6 संबंधों: रैखिक बीजगणित, गणित, गाउस विलोपन, आव्यूह, क्रैमर-नियम, अंकीय संकेत प्रक्रमण।
रैखिक बीजगणित
रैखिक बीजगणित (Linear algebra) गणित की एक शाखा है जो सदिश आकाश (वेक्टर स्पेस) तथा उन आकाशों के बीच रैखिक प्रतिचित्रण से सम्बन्धित है। रैखिक बीजगणित का आरम्भ अनेकों अज्ञात राशियों वाले युगपत समीकरणों के हल से हुआ। ऐसे समीकरण प्रायः मैट्रिक्स और सदिशों का उपयोग करके निरूपित किए जाते हैं। शुद्ध गणित और अनुप्रयुक्त गणित- दोनों में ही रैखिक बीजगणित की केन्द्रीय भूमिका है। कैलकुलस और रैखिक गणित के सम्मिलित प्रयोग से रैखिक अवकल समीकरण हल किए जाते हैं। रैखिक बीजगणित की तकनीकें (विधियाँ) वैश्लेषिक ज्यामिति, इंजीनियरी, भौतिकी, प्राकृतिक विज्ञान, संगणक विज्ञान, कम्प्यूतर एनिमेशन और सामाजिक विज्ञान (मुखयतः अर्थशास्त्र) में प्रयुक्त होती हैं। रैखिक बीजगणित के सिद्धान्त और विधियाँ अत्यन्त विकसित हैं। इसी लिए अरैखिक गणितीय मॉडलों को भी कभी-कभी सन्निकट रैखिक मॉडलों से निरूपित कर दिया जाता है जिससे उन्हें हल करने में सुविधा हो जाती है। श्रेणी:रैखिक बीजगणित.
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गणित
पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .
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गाउस विलोपन
रैखिक बीजगणित में गाउस की विलोपन विधि रैखिक समीकरणों के निकाय को हल करने की एक विधि है जिसके अन्तर्गत क्रम से कुछ संक्रियाएँ करने पर अन्ततः एक को छोड़कर बाकी सभी चर विलुप्त हो जाते हैं। रैखिक समीकरणों के निकाय को हल करने के अलावा गाउस की विलोपन विधि का उपयोग किसी मैट्रिक्स की रैंक प्राप्त करने के लिए, किसी मैट्रिक्स के डिटरमिनैण्ट का मान निकालने के लिए, तथा किसी वर्ग मैट्रिक्स का व्युत्क्रम (इन्वर्स) निकालने के लिए किया जाता है। इस विधि का नाम जर्मनी के गणितज्ञ कार्ल फ्रेडरिक गाउस के नाम पर पड़ा है, यद्यपि यह विधि उनसे पहले भी ज्ञात थी। गाउस की विलोपन विधि को सम्बन्धित समीकरणों की मैट्रिक्स पर क्रम से की जाने वाली संक्रियाओं के रूप में समझा जा सकता है। अर्थात् समीकरणों को उनके चरों सहित लेकर चलने की आवश्यकता नहीं रहती बल्कि चरों को छोड़ने के बाद जो मैट्रिक्स बचती है, उसी पर सारी संक्रियाएँ एक क्रम से करनी होती हैं। इस विलोपन विधि में केवल पंक्तियों की सरल संक्रियाएँ की जाती हैं ताकि मूल मैट्रिक्स ऐसी मैट्रिक्स में परिवर्तित हो जाय जिसके बाएँ निचले कोने के अधिक से अधिक अवयव शून्य हों। इसके लिए तीन प्रकार की पंक्ति-संक्रियाएँ की जातीं हैं-.
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आव्यूह
'''आव्यूह की संरचना''' गणित में आव्यूह एक अदिश राशियों से निर्मित आयताकार रचना है। यह आयताकार रचना लघु कोष्ठक "()", दोहरे दण्ड "|| ||" अथवा दीर्घ कोष्ठक "" के अन्दर बंद होती है। इसमें संख्याओं का एक विशेष प्रकार का विन्यास किया जाता है, अत: इसे आव्यूह, या मैट्रिक्स, की संज्ञा दी गई है। मैट्रिक्स के अवयव संख्याएँ होती हैं किन्तु ये ऐसी कोई भी अमूर्त वस्तु हो सकती है जिनका गुणा किया जा सके एवं जिन्हें जोड़ा जा सके। .
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क्रैमर-नियम
रैखिक बीजगणित में क्रैमर-नियम (Cramer's rule) रैखिक समीकरण निकाय का हल निकालने की एक प्रत्यक्ष विधि (direct method) है। यह विधि गुणांक मैट्रिक्स के डिटरमिनैण्ट तथा गुणांक मैट्रिक्स के एक परिवर्तित रूप के सारणिक के रूप में व्यक्त करती है। यह विधि तभी वैध है जब निकाय का अनन्य (यूनिक) हल सम्भव हो। इस नियम का नाम गैब्रिएल क्रैमर (Gabriel Cramer (1704–1752)) के नाम पर पड़ा है जिसने 1750 में इसे प्रतिपादित किया था। .
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अंकीय संकेत प्रक्रमण
संकेत प्रक्रमण या संकेत प्रसंस्करण दो तरह से किया जाता है.
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