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लजान्द्र रूपान्तर

सूची लजान्द्र रूपान्तर

लजान्द्र रूपान्तर की ज्यामितीय व्याख्या गणित में किसी वास्तविक मान वाले, तथा सभी बिन्दुओं पर अवकलनीय फलन f तथा g में निम्नलिखित सम्बन्ध हो तो g को f का लजान्द्र रूपान्तर (LegendreTransform) कहा जाता है। इस रूपान्तर का नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ आद्रियें मारि लजान्द्र (Adrien-Marie Legendre) के नाम पर पड़ा है। जहाँ D, अवकलज (डिफरेंशियल) का प्रतीक है तथा दाहिनी ओर आने वाला -1, प्रतिलोम फलन को सूचित कर रहा है। यह आसानी से दिखाया जा सकता है कि g, f का लजान्द्र रूपान्तर हो तो f, g का लजान्द्र रूपान्तर होगा उदाहरण के लिये, फलन f(x).

12 संबंधों: प्रतिलोम फलन, फलन, फूर्ये रूपान्तर, यांत्रिकी, लाप्लास रूपान्तर, सांख्यिकीय यांत्रिकी, गणित, आद्रियें मारि लजान्द्र, अवमुख फलन, अवकल समीकरण, अवकलज, उष्मागतिकी

प्रतिलोम फलन

फलन ƒ तथा इसका प्रतिलोम ƒ–1. फलन ƒ, a को 3 से प्रतिचित्रित करता है, इसलिये प्रतिलोम फलन ƒ–1, 3 का प्रतिचित्रण पुनः a पर कर रहा है। गणित में किसी फलन का प्रतिलोम फलन (inverse function) उस फलन को कहते हैं जो मूल फलन द्वारा किये गये परिवर्तन को बदलकर मूल रूप में ला दे। किसी फलन ƒ में x रखने पर परिणाम y मिलता है तो ƒ के प्रतिलोम फलन में y रखने पर परिणाम x मिलेगा, अर्थात् ƒ(x).

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फलन

''X'' के किसी सदस्य का ''Y'' के केवल एक सदस्य से सम्बन्ध हो तो वह फलन है अन्यथा नहीं। ''Y''' के कुछ सदस्यों का '''X''' के किसी भी सदस्य से सम्बन्ध '''न''' होने पर भी फलन परिभाषित है। गणित में जब कोई राशि का मान किसी एक या एकाधिक राशियों के मान पर निर्भर करता है तो इस संकल्पना को व्यक्त करने के लिये फलन (function) शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज की राशि मूलधन, समय एवं ब्याज की दर पर निर्भर करती है; इसलिये गणित की भाषा में कह सकते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज, मूलधन, ब्याज की दर तथा समय का फलन है। स्पष्ट है कि किसी फलन के साथ दो प्रकार की राशियां सम्बन्धित होती हैं -.

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फूर्ये रूपान्तर

फूर्ये रूपान्तर (Fourier transform) एक गणितीय रूपान्तर है जो भौतिकी एवं इंजीनियरी में अत्यन्त उपयोगी है। इसका नाम जोसेफ फूर्ये के नाम पर पड़ा है। फूर्ये रूपान्तर समय \scriptstyle f(t) के किसी फलन को एक नए फलन \scriptstyle \hat f or \scriptstyle F, में रूपन्तरित करता है जिसका अर्गुमेन्ट आवृत्ति (रेडियन प्रति सेकेण्ड) है। इस नए फलन F को फलन f का फूर्ये रूपान्तर या 'फ्रेक्वेंसी स्पेक्ट्रम' कहते हैं। .

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यांत्रिकी

यांत्रिकी (Mechanics) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें पिण्डों पर बल लगाने या विस्थापित करने पर उनके व्यवहार का अध्ययन करती है। यांत्रिकी की जड़ें कई प्राचीन सभ्यताओं से निकली हैं। .

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लाप्लास रूपान्तर

लाप्लास रूपान्तर (Laplace transform) एक प्रकार का समाकल रूपान्तर (integral transform) है। यह भौतिकी एवं इंजीनियरी के अनेकानेक क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए परिपथ विश्लेषण में। इसको \displaystyle\mathcal \left\ से निरूपित करते हैं। यह एक रैखिक संक्रिया है जो वास्तविक अर्गुमेन्ट t (t ≥ 0) वाले फलन f(t) को समिश्र अर्गुमेन्ट वाले फलन F(s) में बदल देता है। लाप्लास रूपान्तर, प्रसिद्ध गणितज्ञ खगोलविद पिएर सिमों लाप्लास के नाम पर रखा गया है। लाप्लास रूपान्तर का उपयोग अवकल समीकरण तथा समाकल समीकरण (इंटीग्रल इक्वेशन) हल करने में किया जाता है। .

