु में बच्चा प्रथम बार हस्त मैथुन करता है। स्खलन में वीर्य की मात्रा 5ml से 20ml तक होती है। .

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खतना

मध्य एशिया (तुर्कमेनिस्तान की अधिकांश सम्भावना) में खतना किया जा रहा है, लगभग1865-1872.अंडे की सफ़ेदी के निशान को बहाल रखा गया। खतना खतना पुरूषों का खतना उनके शिश्न की अग्र-त्वचा(खाल) को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटा देने की प्रक्रिया है। “खतना (circumcision)" लैटिन भाषा का शब्द है circum (अर्थात “आस-पास”) और cædere (अर्थात “काटना”).

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कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

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