पंडित लखमी चंद (जन्म: 1903, मृत्यु: 1948) हरियाणवी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि व लोक कलाकार थे। हरियाणवी रागनी व सांग में उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें "सूर्य-कवि" कहा जाता है। उन्हें "हरियाणा का शेक्सपियर" भी कहा जाता है। उनका जन्म सोनीपत जिले के जट्टी कलां गाँव में हुआ था तथा मात्र ४५ वर्ष की आयु में ही वे चल बसे। उनके नाम पर साहित्य के क्षेत्र में कई पुरस्कार दिए जाते हैं। उनके द्वारा रचित कुछ प्रमुख सांग हैं: नल-दमयंती, मीराबाई, सत्यवान सावित्री, सेठ तारा चंद, पूरन भगत व शशि लकड़हारा आदि। उनके सुपुत्र पंडित तुलेराम ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया। आजकल उनके पौत्र विष्णु उनकी इस परंपरा का हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के गाँवों तक प्रसार करने हेत प्रयासरत हैं। .
1 संबंध: सांग।
सांग हिंदी शब्द 'स्वाँग' का अपभ्रंश है। उत्तरी भारत में हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान राज्यों में प्रचलित सांग एक प्रकार की संगीतमय नाटिका होती है, जिसमें लोककथाओं को लोकगीत, संगीत व नृत्य आदि से नाट्यबद्ध किया जाता है। इस विधा में पंडित लखमी चंद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने ६५ के लगभग सांग लिखे हैं, जिसके कारण उन्हें सांग-सम्राट तथा हरियाणा का सूर्यकवि कहा जाता है। .
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पंडित लखमी चंद, लख्मी चंद।