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सांख्यिकीय यांत्रिकी

सांख्यिकीय यांत्रिकी (Statistical mechanics) गणितीय भौतिकी की वह शाखा है जिसमें प्रायिकता सिद्धान्त का उपयोग करते हुए यांत्रिक निकाय के माध्य-व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। श्रेणी:भौतिकी *.

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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आद्रियें मारि लजान्द्र

आद्रियें मारि लजान्द्र आद्रियें मारि लजान्द्र (Adrien Marie Legendre, ध्वन्यात्मक लिपि में फ्रांसीसी उच्चरण: ​ / सन् १७५२ से १८३३) फ्रांसीसी गणितज्ञ थे। लजान्द्र बहुपद (Legendre polynomials) तथा लजान्द्र रूपान्तरण (Legendre transformation) उनके नाम पर आधारित हैं। लजान्द्र का जन्म १८ सितम्बर १७५२ ई. को पेरिस में हुआ था। इन्होंने शिक्षा पैरिस में प्राप्त की। गणित जगत् में इनकी ख्याति दीर्घवृत्तीय समाकलों (एलिपिटिकल इन्टिग्रल) एवं फलनों, संख्याओं के सिद्धांत, दीर्घवृत्तज एवं उपगोल के आकर्षण और लघुतम वर्ग संबंधित शोधों के कारण है। इनके अतिरिक्त इन्होंने भू-मापन विज्ञान के अनेक सूत्रों एवं प्रमेयों और 'लजाँद्र के फलन' का भी आविष्कार किया। इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'फौक्स्येजेलिप्तिक' (Fonctions Elliptiques), भाग १ और २, (१८२५ ई., १८२६ ई.), 'काल्क्यलैतेग्राल' (Calcul Integral), भाग १, २ और ३ (१८११, १६, १७), 'थेओरि दे नौम्ब्रेस' (Theorie des Nombres, सन् १८३०) और 'एलेमां द जेओमेत्रि' (Elements de Geometrie, सन् १७९४) हैं। १० जनवरी १८३३ ई. को पैरिस में इनकी मृत्यु हो गई। .

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अवमुख फलन

अवमुख फलन उन्मुख फलन गणित में, किसी अन्तराल में परिभाषित वास्तविक-मान फलन f(x) अवमुख फलन कहा जाता है यदि इस फलन के ग्राफ के किसी दो बिन्दुओं को मिलाने वाली सरल रेखा खण्ड सभी बिन्दुओं पर उस ग्राफ के ऊपर स्थित हो। स्विघात फलन f(x).

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अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

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अवकलज

एक वक्र के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रवणता (स्लोप) वास्तव में उस बिन्दु पर '''x''' के सापेक्ष '''y''' का मान बढ़ने की दर के बराबर होता है। किसी चर राशि के किसी अन्य चर राशि के सम्बन्ध में तात्कालिक बदलाव की दर की गणना को अवकलन (Differentiation) कहते हैं तथा इस क्रिया द्वारा प्राप्त दर को अवकलज (Derivative) कहते हैं। यह किसी फलन को किसी चर राशि के साथ बढ़ने की दर को मापता है। जैसे यदि कोई फलन y किसी चर राशि x पर निर्भर है और x का मान x1 से x2 करने पर y का मान y1 से y2 हो जाता है तो (y2-y1)/(x2-x1) को y का x के सन्दर्भ में अवकलज कहते हैं। इसे dy/dx से निरूपित किया जाता है। ध्यान रहे कि परिवर्तन (x2 - x1) सूक्ष्म से सूक्ष्मतम (tend to zero) होना चाहिये। इसीलिये सीमा (limit) का अवकलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी वक्र (curve) का किसी बिन्दु पर प्रवणता (slope) जानने के लिये उस बिन्दु पर अवकलज की गणना करनी पड़ती है।; परिभाषा फलन ƒ का बिन्दु a पर अवकलज निम्नलिखित सीमा के बराबर होता है (बशर्ते सीमा का अस्तित्व हो) - यदि सीमा का अस्तित्व है तो ƒ बिन्दु a पर अवकलनीय कहलाता है।; उदाहरण d/dx (ज्या(x)) .

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उष्मागतिकी

भौतिकी में उष्मागतिकी (उष्मा+गतिकी .

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